Saturday, March 27, 2010
दुश्मन से हाथ मिलाओ
अमेरिका ने पाकिस्तान को चेतावनी दी की अगर आयन्दा से पाकिस्तान ने भारत पर आत्नाकी हमला किया तो अमेरिका उसे आगे से वित्तीय और रक्षा संबंधी सहायता देना बंद कर देगा ! लेकिन वे बाज नहीं आये और २००८ के २६ नवम्बर के दिन मुंबई पर बड़े पैमाने पर अटैक किया गया आतंकवादियों द्वारा ! इसमें खुला हाथ था पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों का ! विश्व का दबाव पड़ा तो पाकिस्तान ने उपरी मन से कुछ लक्सरे तैयबा के खूंखार लीडरों को नजरबन्द कुछ दिन नजरबन्द रखा और फिर यह कह कर छोड़ दिया क़ि "इनके खिलाफ भारत ने कोई प्रमाणिक प्रमाण नहीं दिए, इसलिए उनके खिलाफ कोर्ट में कोई केस नहीं बनाता," वे छोड़ दिए गए ! अमेरिका सब जानते हुए भी पाकिस्तान को सामरिक और आर्थिक मदद डी रहा है तथा भारत पर दबाव डाल रहा है क़ि वह पाकिस्तान के साथ वार्ता को पहल करे ! मरता क्या न करता भारत ने एक बार फिर बिना शर्त के पाकिस्तान के दरिन्दे नेताओं से सम्बन्ध ठीक करने के लिए हाथ बड़ा दी हैं ! विश्व के बड़े बड़े देश , सुरक्षा परिषद् के पाँचों सदस्य जानते हैं क़ि पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियां आतानाक्वाद को सरक्षण दे रहे हैं और शांती प्रिय देश भारत पर हमला करवा रहे हैं, फिर आँखें मीचे चुपचाप बैठे हैं ! उधर पाकिस्तान से भारत के राशन पर जीने वाले आतंकवादियों को चेतावनियाँ मिल रही हैं क़ि "या तो भारत के भीड़ भाड़ वाले स्थानों, सैनिक ठिकानों, होटलों, सामरिक गोला बारूद के गोदामों में अटैक करें या परिणाम भुगतें " ! लोग दहशत गर्दी में जी रहे हैं, नेता संसद विधान सभावों में लड़ रहे हैं, पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं, जनता को गम राह करने के लिए आरक्षण का जाल फैला रहे हैं ! !
अरे नेता शासको, प्रशासको,
कल तुम न रहोगे, लेकिन भारत रहेगा,
और भावी पीढी तुम्हारी संतान से कहेगा,
"वे तुम्हारे पिता व् पिता मह थे,
जिन्होंने देश में गुंडा गर्दी फैलाई,
अफराध ह्त्या अपहरण और की मंहगाई,"
तुम तो यम के दरवाजे खड़े सजा का इन्तजार करोगे,
जो अत्याचार आज तुम जनता पर कर रहे हो,
उसका दंड मरने पर भरोगे !
संभल जाओ आत तायियो अभी भी होश में आओ,
असहाय निर्धन जनता पर ज्यादा जुल्म न ढावो !
Friday, March 26, 2010
वे लोग
जो कचरे का ढेर लगाते हैं,
दूसरों के घर के आगे जा कचरा फैलाते है।
फिर वे लोग क्या कहलाते हैं ?
जो सफ़ेद टोपी लगाते हैं,
रात के अँधेरे में मुंह कचरे से रंगाते हैं,
और
दिन के उजाले में सफ़ेद पोस बन जाते हैं !
समाज में तो वे भी रहते हैं,
सुरक्षा कर्मी कहलाते हैं,
छेद उसी थाली में करते
जिसमें खाना खाते हैं !
कुछ लोग तो ज्यादा कचरे हैं
संसद भवन तक जाते है,
अपने ही गुंडों से मतदाता को लुटवाते हैं !
इन लोगों के दिल पत्थर के
खुद सरकार बनाते है,
आतंकवाद से हाथ मिला देश भक्त कहलाते हैं !
देश भरा है संतों से, जनता में पूजे जाते हैं,
गुंडा गर्दी करते करते ह्त्या तक करवाते हैं,
आरक्षण कोटे में महिला
ग्राम प्रधान बन कर आई,
लडके ने काम संभाला,
महिला थी अंगूठा टेक भाई ,
लडके के मन में शैतान जागा,
करोड़ों का फिर किया घोटाला,
ये है आरक्षण का खेल,
सुरक्षित नहीं हैं अपनी रेल !
फिर भी मेरा देश महान,
नाम है इसका हिन्दुस्तान !
Tuesday, March 23, 2010
हम चलें तुम चलो
हर दिलों के बुझे दीप फिर से जलें,
बोलो हम क्या कहें ये ज़माना कहे,
ये जमी तो रहे हम रहे ना रहे !
देख रोशन चमन क्यों ज़माना जले,
हम चले तुम चलो, ये ज़माना चले !
पेड़ पत्तियां हिले दूर जाकर गिरें,
क्या पता टूट कर फिर मिले ना मिले,
है तम्मना जिएँ जाम भर कर पिएँ ,
कोई गम ना रहे ना कोई कुछ कहे,
रोज मिन्नत करूँ और आहें भरूँ,
अब तो रस्ता दिखा बोल मैं क्या करूँ ?
दुश्मनी का गुब्बार क्यों दिलों में पले,
हम चले तुम चलो ये ज़माना चले !
विश्व वानिकी दिवस
मैं इस स्थान पर दिसंबर सन १९५३ ई० में अपने मामाजी स्वर्गीय श्री गोकुलसिंह जी के साथ आया था ! मामाजी का पहला परिवार था झिंडी चौड़ आने वाला ! उस समय यह इलाका पूरा जंगल था जंगली जानवरों से भरा हुआ !
ज़रा कल्पना कीजिए की आप अपनी बसी बसाई गिरस्थी, मकान, खेत खलियान, नाते रिश्ते, पास पड़ोसियों को छोड़कर एक जंगल में खुले आसमान के तले एक नयी गिरस्थी बसाने आगये हों ! पानी का सोत काफी दूर था ! खाद्य सामग्री के लिए दूर दूर तक दुकाने नहीं थी ! सबसे पहला कदम था, सुरक्षित स्थान ढूँढना रात बिताने के लिए ! फिर जंगल की सफाई करके खेतों में तब्दील करना ! यहाँ पर यह पीपल का पेड़ एक मात्र मूक गवाह है आज से ५७ साल पहले की घटनाओं का और इसी के नजदीक हम लोगों ने पहली रात बिताई थी ! उस समय यहाँ आने वाला हर व्यक्ति मेहनती था, हर एक दृढ संकल्प के साथ यहाँ आया था ! मच्छरों का दल पूरे साज बाजों के साथ आने वालों का स्वागत करने के लिए हर वक्त तत्पर रहता था ! जंगली घास से झोपड़े बनाए गए और रहने का ठिकाना किया गया ! मामाजी ने मुझे नन्ने बचों को पढ़ाने का काम दे दिया ! मैं दो महीने यहाँ रहा, कहीं से पीने का पानी, घड़ों में भर कर लाना पड़ता था ! कहने का मतलब यह एक बहुत ही संघर्ष मय समय था ! आज पूरे ५७ साल में यहाँ की काया पलट हो गयी ! पक्की सड़कें, पक्के मकान, नहर, पानी के नलके, बिजली , सजाया बाजार
पोस्ट आफिस, आने जाने की सुविधाए और वे सारी सुविधाएं जो एक सुविकसित शहर में उपलब्ध है, उच्च माद्यमिक विद्यालय, टेली फोन, हर नर नारी के पास मोबाईल फोन ! मेरे मामाजी का स्वपन साकार हो गया ! अगर आज वे ज़िंदा होते तो अपने हाथों से लगाई गयी इस फूलती फलती वाटिका को देख कर कितने खुश होते ! हाँ करीब ६-७ घंटे तक यहाँ रहे और इस पूरे समय में ज़रा भी महसूश नहीं हुआ की हम ऐसे स्थान पर बैठ हैं जो कबी घना जंगल हुआ करता था !
Wednesday, March 17, 2010
दर पे तेरे आया हूँ
दीपों की रोशनी से तुमको मनाने, आरती के गीतों से जग को जगाने !
आया हूँ दर पे तेरे.......
मैं तो एक आदमी हूँ, तुम तो भगवान हो,
राम कहूं कृष्ण कहूं तुम ही घनश्याम हो !
सूर्य लोक जा सके वह बाल हनुमान हो,
आदमी की भक्ती मुक्ती, तुम ही परम धाम हो !
केदार भी गया हूँ मैं तुमको मनाने,
आया हूँ दर पे तेरे दीप जलाने ! २ !
केदार तू है बद्री भी तू है,
सोमनाथ तू अमरनाथ भी तू है,
रामेश्वर तू है, जगन्नाथ तू है,
धरती और आकाश के कण कण में तू है,
प्रयाग कुम्भ गया गंगा नहाने, आया हूँ दर पे तेरे दीप जलाने,
दीपों की रोशनी से तुमको मनाने ! ( हरेंद्रसिंह रावत )
Tuesday, March 16, 2010
सरकारी राशन की दुकान
एक ज़माना था जब न कोई सरकारी राशन की दुकान हुआ करती थी, न राशन कार्ड की झंझट थी, न लम्बी लम्बी लाईने लगती थी, न तू तू मैं मैं ! अमीर गरीब तब भी थे ! जाति प्रथा थी! लेकिन समाज के सारे लोग पढ़े, अनपढ़, गरीब अमीर, सब मिलकर जिन्दगी का सफ़र तय करते थे । सेना तब भी थी, पुलिस का बंदोबस्त भी था! हिन्दू-मुसलमान भी गाँवों में बिना किसी भेद भाव के बड़े प्रेम से रहते थे । हाँ उस समय केवल एक ही मकसद था की देश को अंग्रेजों से आजाद करवाना है । कुर्वान होने वाले केवल एक ज़मात, एक जाति के नहीं थे ! "सर फरोशी की तम्मना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है !" शहीद भगत सिंह की ले से ले मिलाते हुए सारे भारतीय मिल कर गुण गुनाते थे ! हाँ, उस समय के रजवाड़े, सेठ, जमीदार जो अंग्रेजों के सहयोगी थे, इन आन्दोलनों को कुचलने में अंग्रेजों का साथ देते थे ! भारत आजाद हुआ और अंग्रेजों के ये पिछलग्गू राजनीति में छा गए। शासन की बागडोर इन्होंने ही समभा ली ! इन्होने स्वतन्त्र भारत में अंग्रेजों का ही संविधान थोड़ा बहुत तोड़ मरोड़ कर लागू कर दिया।
वोट बैंक बनाने के लिए समाज को तोड़ा जाने लगा ! पहले आरक्षण के दायरे में जाति धर्मों के बीच रेखा खींची जाने लगी ! फिर अमीर गरीब के बीच की खाई की चौडाई बढ़ती गयी। गरीबों के नाम से सरकारी सहूलियतें राजनीतिग्य, पुलिस, सरकारी कर्मचारी, अवसरवादी नेता उठाने लगे। सरकार सब्सिडी दे रही है लेकिन फायदा उठा रहे हैं पहुँच वाले लोग ! सरकारी राशन की दुकानों में जो कुछ हो रहा है उसका विवरण दिया है सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज डीपी बढ़वा ने अपनी रिपोर्ट में ! वे लिखते हैं की "डीपीएस देश का सबसे भ्रष्ट महकमा है ! सस्ता गेहूं गोदामों से सीधे मीलों में चला जाता है, इस कार्यवाही में पुलिस इन्स्पेक्टर, पीडीएस दुकान दार, सर्किल इन्सपेक्टर, गोदाम का मैनेजर राजनीति के प्रभाव शाली लोग सामिल हैं । अगर जो दुकानदार घूस देने में आनाकानी करता है, उसको सडा गला अनाज सप्लाई किया जाता है !" (सहारा १७ मार्च २०१० पृष्ठ एक )! इसी तरह से काला धन जोड़ जोड़ कर, गरीबों के बच्चों का पेट काट कर ये कुक्कर मुत्ता की तरह फलने फूलने वाले ही नेता मायावती जैसी नारी को खुश करने के लिए एक एक हजार नोटों की ५-७ करोड़ की माला बना कर मैडम के गले में डाल देते हैं ! जिस प्रदेश के करोड़ों लोग एक वक्त की रोटी के भी मोंहताज हों उसकी मुख्या मंत्री को ५-७ करोड़ रुपयों का नोटों का हार पहिनना शोभा देता है ?
जब तक सरकार भ्रष्ट नेताओं, सरकारी कर्मचारियों, पुलिस, और तमाम जिम्मेदार कर्मचारियों और अधिकारियों पर नकेल नहीं डालती, भ्रष्टाचार के कीचड़ /दल दल में पड़े लोगों को दर किनार नहीं करती, माया जैसी महिला को फूल की मालाओं से ही संतोष करने को नहीं कहती, हमारा भारत २०२० क्या विश्व शिखर में पहुँच जाएअगा ?
Monday, March 15, 2010
ई पी एल
उत्तर प्रदेश - मायावती
वह पहली महिला थी जिसने सबसे पहले २२९ रन बनाए एक दिवसीय क्रिकेट मैच में
Sunday, March 14, 2010
समाज में महिलाएं
Sunday, March 7, 2010
शादी के पचास साल
प्रशंचित और प्रशन मन से सब बारातियों ने भोजन ग्रहण किया । स्नेह से बनाया हुआ भोजन था इसलिए उसमें स्वाद भी था और मिठास भी थी। रात के तीन बजे उठ कर विधि विधान का अनुपालन किया गया। सुबह फेरे हुए, दोनों तरफ के विद्वान पंडितों ने श्लोकों से समा बाँध दिया। कॉल बचन हुए और शादी की प्रक्रिया विधि विधान से सम्पन्न हुई। चार बजे दिन के बरात विदा हुई, बधू अपनी सहेलियों से, माता-पिता से विदा हुई। अचानक चहल पहल और चेहरों की खुशियाँ विदाई के रंजों गम में तबदील हो गयी थी । इस तरह थी ५० साल पहले की शादी के रस्म-रिवाज, महिमान निवाजी । न कोई दहेज़ की प्रथा थी, न वधु पक्ष पर किसी किस्म से प्रेशर पड़ता था । दो परिवार एक हो जाते थे, एक दूजे का सुख दुःख बाँटते थे। मेरे ससुर जी अवकास प्राप्त जंगलात के रेंज अधिकारी थे, और मेरी पत्नी के भाई जगमोहनसिंह भी जंगलात विभाग में फौरेस्टर थे। परिवार खान दानी और अच्छे संस्कारों वाला, पढ़ा लिखा था। मुझे जैसा ससुराल चाहिए था ठीक वैसा ही मिल गया था ।
ठीक ५० साल बाद यानी ०६ मार्च २०१० शनिवार, कृष्ण पक्ष की षष्ठी यहाँ दिल्ली द्वारका में मॉस सोसायटी में मेरे बड़े लडके, राजेश बहु काजल, छोटा बेटा ब्रिजेश-बहु बिन्दु, लड़की उर्वशी और मेरे एक धेवती एक देवता (नीतिला-करण) तीन पोते आत्रेय वेदान्त, आर्नव तथा पोती आर्शिया ने मिलकर बंधू बांधव, पूरे सोसायटी के सदस्यों के साथ गोल्डन जुबली मनाई । इसमें सोसायटी के प्रधान कर्नल अनेजा जी तथा सचीव श्री आर के जैन और जैन जी की धर्म पत्नी श्रीमती शशी जी ने बड़ा योगदान दिया। इस अवसर पर सबसे वयोवृद्ध ख़ास महिमान मेरी बहु बिन्दु के दादा थे। हमें उनका आशीर्वाद मिला। शुरुआत सुन्दरकाण्ड से किया गया था । उसके बाद वर माला डाली गयी । २५० लोगों ने हमारी शादी की गोल्डन जुबली में हिस्सा लिया और इस जश्न को अधिक आकर्षक बनाने में साथ दिया। ऐसे लगा हम फिर ५० साल पीछे चले गए हैं और शादी मंडप में फेरे ले रहे हैं । बसंत का आगमन हो गया है। पेड़ पौधे अपने नए पत्तों को पाकर आनंदित हो रहे हैं। कुदरत अपनी रंगों की वर्षा कर रही है। कोयल आमों की डालियों में बैठी मस्त होकर गाना गा रही है। भंवरे सुन्दर सुन्दर फूलों में बैठे स्वर्ग का आनंद ले रहे हैं । और मैं और मेरी पत्नी स्वप्नों की डोली में बैठे नयी दुनिया की सैर कर रहे हैं।
Thursday, March 4, 2010
चाँद में बरफ
Tuesday, March 2, 2010
ऐसी होली मनाई मैंने
खाते खाते वेहोश न हो जाऊं, अगर ऐसा होगया तो सोसायटी में जो इज्जत अर्जित कर रखी है वो मिट्टी में न मिल जाय । यह सोच कर फिर प्लेट हाथ में लेकर चहल कदमी करने लगता । अब आलम यह था की मुझे चलते चलते स्वप्न आने लगे । मिनटों में मैं इंद्र के अखाड़े में पहुँच जाता, अपने को अफसराओं के बीच पाता। पलक झपकते ही साधुओं की टोली में जाकर भांग की चिलम पीता । फिर ख्याल आता की मैं बेहोश तो नहीं हो रहा हूँ। कहीं प्लेट हाथ से न छूट जाय। फिर शिव जी के गण अजीब अजीब वेश भूषा में नजर आये, वे सब के सब मेरा हाथ पकड़ कर मुझे नचाने लगे। अगले ही क्षण मैं विश्वामित्र बना हुआ हूँ, योग साधना में बैठा हूँ, कामदेव की फ़ौज वसंत ऋतू के साथ, धरती पर उतर रहे हैं। कामदेव ने अपने पुष्प धनुष पर काम वाण चढ़ाया और मेरे सीने पर चला दिया और ........ मेरी आँखे खुल गयी, कामदेव अपनी सेना के साथ डर कर भाग गए । मैंने फिर अपने को जोर से झटका दिया और चेतन अवस्था में आया । सोचा अब घर की तरफ भागो, कहीं भंग ने पूरी तरह से अपने आगोश में ले लिया तो मेरी इज्जत रूपी पूंजी का क्या होगा ? जल्दी जल्दी प्लेट खाली की, (मैं कभी खाने को बरबाद नहींकरता )। दो रस गुल्ले खाए और घर तरफ चल पड़ा । लिफ्ट के पास आकर बटन दबा दिया, लिफ्ट भी खुल गयी, लेकिन जैसे ही लिफ्ट के अन्दर जाने लगा, सोचने लगा की कहीं लिफ्ट में ही बेहोश हो गया तो फिर क्या होगा ? लिफ्ट से बाहर आकर सीढ़ियों से अपने घर पर आया । स्वप्न भी आ रहे हैं और सजग भी हो रहा हूँ ।
अजीब सी कसम कस । लुफ्त भी आरहा है और फिर बेहोश होने का डर भी सता रहा है । हंस रहा हूँ लेकिन दूसरों की प्रतिक्रया भी भांप रहा हूँ । नशा भी है लेकिन अपनी इज्जत का भी ख्याल है ।