Sunday, October 31, 2010

हाय काश्मीर

काश्मीर कभी थी दिल की धड़कन,
सुन्दर पर्वत घंने थे वन,
नदियों का मन-मोहक संगम,
फिरता भंवरा रूपी मन,
चिनार के पेड़, फूलों की घाटी,
सुगंध भरी यहाँ की थी माटी,
बाग़ बगीचे सुन्दर झीलें,
सारस बत्तखें रंग रंगीले,
फलों की रहती सदा बहार,
सेबों के थे कही प्रकार,
कुदरत डाली डाली पर,
धान की हर बाली पर,
खुशबू से भर जाती घाटी,
सुरबाला जल भरने आती !
सुबह सुबह सूरज की किरणे,
आके अलख जगाती,
छोटी छोटी चिड़ियाँ आकर,
मधुर संगीत सुनाती !
लोगों में था प्यार मोहब्बत
हिल मिल कर सब रहते थे,
हम भारती भारत हमारा,
सभी काश्मीरी कहते थे !
एक दिन एक राक्षस आया,
आतंकवाद को साथ में लाया,
बाग़ उजाड़े, मासूम मारे,
घाटी हो गयी विरान,
हत्यारे दुष्टों के डर से,
भागे संत बचाके जान !
अब तो जल रहा काश्मीर,
जल गयी सुन्दर तस्वीर,
हर रोज इस ज्वाला में
शहीद हो रहे सैनिक वीर !!

Wednesday, October 27, 2010

उसकी शर्ट मेरी शर्ट से सफ़ेद क्यों है ?

हम हमेशा दूसरों की साफ़ सफाई, उनकी उन्नति और विकास की तारीफ़ करते रहते हैं ! दूसरे की सफ़ेद शर्ट अपनी शर्ट से अच्छी लगती है, क्यों लगती है, इस विषय पर विचार करने का समय नहीं है ! एक तरफ हमारा इतिहास कहता है की भारतीय संस्कृति, सभ्यता और विकास विश्व के अन्य देशों से पहले का हैं दूसरी ओर हम दूसरोंके मुकाबले अपने को अभी भी अन्य विक्सित देशों से पिछड़ा हुआ समझते हैं ! आज अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, चीन, जापान, जर्मनी अपनी मेहनत से ऊंचाइयां नापते चले जा रहे हैं वहीं हमारे नेता जनता का पैसा बटोर कर विदेशी बैंकों में जमा करने में लगे हैं और दावा करते हैं की २०२० तक हम विश्व के नंबर वन होंगे ! अमेरिका का इतिहास बताता है की सन १८५० ई० तक अमेरिका के उत्तर पश्चिम पहाडी इलाके के लोग (जिन्हें यहाँ के लेखक, पत्रकार, उपन्यास कार इतिहास कार इन्डियन अमेरिकन मूल निवासी बताते हैं ) छोटे छोटे कब्बीलों में रहते थे ! रोलैंड समीति अपने उपन्यास "कैप्टेन'स डाग" में लिखते हैं कि अमेरिका के राष्ट्रपति जफ्फर्सन ने अपने दो सेना के अधिकारियों को इन इलाकों में भेजा वहां के इलाकों का नक्शा बनवाने, वहां की जन जातियों से संपर्क करने के लिए ! उन में से एक का नाम था कैप्टेन लेविस और दूसरे का नाम था क्लार्क ! लेविस के साथ एक कुता है जिसके माध्यम से यह उपन्यास लिखा गया है साथ ही इनके साथ दश बारह लोग भी इनके सामान, राशन ले जाने और इनकी मदद के लिए साथ थे अमेरिका के उत्तरी पश्चिमी इलाके
के तमाम प्रदेश, उटाह, न्यू हेम्फाशायर, मेसाच्युट, वरमोंट, अलास्का, अरिजोना,नेवादा, केलिफोर्निया आदि प्रदेशों में रहने वाले कब्बायली अलग अलग फिरकों में बँटे हुए थे, जंगली जानवरों को मार कर खाते थे और उनकी खाल ओढ़ते थे ! खेती के नाम केवल मकई की खेती करते थे ! कुत्ते और घोड़े पालते थे और जरूरत पड़ने पर उन्हीं को मार कर उनका मांस खा जाते थे ! शिकार करने के लिए उन लोगों के पास धनुष वाण होते थे जो छोटे छोटे जानवरों को मारने में सक्षम होते थे ! चाकू छूरी ही इनके हथियार थे ! ये जन जातियां अचानक एक दूसरे के ऊपर आक्रमण कर देते थे, आदमियों बच्चों को मार देते थे और लड़कियों और जवान औरतों के साथ साथ उनका राशन और घोड़े भी ले जाते थे ! ये जन जातियां अपने अपने जातियों के गाँव बसाकर झोपड़ियां बनाकर रहते थे ! कैप्टेन लेविस इलाकों में पाए जाने वाले जानवरों और पशु पक्षियों के नमूने इकट्ठे करते थे, वहां के लोगों के रहन सहन सहन, खान पान, और इलाके में पड़ने वाले जंगल, पहाड़, नदियाँ, झरने, मिट्टी किस किस्म की है, समुद्र से दूरी, आवागमन के साधन आदि जानकारियों का दस्तावेज तैयार करता था और कैप्टेन क्लार्क इलाकों का नक्शा बनाता था ! नदी, झरने, पहाड़ों के नाम उसी समय रखे गए थे जैसे एक नदी का नाम जैफ्फर्सन रिवर उसी समय पड़ा ! वहां के लोग इतने भूखे थे की एक घटना के मुताबिक़ कैप्टेन क्लार्क ने बन्दूक से एक हिरन मारा, हिरन पूरा मरा भी नहीं होगा की तमाम आस पास वाले स्थानीय जन जाति के लोग उस हिरन पर भूखे शेर की तरह टूट पड़े और एक घंटे के अन्दर कच्चा ही सारे हिरन को हजम कर गए ! जब कुछ नहीं मिलता तो जंगल में एक विशेष प्रकार बेल की जड़ें भी खा लिया करते थे ! स्थानीय कब्बायली (ब्लेक फूट) रात के समय इनके कैम्पों में आकर लूट पाट कर जाते थे लेकिन बन्दूक से बहुत डरते थे ! उन दिनों इन अमेरिकनों के पास बारूद से भरने वाली बंदूकें होती थी ! जानवरों और पक्षियों के ताल मेल पर लेखक लिखता है की इस खोजी टीम को बार बार एक कौवा दिखाई देता था जो पूरा काला होते हुए भी उसके दो तीन पंख सफ़ेद थे, वह जब किसी हिंसक पशु, जैसे शेर, बाघ, भालू को कहीं नजदीक देखता था तो काव काव करके सबको सचेत कर देता था ! कुछ क्ब्बायली बड़े मददगार और विश्वनीय भी थे ! इन जन जातियों से मेल मिलाप करने के लिए वे एक फ्रांसिसी और उसकी जन जाति बी बी को साथ ले गए थे जिसने इन लोगों और कब्बायालियों के बीच में बात करवाई और इंटर प्रेटर का काम किया ! कुछ उन दिनों की जन जातियों के नाम इस प्रकार हैं, (इलाका मिसौरी रिवर से मानदं इन्डियन) नेज़ पर्श, फ्लेट हेड, यांकतों सिओक्ष, सिओक्ष, टेटन सिओक्ष, ब्लेक फिट इन्डियन (चोर), चिनोक इंडियन !
इन लोगों ने पैसिफिक सागर और अटलांटिक सागर के साथ वाले इलाकों में पूरा सर्वे किया ! उस समय इलाके में मिलने वाले जीव जन्तु थे, भालू, भेड़िया, हिरन, बाराहशिन्घा जंगली बकरा, भैंसा, खरगोश, गिलहरी, चिड़ियाएँ ! पहाड़ों की चदाई बड़ी कठीन थी ! जून जौलाय में भी पहाड़ बर्फ से ढके रहते थे ! इन लोगों ने ४१४२ मील की यात्रा की और पूरे ३ साल इन इलाकों में गुजारे ! एक कैम्प का नाम तो इन लोगों ने स्थानीय जन जाति के नाम पर रख दिया "क्लैट्साप इंडियंस " । आज डेढ़ सौ सालों में इन सारे प्रदेशों में जा कर देखने से पता लगता है विकास क्या होता है? मेहनत किसको कहते हैं ? जनता से टैक्स लिया जाता है तो वह पैसा इलाके के विकास पर ही खर्च किया जाता है ! सारे जन जाति अगर गाँवों में रहते हैं तो जमींदार बन कर जहां आधुनिकता की सारी सुविधाएं मौजूद हैं ! बाकी बहुत से नगरों और शहरों में इज्जत से रह रहे हैं ! जब हमारे हाथों में भी यह जादू की छडी आजाएगी , हम भी ऐसा ही करने लगेंगे और फिर हमें यह नहीं कहना पडेगा की उसकी शर्ट मेरी शर्ट से सफ़ेद क्यों है ?

Tuesday, October 26, 2010

हम कितने भारतीय हैं ?

कभी कभी बड़ा अजीब सा लगता है जब हम लोग अमेरिका, इंगलैंड, फ़्रांस, जापान और चीन में अपना परिचय देते हैं, की हम बंगाली हैं, हम पंजाबी हैं, मद्रासी, आंध्र प्रदेश, करनाटक, गुजरात, यूं पी, मध्य प्रदेश के हैं ! विदेशी पूछते हैं की ये देश कहाँ है अभी तक सुना ही नहीं है ! फिर हम कहते हैं हम भारत के हैं और ये उसके प्रदेश हैं ! तो पहले ही हम यह क्यों नहीं कहते की हम भारतीय (इन्डियन) हैं ! अब भारत में रहने वाले लोगों की ही झलक देख लें ! देश आजाद हुआ, सरदार बल्लभ भाई पटेल के अथक परिश्रम से हिन्दुस्तान की एक तस्वीर बनी, उत्तर में काश्मीर, दक्षिण में रामेश्वर, पूरब में अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम में गुजरात ! सन १९४८ ई० में पाकिस्तान ने भारत से खैरात में लिए गए पचास करोड़ रुपयों से हथियार खरी दे और काश्मीर पर अटैक कर दिया ! मुंह की खाई और उसे अपनी हैसियत का भी पता लग गया ! लेकिन यहाँ एक गलती हो गयी, की नेहरू जी ने भारतीय सेना को बीच में ही सीज फायर करने का आदेश दे दिया ! उस समय भारतीय सेना आगे बढ़ रही थी, अगले २४ घंटों में पूरा काश्मीर पर तिरंगा फहरा दिया जाता, लेकिन इस अचानक के सीज फायर ने एक ऐसी समस्या खडी कर दी कि समस्या तो सुलझाने के बजाय और उलझ गयी और सन १९४८ ई० से आज तक हजारों मासूम और सेना के जवान काश्मीर की भेंट चढ़ गए ! समस्या ज्यों क़ि त्यों ! ये समझ में नहीं आया क़ि हमने काश्मीर समस्या को यूं एन ओ में क्यों दिया ? यूं एन ओ ने पाकिस्तान को आक्रमण कारी घोषित करने की जगह भारत पर ही प्रेशर डालना शुरू का दिया की वहां जनमत कराओ ! भारतीय सरकार ने काश्मीर को एक अलग स्टेटस देकर वहां की आम जनता के लिए सस्ता राशन, ईधन, शिक्षा और विकास कार्यों के लिए एक अलग ही आयोग गठित किया है !
सन १९६५ ई० में पाकिस्तान ने हिन्दुस्तान पर आक्रमण कर दिया अमेरिका से मिले दान के हथियारों से ! भारत जब जीतते हुए लाहोर तक पहुँच गया तो यूं एन ओ का प्रेशर फिर भारत पर पड़ने लगा सीज फायर करो !
यूं एन ओ ने यहाँ भी पाकिस्तान की शैतानियों को नजर अंदाज कर दिया ! ताशकंद समझौते में भारत पर जोर डाल कर तमाम जीते इलाके पाकिस्तान को वापिस करवा दिए ! १९६२ ई० में चीन ने भारत पर अटैक करके जो इलाके जीते वे इलाके चीन से यूं एन ओ भारत को वापिस आज तक नहीं दिला पाया, उलटा उसे सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बना दिया ! कभी अमेरिका तो कभी ब्रिटेन भारत में काश्मीर के विलय पर उंगली उठा रहा है ! चीन यूं एन ओ की बात नहीं मानता तो यूं एन ओ ने चीन पर कौन सा प्रतिबन्ध लगा दिया ! पाकिस्तान बड़े पैमाने पर हिन्दुस्तान में आतंक वादियों को भेज कर सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार रहा है लेकिन यूं एन ओ चुप
बैठा है ! फिर हमारी ही क्या मजबूरी है कि हम यूं एन ओ की हर बात माने ? भारत देश की एक और विडम्बना देखिए कि हमारे देश के ही नागरिक, लेखक, विद्वान, विचारक महान बनने के लिए देश की ही बुराई करने में ज़रा भी शर्म महशूस नहीं करते ! इनका कहना कि ये लोग काश्मीर की आम जनता से मिले हैं (केवल अलगाव वादी और आतंकवादी) और उनके विचार सुन कर ही वे अपनी लेखनी का पैनापन भारत की अखण्डता पर चुभा रहे हैं ! इन्होंने न तो कभी काश्मीर पंडितों के बहते हुए आंसुओं को देखा न काश्मीर में जीवन और मृत्यु के बीच झूलते हुए सिखों, बौद्धों और बचे हुए हिन्दुओं को ही जाकर पूछा कि वे इस विश्व का स्वर्ग कहे जाने वाले काश्मीर में कैसे रह पा रहे हैं ! अरे वे लोग तो हर रोज सहमे सहमे, डरे डरे किसी भी अनहोनी के इंतज़ार में दिन काट रहे हैं, उनका दर्द इन महान नीरेंद नागर और अरुंधती राय जैसे महान पत्रकारों को नहीं दिखाई देता ! भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और मार्किस्ट तो भारत के न तो कभी थे और न होंगे ! इस विचारधारा के लोग सदा से चीन का समर्थन करते आये हैं लेकिन अन्न भारत का खाते हैं ! अब एक सवाल उठता है की असली भारतीय कौन है? जिन्होंने देश की अखंडता बनाए रखने में अपना सारा जीवन ही समर्पित कर दिया, जिन क़ानून विदों, शासकों ने काश्मीर को भारत में विलय, एक सार्थक कदम बताया, देश के वे असंख्य नागरिक जो काश्मीर को नक़्शे में भारत का प्रदेश के रूप में देख कर गौरवान्वित होते हैं या वे कुछ सर फिरे पत्रकार लेखक जो चंद अलगाव वादियों की नज़रों में महान बनना चाहते हैं और कश्मीर को देश से अलग करके अखंड भारत के नक़्शे पर ही अपनी गंदी उंगली उठाते हैं ?

Monday, October 25, 2010

आजादी किस हद तक

हर देश का अपना एक सविधान होता है और देश का हर नागरिक उस सविधान की सीमाओं के अन्दर रहते हुए, अपने विचार व्यक्त कर सकता है, लेख लिख सकता है ! भाषण दे सकता है ! लेकिन जब कोई सर फिरा शख्स संविधान की सीमाओं का उल्लघन करके देश की अखंडता , सार्व भौमिकता पर ही प्रश्न चिन्ह लगाता है तो क्या उसे यह कह कर की देश आजाद है, जहां सबको कुछ भी बोलने का, विचार व्यक्त करने का अधिकार है, उसे छोड़ देना चाहिए ? अगर ऐसा है तो देश की क़ानून व्यवस्था क्या बनाए रखी जा सकती है ? देश १९४७ ई० को आजाद हुआ ! काश्मीर पर सन १९४८ ई० में पाकिस्तानी फ़ौज ने कब्बालियों का जामा पहिन कर अटैक किया ! तब काश्मीर के महाराजा हरिसिंह जी ने काश्मीर को बचाने के लिए, काश्मीर को भारत के संविधान के तहत भारतीय गण राज्य में में विलय होने की अपनी सहमति लिखित तौर पर दिल्ली दरवार में पेश कर दी थी ! पंडित नेहरू उस समय देश के प्रधान मंत्री थे ! आनन् फानन में कैबिनेट मीटिंग में एक प्रस्ताव पास करके काश्मीर को भारतीय गण राज्य में विधिवत तौर पर मिलाया गया, साथ ही काश्मीर को पाकिस्तानी चंगुल से छुडाने के लिए सीमा पर सेना भेज दी गयी थी ! अरुंधती के इस बयान ने क़ि " काश्मीर का विलय भारत में विधिवत नहीं हुआ " उसके अर्द्ध विकसित दिमाग की पोल खोलती है ! इस भारतीय नारी ने यह आग भड़का कर चंद मुट्ठी भर अलगाव वादी लोगों को तो खुश कर दिया लेकिन भारतीय संविधान का जो मजाक उसने उड़ाया है, उन महान देश भक्तों (गांधी, नेहरू, पटेल, श्यामा प्रशाद मुकर्जी, पन्त, रफ़ी अहमद किदवई, अब्दुल कलाम आजाद आदि ) जिन्होंने काश्मीर को विधिवत तरीके से भारत में मिलाया था, उनकी विस्वसनीयता पर ही अपनी गंदी उंगली उठा दी ! साथ ही कश्मीर की जनता का जिसने सहर्ष भारतीय संविधान में अपना विस्वास जताया, उनकी भावनावों को ठेस पहुँची उसका हर्जाना ये महिला क्या कभी चुका सकती है ? महान बनने की जो छलांग अरुंधती राय जी आपने लगाई , नतीजा क्या निकला, चारों और आपकी थू थू हो रही है ! आपने हाथ भी मिलाया किससे देश का गद्दार गिलानी से ! अभी भी संभल जाओ अरुंधती जी, गिलानी जैसे अलगाव वादी लोगों से दूर ही रहो आपकी बिगड़ी हुई प्रतिष्ठा लौट आएगी !

Friday, October 22, 2010

फ़ार्म हाउस

यहाँ हमारी कालोनी के उत्तर में गेट से बाहर निकलते ही एक सड़क पड़ती है, इस सड़क के पार उत्तर में एक बहुत बड़ा फ़ार्म हाउस पड़ता है ! पश्चिम में सड़क है जो आगे जाकर है हाई वे ११० से मिल जाती है ! फ़ार्म हाउस करीब २० बीघे के करीब है ! आज कल इस फ़ार्म हाउस में मकई, बैंगन, टमाटर, पालक और कद्दू की बिक्री चल रही है ! ३१ अक्टूबर को हर साल अमेरिका में हैलोवीन का त्यौहार एक अजीब तरीके से मनाया जाता है ! यहाँ अक्टूबर आते ही हरेक अमेरिकन के घर के आगे भूत प्रेतों की आकृतियाँ विभिन्न रंगों से रंगी हुई नजर आने लगती हैं ! साथ ही रंग बिरंगी रोशनियाँ विशेष त्यौहार का अहसास करवाती हैं ! बड़े बड़े कद्दू (पम्पकिन) लाकर उनपर भी भूत प्रेतों के चित्र बना कर घर के बाहर सजा दिए जाते हैं ! इन फ़ार्म हाउसों से लाखों करोड़ों डालरों की खरीद फरोख्त होती है ! हम भी कल २१ अक्टूबर को इस फ़ार्म हाउस में गए ! मैं तो देख कर दंग रह गया ! टमाटर बिखरे पड़े थे कुछ पक्के और बहुत सारे सड़े पड़े थे , बैगन करीब एक एक केजी के टनों में अच्छे भी थे और कुछ सड़े पड़े थे, एक एक पौधे पर १०-१२ बैंगन एक साथ लगे हुए थे ! कद्दू तो पूरे खेतों में सेल के लिए लगा रखे थे और ज्यादा खरीददार कद्दू ही खरीद रहे थे ! कद्दू के अलावा ग्राहक को पूरी छूट है की वह स्वयं खेतों में जाकर अपनी मन पसंद के टमाटर, बैंगन, मकई तोड़ कर ले सकते हैं ! कद्दू के लिए खरीददार को खेतों में तोड़ने के लिए नहीं जाना पड़ता वे टूटे हुए मिल जाते हैं ! बैंगन तथा टमाटर खेतों में ही सड़ गल गए हैं लेकिन कद्दूवों की अच्छी देख भाल होने से एक भी सडा गला नहीं दिखाई दिया ! अध्याप्रशाद सिंह जी मेरे साथ थे, उनहोंने १३ केजी टमाटर लिए और मैंने ८ केजी साथ ही जितनी भी मकई हम लाए थे सब मुफ्त मिल गयी ! इसके अलावा ताजे फलों की दुकान भी लगी हुई थी इस फ़ार्म हाउस के अन्दर !