tag:blogger.com,1999:blog-6434388015177233735.post6538094381439097888..comments2023-08-10T07:23:16.151-07:00Comments on kahani aur kavita: आज की ताजी खबरेंharendra singh rawathttp://www.blogger.com/profile/16719319457905241056noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-6434388015177233735.post-64016018754353009772010-05-17T23:58:16.863-07:002010-05-17T23:58:16.863-07:00dil ko gaharaaee se chhune vaalee kavita ! sanjeev...dil ko gaharaaee se chhune vaalee kavita ! sanjeev jee ne to karunaa ka saagar chhalaka diya ! desh ka ek hissaa peedaa se krandan kar rahaa hai, dillee vaalon ko koyal kee peeda ka ahsaas naheen ho raha hai, abhee koyal kyon ro rahee hai, ek prashn hai, jab koyal he naheen rahegee? he mere vatan ke logo ab to jaago !harendra singh rawathttps://www.blogger.com/profile/16719319457905241056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6434388015177233735.post-86787173669624929802010-05-17T23:27:47.544-07:002010-05-17T23:27:47.544-07:00बस्तर के जंगलों में नक्सलियों द्वारा निर्दोष पुलिस...बस्तर के जंगलों में नक्सलियों द्वारा निर्दोष पुलिस के जवानों के नरसंहार पर कवि की संवेदना व पीड़ा उभरकर सामने आई है |<br /><br />बस्तर की कोयल रोई क्यों ?<br />अपने कोयल होने पर, अपनी कूह-कूह पर<br />बस्तर की कोयल होने पर<br /><br />सनसनाते पेड़<br />झुरझुराती टहनियां<br />सरसराते पत्ते<br />घने, कुंआरे जंगल,<br />पेड़, वृक्ष, पत्तियां<br />टहनियां सब जड़ हैं,<br />सब शांत हैं, बेहद शर्मसार है |<br /><br />बारूद की गंध से, नक्सली आतंक से<br />पेड़ों की आपस में बातचीत बंद है,<br />पत्तियां की फुस-फुसाहट भी शायद,<br />तड़तड़ाहट से बंदूकों की<br />चिड़ियों की चहचहाट<br />कौओं की कांव कांव,<br />मुर्गों की बांग,<br />शेर की पदचाप,<br />बंदरों की उछलकूद<br />हिरणों की कुलांचे,<br />कोयल की कूह-कूह<br />मौन-मौन और सब मौन है<br />निर्मम, अनजान, अजनबी आहट,<br />और अनचाहे सन्नाटे से !<br /><br />आदि बालाओ का प्रेम नृत्य,<br />महुए से पकती, मस्त जिंदगी<br />लांदा पकाती, आदिवासी औरतें,<br />पवित्र मासूम प्रेम का घोटुल,<br />जंगल का भोलापन<br />मुस्कान, चेहरे की हरितिमा,<br />कहां है सब<br /><br />केवल बारूद की गंध,<br />पेड़ पत्ती टहनियाँ<br />सब बारूद के,<br />बारूद से, बारूद के लिए<br />भारी मशीनों की घड़घड़ाहट,<br />भारी, वजनी कदमों की चरमराहट।<br /><br />फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?<br /><br />बस एक बेहद खामोश धमाका,<br />पेड़ों पर फलो की तरह<br />लटके मानव मांस के लोथड़े<br />पत्तियों की जगह पुलिस की वर्दियाँ<br />टहनियों पर चमकते तमगे और मेडल<br />सस्ती जिंदगी, अनजानों पर न्यौछावर<br />मानवीय संवेदनाएं, बारूदी घुएं पर<br />वर्दी, टोपी, राईफल सब पेड़ों पर फंसी<br />ड्राईंग रूम में लगे शौर्य चिन्हों की तरह<br />निःसंग, निःशब्द बेहद संजीदा<br />दर्द से लिपटी मौत,<br />ना दोस्त ना दुश्मन<br />बस देश-सेवा की लगन।<br /><br />विदा प्यारे बस्तर के खामोश जंगल, अलिवदा<br />आज फिर बस्तर की कोयल रोई,<br />अपने अजीज मासूमों की शहादत पर,<br />बस्तर के जंगल के शर्मसार होने पर<br />अपने कोयल होने पर,<br />अपनी कूह-कूह पर<br />बस्तर की कोयल होने पर<br />आज फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?<br /><br />अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार, कवि संजीव ठाकुर की कलम सेUnknownhttps://www.blogger.com/profile/06416954992294116922noreply@blogger.com