जब २६ जनवरी १९५० को स्वतंत्र भारत का संविधान अस्तित्व में आया था, आम आदमी को बताया गया था की हमारा देश भारत अब एक सर्व सम्पन्न स्वतंत्र, सार्वभौमिक, प्रजातांत्रिक, धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है ! संविधान में भारत के हर नागरिक को इज्जत के साथ जीने का अवसर दिया गया है ! सबको नौकरी में समान अधिकार दिया गया, अपने धर्म को पालन करने का, अपनी भाषा बोलने का, लिखने का अपने विचार सरकार तक पहुंचाने का, समान काम के लिए समान वेतन-भता पाने का अधिकार दिया गया है ! क़ानून की नजर में सब बराबर होंगे ! किसी जुर्म में गरीब पकड़ा जाय या कोई अमीर या राजनीतिग्य का कोई परिवार का सदस्य सभी को सजा दी जाएगी ! हमारी संसदीय सरकार होगी जिसमें सबसे ऊंची कुर्सी पर तो देश का राष्ट्रपति बैठेगा लेकिन शासन की असली कुंजी प्रधान मंत्री के पास होगी ! देश में संघात्मक सरकारें शासन चलाएंगी ! देश के नागरिकों को अपने इलाके से एक सांसद और एक विधायक का चुनाव करना होगा ! कितनी पार्टियां चुनाव लड़ेंगी इसपर कोई सीमा निश्चित नहीं की गयी ! सच्चे ईमानदार, चरित्रवान, वफादार, जनता के सेवकों को ही चुनाव में खड़े होने का प्रावधान था ! प्रत्यासी पढ़ा लिखा होना चाहिए, इसका कोई प्रतिबन्ध नहीं था ! हाँ प्रत्यासी रोगी, दिवालिया, अफ़राधी, और असामाजिक संघठनों का सदस्य नहीं होना चाहिए ! संसद में जिस पार्टी का बहुमत होगा उस पार्टी का लीडर प्रधान मंत्री की कुर्सी पर बैठेगा और अपना मंत्री मंडल का गठन करेगा ! ठीक वैसे ही प्रदेश की विधान सभाओं में भी बहुमत हासिल करने वाली पार्टी का लीडर मुख्य मंत्री बनेगा और वह अपने मंत्री मंडल का गठन करेगा ! प्रदेश में राज्यपाल होगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा राष्ट्रपति का अम्बेजडर होगा ! शासन पद्धति को सुचारू रूप से चलाने के लिए तीन एजेंसियों का गठन किया गया था : न्यायपालिका, विधायिका और कार्य पालिका ! अमेरिका में शासन व्यवस्था चलाने के लिए ये एजेंसियां एक दूसरे से अलग हैं जिसे वहां "सेपरेशन आफ पावर" कहा जाता है ! लेकिन यहाँ विधायिका से ही कार्यपालिका का गठन होता है और कैबिनेट की सहमति से सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्तियां राष्टपति द्वारा की जाती है ! अमेरिका में राष्टपति का चुनाव सीधे जनता द्वारा एक अलग ही प्रणाली से किया जाता है , लेकिन हमारे संविधान में राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) के सदस्यों और सभी प्रदेशों विधान सभा के सदस्यों द्वारा चुना जाता है ! हर सदस्य के मत पत्र की वैल्यू फिक्स करने के लिए भी फार्मूला बना है ! देश के पूरे मतदाताओं की पूरी संख्या को ५३९ से भाग दिया जाता है (आज लोक सभा के सदस्यों की संख्या ५३९ है और राज्य सभा की सदस्य संख्या २५० है ) जो फल निकलता है वही एक सदस्य के मत पत्र की वैल्यू हो जाती है ! इसी तरह प्रदेशों के विधायकों के वोटों की वैल्यू भी निकाल ली जाती है ! आज के दिन सबसे ज्यादा विधायकों की सदस्य संख्या उत्तर प्रदेश में है ! लोक सभा में घट बढ़ हो जाती है और सता पक्ष का बहुमत अल्पमत में बदल जाता है तो संसद को भंग किया जाता है और केवल ऐसे मौकों पर राष्ट्रपति अपने विवेक का प्रयोग करते हैं, विपक्ष को मौका देते हैं या संसद को भंग करके मध्यावधि चुनाव करा देते हैं ! ठीक यही व्यवस्था प्रदेशों के लिए भी है ! वहां जब सता पक्ष अल्पमत में आ जाता है तो राज्यपाल केंद्र को इसकी रिपोर्ट दे देता है और अपना सुझाव भी की विपक्ष को मौक़ा दिया जाय, वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाय, या दुबारा चुनाव कराया जाय ! केंद्र के निर्णय पर ही राष्ट्रपित अपना आदेश देता है ! लेकिन अमेरिका में विधायिका का कार्यपालिका के गठन में कोई भूमिका नहीं रहती है ! वहां राष्ट्र पति चार साल तक अपने पद पर बने रहते हैं ! बार बार चुनाव के खर्चे से अमेरिकी सरकार अपनी जनता को आर्थिक संकट में नहीं डालती है ! राष्ट्रपति की मृत्यु हो जाती है तो उप राष्ट्रपति को बाकी के पीरियड के लिए राष्ट्रपति बनाया जाता है ! यहाँ राष्ट्रपति अपनी कार्य पालिका जनता द्वारा चुने गए सदस्यों में से नहीं लेता है, तथा उन्हें मंत्री की जगह सेक्रेटरी कहा जाता है, जैसे डिफेन्स सेक्रेटरी, फौरेन सेक्रेटरी, होम सेक्रेटरी आदि । इसके अलावा वहां हर प्रदेश में अपने गवर्नर को वहां की जन्या चुनती है ! प्रदेश की शासन व्यवस्था
गवर्नर के इर्द गिर्द ही घूमती है ! केंद्र के पास रेल, विदेश, रक्षा, जहाजरानी केन्द्रीय जांच एजेंसीज हैं बाकी सारी शक्तियां प्रदेशीय सरकारके पास सुरक्षित हैं ! भारतीय संविधान में क़ानून बनाने की तीन सूचियाँ हैं, संघीय सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची ! संघीय सूची के अंतर्गत आने वाले विषयों पर केंद्र क़ानून बनाता है, राज्य सूची पर राज्य सरकारें और समवर्ती सूची पर केंद्र और राज्य सरकारें क़ानून बना सकती हैं ! राज्य सरकार द्वारा बने कानूनों पर केंद्र रोड़ा लगा सकती है या स्वयं क़ानून बनाकर राज्य सरकार के क़ानून को निरस्त कर सकती है ! हमारे संविधान में संघ (केंद्र) ज्यादा शक्तिशाली है ! इतिहास के पन्नों में अंग्रेजों से पहले केंद्र सरकार द्वारा की गयी गलतियों को सुधारने का प्रयत्न किया गया है ! विभिन्नताओं में एकता का प्रयास किया गया है !
अधिकार और कर्त्तव्य
संविधान ने तो बहुत से अधिकार जनता को दिए हैं, पर समय की आंधी ने सारे अधिकार सिमेट कर राजनेताओं की जेब के हवाले कर दिए हैं। पुलिस, सी बी ई, ई बी, राव, सी आई डी जैसी सुरक्षा एजेंसीज सरकार के आदेशों से ही काम करती है, इस तरह बहुत प्रभावशाली मंत्री, संतरी, नौकरशाह, बड़े बड़े बिजिनिस मैंन, बड़े घराने, इन एजेंसियों द्वारा की गयी पूछ ताछ से बच निकलते हैं और गरीब के गले घंटी कोई भी बाँध देता है ! समय समय पर सुप्रीम कोर्ट सरकार को हिलाती है उसे उसके कर्तव्यों के प्रति जगाती है ! यही कारण है की जनता तो कर्तव्यों के बोझ तले दबी पडी है और अधिकारों का पूरा फायदा वी वी आई पी, वी आई पी, नेता, क्लास वन अधिकारी और उनके परिवार के सदस्य उठाते हैं ! अमेरिका में पिछले राष्ट्रपति की नाबालिक लड़की बार में वीयर पीते पकड़ी गयी थी और यह जानते हुए भी की ये राष्ट्रपति की लड़की है उसे भी अन्य नागरिकों की तरह क़ानून तोड़ने का अफ़राधी माना गया ! भारत में किसी म्युनिसिपैलिटी के सदस्य के परिवार के किसी सदस्य को जुर्म करने पर पुलिस वाले एक दम हाथ नहीं डाल पाती है, अगर पुलिस ने अफ़राधी को पकड़ भी लिया तो एक फोन की घंटी बजते ही अफ़राधी छूट जाता है ! फिर संविधान सबके लिए बराबर कहाँ हुआ ! केंदीय मंत्री करोड़ों का घोटाला करने पर भी बेल पर बाहर घूम रहे हैं, एक क्लास फोर सौ पांच सौ की रिश्वत के लिए पांच सात सालों के लिए जेल की सलाखों में भेजा जाता है ! आरक्षण ने तो समानता के अधिकारों को और भी पीछे धकेल दिया है ! हाँ आज मीडिया वाले अपने समाचार पत्रों की सुर्ख़ियों में अपने अधिकारों का दिल खोल कर इस्तेमाल करते हैं ! संविधान ने बहुत कुछ दिया है लेकिन नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए जनता से सब वापिस ले लिया है ! एक वोट देने का अधिकार है लेकिन दुष्ट, भ्रष्टाचारी, अफ़राधी एमपी एम एल ए को वापिस बुलाने का अधिकार नहीं है ! अब देखो अन्ना हजारे जी का लोक पाल बिल क्या कुछ जनता के जख्मों पर मरहम लगा पाएगा, समय ही बताएगा !
Friday, November 25, 2011
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