हम हमेशा दूसरों की साफ़ सफाई, उनकी उन्नति और विकास की तारीफ़ करते रहते हैं ! दूसरे की सफ़ेद शर्ट अपनी शर्ट से अच्छी लगती है, क्यों लगती है, इस विषय पर विचार करने का समय नहीं है ! एक तरफ हमारा इतिहास कहता है की भारतीय संस्कृति, सभ्यता और विकास विश्व के अन्य देशों से पहले का हैं दूसरी ओर हम दूसरोंके मुकाबले अपने को अभी भी अन्य विक्सित देशों से पिछड़ा हुआ समझते हैं ! आज अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, चीन, जापान, जर्मनी अपनी मेहनत से ऊंचाइयां नापते चले जा रहे हैं वहीं हमारे नेता जनता का पैसा बटोर कर विदेशी बैंकों में जमा करने में लगे हैं और दावा करते हैं की २०२० तक हम विश्व के नंबर वन होंगे ! अमेरिका का इतिहास बताता है की सन १८५० ई० तक अमेरिका के उत्तर पश्चिम पहाडी इलाके के लोग (जिन्हें यहाँ के लेखक, पत्रकार, उपन्यास कार इतिहास कार इन्डियन अमेरिकन मूल निवासी बताते हैं ) छोटे छोटे कब्बीलों में रहते थे ! रोलैंड समीति अपने उपन्यास "कैप्टेन'स डाग" में लिखते हैं कि अमेरिका के राष्ट्रपति जफ्फर्सन ने अपने दो सेना के अधिकारियों को इन इलाकों में भेजा वहां के इलाकों का नक्शा बनवाने, वहां की जन जातियों से संपर्क करने के लिए ! उन में से एक का नाम था कैप्टेन लेविस और दूसरे का नाम था क्लार्क ! लेविस के साथ एक कुता है जिसके माध्यम से यह उपन्यास लिखा गया है साथ ही इनके साथ दश बारह लोग भी इनके सामान, राशन ले जाने और इनकी मदद के लिए साथ थे अमेरिका के उत्तरी पश्चिमी इलाके
के तमाम प्रदेश, उटाह, न्यू हेम्फाशायर, मेसाच्युट, वरमोंट, अलास्का, अरिजोना,नेवादा, केलिफोर्निया आदि प्रदेशों में रहने वाले कब्बायली अलग अलग फिरकों में बँटे हुए थे, जंगली जानवरों को मार कर खाते थे और उनकी खाल ओढ़ते थे ! खेती के नाम केवल मकई की खेती करते थे ! कुत्ते और घोड़े पालते थे और जरूरत पड़ने पर उन्हीं को मार कर उनका मांस खा जाते थे ! शिकार करने के लिए उन लोगों के पास धनुष वाण होते थे जो छोटे छोटे जानवरों को मारने में सक्षम होते थे ! चाकू छूरी ही इनके हथियार थे ! ये जन जातियां अचानक एक दूसरे के ऊपर आक्रमण कर देते थे, आदमियों बच्चों को मार देते थे और लड़कियों और जवान औरतों के साथ साथ उनका राशन और घोड़े भी ले जाते थे ! ये जन जातियां अपने अपने जातियों के गाँव बसाकर झोपड़ियां बनाकर रहते थे ! कैप्टेन लेविस इलाकों में पाए जाने वाले जानवरों और पशु पक्षियों के नमूने इकट्ठे करते थे, वहां के लोगों के रहन सहन सहन, खान पान, और इलाके में पड़ने वाले जंगल, पहाड़, नदियाँ, झरने, मिट्टी किस किस्म की है, समुद्र से दूरी, आवागमन के साधन आदि जानकारियों का दस्तावेज तैयार करता था और कैप्टेन क्लार्क इलाकों का नक्शा बनाता था ! नदी, झरने, पहाड़ों के नाम उसी समय रखे गए थे जैसे एक नदी का नाम जैफ्फर्सन रिवर उसी समय पड़ा ! वहां के लोग इतने भूखे थे की एक घटना के मुताबिक़ कैप्टेन क्लार्क ने बन्दूक से एक हिरन मारा, हिरन पूरा मरा भी नहीं होगा की तमाम आस पास वाले स्थानीय जन जाति के लोग उस हिरन पर भूखे शेर की तरह टूट पड़े और एक घंटे के अन्दर कच्चा ही सारे हिरन को हजम कर गए ! जब कुछ नहीं मिलता तो जंगल में एक विशेष प्रकार बेल की जड़ें भी खा लिया करते थे ! स्थानीय कब्बायली (ब्लेक फूट) रात के समय इनके कैम्पों में आकर लूट पाट कर जाते थे लेकिन बन्दूक से बहुत डरते थे ! उन दिनों इन अमेरिकनों के पास बारूद से भरने वाली बंदूकें होती थी ! जानवरों और पक्षियों के ताल मेल पर लेखक लिखता है की इस खोजी टीम को बार बार एक कौवा दिखाई देता था जो पूरा काला होते हुए भी उसके दो तीन पंख सफ़ेद थे, वह जब किसी हिंसक पशु, जैसे शेर, बाघ, भालू को कहीं नजदीक देखता था तो काव काव करके सबको सचेत कर देता था ! कुछ क्ब्बायली बड़े मददगार और विश्वनीय भी थे ! इन जन जातियों से मेल मिलाप करने के लिए वे एक फ्रांसिसी और उसकी जन जाति बी बी को साथ ले गए थे जिसने इन लोगों और कब्बायालियों के बीच में बात करवाई और इंटर प्रेटर का काम किया ! कुछ उन दिनों की जन जातियों के नाम इस प्रकार हैं, (इलाका मिसौरी रिवर से मानदं इन्डियन) नेज़ पर्श, फ्लेट हेड, यांकतों सिओक्ष, सिओक्ष, टेटन सिओक्ष, ब्लेक फिट इन्डियन (चोर), चिनोक इंडियन !
इन लोगों ने पैसिफिक सागर और अटलांटिक सागर के साथ वाले इलाकों में पूरा सर्वे किया ! उस समय इलाके में मिलने वाले जीव जन्तु थे, भालू, भेड़िया, हिरन, बाराहशिन्घा जंगली बकरा, भैंसा, खरगोश, गिलहरी, चिड़ियाएँ ! पहाड़ों की चदाई बड़ी कठीन थी ! जून जौलाय में भी पहाड़ बर्फ से ढके रहते थे ! इन लोगों ने ४१४२ मील की यात्रा की और पूरे ३ साल इन इलाकों में गुजारे ! एक कैम्प का नाम तो इन लोगों ने स्थानीय जन जाति के नाम पर रख दिया "क्लैट्साप इंडियंस " । आज डेढ़ सौ सालों में इन सारे प्रदेशों में जा कर देखने से पता लगता है विकास क्या होता है? मेहनत किसको कहते हैं ? जनता से टैक्स लिया जाता है तो वह पैसा इलाके के विकास पर ही खर्च किया जाता है ! सारे जन जाति अगर गाँवों में रहते हैं तो जमींदार बन कर जहां आधुनिकता की सारी सुविधाएं मौजूद हैं ! बाकी बहुत से नगरों और शहरों में इज्जत से रह रहे हैं ! जब हमारे हाथों में भी यह जादू की छडी आजाएगी , हम भी ऐसा ही करने लगेंगे और फिर हमें यह नहीं कहना पडेगा की उसकी शर्ट मेरी शर्ट से सफ़ेद क्यों है ?
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