Saturday, July 31, 2010

मेरी कहानी (चौदवां भाग)

जिस समय मैं बच्चों को दिल्ली छोड़ कर जम्मू कश्मीर जा रहा था अचानक मेरे दिमाग में एक ख्याल आया की "अब क्योंकि मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी का ग्रेजुएट हूँ, १५ साल की फ़ौज की पेंशन वाली सर्विस भी हो गयी है, क्यों अब दर दर की ठोकर खाऊँ ! रिटायरमेंट लेकर बच्चों के साथ रहूँ ! भूत पूर्व सैनिक कोटे से दिल्ली में ही सर्विस मिल जाएगी" ! उन दिनों तक हवलदार था और आगे का प्रोमोशन कब तक मिलेगा, कुछ पता नहीं था ! रिटायरमेंट लेने के लिए भी एक बार यूनिट में तो जाना ही था ! बच्चों के साथ दिल्ली में गाँव से माँ को बुला लिया था ! मैं पूँछ चला गया ! दो तीन महीने जम जमाव में लग गए ! नया साल १९७४ आ गया था, कलेंडर बदली हो गया और दफ्तरों में नया कलेंडर लग गया ! जिन्दगी की असलियत भी यही है, पुराना चला जाता है उसकी जगह नया ले लेता है ! जब तक कुर्सी है चाहे वह एक लिपिक की हो या भारी भरकम मंत्री की इज्जत होती है, लेकिन कुर्सी की ! पहली अप्रेल १९७४ को मेरा दूसरा लड़का ब्रिजेश रावत का जन्म हुआ ! तीनों बच्चों के जन्म दिन पर मेरी माँ साथ रही ! यह सब मेरी माँ का आशीर्वाद है की आज मेरे तीनों बच्चे बहुत ही अच्छी पोजीशन पर हैं ! इन्हीं दिनों पता लगा की मैं भी अगले प्रोमोशन के लिए लाईन में हूँ, इसके लिए प्रोमोशन टेस्ट पास करना जरूरी था ! अब सारा ध्यान टेस्ट पर लग गया और प्री रिटायरमेंट का इरादा पीछे छूट गया ! छ हफ्ते का केडर किया, टेस्ट हुआ, मैं और मेरा साथी कमलसिंह दोनों टेस्ट पास कर गए और इन्तजार शुरू हो गया प्रोमोशन पाने का ! कमल मेरे से एक नंबर पहले था और उसके बाद मेरा नंबर था ! इन्हीं दिनों कमान अधिकारी ने मुझे ड्यूटी पर दिल्ली भेजा दस दिन के लिए ! दिल्ली आकर बच्चों को भी देखने का अवसर मिल गया ! ब्रिजेश एक महीने का हो गया था ! अच्छा तंदुरुस्त था ! चांदनी चौक में जेवेलर को बटालियन के लिए शील्ड मोमेंटो का आर्डर बुक करना था ! दिल्ली का काम पूरा करके मैं वापिस यूनिट में चला गया !
पहले की लोकेशन प्रोपर पूंछ थी लेकिन इस बार हमें पूंछ नदी पार करते ही, उत्तर में सेखलू नामक जगह मिली थी ! यहाँ से आगे चल कर मंडी नदी के साथ साथ मंडी नामक एक छोटा क़स्बा पड़ता है ! वैसे एक जवान की जरूरतों को पूरी करने लिए यूनिट के अन्दर ही सी. एस. डी (ऐ) कैंटीन होती है तथा कभी कभी चाय नास्ता के लिए सिविल बनिया की कैंटीन भी यूनिट के अन्दर होती है, फिर भी घूमने के बहाने हम लोग कभी मंडी तो कभी पूंछ बाजार चले जाते थे ! उन दिनों सच मुच में शांती का माहोल था ! न कोई आतंकवाद का भय, न कोई घूस पैठ न कोई दंगा फसाद की कोई समस्या थी ! सिविलियन जो यूनिट की सीमा के अन्दर काम करने आते थे उनके पहचान पत्र बने हुए थे ! चारों कम्पनियां ऊंची ऊंची पहाड़ियों के ऊपर मोर्चे बनाकर लाईन आफ कंट्रोल पर नजर रखने के लिए तैनात की गयी थी ! मैं बटालियन के मुख्यालय में अकाउंट आफिस में कार्य रत था ! बटालियन के सूबेदार मेजर दिलजान सर्विस पूरी करके पेंशन चले गए थे और उनकी जगह १९७३ ई० में भगवानसिंह नए सूबेदार मेजर बने ! ले.कर्नल मन मोहन कुमार बकाया पूरे पांच साल यूनिट की कमांड करके १०५ टी ए बटालियन के सी ओ बन कर चले गए थे और ले.कर्नल एच एन पालीवाल (कभी सेंटर के टू आई सी कन्हैया लाल जी के सुपुत्र) नए कमांडिंग आफिसर यूनिट में पोस्ट होकर आ गए ! उनके सेकंड इन कमांड थे मेजर पारीख ! १२ जून १९७६ ई० का दिन मेरी जिन्दगी का एक यादगार दिन बन कर आया, इसी दिन मुझे हमारे सी ओ साहेब ने नायब सुबेदारी के स्टार लगाए ! अब मैं जूनियर कमीसंड आफिसर था और जूनियर से सलूट का अधिकारी बन गया था ! पीटी ड्रेस बदल गयी थी, सफ़ेद हाफ बांह की शर्ट सफ़ेद निकर और सफ़ेद ही पी टी शूज ! जिम्मेवारी का बोझ कन्धों पर आ गया, चहरे पर एक रौब, एक खुशी की चमक ! जे सी.ओज म्यस में इन्ट्री हो गयी थी ! यूनिट की डायजेस्ट बुक (यह बुक आफिसर्स म्यस में रखी जाती है और इसमें रोज की महत्वपूर्ण घटनाओं का विवरण अंकित किया जाता है) में नाम अंकित हो गया था ! अब तो ऐसे लगने लगा की समय जैसे बहुत तेजी से भाग रहा हो और अगली मंजिल पर कुछ और नया होने वाला है !
सेखलू में तीन साल का फील्ड टेनुयर कब बीत गया पता ही नहीं लगा ! यूनिट को नया पीस स्टेशन मिला " बीकानेर" राजस्थान ! अभी वीकानेर में जम जमाव कर ही रहे थे मेरे बड़े भाई श्री कुंवरसिंह ४ नवम्बर १९७६ को हमें छोड़ कर स्वर्ग सिधार गए ! वे अपने पीछे पांच लडके दो लड़कियां और अपनी पत्नी बिमलादेवी को छोड़ गए ! बड़ा लड़का मुनीन्द्र १७ साल का था और १२ वीं में फेल हो गया था ! गाँव गया किसी तरह से परिवार को संभाला, सभी बच्चों को पढाई जारी रखने को कह कर मैं वापिस अपनी ड्यूटी पर बीकानेर आ गया !

इन दिनों दिल्ली में बहुत कुछ घट गया था, श्रीमती इन्द्रा गांधी ने सन १९६९ ई० में राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की अचानक मृत्यु होने पर नए राष्ट पति के लिए वी वी गिरी जो उस समय उपराष्ट्र पति थे का नाम प्रोपोज कर दिया, लेकिन कांग्रेस की कार्य समिति के १५ में से १३ सदस्य संजीव रेड्डी को
राष्ट्रपति बनाना चाहते थे ! इससे कांग्रेस का विभाजन हो गया ! कारण तो बहुत सारे थे लेकिन इसी बात को मुद्दा बनाया गया ! इन्द्रा जी की नयी कांग्रेस और कांग्रेस के दिग्गज जो वास्तव में पार्टी की असली जड़ें थी, कामराज, निजिंग्लाप्पा मोरारजी देसाई (उस समय देश के वित् मंत्री), मोहनलाल सुखाडिया आदि पुरानी कांग्रेस (इन्हें सिंडीकेट कांग्रेस भी कहा जाने लगा था ) बन कर कांग्रेस बाँट गयी ! वी वी गिरी कार्यवाहक राष्ट्रपति भी थे, उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए इस पद से त्याग पत्र दे दिया ! अब राष्ट्रपति की कुर्सी खाली थी, संविधान में कोई प्रोवीजन नहीं था की अगर ऐसी स्थिति आ जाए तो कौन इस कुर्सी पर बैठेगा ! आनन् फानन में संविधान में एक क्लोज और जोड़ा गया और भारत के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को भारत का कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया ! मोरारजी देसाई को वित् मंत्री पद से हटाया गया ! वी वी गिरी जीत गए और इन्द्रा गांधी की पकड़ सता पर मजबूत हो गयी ! सन १९७१ में समय से पहले ही संसद के चुनाव करा दिए गए ! इन्द्रा गांधी की कांग्रेस अपने बल बूते पर सता में आ गयी ! सन १९७१ की लड़ाई से इन्द्रा जी का कद और भी बढ़ गया ! इन्हीं दिनों इन्द्रा जी के चुनाव को उनके विरोधी ने कोर्ट में चैलेन्ज कर दिया और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रधान मंत्री इन्द्रा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया ! उस समय इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस थे "जगमोहन" ! विपक्ष जय प्रकाश नारायण की अगुवाई में एक छतरी के नीचे आ गए ! इसमें कम्युनिस्ट पार्टियों के लोग भी शामिल हो गए, तथा जन संघ (आज की भारतीय जनता पार्टी) जिसके प्रमुख थे अटल बिहारी बाजपेयी और लाल कृष्ण अडवानी ! रैलियाँ निकाली जानी लगी, सडकों में जाम लगाया गया ! हड़ताल, नारे बाजी, "इन्द्रा गांधी इस्तीफा दो", आम जनता भी सडकों पर आ गयी ! क़ानून व्यवस्था चरमराने लगी ! संसद और विधान सभाओं में काम ठप हो गया ! संन १९७५ ई० में कांग्रेस सरकार ने देश में अमर्जेंसी लगा दी ! नेताओं की धर पकड़ शुरू हो गयी ! विधान सभाएं और संसद भंग कर दी गयी ! जेल भरी जानी लगी ! आम आदमी के सडकों पर आने जाने में प्रतिबंद्ध लग गया ! १९७६ में संसद के चुनाव होने थे वे भी कैंसिल हो गए ! जब विदोह ज्यादा ही भड़क गया तो सन १९७७ ई० में संसद के चुनाव कराए गए ! इसमें कांग्रेस के कदावर और इन्द्रा जी के ख़ास सहयोगी हेमवती नंदन बहुगुणा और जग जीवन राम भी इन्द्रा जी से अलग हो गए ! १९७७ का चुनाव जनता पार्टी बहुत भारी मतों से जी गयी, स्वयं इन्द्रा गांधी को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा ! स्वतंत्रता के बाद पहली बार देश में कांग्रेस सता से बाहर हुई ! मोरारजी देसाई प्रथम विपक्षी प्रधान मंत्री बने ! चरणसिंह जी गृह मंत्री ! मोराजी देसाई ने कुर्सी पर बैठते ही सबसे पहले अमर्जेंसी को हटाया ! जनता में खुशी की लहर चल पडी ! घर घरों में दीप जलाए गए ! आम आदमी समझने लगा की जनता पार्टी की जीत आम आदमी की जीत है और अब कोई भाई भतीजा वाद नहीं होगा, सब को नौकरी मिलेगी, महंगाई समाप्त हो जाएगी, अमीर गरीब की खाई काफी कम हो जाएगी ! सबको समान न्याय मिलेगा ! हर भारतवासी के रोटी कपड़ा और मकान की समस्या नहीं रहेगी !

Friday, July 30, 2010

मेरी कहानी (तेरहवां भाग}

मार्च के प्रथम सप्ताह में हमारी सेनाएं वापिस अपने स्थायी जगहों पर जाने लगे ! हमारी यूनिट भी वापिस नसीराबाद आ गयी थी ! मुझे परिक्षा देने दिल्ली जाना था, सो दो महीने की छुट्टी लेकर मैं दिल्ली चला गया ! वहां मामा जी के फ्लेट में जाकर परीक्षा की तय्यारी की, परिक्षा दी और वापिस यूनिट में आ गया ! यूनिट के लगातार ६ साल जम्मू कश्मीर में रहने और फिर ७१ की लड़ाई में सामिल होना, युद्ध के दौरान उसके जवानों द्वारा किये गए वीरता के कार्यों से खुश होकर सेना मुख्यालय ने यूनिट को आराम देने के लिए मुंबई, "महाराष्ट्र गुजरात हेडक्वाटर्स" कोलाबा मुंबई भेज दिया ! सितम्बर में यूनिट पूरे साजो सामान तमान जवान ऑफिसरों की फेमिलियों के साथ मुंबई पहुंचे ! फरवरी ७, ८ और ९, १९७३ को बटालियन ने "क्याक म्यांग हेड इरावदी डे" बटालियन डे मनाया ! इस अवसर पर अवकास प्राप्त ऑफिसर्स, जे सी ओज और जवान बहुत बड़ी संख्या में सामिल हुए ! सुबह मंदिर में पूजा आरती, उसके बाद युद्ध भूमि में बटालियन द्वारा किये गए वीरता के कार्यों की समीक्षा, शहीदों को श्रधांजलि दी गयी ! बाहर से कलाकारों को बुलाया गया था ! गाना-बजाना, नाटक, हास्य ब्यंग और कही दूसरे आईटम पेश करके मेहमानों और जवानों का मनोरंजन किया गया ! बूढ़े-जवानों को फ़ौजी जिन्दगी ताजी करने केलिए म्यूजिक चेयर, १०० मीटर दौड़, बौली बौल, बास्केट बौल और भी बहुत से हंसाने हंसाने वाले खेल तमाशे दिखाए गए ! तीन दिन कब बीत गए पता भी नहीं चला ! ऑफिसर्स जेसीओज की ग्रुप फोटो खिची गयी! यूनिट में यह दिन हर साल मनाया जाता है लेकिन इस साल का बटालियन डे एक स्पेशल था, अमन चैन के साथ वह भी मुंबई में ! उस जमाने में मुंबई बम्बई था, मेल मिलाप और भाई चारे का था ! उस समय न कोई राज ठाकरे या बाल ठाकरे जैसा ऊंचे कद का ऊंची नाक का मराठी था जो मुंबई केवल मराठी भाषी और मराठी लोगों का बत लाता ! हाँ नक्षलवाद जैसी समस्याएँ उस समय भी थी लेकिन उनमें कोई राजनीतिक नेता सामिल नहीं था, इसलिए उनको कंट्रोल करने की कोई समस्या नहीं थी ! मेजर रामचंद्र ले.कर्नल बनकर चौथी राज रिफ की कमान करने पोस्ट हो गए और उनकी जगह टू ऐ सी मेजर
वी एन वधवा आगये थे ! वे कनाडा ऑफिसर्स स्टाफ कालेज से कोर्स करके यूनिट में आए थे ! बहुत ही काबिल और मेहनती प्रशासक थे ! शांत मधुर भाषी, जूनियर से नजदीकी बनके रखते थे ! वीर, परिश्रमी जवानों का हमेशा हौशला अफजाई करते थे ! मुझे दो साल उनके मातहत काम करने का मौका मिला और काफी कुछ सिखने को मिला ! अब वे ले.जनरल के रैंक से अवकास ले चुके हैं ! मुम्बई देखने को बहुत कुछ है, 'गेट वे आफ इण्डिया ' समुद्र के किनारे ! यूरोपियन सबसे पहले व्यापार करने इसी स्थान से यहाँ आये थे ! वोट मोटर वोट बड़ी संख्या में समुद्र में घूमने के लिए उपलब्ध हैं ! चौपाटी, समुद्र के किनारे बैठ कर या समुद्र की लहरों का मजा लेने के लिए मुम्बई की सबसे हसीन जगह "चौपाटी जाएंगे भेल पूरी खाएंगे बैंड बाजा बाजेगा डम डम डम " ! समुद्र के किनारे "चोर बाजार" ! उस समय की सबसे बड़ी व्यापार मंडी थी मुम्बई ! देश के सभी प्रान्तों के लोग मिल जाते थे मुम्बई में ! सर्विस मिल जाती थी, पैसा भी था लेकिन रहने की जगह नहीं मिल पाती थी ! लोकल ट्रेन हर पांच मिनट की सर्विस, पर भीड़ उस जमाने में भी बहुत थी ! सरकारी बसें आराम से मिल जाती थी ! अंधेरी मुम्बई हवाई अड्डा सब कुछ देखने का अवसर मिला ! कोलाबा, नेवी नगर मुम्बई की सबसे साफ़ सुथरी जगह ! यहीं से छत पर खड़े हो कर कही बार पूर्ण मासी के दिन समुद्र की ऊंची उठती लहरें देखने का लुप्त उठाया ! उस समय के बस ड्राइवर और कंडक्टर बड़े अच्छे लोग थे ! बाहर से आने वालों और सैनिकों के साथ मित्रता का व्यवहार करते थे ! एक बार मैं बस में तो चढ़ गया लेकिन जेब में पूरे पैसे नहीं थे ! बस अंधेरी से कोलाबा कैम्प जा रही थी ! मैं अपने दो छोटे छोटे बच्चों के साथ था ! मैंने कंडक्टर को अपनी परेशानी बतलाई, उसने बिना ज्यादा पूछ ताछ के मुझे टिकट de दिया और बाकी पैसे अपनी जेब से मिला दिए और सकुशल कैम्प पहुंचा दिया ! ऐसे लोग थे us जमाने men मुम्बई के ! १५-१६ महीने के बाद ही यूनिट को फिर जम्मू कश्मीर पूंछ सेक्टर जाने का आदेश हो गया ! नंबर के महीने में यूनिट ने मुंबई छोड़ दी और पूंछ सेक्टर सेकलू मंदी के नजदीक चली गयी ! उन्ही दिनों सेना मुख्यालय के आदेश के मुताबिक़ जो ऑफिसर्स/जेसीओज/जवान फील्ड में सर्विस कर रहे हैं उसके परिवार को रक्षा मंत्रालय की तरफ से फ्री मकान देश के सभी कंटोमेंट एरिया में दिए गए ! मैंने भी आवेदन किया और मंजूर हो गया ! बच्चों को दिल्ली कैंट (काबुल लाईन्स) सदर सेपरेटेड क्वाटर्स में छोड़ कर मैं २५ नवम्बर को पूंछ चला गया !

Wednesday, July 28, 2010

मेरी कहानी (बारहवां भाग)

१९७१ भारत पाक संग्राम
३ दसंबर १९७१ रात के १२ बजे और पाकिस्तानी हवाई हमला, हमारे ईयर बेस पर गोला बारी, पठानकोट, अमृतसर, जम्मू, ये सभी सीमा से लगे नगरों पर अचानक का हमला ! भारतीय सेना पहले से तैयार थी और उन्हें पाकिस्तान की इस हरकत का पता था, इसलिए काउंटर अटैक करके पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों को कुछ को गिरा दिया बाकियों को भगा दिया ! पहल पाकिस्तान ने की और भारत पाकिस्तान लड़ाई शुरू हो गयी थी ! संयुक्त राष्ट्र संघ को भी मालूम था की लड़ाई पाकिस्तान ने ही शुरू करके अंतर्राष्ट्रीय आदेशों का उल्लंघन किया है लेकिन अमेरिका का दबदबाव यू एन ओ पर इतना था की कोई भी कुछ भी कहने से बचता रहा ! अमेरिका फिर भी पाकिस्तान को अस्त्र शस्त्रों से सहायता देता रहा ! देश में अमर्जेंसी लग गयी थी ! भारतीय सेना को आगे बढ़ने का और पाकिस्तान की धरती पर पाकिस्तानियों को सबक सिखाने का आदेश हो गया था ! पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान की सीमावों के अन्दर हमारी सेना बड़ी तेजी से प्रवेश करने लगी ! प्रधानमंत्री श्रीमती इन्द्र गांधी, रक्षा मंत्री जग जीवन राम थे ! पूर्वी कमान के आर्मी कमांडर ले.जनरल जगजीतसिंह अरोरा और पाकिस्तान के कमान के कमांडर ले.जनरल नियाजी थे ! भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष एस एच एफ मानेकशा थे, बाद में उनकी बहादुरी और कुशल नेतृत्त्व के लिए उन्हें फील्ड मार्शल के रैंक से नवाजा गया ! एयर फ़ोर्स के चीफ थे एयर फील्ड मार्शल अर्जुन सिंह ! बंग बंधु मुजीबुर रहमान पश्चिमी पाकिस्तान की जेल में बंद थे ! पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे जनरल याया खान ! मैं कुछ सैनिकों को लेकर नसीरावाद आया हुआ था, दफ्तर से कुछ जरूरी पेपर ले जाने थे ! २ दिसंबर को हम लोग नसीरावाद पहुंचे और ३ की रात बमबारी शुरू हो गयी ! उन दिनों रेडियो काफी पापुलर हो चुके थे ! समाचार और उसके बाद सरकारी आदेश उन तमाम जवान /ऑफिसर्स को जो यूनिट के बाहर, छुट्टी अस्थायी ड्यूटी पर थे, तुरंत यूनिट में हाजिर होने को कहा गया था ! तमाम फौजियों के लिए रेलवे सफ़र फ्री था ! मैंने अगले दिन सुबह ही सारे जवानों को जो मेरे साथ नसीराबाद आये थे, इकठ्ठा किया और रेलवे स्टेशन पहुंचे ! स्टेशन पर सिविलियनों ने फूल मालाओं से हम सारे फौजियों का स्वागत किया, चाय नास्ता खिलाया और भारी मन से विदाई दी ! जेसलमेर के लिए ट्रेन पकड़ी और ट्रेन भी भागती हुई हवा से बात करती हुई मंजिल की ओर जाने लगी ! पाकिस्तानी हवाई हमलावरों ने इसी गाडी को निशाना बनाने के लिए जेसलमेर स्टेशन पर लड़ाकू विमानों से गोले गिरा कर स्टेशन को बुरी तरह से नष्ट कर दिया ! ईश्वर की इच्छा थी की हमारी ट्रेन १० मिनिट लेट थी नहीं तो ट्रेन का कोई यात्री नहीं बचता जिसमें सारे फ़ौजी ही थे ! जेसलमेर स्टेशन पर रात झाड़ियों में बिताई, अगले दिन मिलिटरी कानवाई रामगढ़ होते हुए हमें हमारी यूनिट में पहुंचा गए ५ दिसंबर की शाम को ! हमारा डिविजन किशनगढ़ किले के दक्षिण में कैम्प लगाए था ! हमारी यूनिट थ्री राज रिफ को आदेश था किशनगढ़ के पूरब उत्तर में इसलामगढ़ के किले को कब्जे में करने का ! तथा आर्टलरी को सपोर्ट देना था ! हमारी यूनिट आगे बढ़ गयी, पीछे से खबर आई की रहीमयार खान से पाकिस्तानी ३७ टैंको ने लोंगेवाल भारतीय चौकी पर हमला कर दिया है ! लोंगेवाल में हमारे ब्रिगेड की केवल एक कंपनी तैनात थी, खबर आते ही पूरा डिविजन लोंगेवाल मोर्चे पर भेज दिया गया ! तुरंत एयर फ़ोर्स को इन टैंको को ध्वस्त करने के लिए कहा गया ! ३६ टैंको को उनमें सवार सैनिकों के साथ आग के हवाले कर दिया गया और एक को ज्यों का त्यों म्यूजियम में रखने के लिए दिल्ली पहुंचाया गया ! यहाँ पर हमारे काफी सैनिक मारे गए पर पाकिस्तान का कोई भी सैनिक/अधिकारी बच कर नहीं जा पाया ! (इस लड़ाई पर बार्डर और हिन्दुस्तान की कसम नाम से दो फ़िल्में भी बन चुकी हैं ) !
उधर दूसरे फ्रंट पर थ्री राज रिफ इसलामगढ़ किले पर बिना सपोर्ट के ही डटी हुई थी ! वहां पाकिस्तान की मेकेनाईज कंपनी थी टैंको के साथ लेकिन उन्हें टैंक इस्तेमाल करने का हमारे जवानों ने अवसर ही नहीं दिया ! हमारी यूनिट का एक वीर हवलदार दयाराम इस लड़ाई में वीर गति को प्राप्त हुआ ६-७ जख्मी हुए ! सुबह किले पर तिरंगा फहरा दिया गया था ! हवलदार दयाराम को वीर चक्र (मरणोपरांत ) दिया गया !
नेवी
भारती नेवी ने वाईस एडमिरल कोहली की कमान में कराची पोर्ट पर हमला कर दिया ! पाकिस्तान की पश्चिमी नेवी कमान की कमर टूट चुकी थी ! उनके युद्ध पोत और पंडूबियां समुद्र में डुबाई गयी थी ! पूर्व में हमारे नेवी के जवानों ने वाईस एडमिरल कृष्ण के नेत्रित्व में विक्रांत को लेकर पाकिस्तान के फ़ौजी अड्डे चिटगांव और काक्ष बाजार को तहस नहस कर दिया ! उनके कही जंगी जहाज
पंडूबियां, गन वोट, कार्गो, पेट्रोल टैंकर, और ३ व्यावसायिक और युद्ध पोत समुद्र में डूबा दिए गए ! एक हजार नौ सौ पाकिस्तानी सेलर आफिसर्स मारे गए और १४१३ पकडे गए ! उनका १४ वां हवाई स्काडन पूरी तरह नष्ट किया गया ! ! हमारा खुखरी नामक युद्ध पोत दुशमनों द्वारा अरबियन सागर में डुबाया गया ! इस युद्ध में नेवी के १८ ऑफिसर्स और १७६ सेलर शहीद हुए ! नेवी ने उनके परिवार वालों के लिए कोलाबा में नेवी नगर बसाया, फ्लेट बना बना कर शहीदों की विधवाओं को ये फ्लेट अलाउट किए गए !
भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान की १३००० स्क्वायर मील जमीन पर कब्जा कर दिया था ! जिसको बाद में शिमला समझौते में वापिस कर दिया गया ! १६/१२/१९७१ को पाकिस्तान के पूर्वी कमान के आर्मी कमांडर ए ए के नियाजी ने ९०,००० पाकिस्तानी सैनिकों और सिविलियनों के साथ भारतीय सेना के पूर्वी कमान के आर्मी कमांडर जगजीत सिंह अरोरा के सामने आत्म समर्पण कर दिया ! लड़ाई बंद हो गयी ! पूर्वी पाकिस्तान बंगलादेश बन गया ! १०/०१/१९७२ को मुजीबुर्र रहमान को पाकिस्तान में जेल से रिहा किया गया ! १२/०१/१९७२ को उन्हें नए बंगलादेश का प्रथम राष्ट्रपति बनाया गया ! बाद में नया संविधान बना और उन्हें उनकी जनता ने प्रधान मंत्री बना दिया !
लड़ाई समाप्त होने के दो दिन पहले पाकिस्तानी सेना ने वहां बड़ा कत्ले आम किया ख़ास तौर पर अल्प संख्यक डा०, टीचर और प्रभावशाली लोगों को मौत के घाट उतारा गया ! औरतों को बेइज्जत किया गया ! उनके जुल्मों की रिपोर्ट स्वयं पाकिस्तान के मानव अधिकार आयोग ने तैयार करके पाकिस्तान की सरकार को सौंपी थी और सेना के दुर्दांत जनरलों को इस सबके लिए जिम्मेवार बताया गया था ! अमेरिका के राष्ट्र पति रिचर्ड निक्शन और उसके रक्षा मंत्री किशंगर ने मिलकर भारतीय सेना के खिलाफ पाकिस्तान को मदद देने के लिए अपना युद्ध पोत बंगाल की खाड़ी में भेजा ! साथ ही जोर्डन और ईरान के रास्ते युद्ध सामग्री भी भेजी गयी ! इसके जबाब में रूस ने भी अपने युद्ध पोत बंगाल की खाड़ी में भेज दिए की अगर अमेरिका युद्ध में सामिल होता है तब रूस भी युद्ध में कूद पडेगा ! रूस बंगलावासियों को पाकिस्तान के चंगुल से बचाना चाहता था और इसलिए भारत की सहायता करने को आगे आ गया था ! अगर कहीं ये दो महाशक्तियां आपस में टकरा जाती तो लड़ाई १३ दिनों की जगह लम्बी खिंच जाती और भारत पाकिस्तान की भूमि पर विश्व युद्ध छिड जाता ! दोनों के युद्ध पोत हिंद महासागर में १८/१२/१९७१ से ०७/०१/१९७२ तक तैनात रहे ! निक्शन को खतरा था की भारत ने युद्ध जीतने के बाद यदि पश्चिमी पाकिस्तान पर अटैक कर दिया और पाकिस्तान का अस्तित्व समाप्त हो गया तो रूस का प्रभाव एशिया में बढ़ जाएगा ! ०२/०७/१९७२ को शिमला समझौता हुआ ! ज ए भूटो पाकिस्तान का प्रधान मंत्री बन गया ! उसके साथ भारत की प्रधान मंत्री ने आत्मिकता दिखलाई , उनकी जीती हुई जमीन उन्हें वापिस कर दी ! ९० हजार कैदियों को वापिस पाकिस्तान को सौंप दिया ! न काश्मीर की जीती जमीन अपने पास रखी न सारे पाकिस्तान में भारतीय कैदियों को रिहा करवाया ! देखिये फिल्म १९७१ के वार प्रिजनर्स !

न्यू यार्क का मौसम

मौसम ने इस साल तो कमाल कर दिया ! इस साल न्यू यार्क में बर्फ पडी, खूब पड़ी ! पिछले कही सालों का रिकार्ड तोड़ गयी ! अब गर्मी भी दो कदम आगे बढ़ने की कोशीश कर रही है ! मान के चलें कि सोमवार का दिन सुबह से ही ठंडी ठंडी हवाएं चलेंगी, घूमने फिरने वालों के लिए वरदान ! भूप तेज भी हो तो भी हवाएं चलती रहती हैं, अच्छा लगता है ! चिड़ियाँ चह चहा एंगी, नियमानुसार गीत गाएंगी ! मंगलवार, सुबह सुबह मौसम विभाग वालों की वार्निग आ जाती है, "मौसम खुश्क और तेज गर्मी होगी, बच्चों को अन्दर ही रखें, बाहर न आने दें !" और सच मुच में गर्मी का लेबल बढ़ता ही चला जाता है ! घुटन, उमस, ए सी भी काम नहीं करता ! बाहर धूप भीतर उमस और घुटन, अजीब स्थिति ! समय निकल जाता है शाम को आसमान साफ़, इन्ने गिन्ने तारे नजर आएँगे लेकिन वे भी मगरूर बिलकुल नहीं टिम टिमाएंगे ! स्थिर अटल, तो ये तारे नहीं हैं, ग्रह हैं, शुक्र या मंगल या शनि ! वे भी रूठे लगते हैं, आदमी ने उन्हें वहां भी चैन से नहीं रहने दिया है ! फिर तारे कहाँ गए ? प्रदूषण की आंधी में ढक गए हैं !! बुध, वार्निंग "आज जोर की आंधी (हरिकेन) के साथ वारीश आएगी १० से डेढ़ बजे तक ! बच्चों को पार्क या सडकों पर न जाने दें ! दरवाजे बंद करके रखें !" भविष्य वाणी सत्य होती है ! सही में आंधी आती है वारीश भी और उसी समय १० से डेढ़ बजे तक ! वारीश तेज होगी लगेगा की सड़कें पानी से भर जाएंगे, यातायात बंद हो जाएगा, लेकिन वारीश बंद होते ही पानी भी गायब ! सिस्टम इतना फुलप्रूफ है कि पानी नालियों से सीवर लाईन से पास होता चला जाता है और फिर साईकिलिंग ट्रीटमेंट में साफ़ होकर पाइप लाइनों में आ जाता है ! पानी की एक बूंद भी बरबाद नहीं होती ! हफ्ते में मौसम में अचानक बदलाव आ जाता है ! वैज्ञानिक कहते हैं यह सब आदमी के करनी का फल है फिर भी आदमी वही करता जा रहा है, दुःख उठा रहा है लेकिन बाज नहीं आ रहा है !

Tuesday, July 27, 2010

मेरी कहानी (ग्यारवाँ भाग)

फौजियों को बहलाने के लिए की आपकी बटालियन अब पीस में जा रही है कम से कम तीन साल तो मजे से कटेंगे ! लेकिन सही में यूनिट का पीस टाईम फील्ड टाईम से ज्यादा भाग दौड़ का होता है ! यहाँ ड्यूटियां बढ़ जाती हैं, सिविल सरकार को जरूरत पड़ने पर क़ानून व्यवस्था बनाए रखने में मदद देनी पड़ती है, दो महीने के लिए ट्रेनिंग कैम्प में यूनिट से दूर जाना पड़ता है, खेल प्रतियोगिताएं होती रहती हैं ! फिर हर जवान को दो महीने की छुट्टी के अलावा आकस्मिक छूटी दी जाती है, जो फील्ड एरिया में संभव नहीं होता ! असली लड़ाई में तो सालों जवानों को छुटियाँ नहीं मिलती ! पीस में हर जवान के बच्चों की पढाई और परिवार के स्वास्थ्य के बारें पूरा ध्यान रखा जाता है ! जम जमाव हो गया था लेकिन अचानक पाकिस्तान के फ़ौजी हुकमरानों के दिमाग की खुरापाती घंटी बजी और सीमा पर फिर पाकिस्तानी सैनिकों की हल चल शुरू हो गयी ! जितनी भी यूनिटें पीस में थी सभी को सीमा पर जाने का आदेश हो गया ! हमारी यूनिट भी पूरे डिविजन के साथ जैसलमेर, रामगढ़ होते हुए सीधे किशनगढ़
पहुँची ! १९६५ तक सड़कें कच्ची थी और यहाँ किशनगढ़ में केवल बी एस एफ की एक प्लाटून तैनात थी ! अब तो जैसलमेर से किशनगढ़ तक चौड़ी और साफ़ सुथरी सड़क है ! किशनगढ़ पाकिस्तान के रहिमयारखान, जहाँ उनका डिविजन मुख्यालय था के बिलकुल नजदीक पड़ता है ! यहाँ एक पुराना किला है जो अभी भी चारों ओर रेत के टीलों के बीच में अकेला खड़ा वीरगाथा काल की स्मृतियों को ज़िंदा रखे हुए है ! यहीं पर हमारी यूनिट का हेड क्वार्टर था ! इसके पश्चिम में एक प्राचीन मंदिर है इस मंदिर के विशाल आँगन में डिविजन/ब्रिगेड मुख्यालय कैमोफ्लाईज करके मोर्चो के अन्दर सेट किए गए थे ! अक्टूबर का महीना दिन में गर्मी और रात को सर्दी ! चारों ओर रेगिस्तान हजारों मील तक रेत और बालू के विशाल भण्डार कहीं ऊंचे ऊंचे रेत के पर्वत तो कहीं दूर दूर तक मैदान ! कंही कंही छोटी छोटी कंटीली झाड़ियाँ, इसके अलावा बनस्पति नाम का कोई पेड़ पौधा नजर नहीं आता है ! आँखें तरस जाती हैं हरियाली देखने के लिए ! हमारी यूनिट की कम्पनियां भी इन रेत के टीलों पर मोर्चे बनाकर कैमोफ्लाईज करके ड्यूटियां देने लगी ! पूरी तैय्यारियाँ ! किशनगढ़ किले के बाहर एक बहुत बड़ा कुंवा है जो यहाँ के पूरे डिविजन को पानी का एक मात्र जरीया था ! एक ऊँट लगातार पानी निकालने के लिए लगा रखा था ! यहाँ इस रेगिस्तान में सांप बिच्छु और हिरन भी देखने को मिल जाते हैं ! कही बार हमने देखा की ये हिरन इन कंटीली झाड़ियों की जड़ें उखाड़ कर अपनी प्यास बुझाते हैं ! यहाँ के स्थानीय लोग न तो इन हिरणों को स्वयम मारते हैं न किसी ओंर को इन्हें मारने देते हैं ! शायद गीदड़ और कुछ और भी छोटे छोटे जानवर इन रेगिस्तानों में पाए जाते हैं ! यहाँ की ट्रांसपोर्ट का काम करते हैं यहाँ के ऊँट जिनको desert ship कहा जाता हैं !
मंदिर
घंटियाली नाम से यहाँ किशनगढ़ किले के दक्षिण में यह मंदिर बहुत प्राचीन मंदिर है ! यहाँ के स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र बिंदु है ! कहते हैं सन १९६५ ई० की लड़ाई के सीज फायर बाद पाकिस्तानी आर्मी के जवान इस रेगिस्तान के अधिक से अधिक हिस्से पर अपना अधिकार ज़माना चाहते थे, उस समय बी एस एफ की केवल एक प्लाटून इस मंदिर में मौजूद थी ! बाहर से संचार व्यवस्था कट हो गयी थी ! राशन भी समाप्त होगया था ! एक रात को ये जवान अपने कमांडर के साथ भागने के लिए मंदिर से बाहर निकले ! चांदनी रात थी ! अचानक उन्हें मंदिर के द्वार पर एक सफ़ेद वस्त्रों में लिपटी एक छाया नजर आई ! साथ ही एक आवाज आई "मंदिर छोड़ कर जाओगे ज़िंदा नहीं बचोगे, खैर चाहते हो यहीं मंदिर में छिपे रहो, बाहर पाकिस्तानी शिकारी कुत्तों की तरह घूम रहे हैं !" वे लोग वापिस मंदिर में चले गए ! और उसी रात एक चमत्कार हो गया ! पाकिस्तानी हेलीकाप्टर ने पाकिस्तानी गस्ती दस्ते के लिए जो राशन गिराया वह मंदिर के आँगन में गिर गया ! इन जवानों के मजे हो गए, ऊपर से भगवान ने राशन जो गिरा दिया था ! एक महीने तक मंदिर में रहे ऐश किये ! राशन में चावल, आटा, दालें, गर्म मशाले, सूखे मेवे, चीनी, और सब कुछ था ! तब तक दोनों देशों की सेनाएं अपने अपने कैम्पों में लौट गए थे ! इनके लिए भी अपनी यूनिट में जाने का रास्ता साफ़ हो गया था ! देवी माँ को चढ़ाव चढ़ा कर फूल मालाएँ पहिना कर ये लोग मंदिर से निकले और बिना किसी विघ्न वाधा के अपनी यूनिट में पहुँच गए ! यहाँ के स्थानीय लोग एक किस्सा और बताते हैं ! "जब बी एस एफ वाले मंदिर छोड़ कर चले गए तो पीछे से पाकिस्तान आर्मी के एक मेजर और दो सैनिक मंदिर में घुस गए और लगे मूर्तियाँ तोड़ने ! अचानक तोड़ फोड़ करने वाले दोनों सैनिक अंधे हो गए ! उनके कमांडर ने देवी माँ के आगे घुटने टेक कर माफी माँगी, दंड भरा ! इस तरह वे दोनों उदंड सैनिक पूरी तरह तो देख नहीं पा रहे थे लेकिन माँ ने उन्हें पूरा अंधा भी नहीं बनाया ! कहते हैं उस मेजर ने पाकिस्तान पहुँच कर दंड स्वरूप दो हजार रुपये मंदिर समिति को मंदिर की मरम्मत करने को भेजे थे" ! सन १९७१ की लड़ाई के दौरान पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों ने इस मंदिर के ऊपर काफी गोला बारी की लेकिन माँ की कृपा से एक बम भी नहीं फटा और न कोई नुकशान ही हुआ ! सारे बम रेत में घुस गए !

Monday, July 26, 2010

अमेरिका के खरगोश

यहाँ न्यूयार्क म्यल विल में नए घर के पूरब दक्षिण में मखमली घास से ढकी एक खूबसूरत पहाडी है ! बच्चों के पार्क से कुछ ऊंचाई लेते हुए इस पहाडी को और सुन्दर बनाने के लिए इस पर कई किस्म के पेड़ और पौधे लगे हुए हैं साथ ही कई रंगों के फूलों से इसे और आकर्षित बनाया गया है ! इसके साथ दक्षिण दिशा में बीस फूट चौड़ा जंगलात वालों की जमीन है और उसके बाद एक तरफ चलने वाले वाहनों के लिए डब्बल लेंन सड़क है ! इस पहाडी के ऊपर घुमने के लिए ३ फूटा पक्का रास्ता है ! पहाडी के बीच में इस रास्ते को एक गोल चक्कर का घुमाव दिया हुआ है ! हम जैसे लोगों के लिए यह स्थान घुमने फिरने के लिए बहुत ही सुविधा जनक है ! मैं और मेरी पत्नी रोज सुबह सुबह इस पहाडी के चक्कर लगाने चले जाते हैं, इस समय यहाँ पेड़ों और झाड़ियों में भाँती भांति के छोटे बड़े चिड़िया मधुर स्वरों में गाते हुए मिल जाते हैं ! इसी पहाडी पर जो जंगलात वालों की सुरक्षित जमीन है उस पर कही सुन्दर सुन्दर खरगोशों के परिवार रहते हैं ! कुछ बड़े कुछ छोटे और कुछ ऐसे भी हैं जिन्हों ने शायद अभी अभी आँखें खोली हो ! हम जब भी पहाडी पर जाते हैं ये दुम दबाते हुए हल्की दौड़ लगाते हुए मिलते हैं ! फिर कुछ दूरी पर बैठ जाते हैं और मजे से मखमली घास का आनन्द लेते हुए पेट पूजा भी करते हैं ! जैसे हमारी आँखें उन्हें ढूँढती हैं वैसे ही लगता है की वे भी रस्ते के किनारे बैठकर हमारा इन्तजार करते हैं ! यहाँ के स्थानीय लोग कुदरत के इन हसींन उपहारों को बहुत प्यार करते हैं और कभी ऐसा कुछ नहीं करते हैं जिससे इन प्यारे प्यारे नन्ने नन्ने खरगोशों को कोई असुविधा हो ! रात को तो ये फ्लेटों के पीछे के बने बगीचों में आ जाते हैं ! फूलों के ऊपर तितलियों की उड़ान भंवरों की गुंजन इस पहाडी की सुन्दरता में चार चाँद लगा देती है !

Saturday, July 24, 2010

मेरी कहानी (दसवां भाग)

मिजोराम भारत को कुदरत की एक अनुपम भेंट है, घंने जंगल, विभिन्न प्रकार के रंग विरंगे फूलों से लदे छोटे बड़े मन को लुभाने वाले पौधे, गगन चुमते किस्म किस्म के पेड़ ! नदी चश्में, आसमान से मिलते हुए पर्वत श्रेणियां, पहाड़ों से गिरते झरने, गहरी घाटियाँ, मन का भंवरा इन कुदरत की खूबसूरत वादियों में अटक कर भटक जाता और निकालने का नाम ही नहीं लेता ! यहाँ के लोग मेहनती, दिलेर और मजबूत कद काठी के हैं ! यहाँ लड़कियां संख्या उन दिनों लड़कों के मुकाबले ज्यादा थी ! पहाडी बालाएं खूब सूरत लाल टमाटर जैसी लगती थी ! अशिक्षा के कारण यहाँ की जनता ईसाई मिसनरियों के बहकावे में आकर बगावत पर उतर आये ! इनको इज्जत चाहिए, मोहब्बत चाहिए ! दग्गेवाज और झूठे लोगों से इनको शक्त नफ़रत थी ! हमारी यूनिट ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया और तीन साल तक जब तक वहां रहे, सही दोस्ती निभाई ! जिन गाँवों में हमारी यूनिट रही वे इन तीन सालों में काफी शांत हो गए थे ! इन जंगलों में जान कारों के लिए आयुर्वेदिक जडी बूटियाँ प्रचूर मात्रा में उपलब्ध हैं ! चश्मे बहुत हैं पानी भी काफी है लेकिन पीने का पानी बहुत कम है ! यहाँ पीने लायक पानी जांचने के लिए पानी का टेस्ट किया जाता था जिस चश्मे का पानी पीने लायक होता वहीं से टैंकरों से पानी भर कर लाया जाता उसे भी उबाल पर पिया जाता ! काफी जवानों के पेट में तागे जैसे कीड़े हो गए थे यहाँ का पानी पीने से ! कुछ पेड़ पौधे भी जहरीले थे जिनकी जानकारी हर जवान को यहाँ आते ही दी जाती थी ! यहाँ की भाषा में जवान लडके को कप्पू और जवान लड़की को कप्पी कहा है ! पानी को पुई और चाय को थिन्गपुई कहते हैं ! मैं अच्छा हूँ मिजो में कहेंगे "तक तक कलोम" ! सारांश की यहाँ के लोग संगठित दोस्तों के दोस्त और दुश्मनों के दुश्मन है ! अब हमारी यूनिट का तीन साल का अर्सा पूरा होने जा रहा था, हम फिर किसी पीस स्टेशन पर जाने की तैय्यारी करने लगे ! सामान इकट्ठा करके पैक होने लगा, स्पेशल ट्रेन बुक की गयी ! आर्मी की कानवाई बुक हो गयी ! अब के यूनिट को पीस स्टेशन मिला था "नसीराबाद "(राजस्थान)! यूनिट में जे सी ओज जवान ज्यादातर राजस्थान हरियाणा, पंजाब और यू पी के थे, इसलिए करीब सभी के चहरे खिले हुए थे ! मार्च/अप्रेल के महीने में हम लोग मिजोराम की पहाड़ियां उतर कर सिलचर आये ! स्पेशल ट्रेन मिलने में बिलम्ब हुआ, इसलिए १५ दिन तक सिलचर में कैम्प लगा कर रहना पड़ा ! उन दिनों यूनिट के कमांडिंग अधिकारी थे ले.कर्नल मन मोहन कुमार बकाया और सेकंड कमान अधिकारी थे मेजर रामचंद्र ! स्पेशल ट्रेन अगर अमर्जेंसी है तो रेल लाईन भी स्पेशल मिल जाती है नहीं तो पहले लाईन की ट्रेनों को लाईन मिलती है बाद में स्पेशल ट्रेने चलती हैं, इस तरह ३ दिन का सफ़र कभी कभी पांच से सात दिन भी लग जाते हैं ! यूनिट को आखीर ट्रेन में बैठने का आदेश हो गया, ट्रेन भी चल पडी, रास्ते में जहां भी गाडी रुकती सुबह सुबह वही रूटीन पीटी, ब्रेक फास्ट लंच! गाडी में ही औफ़िस का काम भी चलता था, ड्राफ्ट बनते थे, जरूरी लेटर भेजे जाते थे, आर्मी पोस्ट ऑफिस को यूनिट के नए लोकेशन पर डाक भेजने का निर्देश हो चुका था ! दो दिन के बाद गोहाटी पहुंचे ! उन्हीं दिनों पूर्वी पाकिस्तान में पश्चिमी पाकिस्तानी सेना ने वहां की आम जनता पर अत्याचार और जुल्म ढाने शुरू कर दिए ! मुजीबुल रहमान को जिन्हें लोग प्रेम से बंग बन्धु कहते थे, पश्चिमी पाकिस्तान में कैद कर दिया गया था !
पाकिस्तान में अभी भी फ़ौजी ताना साह शासक था ! पूर्वी पाकिस्तान के लोग सहायता के लिए भारत की
तरफ देख रहे थे ! हमारी यूनिट को २४ घंटे के लिए गोहाटी में रोका गया ! उम्मीद की जाने लगी की शायद यूनिट को ढाका जाना पड़े ! खैर अगले दिन हमें हरी झंडी मिली और स्पेशल ट्रेन मजे मजे से चलती हुई छट्टे दिन नसीराबाद पहुंचे ! तीन साल के बाद फिर राजस्थान की भूमि पर हम कदम रख रहे थे ! एक उल्लास एक खुशी हर जवान के चहरे पर झलक रही थी ! एक हफ्ते के अन्दर ही सारा सामान नयी यूनिट की बारीकों में पहुंचाया गया ! जम जमाव में एक और हफ्ता लग गया ! जिन जवानों को अपने बच्चे लाने थे उन्हें छुट्टी भेजा गया ! फॅमिली क्वार्टर अलाट किये गए ! कंपनियों को बारिकें बांटी गयी ! मेंन कार्यालयों को जैसे ऐडजुटेंट आफिस, क्वार्टर मास्टर आफिस कमान अधिकारी का आफिस सजा दिए गए, उनके बाहर कही रंगों को इस्तेमाल करके नाम की तख्ती लटका करके एक अलग ही पहिचान दी गयी ! दफ्तरों में काम होने लगा ! और कुछ ही दिनों में सब कुछ नार्मल होगया ! सेंटर से जमा सामान वापिस मंगाया गया ! हर बटालियन की पहचान यूनिट क्वार्टर गार्ड होता है, और बाहर से जब भी कोई बड़ा अधिकारी विजित करने या सालाना निरीक्षण करने आता है तो उसे यूनिट क्वार्टर गार्ड पर गार्ड आफ आनर देकर सम्मानित किया जाता है तब कमान अधिकारी के दफ्तर में जाता है ! मुझे बी ए दूसरे साल की परीक्षा देने दिल्ली जाना था, इसलिए दो महीने की छुट्टी लेकर मैं दिल्ली चला गया ! दिल्ली में मनोहर लाल अस्पताल के सामने नार्थ एवेन्यू १५९ नंबर एम पी बंगले में मेरे मामा जी श्री प्रतापसिंह नेगी जी रहते थे, वे उसी साल एम पी का चुनाव जीत कर आये थे ! मैं परीक्षा देने के लिए उन्हीं के बंगले पर रहा ! परिक्षा समाप्त होने के बाद गाँव बच्चों को लेने चला गया ! मई के महीने में दो महीने की छुटी समाप्त करके मैं बच्चों को लेकर नसीराबाद आगया ! क्वाटर अच्छा मिल गया था, बिटिया उर्वशी को यहीं पहली क्लास में दाखिला दिला दिया ! (ग्यारवाँ भाग)
दिला दिया !

Wednesday, July 21, 2010

मेरी कहानी (नवां भाग)

दिल्ली में समय काफी था, मेरी स्कूली शिक्षा केवल १० वीं तक थी, मैंने उत्तर प्रदेश बोर्ड जहाँ से मैट्रिक पास किया था, वहीं से १९६९ ई० में १२ वीं पास भी कर ली ! कोटद्वार जहां मैं दो साल पढ़ा था वहीं सेंटर पडा ! जो १० वीं में हमारे अंगरेजी के अध्यापक थे, श्री सोनी सर, अब प्रिंसिपल थे ! १६ साल के बाद फिर परिक्षा देने गया था ठीक उसी स्कूल में ! इतिहास अपने आप को दोहराता है ! उन दिनों स्कूली विद्यार्थी था आज एक सैनिक था १२ साल सर्विस वाला ! फिर दिल्ली से ही तीन साल का डिग्री के लिए पत्राचार कोर्स किया और सन १९७२ ई० में बी ए डिग्री भी ले ली ! यूनिट इस समय मिजोराम की पहाड़ियों में मिजो विद्रोहियों से संघर्ष रत थी ! मेरी पोस्टिंग भी मिजोराम हो गयी थी ! १९७०, अगस्त के महीने में मैंने बच्चों को गाँव पहुंचाया और कोटद्वार से मिजोराम के लिए अपनी यात्रा शुरू कर दी ! चार साल के बाद परिवार से अलग होने का गम, लड़की तीन साल की और लड़का चार महीने का, यही मौक़ा था बच्चों के बचपन देखने का, उनके साथ बच्चा बनकर उन्हें खिलाने का आनंद लेना ! पर यहाँ तो बच्चों को छोड़ कर जाना पड़ रहा था दूर बहुत दूर ! मेरे साथ दो लडके थे, एक पुलिस का था जिसको अरुणाचल जाना था दूसरा फ़ौजी था उसे भी मिजोराम ही जाना था ! पुलिस वाला लड़का ६ साल सर्विस वाला था और दूसरा दो साल फ़ौजी ट्रेनिंग होते ही पहली बार यूनिट जा रहा था दोनों की शादी नयी नयी हुई थी ! उनमें मैं ही सीनियर था, बातों ही बातों में उनके परिवार से बिछुड़ने का गम कम करने की कोशीश करता रहा ! अगले दिन लखनऊ पहुंचे, वहां से गाडी बदली की और दूसरी गाडी मुगलसराय होते हुए लामडिंग पहुंचे यहाँ से एक साथी हमसे अलग होगया ! हम तीनों ही अपने बच्चों को छोड़ कर दूर बहुत दूर देश के दूसरे किनारे पर जा रहे थे, तीन दिन कब बीत गए कुछ भी पता नहीं चला और अब एक साथी हमसे विदा हो रहा था, हम दो और वह बिलकुल अकेला पड़ गया था, कितना रोया था वह हम दोनों के गले लग कर, आज भी याद है मुझे वह करुना-जनक दृश्य ! हर फ़ौजी रेल या बस यात्रा में ऐसे ही मिलते थे दोस्त बनते थे और ऐसे ही बिछुड़ जाते थे, और बिछुड़ते हुए ऐसे ही दर्द होता था, आज भी होता होगा ! मिजोराम सिलचर के लिए लामडिंग से गाडी पकड़ी और ३७ सुरंगों को पार करते हुए, नदी के किनारे किनारे मिजोराम के आखरी स्टेशन पर पहुंचे ! सिलचर में ट्रांजिट कैम्प में रिपोर्ट की, यहाँ से हमारी यूनिट करीब १०० किलोमीटर आगे दक्षिण दिशा में थी ! मेरे आने की रिपोर्ट यूनिट में लग गयी थी मेरे लिए यूनिट से जीप कैम्प में आगई थी ! अब दूसरे साथी के बिछुड़ने की बारी थी, उसकी दशा पहले वाली से ज्यादा ही करुना-जनक थी ! उसे वहीं कैम्प में छोड़ कर मैं यूनिट के लिए चल पड़ा ! रस्ते में एक सिस्टर बटालियन मिली थी ७ राज रिफ ! वहीं लंच किया कुछ पुराने साथी भी मिले और फिर अगले दिन पहुंचा मिजोराम की राजधानी ऐजल ! ऐजल नदी घाटी पहाड़ों से घिरा हुआ एक बहुत ही खूबसूरत स्थान पर बसा हुआ है ! उस समय लालडेंगा नामक बिद्रोही नेता इस घाटी पर कमांड करता था ! और इसी की सह से राज्य के नव जवान सरकार की खिलाफत कर रहे थे ! ईसाई मिशनरियां भी आग में घी का काम कर रही थी ! हर गाँव में हर बटालियनों की एक एक कंपनिया तैनात थी ! ये विद्रोही फ़ौजी गाड़ियों को नुकशान पहुंचा दिया करते थे या कैम्पों पर अटैक कर देते थे ! इनको काबू करने के लिए एक ब्रिगेड यहाँ तैनात था ! यहाँ से नदी को पार करके पूर्व दिशा में एक ऊंची पहाडी सेलिंग में हमारी बटालियन का मुख्यालय था ! यही मेरी मंजिल थी ! यूनिट कार्यालय के ठीक सामने हेलीपैड था, जहां जब कोई वी आई पी या वी वी आई पी दिल्ली से आता था तभी यहाँ हेलिकॉप्टर उतरता था ! पहाडी के ऊपर अच्छा ख़ासा मैदान था, जहां यूनिट बेस में रहने वालों के लिए बांस के झोपडी नुमा बासा बने हुए थे ! सब कुछ बांस का, घर, ऑफिस, आफिसर्स/जे सीओ म्यस जवानों के लंगर, यहाँ तक टेबिल कुर्सी भी बांस की ! यहीं के स्थानीय मिजोवासी बनाते थे ये सब कुछ ! हवाएं खूब चलाती थी, बारीश भी खूब होती थी ये बासे बहुत ही मजबूत होते थे, पानी की बूँद भी अन्दर नहीं आ सकती थी ! गेम खेलने के लिए अच्छे खासे मैदान भी थे ! कम्पनियां गाँवों में मोर्चे बनाकर रहते थे ! हमारे नजदीकी गाँव थे थिन्सुथिलिया, बकत्वांग, खोरियाँ ! यहाँ तीन साल में यूनिट ने यहाँ के स्थानीय लोगों के साथ, भाई चारे का नाता निभाया, उन्हें, राशन, पानी, दारु दवाइयों से लेकर उनके सामाजिक कामों में भी उन्हें मानसिक और आर्थिक मदद दी !
मिजोराम एक नजर में
मिजोराम बंगला देश से सटा हुआ घंने जंगलों से ढका हुआ देश के पूरब दक्षिण में एक पहाडी प्रदेश है ! यहाँ आजादी से पहले आदिवासी लोग छोटे छोटे झुंडों में ऊंची ऊंची पहाड़ियों पर रहते थे दूसरे विश्व युद्ध के समय पैदल सैनिकों के लिए यहाँ से होते हुए बर्मा बाडर तक १२ फूट का एक कच्ची सड़क बनी थी जिसका अस्तित्व संन १९७० तक भी था ! बारीश लगातार होती रहती है, जंगल बहुत ही घन्ना है और जंगल के अन्दर प्रवेश करना बहुत ही कठीन था ! यहाँ के आदिवासी विद्रोही खून्खरी दरांती की सहायता से झाड़ियाँ काट काट कर जंगल में छिपने के लिए अपना ठिकाना बना लेते थे ! यहाँ के सभी लोग ईसाई मिसनरियों के प्रभाव में आकर ईसाई मत को मानने वाले हैं ! हर गावों में चर्च हैं और हर रविवार को सभी लोग स्त्री पुरुष बच्चों सहित चर्चों में प्रार्थना करते हैं ! आजादी के बाद इन लोगों को एक सूत्र में बांधने के लिए तथा उन्हें देश की मुख्य धारा के साथ जोड़ने के लिए एक योजना के तहत केन्द्रीय सरकार ने पूरे प्रदेश को जोड़ने के लिए एक सड़क का निर्माण किया जो मिजोराम को दूसरे प्रदेशों से मिलाती है ! सारे आदिवासियों को ऊंचे ऊंचे टीलों से उतार कर सडकों के किनारे गावों में उन्हें बसाया गया ! हर गाँव में १२ वीं तक स्कूल खोले गए ! अस्पताल व् खेल के मैदान ! सरकारी राशन की दुकाने खोली गईं ! बाद में विद्रोहियों के नेता से समझौता करके लालडेंगा को ही मिजोराम का मुख्य मंत्री बनाया गया ! अब तो इक्कीसवीं सदी यह एक फुल फ्लैज्ड राज्य बन गया है और वहां शांती भी लौट आई है !
खेती
यहाँ गावों में दो प्रकार के लोग रहते हैं एक बनिया जो अपनी दुकान चलाते है दूसरे मजदूर और किसान ! यहाँ ऊंची ऊंची दुर्गम पहाड़ियां हैं इसलिए एक स्थान पर खेत बनाकर खेती करना मुमकिन नहीं है ! किसान लोग हर साल एक पहाडी पकड़ लेते हैं उस पर जा कर झाड़ियाँ काट कर सुखाने पर सारे पर आग लगा आते हैं फिर जाकर खुरपी, बेलचा,
गैंती फावड़े से खुदाई करके वहां चावल बो देते हैं ! फिर केवल फसल काटने को ही इन्हें जाना पड़ता है ! फसल काटने के लिए ये वहां झूला बनाकर १५ बीस दिन तक रहने का इंतजाम करते थे जिसे वे झूम कहते हैं, धान कटाई, मंड़ाई करके धान को बोरों में भर कर सडकों के किनारे इकठ्ठा कर देते हैं फिर ट्रक ड्राइवर इनको ट्रकों में भर कर गाँवों तक पहुंचा देते हैं ! अगले साल इन्हें दूसरे जंगल को खेती के लिए चुनना पड़ता है ! यहाँ का फल अन्नानास बहुत प्रसिद्द है ! जंगली केले होते हैं बहुत ही छोटे माचीस की तिल्ली के बराबर लेकिन इनकी मिठास कही दिनों तक मुंह में रह जाती है ! यहाँ का एक राजा भी होता है, जिसकी उन दिनों तक १६ रानियाँ थीं ! उसकी उम्र ६५ साल की थी, सबसे बड़ी रानी ६० की और सबसे छोटी १६ साल की थी ! एक राजकुमार से भी हम मिले जिसकी चार शादियाँ हो चुकी थी और ६-७ संताने थी ! राजा की संतानों का कोई हिसाब नहीं था ! राजा - राज कुमार हर समय नशे में रहते थे !

Tuesday, July 20, 2010

मेरी कहानी (आठवा भाग)

यहाँ तक जीन्दगी में काफी उतार चढ़ाव आये थे, फ़ौजी जिन्दगी में हमेशा सैनिक चौकना रहता है, पता नहीं कब क्या आदेश आ जाए ! आप छुटी मना रहे हैं, दोस्तों के साथ कहीं दूर कुदरत के हसीन नजारें देखने का लुफ्त उठा रहे हैं या नयी नयी शादी करके किसी ठंडी जगह जैसे माउंट आबू , दार्जिलिंग, शिमला, मंसूरी में वर्फ के ऊपर चलने स्कटिंग करने या फिर सफ़ेद चद्दर जैसी शुद्ध वर्फ के गोले बना बना कर एक दूसरे पर फेंकते हुए आनंद ले रहे हैं और अचानक यूनिट से टेली ग्राम आगया की "छुट्टी समाप्त" जल्दी हाजिर हो ! सोचो अगर ये सब कुछ आपके साथ घट जाय तो आपको कैसे लगेगा ? "आप सोचोगे, कहाँ फंस गए, ऐसी सर्विस से तो किसी सिविल आफिस में क्लास फ़ोर की नौकरी ही अच्छी है, ८ घंटे ड्यूटी के बाकी के १६ घंटे अपने ! " लेकिन अगर आपको बुलाया गया है, बीच में ही आपकी छुट्टी कैंसिल कर दी गयी है तो कोई ख़ास वजह है, वह वजह केवल दुश्मन के साथ युद्ध की घोषणा हो सकती है, यूनिट को किसी फ़ील्ड स्टेशन पर जाने का आदेश हो गया हो, प्रदेश में अन्दुरुनी अराजकता के भय से सरकार ने मिलिटरी की मदद माँगी हो, यूनिट के पास मन पावर कम हो तभी जाकर जवान को छुट्टी से बुलाया जाता है ! बुलाने वाले भी तो सैनिक ही होता है ! लेकिन एक बार आप ने ड्यूटी ज्वाइन करदी फिर आपको नहीं पता की कब दिन निकलता है और कब सूर्य देव अस्त हो जाते हैं ! लेकिन यहाँ रिकार्ड्स में यूनिट से अलग सिस्टम था ! यहाँ सिविलियन स्टाफ भी साथ था लेकिन जिम्मेवारी का काम फौजियों के कन्धों पर ही होता था ! यहाँ भी कुर्सी जिम्मेदारी की ही मिली थी ! कभी कभी ओवर टाईम भी बैठना पड़ता था ! फिर भी काफी समय मिल जाता था, बच्चों को घुमाने का, नई नई जगह दिखाने का ! उस समय डी टी सी की बसों का किराया ३० पैसे, ६० पैसे और बड़ा टिकट एक रुपये का था ! २ रपये का टिकट लेकर पूरा दिल्ली घूम सकते थे ! ब्ल्यू लाईन , रेड लाईन उस जमाने में नहीं थी ! एक ले.कमीशन लेने पर ४०० रुपया वेतन पाता था, रैक का सूबेदार मेजर इस से कम ही पाता होगा ! हाँ खाना पीना वर्दी सरकार की होती थी ! रहने के लिए बारिकें, बिजली, पानी सब फ्री था ! परिवार रखने के लिए बहुत ही कम मकान थे ! काफी इंतजारी के बाद तो नंबर आता था वह भी केवल एक सालके लिए ! दिल्ली में चांदनी चौक ठीक जैसे आज है वैसे ही था, हाँ वहां उस समय के कुमार, मैजेस्टिक, जगत मिनर्वा सिनेमा हौल थे जहां शनिवार इतवार को भारी भीड़ रहती थे ! रिकातें भी ३१ पैसे, ६२ पैसे और बड़ा से बड़ा टिकट १.२५ का था ! करोल बाग़ बनाने लगा था ! कमला नगर था, रूप नगर था लेकिन जहां आज शक्ती नगर है वहां एक बहुत बड़ा मैदान था जहां बच्चे साकिल चलाना सिखते थे ! फुहारे से एक ३ नंबर बस जो अब ७६० है चलती थी कैंट सदर तक, और एक प्राईवेट बस थी (हरी राम की) ये करोलबाग होते हुए, धुला कुवें में पटेल मार्ग से मिलती थी और सदर तक जाती थी ! धौला कुवें में एक गोल चक्कर था और तीन सड़कें यहाँ पर मिलती थी, एक कनात प्लस से सीधे कैंट को चली जाती थी, एक मोटी बाग़ की तरफ से इस गोल चक्कर पर मिलती थी। उन दिनों कोई रिंग रोड नहीं बनी थी ! धौला कुंवा पहाड़ियों से घिरा हुआ था ! न कोई होटल था न कोई सरकारी मकान था ! सड़क के दोनों और नाम मात्र के ठेली वाले मिल जाते थे या एक दो पान बीडी सिगरेट की छोटी छोटी दुकाने ! नांगल राया में स्टेशन के पास एक पान की दुकान और एक हलवाई की दुकान थी ! ये लोग प्रोपर्टी बेचने की भी पेस कस करते थे ! यहाँ जमीनी पानी साल्टी होने से खेती नहीं होती थी, केवल पच्चीस पैसे गज का भाव था ! लेकिन पैसे कहाँ थे, सब कुछ था पैसे नहीं थे ! ऐतिहासिक भवन मीनारें देखने का अच्छा अवसर था ! लालकिला के अन्दर जा सकते थे, दीवाने आम दीवाने ख़ास और पुरानी चित्रकारी, जामा मस्जिद, क़ुतुब मीनार के ३७६ सीढियां चढ़ कर पूरी दिल्ली देखने लुफ्ल उठाते थे ! यमुना के किनारे जीत गढ़ी पहाडी पर बने मीनार पर चढ़ कर उसके चारों ओर बने रोशनदानों से दिल्ली के नज़ारे देखना और गर्मियों में भी ताजी ठंडी हवाओं का मजा लेना ! यमुना का पानी साफ़ सुथरा था, त्योहारों के अवसर पर यमुना स्नान हो जाता था ! आज दिल्ली में मल्टी स्टोरीज गगन चुम्बी इमारतें खडी हो गयी हैं लेकिन यमुना नदी नदी न रह कर गंदा नाला बन गयी है ! हर नगर के चारों ओर झुग्गी झोपड़ियों ने दिल्ली की खूबसूरती में रेशमी चमचमाती साड़ी के बौर्डर पर टाट का पैबंद लगा दिया है ! दिल्ली की बढ़ती आबादी और बढ़ते हुए पौलुसन के जिम्मेवार हर पार्टी के नेता हैं जो बंगला देशी, पाकिस्तानियों को अवैध ढंग से अपने वोट बैक की राजनीति के तहत बसा रहे हैं ! आज यहाँ मेट्रो चल रही है, औटर रिंग रोड रिग रोड ने दिल्ली के एक हिस्से को दूसरे हिस्से तक मिला दिया है ! सडकों के ऊपर फ्लाई ओवर बन गए हैं लेकिन सडकों के ऊपर उतना ही प्रेसर बढ़ रहा है, जाम आज भी उतना ही लगा रहा है ! फिर ऊपर से यहाँ रोज वी वी आई पी और वी आई पी की फ़ौज सडकों पर मटर गस्ती करने निकल पड़ते हैं परिवार और नाते रिश्तेदारों के साथ, नतीजा आम आदमी के लिए जाम ! न घर से समय पर ऑफिस जा सकता, न ऑफिस से समय पर घर आ सकता ! कभी कभी तो बीमार आदमी हौस्पटल जाने के लिए जाम के कारण रास्ते में ही दम तोड़ देता है और नेता की तरफ से एक शब्द निकालता है "हमें है" !
मेरे लिए दिल्ली शुभ कारी रही है १२ अप्रैल सन १९७० को मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ती हुई, नाम रखा "राजेश" ! इसका जन्म आर्मी हास्पिटल में १०.१० पर हुआ था और उस दिन भी रविवार था ! अब परिवार में और ज्यादा खुशी आ गयी ! मेरा रिकार्ड्स का समय सीमा समाप्त हो गयी थी और मैं पूरी तरह से यूनिट जाने के लिए तैयार था !
मेरी कहानी (नवां भाग )

Monday, July 19, 2010

मेरी कहानी (सातवाँ भाग)

आजादी मिलते ही हमारे पड़ोस में पाकिस्तान नाम से एक दुश्मन पैदा हो गया, पूर्वी बंगाल पूर्वी पाकिस्तान और आधा पश्चिम पंजाब से आगे सिंध, बलोच पश्चिमी पाकिस्तान ! पार्टीशन के बाद भी महात्मा गांधी जी की दरिया दिल्ली ने पाकिस्तान को पचास करोड़ रुपये भारत की तरफ से और दिला दिए, पाकिस्तान ने उन पैसों से हथियार खरीदे और जम्मू काश्मीर पर आक्रमण कर दिया ! सन १९४८ ई० में १५ अगस्त तक एक ही भारत के लोग आपस में लड़ पड़े ! भारत तो हमेशा से ही शांति प्रिय देश रहा है और स्वतंत्रता के बाद देश की उन्नति करना चाहता था ! लेकिन पाकिस्तान को अमेरिका खैरात में हथियार, रुपया पैसा, खाने के लिए अनाज देता रहा और वह उस खैरात में मिले धन को भारत के खिलाफ युद्ध में खर्च करता रहा ! अपने देश का विकास तो करने से रहा, भारत के विकास कार्यों में भी रोड़े अटकाने लगा ! जब १९४८ का युद्ध पाकिस्तान हारने लगा तो अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के आगे जाकर गुहार लगाने लगा की वे भारत पर युद्ध विराम के लिए दबाव डालें ! भारत नया नया आजाद हुआ था, विश्व के सारे राष्ट्र संघ के सदस्यों के आगे मजबूर होकर सीज फायर करना पड़ा ! युद्ध विराम की शर्तों के मुताबिक़ पाकिस्तान को पूरे जम्मू काश्मीर खाली कर देना था, लेकिन उसने अपनी कब्बायली नाम की सेना को काश्मीर से नहीं हटाया और संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देशों का उल्लघन किया ! काश्मीर का जो इलाका उसने दबा रखा था आज भी 'पाक अकुपाईद काश्मीर के नाम से जाना जाता है ! हम इस हिस्से को भारत का अभिन्न अंग बताते हैं ! लेकिन उसके बाद पाकिस्तान के साथ काश्मीर के लिए सीमा पर झड़पें आम बात हो गयी है ! हर साल काफी संख्या में सैनिक सीमा पर मारे जाते हैं पर काश्मीर समस्या ज्यों की त्यों आज भी और कुर्वानी मांग रही है ! !
1965 भारत-पाक युद्ध
१९६२ ई० में चीन ने अचानक दोस्ती का हाथ बढ़ाकर खंजर चला दिया और भारत को काफी धन और जन की हानि हुई ! पाकिस्तान ने सोचा की "चीन ने तो हिन्दुस्तान की विकास की जड़ें हिलाकर रख दी हैं और यही मौका है की उसके ऊपर आक्रमण कर दिया जाय, लोहा गरम है और पूरे काश्मीर पर कब्जा करने का सही समय है !अपरेल १९६५ में रन कच्छ पर हमला किया और सीमा के काफी अन्दर तक घुस गए ! १५ अगस्त तक हजारों पाकिस्तानी सेना से घुस पैठ कराकर कश्मीर के पहाडी गाँवों में लोकलों को बहला फुसला कर भारत के बिरुद्ध भड़काने का काम करने लगे ! अमेरिका से नए नए पैटर्न टैंक मिले थे, iसलिए हौशले और भी बढ़ गए थे ! सितम्बर १९६५ ई० को उसने अखनूर के ऊपर हवाई हमला करके आखिर युद्धका बिगुल बजा ही दिया ! शुरू शुरू में तो पाकिस्तान हर मोर्चे पर आगे बढ़ा, लेकिन तीन दिन के बाद भारतीय सैनिकों ने जो अपना जलवा दिखाया तो फिर पाकिस्तानी सेना हर मोर्चे पर भागते नजर आए ! हमारी स्थल सेना ने नेवी को साथ लेकर पाकिस्तान की नेवी की कमर तोड़ दी और लाहोर आक्रमण पर कर दिया ! अब पाकिस्तानी मिलिटरी के हुकमरान घबराए, उन्होंने पहले अमेरिका मदद माँगी, अमेरिका उस समय स्वयं वियेतनाम में फंसा हुआ था, उसने मदद देने से इनकार कर दिया, अब वे आनन् फानन में युद्ध विराम कराना चाहते थे ! लेकिन भारत इसके लिए तैयार नहीं था ! फिर संयुक्त राष्ट्र का दबाव बढ़ा और रूस ने भी भारत को सीज फायर के लिए राजी कर दिया ! इस युद्ध में यद्यपि भारत का पलड़ा भारी रहा, लेकिन नुकशान दोनों देशों का बहुत ज्यादा हुआ ! पाकिस्तान को तो फिर अमेरिका से खैरात मिल गयी लेकिन हमें तो फिर से स्वयं उठ कर अपने खोये हुए अस्तित्व को पाना था ! दूसरों की भीख पर पलने वाला पाकिस्तान आज भी वहीं पर खडा है और भारत उसके द्वारा बार बार नुकशान पहुंचाने के वावजूद अपने विकास करता जा रहा है ! पाकिस्तान के फ़ौजी तानाशाह जनरल मोहम्मद अयूब खान और भारत के प्रधान मंत्री रूस के बुलाने पर ताशकंद गए और वहां दोनों देशों के नेताओं ने ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए ! उन दिनों रूस के प्रधान मंत्री श्री बुल्गानिन थे ! सारी जीती हुई जमीन पाकिस्तान को वापिस कर दी गयी ! १० जनवरी १९६६ को वहीं ताशकंद में समझौते के बाद ही रहस्यमय ढंग से हमारे प्रधान मंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री जी की मृत्यु हो गयी ! कारणों का आज तक पता नहीं लग पाया है ! उस समय उनकी पत्नी श्रीमती ललिता शास्त्री भी उनके साथ ताशकंद में थी ! श्रीमती इन्द्र गांधी भारत की तीसरी प्रधान मंत्री बनी ! वे श्री लालबहादुर ही थे जिन्होंने देश को "जय जवान जय किसान " का नारा दिया ! हमारी यूनिट थ्री राजपुताना राईफ्लस की तीन साल की फील्ड समय सीमा समाप्त हो रही थी, यूनिट को अगला पीस स्टेशन मिला "जयपुर" ! १९६६ अगस्त के महीने में हम लोग झोटवाडा जयपुर पहुंचे ! उस समय राजस्थान के मुख्य मंत्री थे श्री मोहन लाल सुखाडिया जी ! उन्होंने अपने निवास स्थान पर यूनिट के अधिकारियों और जवानों को बुलाकर यूनिट का अपने प्रदेश में स्वागत किया ! इन दिनों जयपुर का हवाई महल, पिंक सिटी जयपुर, गलता, आदि धार्मिक दूसरे ऐतिहासिक स्थानों को देखने का अवसर मिला ! मेरे ससुर साहेब मेरी पत्नी को लेकर जयपुर आए और एक दो स्थानों को देख कर दूसरे दिन ही गाँव चले गए थे ! यहाँ जयपुर सिटी में सिनेमा हौल काफी थे सो खूब फ़िल्में देखी पत्नी के साथ ! इससे पहले मैं पत्नी को लेकर देहरादून इनके चाचा चाची से मिलने भी गए थे ! मुझे भी यूनिट में ५ साल हो चुके थे, मेरी पोस्टिंग रिकार्ड्स औफ़िस दिल्ली हो गयी ! अक्टूबर के महीने में दिवाली के दिन हम लोग दिल्ली पहुंचे ! कुछ दिन जम जमाव में लगे फिर सब कुछ ठीक हो गया ! २४ सितम्बर १९६७ ई० को मेरे परिवार में बहुत लम्बी इंतजारी के बाद एक बेटी आई, उर्वशी ! शादी हुए सात साल हो चुके थे, इस लिए उर्वशी हमें ईश्वर की ओर से एक बड़ा तोहफा था ! मंदिर के पंडित जी को बुलाया गया, नाम करण विधि विधान से किया गया ! मैं एक सैनिक था इसलिए बच्ची का जन्म आर्मी हास्पिटल दिल्ली कैंट में ही हुआ, समय सुबह के ७.१० थे और रविवार था पहले बच्चे के रूप में लक्ष्मी आई थी घर में इसलिए खूब खुशियाँ मनाई गयी ! (आठवाँ भाग)

Friday, July 16, 2010

मेरी कहानी (छट्टा भाग)

उस समय तक रेल केवल पठानकोट तक ही थी ! पठानकोट में स्टशन पर फ़ौजी गाड़ियां मौजूद रहती थी जो सैनिकों को चाहे वे छुट्टी जा रहे हों, छुट्टी से आ रहे हों, पोस्टिंग आ या जा रहे हों, ये गाड़ियां उन्हें सेना के ट्रांजिट कंप ले जाती थी ! वहां से छुट्टी जाने वाले फिर रेलवे स्टेशन गाडी पकड़ने चले जाते थे और अपनी अपनी यूनिटों में जाने वाले ट्रांजिट कैम्प से फौजी गाड़ियों द्वारा जम्मू अगले ट्रांजिट कंप में भेजे जाते थे ! जम्मू से पूंछ की तरफ जाने वाले पश्चिम दिशा को चले जाते थे, नगरोटा और श्रीनगर, लेह लदाक जाने वाले उत्तर दिशा की ओर भेज दिए जाते थे ! आज तो नगरोटा में पूरी कमांड है और रेलवे स्टेशन है जब की उन दिनों केवल एक कोर था ! कोर कमांडर थे ले.जनरल बिक्रमसिंह अपने टाईम के एक ख्याती प्राप्त जनरल, एक उच्च कोटि के शासक प्रशासक थे , उनके नाम से ही दुश्मनों के पसीने छूट जाते थे ! लेकिन जहाँ सेना में क़ानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए वे बड़े शक्त थे वहीं जवानों की सुख सुविधा का भी पूरा ध्यान रखते थे ! मैं तो उन्हें दिल्ली से ही जानता था ! सन १९६०-६१ में दिल्ली एरिया कमांडर थे, २६ जनवरी मनाने के लिए तमाम प्रदेशों के लोकल डांसर यहाँ तालकटोरा गार्डन में एक महीना पहले जमा हो जाते थे ! उनके लिए ऐडम बंदोबस्त करने के लिए आर्मी यूनिटों की मदद ली जाती थी ! जवान जे सी ओज की एक टीम १९ वीं आर्टी प्लाटून की थी और राजपुताना राईफल्स रेगिमेंटल सेंटर से मैं एक लिपिक के तौर पर वहां तैनात था ! ये सारा प्रबंध दिल्ली एरिया और स्टेशन हेडक्वार्टर के अधीन था ! एक दिन शाम के वक्त जनरल बिक्रमसिंह जी वहां ताल कटोरा में आये और उन लोकल डांसरों को पूछने लगे की उन्हें वहां कोई किस्म की परेशानी तो नहीं है ! वहां पार्क के बीच में एक बड़ी खाई थी और इन लोगों को इस पार से उस पार जाने के लिए नीचे खाई में उतरना पड़ता था, इस परेशानी को उन्होंने जनरल साहेब को बताया, उस वक्त वे मेजर जनरल थे ! उन्होंने उसी समय एम ई एस के इंजीनियर को बुलाया और सुबह तक खाई के ऊपर पूल बन कर तैयार हो गया था ! जो करना है तुरंत करो, ये आदर्श था जनरल साहेब के जीवन का ! मेरे जीवन में १९६१ के ताल कटोरा में बिताए हुए ये दिन विशेष महत्त्व के रहे, इन लोगों के साथ हमें उन स्थानों पर भी जाने का अवसर मिला जहां हर किसी के लिए संभव नहीं होता ! जब गणतंत्र दिवस मनाया गया, बीटिंग दी रीट्रीट की समाप्ति पर इन प्रदेशों के लोकल डांसरों को गोलचा सिनेमा हौल में उस वक्त की मशहूर फिल्म "मुगले आजम" दिखाई गयी, जिसमें दलीप कुमार, मधु बाला, और पृथ्वी राज कपूर मुख्य भूमिका में थे ! हम सैनिकों को भी उन लोगों के साथ फिल्म देखने का अवसर मिला ! उसके बाद राष्ट्रपति भवन में जाकर मुग़ल गार्डन में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा० राजेन्द्र प्रशाद जी के साथ फोटो खिंचवाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ! अगले दिन इन लोगों के साथ हम त्रिमूर्ति प्रधान मंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू जी के निवास स्थान पर गए और नेहरू जी तथा श्रीमती इन्द्रा गांधी जो उस समय कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष थी के साथ फोटो खिंचवाई ! ताल कटोरा गार्डन में ही सिविल ड्रेस में उस समय के रक्षा मंत्री श्री कृष्णा मेनन के साथ भी फोटो खिंचवाई गयी !
जनरल बिक्रमसिंह जी जब तक जम्मू कश्मीर में रहे, वहां अमन चैन रहा, सड़क दुर्घटनाओं में कमी आई, सेना और लोकल जनता का आपस में भाई चारा जैसे सम्बन्ध थे ! लेकिन विधि को यह सुख शांती अमन चैन रास नहीं आई ! २२ सितम्बर १९६३ को पांच अन्य जनरलों के साथ वीर बिक्रमसिंह जी एक हेलीकाप्टर दुर्घटना में मारे गए ! पूँछ नदी के किनारे जहां पर आग की लपटों में जलता हुआ हेलीकाप्टर गिरा था एक संगमरमर शिला पर तारीख के साथ इन जनरलों का नाम अंकित है ! मैं उस समय अपनी यूनिट के साथ पूँछ में ही था और हमने जलता हुआ यह हेलीकाप्टर अपनी आँखों से देखा था ! और इसी २२ सितम्बर १९६३ को अमेरिका के राष्ट्रपति जौन कैनेडी भी एक हत्यारे की गोली से मारे गए थे ! (ऐतिहासिक घटना) ! २६ मई को हमारी यूनिट फील्ड फायरिंग के लिए बेस के पूर्व दक्षिण में झलास रेंज पर गयी थी, वहीं २७ मई को भारत के प्रथम प्रधान मंत्री के निधन का समाचार मिला ! श्री लाल बहादूर शास्त्री जी को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर प्रधान मंत्री बनाया गया ! (सातवाँ भाग )

Thursday, July 15, 2010

मेरी कहानी (पांचवा भाग)

चीन ने "हिन्दी चीनी" भाई भाई का नारा लगाते हुए, १९६२ ई० में देश के पुर्वी हिसे पर आक्रमण कर दिया ! कुछ ही दिन पहले भारत के प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू और चीन के प्रधान मंत्री श्री चाऊ इन लाई ने पंच शील समझौता पर हस्ताक्षर किये थे, और दोनों देशों के नेताओं ने शांती के सफ़ेद कबूतर भी उड़ाए थे, लेकिन कुछ ही समय के भीतर समझौते का उलंघन करते हुए अचानक भारतीय चौकियों पर चीन की सेना ने अटैक कर दिया ! भारतीय सेना तैयार नहीं थी ! पूर्वी सीमा पर हमारी पोस्टों पर सैनिकों की संख्या भी बहुत कम थी तथा पुराने हथियार थे, अम्युनिशन की भी कमी थी ! भारतीय सैनिक अपनी बहादूरी और रणकौशलत़ा के लिए विश्व में नंबर वन था पर जहां कायदे के हथियार न हों सही मैन पावर न हो, पहले तैयारी न हो और अचानक एक दोस्त पीठ पीछे से छुरा भोंक दे, तो फिर ऐसी हालत में बेचारा सैनिक क्या करेगा ! चीन ने वही हमारे साथ किया ! बहुत सारे सैनिक इस युद्ध में शहीद हुए, बहुत सारी हमारी भूमि पर चीनियों ने जबरन कब्जा कर दिया जो आज भी उनके अधिकार क्षेत्र में है ! सेना के कही बेस कीमती रत्न इस लड़ाई में खो गए, जिन में एक नाम आज भी हमारे रेजिमेंट का प्रेरणा स्रोत है , ब्रिगेडियर होशियार सिंह, जिन्होंने १०-12 चीनियों को मार कर आखरी शांस तक अपनी धरती शत्रु के कब्जे में नहीं जाने दी और वीर गति को प्राप्त होगये, भारतीय स्थल सेना के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा गए !
अब मैं १० वीं पास था तथा सेना में सेवारत था, तो रिश्ते आने लगे ! घर की माली हालत अच्छी नहीं थी, अभी संभालने में वक्त लगेगा ! उम्र भी २४ पार कर गया था ! अच्छे अच्छे घरों से भी रिश्ते आने लगे ! गनीमत है उस जमाने में कोई नहीं पूछता था की "वेतन भता कितना है ? ऊपर की कमाई कितनी है ?" अगर पूछता तो मैं क्या बताता की सब मिलाकर ८५ मिलते हैं ! हाँ खाना पीना और मकान सरकारी था ! उस समय ताम्बे के पैसे होते थे, इक्कनी, दो आना, ये पीतल के होते थे, चव्वनी, अट्ठानी और रुपया चांदी के होते थे ! चार पैसे का एक आना, १६ आने या ६४ पैसों का एक रुपया होता था ! एक रूपया का सिक्का भी होता था और नोट भी ! एक रुपये में काफी कुछ मिल जाता था ! उस जमाने में रुपये जेब में ले जाते थे और गाडी भर कर सामान लाते थे, आज की तरह नहीं की कार भर कर रुपये ले जाओ और जेब में सामान लाओ ! उस समय १०० रुपये का सबसे बड़ा नोट होता था जो किसी किसी के पास ही मिलता था ! १, २, ५, १० और १०० के नोट होते थे ! बाद में २० का चालू किया गया ! वाज में मन सेर छटांग प्रयोग में लाये जाते थे ! १६ छ्टांग का सेर होता था, ओर ४० ser का मन !
काफी खोज बीन के बाद तिमली में अवकास प्राप्त जंगलात विभाग के रेंजर साहेब श्री रणजीत सिंह गुसांई जी व श्रीमती कुन्दनी देवी की सुपुत्री जयन्ती देवी से ६ मार्च सन १९६० को मेरी शादी हुई ! यह परिवार हमारे परिवार से काफी आगे था ! मेरी पत्नी के बड़े भाई श्री जगमोहन सिंह जी गुसांई, जो उस समय खुद फौरेस्टर थे और शादीसुदा थे, मेरी पत्नी की भाभी का नाम सुमित्रादेवी है ! उनसे बड़ी बहिन प्रभा देवी हैं, उनकी शादी खितडिया के खुशालसिंह भंडारी के साथ हो चुका थी ! ! जब मेरी शादी हुई थी, फौरेस्टर साहेब के दो लड़कियां अरुणा और जान्हवी और एक लड़का विनोद हो चुका था ! बाद में अनूप, शोभा, सुषमी और सबसे छोटा बेटा प्रमोद हुआ ! गुसांई एक लड़ाकू राजपूत कौम है जो गढ़वाल राजा की सेना में ऊंचे ओहदों पर तैनात थे इनके ताऊ जी का लड़का रघुबीरसिंह भी आर्मी और्डीनेंस में कार्य रत थे ! तिमली गाँव डबराल्स्यूं पट्टी के आस पास के गावों से शिक्षित और धनाड्य था ! यहाँ गढ़वाल में एक मात्र संस्कृत पाठशाला थी जिसमें हिन्दी के साथ साथ मध्यमा तक संस्कृत की शिक्षा दी जाती थी और दूर दराज के ब्राह्मणों के लडके शिक्षा ग्रहण करने को आते थे ! आचार्य वाणीविलास जी जो उस जमाने के बड़े विद्वान धार्मिक शास्त्रों के ज्ञाता थे इसी गाँव के रहने वाले थे ! उन्होंने देवीखेत स्कूल के लिए अपने नाम से एक कमरा बनवा कर दिया था ! हरिद्वार में कही धर्म शालाओं में उनके नाम की तख्ती आज भी नजर आजाएगी ! उनके छोटे भाई विद्या दत्त जी भी संस्कृत और अंगरेजी के विद्वान थे ! ८ वीं क्लास में वे देवीखेत में हमारे अंगरेजी के अध्यापक थे ! उस समय मैं देहली कैंट में ही ५ वीं कंपनी में लिपिक की पोस्ट पर कार्यरत था ! जौलाय सन १९६१ ई० में मेरी पोस्टिंग जम्मू रणवीर सिंगपुरा (अंधेरी रख ) हो गयी थी ! कभी कभी पाकिस्तान की तरफ से सीमा पर गोला बारी हो जाया करती थी ! इस लिए एक दो महीने के लिए सीमा पर चले जाते थे बाकी समय शारीरिक ट्रेनिंग , परेड, खेल या फिर आर्मी के लिए बारीकें बन रही थी, कुछ सैनिक इस काम में मदद दे दिया करते थे ! सन १९६२ ई० में चीन ने अचानक हमला करके हमारे कही जवानों को मौत के घाट उतार दिया ! कहियों को बंदी बनाया गया ! हमारी सीमा के काफी अन्दर तक ये फरेबी धोखे बाज घुस आये थे ! इस विषम प्रस्थिति में भी हमारे एक शेर दिल जावाज ब्रिगेडियर होशियारसिंह भी वीरता से लड़ते हुए १०-1२ दुश्मनों को हलाक करके वीरगति को प्राप्त हुए ! उससे पहले वे राजपुताना राईफ्लस रेजिमेंटल सेंटर के कमांडेंट रह चुके थे ! आज भी राजपुताना राईफ्लस के व भारतीय स्थल सेना के इतिहास में उनका नाम स्वर्णा अक्षरों में लिखा हुआ है ! हमारी यूनिट को भी उस संग्राम में जाने का आदेश हो चुका था तैय्यारी भी हो चुकी थी, ठीक ऐन वक्त पर सीज फायर होगया और हमारी यूनिट का प्रोग्राम कैंसिल हो गया ! सन १९६३ जौलाय के महीने में हमारी यूनिट थ्री राजपुताना राईफ्लस (गॉड्स औन ) पूंछ सेक्टर चली गयी ! यहाँ जहां हमारा मुख्यालय था यह स्थान कभी पूंछ महाराजा का महल था ! ( छटा भाग )

Wednesday, July 14, 2010

नए घर में कीचन गार्डन

यहाँ न्यू यार्क में नए घर पीछे अच्छा ख़ासा लान है तथा कुछ जगह ऐसे भी है जिसमें छोटे छोटे पौधे, फूल कुछ बेल लगाई जा सकती हैं ! वैसे भी स्प्रिंग बंद रहने से लान की घास काफी सुख गयी थी ! हमने फिर से स्प्रिंग लगा कर इस लान को पहले जैसा हरा भरा करने का अभियान शुरू कर दिया है ! साथ ही टमाटर, ककडी की बेलें, शिमला मिर्च, बैंगन, लौकी की बेल लगा दी हैं ! समय पर इन्हें पानी दिया जा रहा है ! टमाटर लग चुके हैं, शिमला मिर्च ने भी फल देने में देर नहीं लगाई ! लौकी भी जमीन से बाहर आकर पानी और हवा का मजा लेते हुए धीरे धीरे मुस्कान भरते हुए लंबा होने की कसरत करने लगी है ! बैंगन महाशय अपने अगल बगल में देखते हुए, ऊंचाइयां नापने की हसरत पूरी करने में लगे हैं ! फूल भी मौसम की दुहाई देते हुए अपने कद का जायजा ले रहे हैं ! मेरे फलते फूलते बगीचे पर एक नन्ने से खरगोश की नजर लग गयी है ! अभी तक उसने कुछ भी शरारत नहीं की है पर आता रोज है कुछ देर बगीचे के सामने खडा होता ही फिर आगे बढ़ जाता है ! मैं उसकी हर हरकत पर नजरें गडाए रहता हूँ ! जब भी वह बगीचे के सामने खडा होकर बगीचे की तरफ देखने लगता है, मुझे लगता है की वह लाल लाल टमाटर, हरी हरी मिर्च और ककडी के सफ़ेद फूलों को देख कर ललचा रहा है और कोई गहरी साजिस रच रहा है ! उसका रोज बदलता हुआ मिजाज मुझे बेचैन किये रहता है ! है बड़ा प्यारा और रोज देखने की इच्छा भी होती है पर साथ ही उसके इरादों से चौकना हो जाता हूँ ! सोचता हूँ इससे दोस्ती बढ़ा लूं इस तरह यह दोस्त के बगीचे पर बुरी नजर नहीं डालेगा ! मेरा बेचैन मन भी शांत हो जाएगा ! पर उससे दोस्ती का हाथ कैसे बढ़ाऊँ जैसे मेरा बढ़ा हाथ देखता है दूम दबाकर भाग खडा हो जाता है !
अभी तो ईश्वर की कृपा से बगीचा सुरक्षित है ! एक दिन तो भाग गया, लेकिन अगले ही दिन दो साथियों को लेकर एक झाडी से मेरे बगीचे की तरफ इशारा कर रहा था, गुस्सा तो मुझे बहुत आ रहा था की ये मेरे बगीचे पर नजर क्यों लगा रहा है, औरों के भी तो बगीचे हैं मेरे से बड़े भी हैं, उन में बहुत सारी पौध लगी हैं, फिर ये उधर नजर क्यों नहीं फेरते ! पास पड़ोस में पूछने से पता लगा की इन खरगोशों के अलग अलग कबीले हैं और इनके इलाके बंटे हुए हैं, मेरा बागीच इस खरगोश वाले इलाके में पड़ता है और इसकी देखभाल करने की जिम्मेवारी इसी की है ! देख रहा हूँ कैसी देख भाल करता है यह खरगोश और इसका कबीला !!

Tuesday, July 13, 2010

मेरी कहानी (चौथा भाग)

समय देवीखेत में केवल प्राईमरी स्कूल थी ! इलाके में उस समय केवल दो मीडिल स्कूल थे, पौखाल और मटियाली ! मेरे मामा जी ने इलाके के सारे गण मान्य लोगों को देवीखेत में बुलाया और वहीं पर एक मीडिल स्कूल खोलने की इच्छा जाहिर की ! बहुत सारे गाँव वालों को देवीखेत में मीडिल स्कूल खोलने से काफी लाभ मिलता ! जिनके बच्चे दूर की वजह से स्कूल नहीं जा पा रहे थे, उनके लिए तो जैसे ईश्वर ने उनकी मनोकामना पूरी कर दी ! एक शुभ दिन पर उदघाटन भी हुआ और देखते देखते, देवीखेत में मीडिल स्कूल खुल गया ! मेरे मामा जी का एक स्वप्न पूरा हुआउस ! वे फिर जिला बोर्ड के सदस्य भी भारी मतों से चुने गए ! देवीखेत में उन दिनों पानी की बड़ी समस्या थी, दिखेत गाँव वालों के चश्मे से हम पानी लाते थे ! मामाकोट में भी पानी की काफी किल्लत थी, चश्मे तो थे पर दूर दूर थे ! नंबर लगते थे और अपनी बारी आने पर ही पानी भर सकते थे ! स्कूल के अध्यापक वहीं स्कूल में रहते थे उनके लिए पानी लाना खाना पकाने के लिए लकड़ी का इंतजाम करना विद्यार्थियों के ऊपर था ! लकड़ी लाने के लिए हर सोमवार को हमें चेलुसेन के जंगल बटाकोली जाना होता था ! यह जंगल तीन चार मील दूर पड़ता था ! पूरा दिन लग जाता था ! इस जंगल में जोंक बहुत हैं और अकसर हमारे पावों पर चिपक जाते थे ! यहाँ एक बहुत बड़ा लाल किस्म का फूल होता है जिसे "बुरांस" का फूल कहते हैं ! इसका स्वाद मिट्ठा है और हम विद्यार्थी इसका स्वाद लेते थे ! समय की गति के साथ मैं भी कक्षा बदली करता चला गया ! सन १९४८ में मैंने चौथी पास किया और एक नए नियम के माध्यम से हमें ६ वीं जूनियर क्लास में बिठाया गया ! सन १९५१ ई० में मैंने देवीखेत से ८ वीं पास किया ! हमारा सेंटर जहरीखाल में पडा था !
भूपेंद्र सिंह - मेरे मामा जी के बड़े लडके का नाम भूपेंद्र सिंह था ! वे मेरे से कुछ ही महीने बड़े थे पर दो क्लास आगे थे ! अच्छी कद काठी और सुन्दर थे ! मामा जी वहीं स्कूल में राम लीला भी करवाते थे और स्वयं परशुराम और भूपेंद्र भाई लक्षमण का किरदार निभाते थे ! आवाज मधुर थी गाना भी गाते थे, लेकिन पद्गाई में वे हमेशा एक साधारण विद्यार्थी ही रहे ! लेकिन वे कलम के जादूगर थे ! इतनी अच्छी हिन्दी भाषा लिखते थे की बड़े बड़े लेखक भी चक्कर खा जांय ! उन्होंने एक साप्ताहिक पेपर "ठहरो", निकाला था और जब तक जिए इस पेपर से जुड़े रहे ! वे जिल्ला के कम्युनिष्ट पार्टी के जनरल सेक्रेटरी थे ! गरीबों की आवाज बुलंद करते रहे अपने ठहरो के द्वारा ! सन १९९७ ई० में वे भी हमें छोड़ कर स्वर्ग सिधार गए ! उनके बड़े लडके सुधीन्द्र नेगी इस पेपर ठहरो को धुन्धुवी नाम से चला रहे हैं !
सन १९५३ ई० में मेरे मामा जी ने ढौ री छोड़ दी और कोटद्वार भावर के पश्चिम में झंडी चौड को आवाद किया ! इससे पहले उन्होंने देवीखेत में प्रदर्शनी का आयोजन भी किया था जिसे लोग आज भी याद करते हैं ! वे झंडी चौड चले गए थे लेकिन दिल तो देवीखेत में बसा था ! उनका दूसरा स्वपना था देवीखेत तक मोटर रोड जो १४ जनवरी १९८४ ई० पूरा हुआ ! झंडी चौड़ उस समय घने जंगलों से ढका था, न पानी था न ढंग का ही कोई रास्ता था, जंगल कटवा कर खेत बनाए गए, सरकार से लड़ झगड़ कर सड़कें पानी, बिजली का इंतजाम करवाया ! आज इन बातों को ४७ साल हो गए हैं, आज जो लोग झिन्डी चौड़ में बसे हुए हैं और जो बुजुर्ग हैं उन्हें पता होगा की गोकुलसिंह जी ने इस झिन्डी चौड़ को आधुनिक सुविधाओं को मुहयिया कराने में कितना कष्ट उठाया होगा, कितने दिनों वे भूखे रहे होंगे, कितनी रातें बिना सोये हुए बीती होगी ? वह एक बड़ा संघर्ष मय जीवन था ! ठीक स्वतंत्रता संग्राम जैसे, उस वक्त विदेशियों से संघर्ष था, अब अपनो से, अपनी सरकार से जो कदम कदम पर मुसीबतें खड़ी कर देती थी ! जहाँ उनका पूरा जीवन ही संघर्ष मय रहा, तो भूपेन्द्र भाई जी जीन्दगी भर गरीबों के लिए संघर्ष करते रहे ! उनकी रखी हुई ईंटों पर आज उनकी अगली पीढी आलीशान बंगले बनाकर शान शौकत की जिन्दगी जी रहे हैं !
नवीं क्लास के लिए मैं अपने बड़े मामा जी के पास कोटद्वार आगया ! यहाँ पब्लिक इंटर कालेज के मैनेजर मेरे मामा जी श्री प्रतापसिंह थे ! नवीं में हमारे से एक साल आगे वाले भी हमारे साथ हो गए ! सन १९५३ ई० को मैंने १० वीं पास किया ! बड़े मामा जी पहले ही कोटद्वार आकर बस गए थे ! पहले सम्पादन का कार्य किया फिर अपना पूरा जीवन ही राजनीति को दे दिया ! सांसद रहे, कोटद्वार में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रहे !
अब मेरे सामने नौकरी करके अपने परिवार को आर्थिक सहायता पहुंचाने का था ! जंगलात में चालीस रुपये महीने पर तीन महीने नौकरी की फिर दिल्ली अपने चाचा जी ज्ञानसिंह के पास चला गया, उनकी आर्थिक स्थिति भी कोई ख़ास अच्छी नहीं थी ! यहाँ प्रेस में कम्पोजिंग का काम सीखा ! फिर कोटद्वार आकर एक साल तक अरविन्द प्रेस में कम्पोजिंग का काम किया दो बच्चों को ट्यूशन किया ! सन १९५६ ई० में मैं फिर दिल्ली आया और २९ अक्टूबर १९५७ ई० को राजपुताना राईफल्स रेजिमेंटल सेंटर में भर्ती हो गया ! एक साल की ट्रेनिंग के बाद देश के लिए कुर्वान होने की शपत ली और पक्का सैनिक बन गया ! मई सन १९५९ ई० को मुझे पहला प्रोमोशन मिला, अब मैं सिपाही से ला.नायक बन गया था ! मेरे जीवन का यह एक बहुत ही ख़ास दिन था ! यद्यपि गढ़वाल की अलग रेजिमेंट हैं "गढ़वाल राईफल्स" और कुमायूं रेजिमेंट फिर भी मैं राजपुताना राईफल्स में भर्ती हुआ पद्दोन्नत हुआ खूब इज्जत और सम्मान पाया और २८ साल तक इन लोगों के प्रेम और भाई चारे के बंधन में बंधा रहा ! मैं एक लिपिक भर्ती हुआ था, उस समय जो पहली कंपनी मुझे मिली थी, वहां मेरे सीनियर थे नायक रामसिंह, मथुरा के रहने वाले ! अगर सच कहूं तो उन्होंने ही मुझे एक अच्छा लिपिक बनाया ! उन्होंने मुझे दो साल अपने पास रखा अपना बच्चा समझ कर ! उन्हें मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ ! वैसे भी जब वे जे सी ओ बने तो उनका न.था जे सी ३८११५, और मेरा न. था ८३११५ ! तीन आठ और आठ तीन क्या संयोग था ! (5th bhaag)

Monday, July 12, 2010

मेरी कहानी (तीसरा भाग )

मेरे मामा जी बड़े सज्जन थे लेकिन मैं तो अभी बच्चा था, उन दिनों बच्चे ९ साल तक डंगर चराते थे और अगर परिवार वाले बच्चे को स्कूल भेजना चाहें तो ९-१० के बाद ही भेजते थे ! ८ साल तक तो लंगोट भी नहीं पहिनी जाती थी ! मेरे लिए बिलकुल नया माहोल ! मेरा गाँव ठहरा छोटा तीन मकानों वाला गाँव और ढौ री बहुत बड़ा गाँव था वहां बच्चे भी बहुत थे ! काफी दिनों तक घर की याद आती रही ! हाँ हर शनिवार को चार बजे स्कूल की छुट्टी हो जाती थी और मैं देवीखेत स्कूल से ढौरी आता था फिर यहाँ से ढाई मील की उतराई उतर कर हिवल नदी और नदी नदी करीब तीन मील चल कर अपने गाँव पहुंचता था ! माँ बड़ी खुश हो जाती थे, फिर हम भाई बहिन लड़ना शुरू कर देते ! समय का पता ही नहीं लगता, कब इतवार आजाता और आँखों में आंसू भरकर चार बजे माँ भाइयों से गले लगकर चल पड़ता मामा कोट, स्कूल के लिए, वही नदी का रास्ता, फिर सीधे ढाई तीन मील की चढ़ाई और मामा कोट पहुंचते पहुंचते अँधेरा छा जाता ! लेकिन जब बरसात आजाती, नदी में बाढ़ आजाती, तो कभी कभी दो तीन हफ्ते तक मैं घर नहीं जापाता, कितना मिस करता था मैं अपने माँ और भाई बहिन को बचपन के साथियों को, ! माँ इंतज़ार करती रहती शाम ढलने तक, फिर सोचती "क्यों नहीं आया होगा हरेन्द्र, कहीं नदी में तो नहीं बह गया होगा !" पिता जी के स्वर्गवासी होने और उनके जाने के एक साल के अन्दर ही मेरा चार साल का मासूम प्यारा भाई गोविन्द भी हमें छोड़ कर चल गया था, माँ को बड़ा गहरा सदमा लगा था ! इसलिए उन्हें हर वक्त डर लगा रहता था की फिर कोई और बुरा न हो जाय ! कभी कभी माँ बड़े भाई कुवंरसिंह को मामाकोट भेज देती थी पता करने के लिए ! उन दिनों कहाँ था टेलीफोन, मोबायल ! या तो डाक या फिर पैदल नापकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाना पड़ता था ! मेरी माँ ने बचपन से ही बड़े कष्ट सहे थे, जब केवल ९ साल की थें तो मेरी नानी भगवान के पास चली गयी थी, ११ साल के होते ही नाना जी भी स्वर्ग सिधार गए थे ! ३२ साल के होते होते मेरे पिता जी भी हमें मझधार में छोड़ कर चले गए थे ! चाचा कोई मदद गार नहीं नादान बच्चे, इनकम का कोई जरिया नहीं ! दादा जी काफी बूढ़े हो चुके थे, उनकी देख भाल करना भी एक जिम्मेदारी थी ! माँ कुछ दिन तो चिंतित रही फिर पक्का इरादा और विश्वास के साथ इस विषम प्रस्थिति का मुकाबला करने के लिए अपने को तैयार कर लिया ! सन १९४७ में मेरे दादा जी ने भी सबसे नाता तोड़ कर सदा के लिए आँखें मोड़ ली ! बड़े भाई ने हल संभाल लिया, माँ ने घर का पूरा काम, दूर से पानी लाना, जंगल से लकड़ी घास लाना, गाय, बैल, और अन्य मवेशियों की देखभाल, नास्ता बना कर खेतों में ले जाना, खेतों में हल के साथ डल्ले फोड़ना, निराई गुडाई और भी बहुत सारे काम ! फिर माँ के भाई उस समय के गढ़वाल में नेता और समाज के कार्यकर्ता के तौर पर जाने जाते थे, ये एक मानसिक स्पोर्ट था मेरी माँ को ! वैसी भी स्वतंत्रता का आन्दोलन शिखर पर और आन्दोलन से जुड़े हुए लोग मामा जी के कारण हमारे घर पर आकर, खाना चाय नास्ता करके जाते थे ! भगवान की कुदरत टूटी होने के वावजूद चाय, दाल, चावल, गेहूं की रोटी हमारे ही घर में बनती थी ! इनके अलावा भी कोई भूला भटका मुसाफिर भी हमारे घर से चाय नास्ता के वगैर नहीं जाता था ! दूर दराज के गाँवों में बच्चे बीमार हो जाते थे तो माँ-बाप माँ के पास आते थे और माँ एक जडी को घोंट कर तीन खुराक दवाई बनाती थी और बिना पैसा लिए यह दवाई बच्चे को पिला देती थी, ईश्वर की दया से बच्चा ठीक हो कर खेलने लग जाता था ! यह जडी मेरी माँ को मेरे दादा जी ने बताई थी ! इस तरह उस जमाने में जब गाँवों में कोई जानता भी नहीं था की डाक्टर क्या होता है, नाम मात्र के वैद्य होते थे जो नाडी देख कर जडी बूटी बनाकर देते थे, कोई ठीक होजाता था, कोई बेचारा किस्मत का हीन जिन्दगी भर बीमारी के बोझ को ढोते हुए ईश्वर के पास चला जाता था ! भगवान ने माँ को वरदान तो दे ही रखा होगा की जिन बच्चों को उनहोंने दवाई दी वे १००% स्वस्थ हुए ! जिन महिलाओं के बच्चे होने में कठिनाई होती थी उनके लिए माँ एक योग्य नर्स का काम भी करती थी ! इस तरह नजदीक ही नहीं दूर दूर के गाँवों में भी लोग माँ की इज्जत करने लगे थे ! माँ ने हमें बचपन में ही बड़ों को 'तुम' और और बड़ों को 'आप' कहना सिखाया था ! हम बच्चे कभी आपस में झगड़ पड़ते थे तो माँ हमें ही डाटती थी ! माँ का कहना था की कमी अपने में ढूँढो, दूसरो की अच्छाई लो, जिन्दगी में सदा सुखी रहोगे ! औरों को तो माँ खुशी देती थी लेकिन स्वयं कभी अर्द्ध कपाली के दर्द से तो कभी पेट की पीड़ा से जीवन भर परेशान रही ! हाँ एक बार सन १९८१ में उन्हें नमोनिया हुआ था और उनका इलाज आर्मी अस्पताल में हुआ था, तब से उनका सर दर्द तो ख़तम हो गया था, लेकिन दांतों का दर्द और पेट का दर्द ३ नवम्बर १९९८ को उनके साथ गया ! मेरे निवास स्थान पर ही जीवन पार्क, उत्तम नगर, दिल्ली में मेरी माँ ने स्वर्ग की यात्रा के लिए अपनी आँखें सदा के लिए मूँद ली हमें रोता छोड़ कर !
मेरे दादा जी
मुझे अपने दादा जी की खूब याद है ! जब वे स्वर्ग सिधारे थे उस समय मैं १२ साल का था ! वे मुझे अपने बारे में बताया करते थे की किस प्रकार उन्होंने एक बार बाघ को खाली हाथों ही मार दिया था, यह बात तो मुझे बाद में गाँव के बड़े बूढों ने भी बताई थी ! एक बार दादा जी जंगल के साथ लगे सीधी नुमा खेत में गोट में सो रहे थे (गोट सभी मविशियों को बाहर खेतों में बांध देना, चारों तरफ बांसों को चीर कर बने हुए लम्बे लम्बे पट्टियों से घेरा बना दिया जाता था और उन मवेशियों के बीच में उनकी रखवाली करने लिए एक आदमी को वहां रहना होता था ) । दादा जी दिन भर की मेहनत से थके थे सो गहरी नींद सो गए ! अचानक बाघ ने एक गाय की बछिया को पकड़ लिया उसके चिल्लाने से दादा जी की नींद खुल गयी और अर्ध्द निंद्रा में बाघ के ऊपर ही कूद पड़े, बाघ गुस्से में था उसने बछिया को तो छोड़ दिया और दादा जी पर पंजो से हमला करने लगा, दादा जी ने दोनों हाथों से उसका गला पकड़ दिया जोर से और उसके पंजो की परवाह किये वगैर तब तक नहीं छोड़ा जब तक वह मर नहीं गया ! दादा जी जख्मी हो चुके थे, अगले दिन सबेरे पिता जी तथा गाँव के लोग उन्हें घर लाये, छ महीने तक उनका इलाज चला, तब कहीं जाकर बाघ के नाखूनों का जहर खत्म हुआ ! ऐसे जांबाज थे हमारे पूर्वज ! वे एक दरिया दिल के इंसान थे ! दरवाजे पर माँगने वाले को भीख भीख के तौर पर नहीं देते थे, कम से कम चार पांच सेर अनाज दे देते थे ! उस जमाने में पैसों की कमी थी, इस तरह दान दक्षिणा अनाज के रूप में दिया जाता था ! जब तक वे ज़िंदा थे घर में अनाज की कमी नहीं रही ! आस पास के गाँव के लोगों के अलावा रिश्तेदार भी काम करने आते थे और खूब अनाज ले जाते थे !
उनकी एक इच्छा थी की जब वे संसार से विदा हों तो स्वतंत्र देश के नागरिक के तौर पर जांय, और वही हुआ, १५ अगस्त को देश आजाद हुआ और नवम्बर के महीने में वे स्वर्गवासी हुए ! (जारी चौथा भाग )

Sunday, July 11, 2010

पाल बाबा आक्टोपस

जर्मनी के अक्वेरियम में एक आक्टोपस नामक जीव है ! वहां मच्छलियों तथा दूसरे जल जंतु जो वहां अक्वेरियम में रखे हुए हैं की देखभाल करने वाले कर्मचारी इस आक्टोपस पाल बाबा की विशेष देखभाल करते हैं ! कौन कहता की जीव जंतु को भी देवता मानने वाले भारत में ही हैं ! इस घटना ने यह साबित कर दिया है की अपने को आधुनिक कहने वाले यूरोप के लोग भी इन जीवों को भविष्य वक्ता कहने लगे हैं ! एक खबर के मुताबिक़ जर्मनी अक्वेरियम के एक कर्मचारी ने आक्टोपस के जरिए विश्व फूट बौल कप के हर मैच का रिजल्ट जानने के लिए एक नायब तरीका निकाला ! उसने आक्टोपस के खाने के दो डिब्बे तैयार किये, और उनके ऊपर उस दिन
फूट बौल खेलने वाली टीमो के नाम उन डिब्बों पर लिख लिए ! जिस डिब्बे का वह खाना खा लेता था वही टीम जीतती थी, और यल सिल सिला लगारार आठ बार अजमाया गया और आठों बार उसकी भविष्य वाणी सही साबित हुई, यहाँ तक सेमी फाईनल और फाईनल के रिजल्टों में भी उसकी भविष्य वाणी सच हुई की फाईनल में नीदर लैंड और स्पेन पहुंचेगा और स्पेन फाईनल जीतेगा ! और सही में स्पेन जीत गया ! इस घटना का भारत के नेताओं में हलचल मच गयी, अब वे या तो जर्मनी से अनुनय विनय करके इस आक्टोपस को भारत ले आएँगे या फिर साम दाम दंड भेद आजमाएंगे ! आने वाले चुनाओं में यह इन नेताओं के लिए वरदान सावित होगा ! जर्मन सरकार को अब इस आक्टोपस, पाल बाबा की सुरक्षा के लिए विशेष सुरक्षा दल की व्यवस्था करनी पड़ेगी ! वैसे जर्मनी को सेमी फाईनल में हराकर स्पेन को जिताना, आक्टोपस के लिए भारी पड़ गया था, लेकिन उसने उन्हें तीसरे स्थान के लिए जीत दिला कर उनके गुस्से का लेबल कम कर दिया है !

Friday, July 9, 2010

मेरी कहानी (दूसरा भाग )

नयी जगह पर जंगल में बस्ती बसाना कोई हंसी खेल नहीं था ! किसी तरह से पहले झोपडी बनी फिर आसपास के गाँव वालों के साथ मिलकर पत्थरों के पक्के मकान बने ! छत को दोनों तरफ से स्लोप दिया गया ताकी वारीश का पानी बाहर ही गिरे ! बड़ी बड़ी चट्टानों को तोड़ कर छत के लिए भारी भारी चौकोर पत्थर लाये गए और उन पत्थरों से मकान की छत तैय्यार की गयी ! सारे आसपास के गाँव वालों के सयुंक्त प्रयत्न से सारे लोगों के मकान पत्थर के बन गए ! मेरे दादा लोकसिंह (मृत्यु १९४७ ई० 75 साल की उम्र में ) बड़े दयालु, धार्मिक और मेहनतकस किसान थे ! गाँव से जो तीन परिवार चले गए थे उनकी कुछ जमीन हमारे परिवार वालों ने ले ली थी ! यहाँ तक किवदंती है की पहले डाडा गाँव की जमीन बहुत थी पूरा मूंठ (करीब २० बीघा सपाट, लम्बे चौड़े खेतों वाली जमीन) हमारा ही था ! पता नहीं कौन सी ऐसी परेशानी उन लोगों के सामने आई की इतनी अच्छी उपजाऊ जमीन मोहनी वालों के हवाले कर दी ! श्री लोकसिंह मेरे दादा जी के चार लडके हुए, मेरे पिता जी बख्तावर सिंह सबसे बड़े थे शायद उनका जन्म सन १९०३ ई० में हुआ था (मृत्यु जौलाय १९४५) ! मेरे चाचा ज्ञानसिंह(मृत्यु १९६०), प्रतापसिंह ९१९४२ में द्वीतीय विश्व युद्ध में शहीद हुए) और जीतसिंह (मृत्यु 197९) हुए ! मेरे पिता जी की शादी डबरालस्यूं पट्टी, ग्राम ढौरी के श्री लून्गीसिंह जी की पुत्री कौशल्या देवी के साथ हुई थी ! यह परिवार नंदा नेगियों का था ! गढ़वाल के इतिहास में एक मोड़ ऐसा भी था जब पौड़ी गढ़वाल से लेकर जोशीमठ तक कैंतूरों का राज्य था और मेरे नाना जी के परम पर दादा कैंतूर सम्राट के सेनापति थे ! उनकी योग्यता, वीरता और कैंतूर साम्राज्य के लिए की गयी सेवाओं के बदले यह गाँव डाबर समेत इनाम में मिला था ! छोटे चाचा की शादी रीटूड से कुंवरी देवी के साथ हुई, इनके दो भाई थे मंगलसिंह और नैन सिंह ! प्रतापसिंह चाचा गढ़वाल राईफल्स में थे और दूसरे विश्व युद्ध में शहीद होगये थे ! तीसरे चाचा जीतसिंह की शादी हिलोगी से हुई थी ! ये भी गढ़वाल राईफल्स में थे और दूसरे विश्व युद्ध में जापानियों के कैदी बन गए थे, बाद में उन्होंने नेताजी सुभाष चन्द्र जी की "आजाद हिंद फ़ौज" ज्वाइन की थी ! इम्फाल की लड़ाई में हारने के बाद ये अंग्रेजों के कैदी बन गए थे ! लालकिले की प्राचीर के अन्दर एक विशेष अदालत में पेशी हुई, देश के प्रथम प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने इस केस को लड़ने के लिए एक बार फिर अपने वैरेषटर का लिवास पहिना था और इन लोगों को स्वतंत्र सेनानी का खिताब दिलवाया था !
मेरे पिता जी किसान थे और दादा जी की सहायता करते थे ! उस समय शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं था, इसलिए पिता जी तथा कोई भी चाचा पढ़ा लिखा नहीं था ! संयुक्त परिवार हुआ करते थे और सभी मिलजुल कर खेतों में खूब मेहनत करते थे ! हम चार भाई और एक बहिन हुए,
बड़ा भाई कुंवरसिंह जन्म मई १९३१ (मृत्यु ४ नवम्बर १९७६), हरेंद्रसिंह (मैं) जन्म १८ नवम्बर १९३५, विजयसिंह जन्म १९३९, गोविन्दसिंह (बचपन में ही भगवान को प्यारा हो गया था ) और एक मात्र बहिन शांती (जन्म जनवरी १९४५ )! मेरे छोटे दादा उमरावसिंह की एक संतान हुई थी बेलमसिंह जो कुमांयु रेजिमेंट में भर्ती हुए थे और रानीखेत में ट्रेनिंग के दौरान फूटबाल खेलते हुए अचानक ह्रदय गति रुकने से भगवान को प्यारे हो गए थे ! उमरावसिंह दादा जी तो पहले ही स्वर्ग वासी हो गए थे दादी हमारे ही साथ रही अंतिम शांस तक ! चाचा ज्ञान सिंह जी परिवार के साथ लाहोर बिरला क्लोथ मिल में काम करते थे !१५ अगस्त, १९४७ को भारत आजाद हुआ था और साथ ही हिन्दुस्तान पाकिस्तान विभाजन ! इस विभाजन ने पूरे देश को स्वतंत्रता की खुशी से ज्यादा दुःख पहुंचाया ! पाकिस्तान के लोगों ने वहां के हिन्दुओं को लूटा, उनकी जमीन जायजाद हड़प ली कहियों को मौत के घाट उतार दिया ! मेरे चाचा चाची किसी तरह बचकर दिल्ली आगये ! उनकी कंपनी बिरला क्लोथ मिल भी दिल्ली कमला नगर घंटा घर के पास फिर से चालू हो गयी थी ! उनके पांच लडके थे, सबसे बड़ा मनोहरसिंह, फिर द्रोपद्सिंह, सुरेन्द्रसिंह, नरेन्द्रसिंह और वीरेन्द्रसिंह ! मनोहरसिंह ने बंगाल इंजिनीयर रेजिमेंट ज्वाइन की थी, और २००१ में ले.कर्नल रिटायर हुए ! उनके एक लड़का संजीव और लड़की संगीता है ! 2007 अक्टूबर के महीने में अचानक तबियत बिगड़ी और वे भी हमें छोड़ कर स्वर्ग सिधार गए ! वे एक बहुत खुश मिजाज, मिलनसार, हंस मुख इंसान थे, उनका दिल भावुक और कवि ह्रदय था, उनकी शादी सुरेशी देवी के साथ हुआ था ! कर्मठ और मेहनती थे, लगन और वसूलों के पक्के इंसान थे ! यही कारण था की सेना में सन १९६२ ई० में एक सिपाही भर्ती हुए थे और ऊंची छलांग लगाते हुए २००१ में सेना से ले.कर्नल की पोस्ट से रिटायर हुए ! उनकी असायमिक मृत्यु ने हमारे परिवार को बड़ा धका दिया ! उनसे पहले सुरेन्द्रसिंह जो मिनिस्ट्री आफ डिफेंस में सर्विस पर था उसे क्रूर मृत्यु ने मई सन १९९१ ई० में तिमारपुर में नादान परिवार को छोड़ कर हमसे छीन लिया था ! उनकी शादी हेमलता से हुई थी , उनके दो लडके अरुण और वरुण और लड़की इल्ला है ! द्रोपद्सिंह के एक लड़की और दो लडके हैं ! पहले सेना से अवकास लिया और फिर स्टेट बैंक की नौकरी से अवकाश लेकर कोटद्वार भाबर में रह रहे हैं ! नरेन्द्रसिंह के भी एक लड़की और दो लडके हैं और सेना से सूबेदार के रैंक से अवकाश ले चुके हैं ! वीरेन्द्रसिंह के दो बेटे हैं और वे स्वयं १९९७ ई० में स्वर्ग सिधार चुके हैं ! चाचा जीतसिंह के दो लडके दयालसिंह और बुधीसिंह हैं दोनों सेना से रिटायर्ड होकर कोटद्वार में बस गए हैं ! मेरा अपना परिवार शान्ति से जिन्दगी बिता रहा था , सब कुछ ठीक चल रहा था की जौलाय १९४५ ई० को मेरे पिता जी हमें छोड़ कर भगवान के पास चले गए ! बड़ा भाई १४ साल के थे, मैं नौ साल का था, विजय 5साल का
था ! जमीन काफी थी लेकिन करेगा कौन ! लेकिन ईश्वर महान है मोहनी में हमारे कुल पुरोहित का परिवार (माधव, मनीराम,जीत राम )मौके पर हाजिर हो गए ! उन्होंने बड़े भाई को हल चलाना सिखाया स्वयं उनके परिवार की महिलाएं माँ को खेतों में मदद देने के लिए हर समय मौजूद रहती थी ! वह कठीन समय भी निकला बड़े भाई ने घर का कामकाज संभाल लिया था, सर्दियों में जंगलात से कुछ कमा कर लाने लगे थे ! सन १९५३ ई० को हिलोगी में बिमलादेवी से उनकी शादी की गयी ! उनके दो लड़कियां और पांच लडके हुए ! मुनेंद्र्सिंह, गजेन्द्रसिंह, सचेंद्र्सिंह, पपेंद्र्सिंह और सेठ चंद्रपाल सिंह (१९९६ ई० में भोपाल में अचानक एक हादसे में मौत हो गयी ), सुशीला और विना ! सब की शादी हो चुकी हैं और सब अपने परिवार के साथ खुश हैं , मुनेन्द्र और गजेन्द्र व सुशीला दिल्ली में हैं, सचीन रायपुर एस ये एफ में और पपेंद्र बी एस एफ में परिवार दिल्ली में है ! विजयसिंह भी एस ऐ एफ से अधिकारी रैंक से अवकाश लेकर भिलाई में बस गया है ! उसके भी दो लडके धर्मेन्द्र और शैलेन्द्र और एक लड़की है सब की शादी हो चुकी है ! शांती के चार लडके हैं और स्वयं कोटद्वार में अपने मकान लेकर रह रही है !
मेरा मामाकोट
मेरे बड़े मामा जी प्रतापसिह हुए ! आगे चल कर ये नेता हुए, कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने और १९७७ तक गढ़वाल के सांसद रहे ! कोटद्वार इंटर कालेज के मैनेजर रहे ! इन्होने स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय हिस्सा लिया, जेल गए और स्वतंत्रता सेनानी कहलाए ! ३१ दिसम्बर सन १९८४ ई० में ८८ साल की उम्र में वे स्वर्गवासी हुए ! उनके तीन लड़कियां और एक लड़का है ! लड़का सुरेन्द्रसिंह उनकी कमाई हुई इज्जत और शौहरत को धरोहर के तौर पर संभाले हुए हैं और कोटद्वार, नजीबाबाद रोड पर प्रताप नगर बसाकर वहीं रह रहे हैं ! बड़ी लकड़ी शकुंतला देवी हैं जिनकी शादी गद्सिर कथूर में हुई थी के तीन लडके हैं ! दूसरी लड़की का नाम बिमला (बिल्लू) है वह भी अपने परिवार के साथ खुश है ! मेर दूसरे मामा जी श्री गोकुलसिंह जी थे ! जो एक बड़े सामाजिक नेता थे, कम पढ़े लिखे थे पर एक अच्छे वक्ता, लीडर और आस पास के इलाकों में ही नहीं दूर दूर तक भी उस जमाने के सामाजिक कार्य कर्ता के तौर पर जाने जाते थे ! वे पैसो से गरीब थे पर दिल के राजा थे ! जब १९४५ ई० में मेरे पिता जी का देहांत हुआ और वे मुझे अपने साथ ढौरी ले आये, वहीं प्राईमरी स्कूल में दूसरी क्लास में मेरा दाखिला हुआ ! उस वक्त उनके एक लड़का भूपेन्द्रसिंह और दो लड़कियां थी कमला और सरला ! (आज उनके परिवार में पांच संताने और बढ़ गयी हैं, नरेन्द्रसिंह, धीरेन्द्र, जीतेंद्र, गजेन्द्र और बिमला सभी शादी शुदा हैं और अपने परिवार के साथ मजे की जिन्दगी जी रहे हैं) ! कभी कभी दिखेत से मेरी मामी जी गायत्री देवी की माँ भी वहां आजाती थी ! इतने बड़े परिवार का पालन पोषण करना, उस हालत में जब की खेती से भी कुछ मदद नहीं थी, एक बड़ा चैलेन्ज था !
( लगातार तीसरे भाग में )

काश्मीर में अलगाव संगठन सक्रीय

काश्मीर में अलगाव वादी संगठन कितनी घृणित राजनीति का खेल खेल रही है और केंद्र में कांग्रेस सरकार आँखे मूंदे यह सब कुछ देख कर भी अनदेखी कर रही है ! ये कैसी तुष्टी करण की राजनीति है की एक विशेष धर्म के मानने वालों को अल्प संख्यक का जामा पहिना कर उनके द्वारा किये गए जघन्य से जघन्य अपराधों पर भी पर्दा दाल दिया जाता है और उन्हें और भी निरपराध, निहत्थे लोगों की ह्त्या करने का अवसर देने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है ! कटने शर्मनाक काम को अंजाम दे रहे हैं ये काश्मीर के अलगाव वादी नेता ! अपने साथ रैली में मिला कर क़ानून व्यवस्था को धता दिखा कर अराजक फैला कर , सुरक्षा कर्मियों को विविश कर देते हैं गोली चलाने के लिए और अपने ही समर्थकों को मरवा देते हैं उनको जो इन्हें अपना माई बाप समझते हैं ! हमार खुफिया एजेंसी केन्द्रीय सरकार को कही बार आगाह कर चुकी है की काश्मीर में अलगाव वादी संगठन सुरक्षा एजेंसियों को बदनाम करने के लिए षडयंत्र रच रही है लेकिन प्रधान मंत्री और सोनिया जी कुछ भी सूनने को तैयार नहीं है, पता नहीं ये कौन सी बड़ी दुर्घटना का इंतज़ार कर रहे हैं ! अलगाव वादियों को खुश करने के लिए सहायता का पैकेग बढ़ा दिया जाता है और अलगाव वादी आतंकवादियों के साथ मिलकर इस राशि से खतरनाक हथियार खरीदते हैं, सुरक्षा बलों का मनोबल तोड़ने के लिए ! देश के शासको प्रशासको अब भी समय है जाग जाओ और इन अलगाव वादी और आतंकवादी संगठनों को समाप्त कर दो !

शादी

हाँ शादी वह भी भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान की साक्षी रावत के साथ ! हलके सांवले रंग के महेंद्रसिंह धोनी असल में उत्तराखंड के थे ! क्योंकि इनके पिता जी झारखंड में नौकरी करते थे, और फिर स्थायी तौर पर वहीं बस गए ! जब तक इंसान अनजान है उसके बारे में जानने की किसी को जरूरत भी नहीं होती ! धोनी ने क्रिकेट के मैदान में एक उम्दा विकेट कीपर के तौर पर पहले टीम में जगह बनाई ! और कमाल हो गया, इसको भाग्य कहोगे या फिर धोनी की योग्यता, मेहनत, की उन्हें राहुल द्राविड के इस्तीफा देते ही टी २० का कप्तान बना कर बली वेदी पर चढ़ा दिया, "चढ़ जा बेटा सूली पर ऊपर वाला bhalee करेगा " ! भारतीय टीम को टी २० का अनुभव जीरो डिग्री था और धोनी की किस्मत ने जोर मारा, छींका टूटा और सारा माखन इनकी झोली में गिर गया ! धोने की टीम सन २००७ का टी २० विश्व कप जीत कर आ गयी ! धोनी की जय जयकार होने लगी ! फिर उन्हें एक दिवसीय क्रिकेट टीम का भी कप्तान बनाया गया, वहां भी उनकी किस्मत ने साथ दिया और एक के बाद एक मैच गिर गिर कर इनकी झोली में गिरने लगे ! अनिल कुम्ले ने क्रिकेट से संन्यास लिया और धोनी को बी सी सी आई ने फूल टाईम कप्तान बना दिया ! उसके बाद भारतीय क्रिकेट का झंडा उंचा ही ऊँचा उठता चला गया ! धोनी की कप्तानी में पहली वार भारत टेस्ट मैचों की श्रृखला में नंबर वन पर पहुंचा ! वह खुद भी एक दिवसीय मैचों में सबसे ज्यादा स्कोर बनाने वाला बनगया और पिछले दो सालों से इस स्थान पर कायम है ! उसकी इनकम सौ करोड़ का आंकड़ा पार कर गयी, लाखों का ऐड उसके पास ! फिर ऐसे छैल छबीले काबिल क्रिकेट टीम के कप्तान से भला कौन सुन्दर, पढी लिखी, सभ्य, सुघड़ लड़की शादी करने से इनकार करेगी ! अटकलें काफी लग रही थी लेकिन जैसे की धोनी ने पहले ही अपने जीवन साथी का चुनाव कर लिया था, उसने साक्षी रावत जो उसकी बचपन की सहपाठी मित्र थी उसी से शादी करके सभी को चौंका दिया ! बड़े लोग बड़ों से मिलते हैं, सो धोनी अपनी नव नवेली दुलहन के साथ राहुल गांघी से मिलने गए ! मिले तो बहुत सारे बड़ी बड़ी नाक वाले भी होंगे पर उनका कोइ जीकर नहीं है ! जोड़ी सलामत रहे, मेरी तथा मेरे परिवार की यही कामना है !

भारतीय क्रिकेट टीम

Thursday, July 8, 2010

न्यूयार्क में भी गर्मी

पिछले दो दिन से यहाँ लौंग ऐलैंड न्यू यार्क में अजीब ढंग की गर्मी है ! हवा बंद टेम्प्रेचर उप ! सूरज की तेज किरणे, बादल भी आँख मिचौनी का खेल खेल रहे हैं, अजीब सी बेचैनी ! फिर भी यहाँ का जन जीवन वैसे ही तेज गति से चल रहा है ! हर कर्मशील के दिल में यह गर्मी एक नया जोश, नई उमंग और ऊर्जा भर रहा है ! यहाँ विश्वाश नहीं डग मगाता है, बल्की सूरज की हर किरण एक नयी सुबह का अहसास कराता है ! उनका विश्ववास फिर रंग लाता है और अगले पल बादलों की सेना ठंडी हवाओं के साथ धरती पर उतर आता है, पानी बरसाता है, फूल मुस्कराने लगते हैं, पेड़ पौधे खुशी से नाचने लगते हैं, और जंगल और मनुष्यों के बीच प्यारे प्यारे नन्ने नन्ने खरगोश के बच्चे भी सामने आकर भाग जाते हैं, हमें है प्रेमी लोगों से प्यार हमें सन्देश दे जाते हैं ! सकारात्मक विचारों की प्रवृति यहाँ हर अमेरिकन की विशेषता है ! ये लोग नौन विज इस्तेमाल करते हैं पर जीवों से स्नेह करते हैं ! सर्दी गर्मी की चिंता न करते हुए मेहनत करते हैं ! मौसम का मिजाज भी इनकी मेहनत का कायल हो जाता है इसलिए जल्दी बदल जाता है !

मौसम की चाल

ये मौसम की चाल,
एक अंतराल,
सुबह शाम
हाथों में जाम,
मौसम भी नशे में है,
कभी ठंडी हवाओं का रुख,
मिलता सुख,
हवा में लू, अब बता तू,
मन वेचैन
उलझा रस्से में है !
बादलों का शोर,
गगन चारों ओर,
उमड़ घुमड़ का अट्टहास,
बरसेंगे बादल,
है विश्वास,
पता चला बादल भी नशे में है !

Monday, July 5, 2010

रॉबर्ट मोजेज बीच

आज ४ जुले हो गयी है, यह दिन अमेरिकन इतिहास में बहुत ही ख़ास दिन माना जाता है ! ४ जौलाय १७७६ को विश्व के विभिन देशों से अमेरिका में बसे लोगों ने मिलकर ब्रिटिश राज के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया था और अमेरिका को इंग्लैण्ड के किंग की हकुमत से अपने देश को आजाद घोषित कर दिया था ! यहाँ इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है ! इस दिन लोग अपने परिवारों के साथ खुशी मनाने समुद्र के किनारे "बीच" में समुद्र की लहरों के साथ डूबकी लगा कर , कहीं दूर किसी शांत स्थान में पिकनिक मनाने, किसी ऐतिहासिक जगह जाकर इस दिन को एक यादगार दिन बना देते हैं ! हम भी पूरे परिवार के साथ अटलांटिक महासागर के किनारे बहुत सारे बीचों में से एक बीच "राबर्ट मोजेज बीच" गए ! समुद्र के ऊपर ही ५-६ मील का लम्बा चौड़ा पुल पार कर इस बीच में पहुचे ! बहुत बड़ी संख्या में लोग इस स्थान पर समुद्र के विशाल वक्ष स्थल पर उसकी उठती हुई लहरों में जम्प मार कर डूबने उतरने का मजा ले रहे थे, सो अपने ६ साल के पोते आत्रेय के साथ मैं भी इन लहरों का आनंद लेने लगा ! ठंडी ठंडी हवाएं मौसम को और रंगीन बना रही थी ! साथ में और भी राजेश के आई आई टी के साथी अपने परिवार के साथ आये हुए थे, सौरभ, हर्ष, आर पी, अस्वनी ! सारा किनारा विभिन पोशाकों में हजारों की संख्या में नर-नारी बच्चे और बुजुर्ग भी लहरों में कूद मार कर कुदरत की इस बेश कीमती सौगात का आनन्द ले रहे थे ! ऐसा लग रहा था की सारे संसार के देशों ने अपने प्रतिनिधि यहाँ समुद्र के किनारे इस मेले में भेजे हुए हों ताकी अमेरिकन लोगों के इस स्वतंत्रता दिवस में उनकी खुशी को चार चाँद लग जाँय ! १२ बजे से शाम के ४ बजे तक मौज मस्ती करने के बाद हम लोग अपने घर वापिस आगए !

Sunday, July 4, 2010

मेरी कहानी (पहला भाग )

मैं कौन हूँ ? कहाँ से आया हूँ ? मेरा परिवार में हमारे पूर्वज कौन थे, और कहाँ से आये थे ? ये सवाल बार बार मेरे दिलो दिमाग में कुल बुलाते रहते थे ! इतिहास के पन्नों में ढूँढता रहा, भारत का इतिहास, राजस्थान के राजपूतों का इतिहास, गढ़वाल का इतिहास, कुमांयु का इतिहास ! और जोड़ता रहा स्रोत एक के बाद दूसरा ! अपने रिश्ते के दादा परदादा और उनके जमाने के पास पड़ोस के गाँव के बुजुर्गों से भी कही बार मिला ! हरिद्वार, केदारनाथ, बद्रीनाथ के पंडों से मिला उनके द्वारा अपने परिवार के जो लोग उन पवित्र स्थानों के दर्शनों के लिए समय समय पर गए थे, उन लेखों का अवलोकन किया ! इन सारे तथ्यों को आधार बना कर मैं इस कहानी को लिख रहा हूँ !
राजस्थान के राजपूत
राजपूतों में पहले सूर्यवंशी और चंद्रवंशी राजपूत होते थे ! भगवान् राम सूर्यवंशी थे और भगवान् कृष्ण चंदवंशी राजपूत थे ! एक लेख के मुताविक राजस्थान में एक ऐसा समय भी आया जब राजपूतों का वैभव डीग मगाने लगा था और दुर्जन , डकैत, राक्षस प्रवृति के लोग बड़ी संख्या में गरीब, असहाय जनता को लूटने और उन्हें सताने लगे थे ! इन दुष्टों से छुटकारा पाने और उन्हें दण्डित करने के लिए उस समय के विद्वान ब्राहमणों ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था और अग्नि के महाकुंद में हवंन सामग्री विसर्जित की गयी थी ! उसी अग्नि कुंड से चार सैनिक वर्दी से लैश राजपूत बाहर आये और उनहोंने उन तमाम दुष्ट प्रवृति के राक्षसों को समाप्त करके आम गरीब, असहाय जनता की रक्षा की थी ! उन्हीं वीर राजपूतों की संतान आगे चल कर अग्नि वंशी कहलाई ! इन में चौहान, चालुक्य , परिहार और परमार कुल के राजपूत हुए ! कुछ इतिहासकार इस को काल्पनिक कहानी कहते हैं ! समय के साथ साथ राजवंश बदलते गए और मेवाड़ की राज सता पर गोविलवंश के राणा सांगा १५२७ ई० तक विराजमान रहे ! वे एक वीर योद्धा और प्रतापी राजा थे ! पूरा राजस्थान उनके शासन के अधीन था ! उनके दरवार में बड़े बड़े योद्धा और लड़ाकू सैनिक थे ! उनमें से एक सेनापति था जिसका नाम था हेमंतसिंह रावत ! बड़ा शूरवीर और राजपरिवार का सच्चा राज भक्त था ! १५२७ ई० में जब बाबर ने खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा को पराजित कर दिया तो राजपूतों का संघठन बिखर गया ! राणा तो युद्ध में मारे गए और उनकी एक मात्र संतान उदयसिंह उस समय बहुत छोटे थे ! उनकी मां राणा की चिता के साथ सती होगई थी ! राज कुमार उदयसिंह उस वक्त अपनी दाई के संरक्षण में पल रहे थे ! इतिहासकार कहते हैं की दरवार का एक सैनिक राजकुमार को मार कर स्वयं मेवाड़ की गद्दी पर बैठना चाहता था ! उसने दाई से उदयसिंह को माँगा ! उसका लड़का भी उसी उम्र का था , उसने उस दुष्ट को वजाय उदयसिंह के अपने पुत्र को सौंप दिया ! जिसे उसने राजकुमार समझ कर मार डाला ! देश के लिए एक दाई द्वारा अपने पुत्र की कुर्वानी इतिहास के पन्नों में अंकित हो गयी !

राजपूत सरदार अब छोटे छोटे राज्य बनाकर स्वतंत्र रूप से एक दूसरे से लड़ने लगे, इस तरह मुगलों को मौका मिल गया और वे एक के बाद एक को हराते चले गए, लूटते चले गए, मारते चले गए या फिर उन्हें जबरदस्ती मुसलमान बनाने लगे ! सारे राजपूत राजस्थान छोड़ अन्य स्थानों में बसने लगे ! हमारे पूर्वज भी राजस्थान छोड़ कर पहाडी स्थान कुमायूं " पहुंचे ! ये लोग कुमायूं १७ वीं शदी के लग भाग पहुंचे ! कुमायूं पर उस समय कैंतूर राजाओं का शासन था ! उनका राज्य कुमायूं से लेकर गढ़वाल के जोशीमठ तक फैला था ! कुमायूं में उस जमाने में एक स्थान था काली कुमायूं, इसी स्थान पर हमारे पूर्वज पहुंचे ! यहाँ आज भी एक पवित्र स्थान है "चित्र शिला ", यहीं पर हमारे कुल देवता कैंतूर का निवास है ! कहते हैं वहां आज भी मैरवांन रावत लोग एक विशेष दिन पर पूजा अर्चना करके अपने कुल देवता को प्रशन्न करते हैं ! यहाँ पर हमारे पूर्वज करीब करीब जम गए थे की अचानक दुष्ट गोरखों ने सन १७९३ ई० में पूरे कुमायूं पर कब्ज़ा कर लिया ! फिर भगदड़ मची ! बहुत से लोग मारे गए, खेत बरबाद कर दिए गए ! किसानों के पास जो कुछ था सब ये दरिन्दे लूट ले गए ! हमारे पूर्वज वहां से भाग कर फिर पौड़ी गढ़वाल के एक गाँव थान्गर में बस गए ! १८०३-०४ में गोरखों ने फिर गढ़वाल पर भी आक्रमण कर दिया, यहाँ भी खून की दरिया बहाई गयी ! फसलें नष्ट कर दी गयी ! वीर सैनिकों को बंदी बनाकर नेपाल ले गए ! उजड़े हुए गढ़वाल को उनहोंने अपने राज्य का हिस्सा बना दिया ! जो लोग बच गए वे एक तरह से नेपाल राजा की प्रजा हो गयी ! वहां से भी बच बचा कर हमारे परदादा के दादा वर्त्तमान स्थान गाँव " डाडा" पट्टी अजमीर वल्ला पहुंचे ! कहते हैं जब वे यहाँ आए थे तो यहाँ घना जंगल था ! जंगली जानवर यहाँ तक हिसक भी बड़ी मात्रा में इलाके में घूमते थे ! आसपास कोई बस्ती नहीं थी ! पुराने लोगों के कहने के मुताबिक़ यहाँ पर केवल एक आम का पेड़ था (जो काफी बृद्ध हो गया हीऔर आज भी इस कहानी का एक मात्र गवाह है ) जिसकी छत्र छाया में हमारे पूर्वज ग्रेट परदादा ने अपनी पत्नी के साथ रात बिताई थी ! सामान के नाम पर दो एक कम्बल, थोड़े से कपडे और २०-२१ के लग भाग भैंसे थी, जिनके गले में चांदी की हंसुली पडी थी, यही इनका धन था ! भैसों की देख भाल करने को एक नौकर भी साथ था ! यहाँ पहुँचने वाले प्रथम हमारे पुर्वज थे मेहताबसिंह ! उनके पांच पुत्र हुए, तीन तो गाँव छोड़ कर मालन नदी के किनारे क्यार्क चले गये थे और दो भाई चेतसिंह (मेरे पर दादा) और उनका भाई संग्रामसिंह यहीं रह गए ! धीरे धीरे गाँव पास पड़ोस में बसते चले गए ! सामने पूरब में रिटूर, दक्षिण में दालमिल, उत्तर में मोहनी और ह्वेल नदी के पार पूरब उत्तर में स्यांला गाँव बसा ! जंगल काटे गए, सीढीनुमा खेत तैयार किये गए ! पानी के चार चश्मे थे जिन में पानी बहुत था ! इतना पानी था की उन लोगों ने इन नालों में पिसाई करने के लिए पन चक्की लगाई हुई थी ! फलदार पेड़ लगाए गए, खेतों में फसलें उगाई जाने लगी, धान, गेहूं , जौ, मकई, मंडुवा, झंगोरा, ज्वार, बाजरा और कई किस्म की सब्जियां ! मशालों में मिर्च, धनिया, अदरक, लहसून आदि फसलें भी पैदा की जाती थे !
सिंचाई के साधन नहीं थे, लेकिन वारिश मौसम के अनुसार अच्छी हो जाती थी इस तरह फसलें इतनी हो जाती थी की अनाज परिवार के लिए काफी हो जाता था, तथा बचे हुए अन्नाज के बदले दुगड्डा, चौकीघाट से नमक, गुड, कपडे, वर्तन ले आते थे ! हर परिवार में एक बैलों की जोड़ी, तीन चार गायें, एक दो भैसे पाली जाती थी ! बच्चों के लिए दूध घी की कमी नहीं थी ! अब चारों तरफ आबादी होने से जंगली हिंसक पशु दूर चले गए ! ह्वेल नदी और छोटे बड़े नालों में खूब ताजा पानी बहता था तो बड़ी मात्रा में मच्छलियाँ भी उपलब्ध हो जाती थी ! मेरे पर दादा चैतसिंह जी के दो पुत्र हुए, लोकसिंह और उमरावसिंह ! लोकसिंह मेरे दादा इसी गाँव में बस गए व् मेरे छोटे दादा उमरावसिंह के लिए एक मात्र कस्बा पौखाल के दक्षिण पश्चिम में चर नाम के गाँव में जमीन खरीदी गयी और वे अपने परिवार के साथ वहीं रहने लगे ! प्रेम बना हुआ था इस तरह वे यहाँ डाडा आजाते थे और मेरे पर दादा दादा वहां उनकी मदद करने चले जाते थे ! पास पड़ोस के गाँव वाले भी आपस में हिल मिल कर रहने लगे ! सब ओर अमन चैन और शांती का माहोल था ! बाकी अगले भाग में !

Thursday, July 1, 2010

अमेरिका की खोज किसने की

इतिहास कहता है की अमेरिका की खोज १४९२ ई० में स्पेन के एक नाविक कोलंबस ने की थी ! लेकिन अमेरिका के इतिहासकार कुछ और ही कहते हैं ! उनका कहना है की अमेरिका की खोज करने वाले इन्डियन थे जिन्होंने ३००००-४०००० हजार साल पहले अमेरिका की खोज की थी ! उससे पहले यहाँ बर्फ ही वर्फ थी ! केवल बर्फ में रहने वाले जीव जंतु ही यहाँ रहते थे !

सन २००३ की सितम्बर में मैं अपनी पत्नी के साथ यूटाह अमेरिका) आया था ! इस बार हमें लास एंजलस के हवाई अड्डे से यूटाह के लिए डोमेस्टिक हवाई जहाज लेना पड़ा था ! यहाँ यूटाह में पूरानी सभ्यता के कही रहस्य छिपे हुए हैं ! एक स्थान पर लिखा था " इन्डियन रियुंड विलेज ", खंडर हुए मकान, मिट्टी के वर्तन, खेती में काम आने वाले औजार, हस्त कला के कुछ नमूने, वहां म्यूजियम में सुरक्षित रखे प्राय हुए थे और देशी विदेशी का आकर्षण का केंद्र बने हुए थे ! राजेश अपनी मम्मी, मुझे और काजल को उस इन्डियन बरबाद हुए गाँव को दिखाने के लिए ले गया था ! मैं एक हिन्दुस्तानी हूँ और जब भी भारतीय सभ्यता और संस्कृति की बात आत्ती है तथा हमारे देश के पूर्वजों द्वारा किये गए कार्यों की समीक्षा विदेशी इतिहास कारों द्वारा की जाती है तो मेरा सीना गर्व से तन जाता है ! यहाँ एक पहाडी है, बाहर से बिलकुल रुखी और बदरंग सी लगती है लेकिन इसके भीतर तीन मील लम्बी सुरंग है जो तीन गुफाओं को जोड़ती है ! इन गुफाओं के अन्दर कुदरत ने जादू का एक अद्भूत चमत्कार दिखाया हुआ है, यहाँ गुफा में जाने के लिए २०-२५ लोगों की टीम में जाना पड़ता है अकेले गुम होने का खतरा है, फिर एक शिखशित गाईड लोगों को अन्दर ले जाता है तथा हर चीज प्रयाटकों को दिखाता है तथा उसकी विशेषताओं की भी जानकारी देता है ! अगर बाहर का तापमान ३१ डिग्री है तो गुफा के अन्दर जीरो से भी नीचे होता है ! गर्म कपडे ले जाने पड़ते हैं ! उस मायावी पर्वत के अन्दर अनेक रंगों में मोम जैसी रासायनिक तरल पदार्थ निकलकर कही प्रकार की आकृतियाँ फार्म करती हैं और बड़ी होती होती फिर स्वयं ही पिघलने लगती है ! एक चौकोर पत्थर के ऊपर एक बड़ा सा दिल के आकार की आकृति फॉर्म होती है पिघलती है और फिर बनाती है ! इसके बारे में गाईड ने बताया की यह एक लड़की का कलेजा है जो किसी समय किसी कबीले के सरदार ने वारीश न होने के कारण पुरोहित के कहने से इंद्र देवता को खुश करने के लिए कबीले के ही सुन्दर नव-जवान लड़की की बलि दे दी थी ! उसका कलेजा निकाल कर इसी पत्थर पर रखा गया था ! असली कलेजा तो समय की आंधी में कहीं नष्ट होगया लेकिन कुदरती उसी पत्थर पर लगातार कलेजे के आकार की आकृति फॉर्म होती है और फिर पिघल जाती है ! यह कहानी भी हमारी भारत के लोक कथाओं से मेल खाती है ! फिर लास एंजलस, लास वेगस, नवादा, केलिफोर्निया भी घुमे वहां भी किसी न किसी रूप में इन्डियन का नाम इतिहास के पन्नो में अंकित है ! केनेथ सी डेविस ने अपनी पुस्तक "डोंट नो मच अबाउट अमेरिकन हिस्ट्री " पेज ११, में लिखा है ओके इन्डियन ने ही वास्तव में पहली बार अमेरिका की खोज की थी ! वे लिखते है की ३००००-४०००० हजार साल पहले जब सारी धरती बर्फ से ढकी थी, सागर भी जमा हुआ था, तो दक्षिण पश्चिम एशिया से इन्डियन शिकार की खोज में निकले थे और पीढी दर पीढी हजारों मील सफ़र करते करते आखीर में अमेरिका पहुँच गए और यहीं के हो कर रह गए ! और भी इतिहास कार इस बात का समर्थन करते हैं ! इन लोगों ने यहाँ अमेरिका को बनाया और उधर भारत में भारत इतना समृद्धशाली हो गया था की पूरे यूरोप वाले भारत का सोना और मशाले लाने के लिए भारत की तरफ भागने लगे ! आपसी दुश्मनी अलगाव बाद ने यूरोप से आने वाले व्यारियों को पूरा देश ही सौंप दिया और अमेरिका, गलती से भारत के धोके में अमेरिका आने वाले कोलंबस यहाँ भी पहुँच गए ! फिर पूरे यूरोप के लोगों ने आकर यहाँ के मूल इंडियनों को जिनकी आबादी उस समय करीब अस्सी लाख के लगभग थी मारा, उनकी हत्याएं की उनकी जमीन, धन दौलत सारा लूट लिया गया और स्वयं मालिक बन गए ! अब तो सारी दुनिया के लोग यहाँ बस गए हैं और यहीं के होकर रह गए हैं ! और उधर भारत जो कभी विश्व का आकर्षण का केंद्र था जगत गुरु था आज भी जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहा है ! जाति पांति, धार्मिक मतभेद, उंच नीच, अमीर गरीब की बढ़ती हुई दूरियों ने भारत की प्रगति को अवरुद्ध कर दिया है ! रही सही भारतीय करप्ट और अफ़राधी नेताओं ने अपना वोट बैंक बनाने खातिर देश को काफी पीछे धकेल दिया है !

अमेरिका में नया घर

यहाँ अमेरिका में राजेश ने ब्रेटल सर्किल में मकान ले लिया है ! २८ जनवरी २०१० को ३०४ कोर्ट नार्थ ड्रायब से इस नए घर में शिफ्ट भी कर लिया है ! वैसे दोनों घर मेल विल्ले लॉन्ग ऐलैंड में पड़ते हैं लेकिन यह स्थान उस स्थान से १० मील दूर है तथा बहुत ही सुन्दर और कुदरत के खजाने से भरा हुआ है ! यहाँ पर दो कालोनी एक साथ हैं ! कुदरती हल्की उठी हुई पहाड़ियां, मखमली घास से सजी, तथा पेड़ और पौधों से सजा सजाया लंबा चौड़ा पार्क, दोनों कालोनियों को घेरे हुए, ८ फीट का पैदल रास्ता सड़क के साथ साथ घूमने के लिए ४-५ मील की सैर करा देता है ! चारों तरफ खुला खुला बहुत दूर तक जंगल, पहाड़ियाँ, पेड़ पौधे, विभिन्न प्रकार के रंग बिरंगे फूल, शांत वातावरण ! आज पहली जुलाय हो गयी है सुबह सूरज ५.38 पर उदय हो गया था और शाम को ८.१० पर अस्त होगा ! कभी कभी धूप काफी तेज लगती है लेकिन ज्यादा तर हल्की ठंडी हवाएं मौसम को सुखद बनाए रखती है ! लाईब्रेरी नजदीक है, कास्को, पटेल ब्रदर्स की दूरी पांवों से नापी जा सकती है ! यहाँ पैदल कोई नहीं चलता केवल कुछ हम जैसे "बैठे ठाले" घूमने के लिए निकल पड़ते हैं वो भी कालोनी के घेरे के अन्दर ! मेन रोड पर कोई नजर नहीं आता ! जंगल हैं लेकिन जंगली जानवर नहीं है, हाँ केवल खरगोश, चिड़ियाँ, नजर आजाती हैं ! वे डरती नहीं हैं क्यों की लोग उन्हें प्यार करते हैं ! खरगोश तो कभी कभी आपके घर के पीछे वाले मखमली घास का स्वाद चखने के लिए आ जाते हैं ! बच्चों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाता है ! डाक्टर और दवाइयाँ बहुत मंहगी हैं इसलिए प्राय: सभी लोग मेडिकल पालिसी होल्डर हैं ! यहाँ घरेलू नौकर नहीं हैं ! घर का पूरा काम स्वयं करना पड़ता है ! वैसे कपड़ा धोने की मशीन , कपडे सुखाने की मशीन, जुठे वर्तन धोने की मशीन, सब्जी काटने की मशीन, यानी आधे से ज्यादा काम मशीने ही कर देती हैं ! नर हो या नारी सब सर्विस करते हैं, सुबह चार बजे से इनका काम शुरू हो जाता है और रात के दश बजे तक ! कार से कब आते हैं और कब जाते हैं पड़ोसी को भी पता नहीं चलता ! सभी बिजि हैं, पांच दिन काम पर और दो दिन पिकनिक सैर सपाटे के लिए ! ये लोग पैसे कमाते है मजदूर की तरह और जिन्दगी जीते हैं राजाओं की तरह ! जो कमाया शान शौकत में मौज मस्ती में खर्च कर देते हैं ! कल किसने देखा है इसकी ये लोग चिंता नहीं करते और मस्त रहते हैं !