Sunday, January 16, 2011

युग द्रष्टा गोकुलसिंह नेगी

मैं, दुगड्डा ब्लाक, तहसील कोटद्वार, गाँव डाडा, पट्टी अजमिर वल्ला जिला पौड़ी गढ़वाल का रहने वाला हूँ ! मेरे गाँव के सामने से हिंवल नदी बहती है जो चेलुसेंण से निकल कर फूलवारी में गंगा में मिल जाती है ! इस नदी की विशेषता यह है की यह उत्तर से निकल कर गंगा में भी उत्तर में ही मिलती है ! मेरे गाँव के पूर्व में डबराल स्यूं पटी में ग्राम ढौरी पड़ता है, यही मेरा मामा कोट है ! मेरी माँ कौशल्यादेवी के दो भाई थे, बड़े श्री प्रतापसिंह नेगी, जो गढ़वाल की एक जानी पहिचानी हस्ती थी ! वे स्वतंत्रता सेनानी थे और बाद में सन १९७१ से १९७७ तक सांसद रहे ! उन्हीं के छोटे भाई थे श्री गोकुलसिंह नेगी ! दुबले पतले हंसमुख चेहरा, खाली जेब पर दिल के धनी, साधनहीन पर गगन छूने की आकांक्षा, गरीब थे पर अमीरों पर भी भारी पड़ते थे ! पढ़े लिखे ज्यादा नहीं थे पर पढ़े लिखों के प्रेरणा श्रोत थे ! शरीर से कृशकाय पर चट्टान से भी टकराने का इरादा रखते थे ! उनकी वाणी में मधुरता थी, पर जरूरत पड़ने पर जोश से भरी थी ! जब वे स्टेज पर खड़े हो जाते थे तो अपनी वाणी और आकर्षक शब्दों से श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध कर देते थे ! वे स्वतन्त्र सेनानी थे, जेल गए जेल की यातनाएं सही ! वे आम जनता के मसीहा थे, स्थानीय लोगों के ही नहीं बल्की दूर दराज के गाँवों के लोगों के दिलों में भी उनके लिए आदर का भाव था और उनकी सेवा भावनाओं का ही असर था की जनता ने उन्हें डिस्ट्रिक बोर्ड के सदस्य के लिए अपना कीमती वोट देकर अपना प्रेम और समर्थन उन्हें दिया ! वे जन्म से गढ़वाली थे, गढ़वाल की सभ्यता, परम्पराएं, भेष भूषा, लोक गीत और पहाडी संस्कृति उनके रग रगों में समाई हुई थी !
बचपन
श्री गोकुलसिंह जी का जन्म सन १९०३ ई० में पौड़ी गढ़वाल जनपत में डबरास्यूं पट्टी के ढौरी गाँव नंदा नेगी परिवार में हुआ था ! उनके पिता जी का नाम श्री लूंगीसिंह था ! एक जनश्रुति के मुताबिक़ सातवीं
आठवीं शताब्दी के लगभग गढ़वाल और कुमायूं पर कैतूर राजाओं का एक छत्र राज था और मेरे मामा जी के पूर्वज सर्व श्री करमदेव जी कैतूर सम्राट के सेनापति थे ! उनकी वीरता, योग्यता, साम्राज्य के प्रति वफादारी और सच्ची निष्ठा के लिए उन्हें मौजूदा ढौरी गाँव और पूरा डाबर का इलाका जागीरदारी में इनाम के तौर पर दिया गया था ! बाद में डाबर गाँव को श्री करम देव जी ने कुल पुरोहिती में ब्राह्मणों को दान में दे दिया था ! इनकी छट्टी पीढी में हिम्मत सिंह नेगी हुए, उनके लडके का नाम तेगसिंह था ! तेगसिंह के दो लडके हुए, गोपालसिंह, लूंगीसिंह ! गोपालसिंह जी के लडके रणजीतसिंह हुए, वे जंगलात विभाग में रेंज अधिकारी थे और जवानी में ही स्वर्गवासी हो गए थे ! उनके पुत्र वीरेन्द्रसिंह जी आज अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ अपनी पुस्तैनी विरासत की देख भाल कर रहे हैं ! दूसरे लडके लूंगी सिंह जी (मेरे नाना जी) के दो पुत्र सर्वश्री प्रतापसिंह, श्री गोकुलसिंह और एक मात्र पुत्री कौश्यल्या देवी (मेरी माँ) हुई थी ! मेरे बड़े मामा श्री प्रतापसिंह जी नेगी गढ़वाल की महान विभूतियों और स्वतन्त्र सैनानियों की प्रथम पंक्ती के राजनैतिक थे ! उन्होंने सांसद के तौर पर संसद में सन १९७१ से १९७७ तक गढ़वाल का प्रतिनिधित्व किया था ! ३१ दिसंबर सन १९८४ ई० में ८८ साल की उम्र में वे स्वर्गवासी हुए ! इनकी तीन लड़कियां शकुन्तला देवी, सुरवाला और विमला और एक लड़का सुरेन्द्रसिंह हुए ! सुरेन्द्रसिंह जी कोटद्वार पौड़ी गढ़वाल में आज अपने पिता जी के नाम की कालोनी "प्रताप नगर" बसा कर वहीं रह रहे हैं ! प्रतापसिंह जी के छोटे भाई गोकुलसिंह जी जो इस लेख के मुख्य पात्र हैं, इनसे सात साल छोटे थे ! जब ये केवल १५ साल के थे माँ चल बसी, कुछ ही दिन बाद उनके पिता जी भी स्वर्वासी हो गए थे ! बचपन के दिन बहुत कष्ट पूर्ण थे ! इनकी छोटी बहींन कौशल्या देवी का विवाह अजमिर पट्टी, ग्राम डाडा, के निवासी श्री लोकसिंह के बड़े पुत्र श्री बख्तावरसिंह के साथ हुआ था ! उनके तीन लडके और एक लड़की हुई !
सर पर माँ बाप का साया नहीं बड़े भाई श्री प्रतापसिंह जी सहारनपुर में सर्विस करते थे बाद में वे कोटद्वार में ही बस गए और इसी को अपनी कर्म भूमि बना दिया ! इस तरह १५ साल की उम्र में ही उन्होंने जिन्दगी के खट्टे मीठे अनुभव कर लिए थे ! बचपन के पहाड़ जैसे कष्टों को का सामना करते करते उनके इरादे भी चट्टान जैसे ही शक्त और मजबूत हो गए थे ! उन्होंने गरीबों की गरीबी देखी, उनके नादान बच्चों के आँखों में बेबसी महसूस की ! वे स्वयं तो प्राइमरी की पढाई भी नहीं कर पाए थे लेकिन वे आने वाली पीढी के हर बच्चे को शिक्षित देखना चाहते थे ! इनकी पत्नी श्रीमती गायत्री देवी (मेरी मामी जी) ने भी कष्टों की चिंता न करते हुए कदम कदम पर मामा जी का साथ दिया ! कही बार ऐसा भी समय आया की जेब में पैसे नहीं थे, घर में राशन नहीं था, लेकिन चहरे पर हर वक्त एक कुदरती मुस्कान रहती थी जो उनके कष्टों और परेशानियों को ढक दिया करती थी, बड़ी बड़ी मुशीबतें स्वयं ही हार मान कर उनके रास्ते से हट जाती थी ! ये कुदरत का ही करिश्मा था की कठीन परस्थितियों में भी वे घबराते नहीं थे ! देश गुलाम था, आजादी के दीवानों ने गुलामी की जंजीर को तोड़ने के लिए बिगुल बजा दिया था ! मेरे दोनों मामा जी भी कूद गए थे आजादी के इस महासंग्राम में ! आजादी के दीवानों को जेल में बंद कर दिया गया, उन्हें जेल में यातनाएं दी गयी, इन्होंने देश को आजाद करने के लिए सब प्रकार के कष्ट और यातनाएं सही ! १५ अगस्त १९४७ ई० को देश आजाद हुआ लेकिन लाला लाजपत राय, सुभाष चन्द्र बोस, भगतसिंह, चन्द्र शेखर आजाद जैसे शहीदों रक्त से नहा कर ! जो जिन्दा रह गए वे स्वतन्त्र सेनानी कहलाये ! देश में अपनी सरकार बनी और मेरे मामाओं को सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी के लिए ताम्र पात्र से सम्मानित किया ! श्री गोकुलसिंह ने स्थानीय लोगों की सहायता से देवीखेत में तिरंगा झंडा फहराकर पहला स्वतंत्रता दिवस बड़े धूम धाम से मनाया ! (बाकी दूसरे भाग में )

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