Monday, March 15, 2010
ई पी एल
१२ मार्च से ई पी एल क्रिकेट मैच शुरू हो चुका है । १२ को एक ही मैच था, जिसमें पिछले साल का विजेता दखन चार्जर सबसे लास्ट वाली टीम कलकाता से हार गयी । उसके बाद रोज दो मैच हो रहे हैं । दर्शक दीर्घा भरी हुई रहती है। टी वी पर क्रिकेट शाकीन मैच के अलावा कुछ और जैसे समाचार, सीरियल आदि न खुद देखते न परिवार के अन्य सदस्यों को देखने देते । अभी तक कलकता दो मैच जीत गयी है, उसी तरह दिल्ली भी। चेन्नई एक मैच दखन चार्जर से हार गयी है । विश्व के महान से महान और नए से नए खिलाड़ियों का खेल देखने का अवसर मिल रहा है । अभी तक टी २० में शतक लगाने वाला श्री लंका का ४० वर्षीय जय सूर्य ही था जिसने ४२ बौलों में शतक बनाया था, लेकिन इसमें एक नाम और जुड़ गया है, युसूफ पठान जिसने जयपुर की टीम से खेलते हुए, मुंबई के खिलाफ ३७ बौलों में शतक बनाकर भी चार रनों से हार नहीं बचा सका ।
उत्तर प्रदेश - मायावती
आजके करीब करीब सभी पेपरों में मायावती की पार्टी के पच्चीसवीं वर्ष गाँठ पर मायावती की फोटो और एक भारी भरकम माला छपी है । माना जा रहा जो माला मायावती के गली में पडी है उसकी कीमत ५ से २५ करोड़ आंकी जा रही है । एक सबसे गरीब प्रदेश जिसके ५० % से ज्यादा लोग गरीबी लाइन से नीचे हो, उसकी मुख्या मंत्री, अपने को पिछड़े और गरीबो की मसिया बताने वाली ५ करोड़ की माला पहिनती हो, जीते जी करोड़ों रुपयों का अपना बुत बनवाती हो, वह भारतीय प्रजातंत्र को क्या सन्देश देना चाहती है ? इसके इस कदम प् कोंई भे पार्टी, केंद्र सरकार, सामाजिक संस्था उंगली नहीं उठा रही है । इस माला में उत्तर प्रदेश के निर्धन गर्रेब किसानों और मजदूरों की खून पशीने की कमाई लगी है, लेकिन कहा जा रहा है की यह पैसा पार्टी के सदस्यों ने इकठा किया है, किससे, इसका जिक्र नहीं है । भगवान देख रहा है, लेकिन केन्द्रीय सरकार की तरह, सामाजिक संस्थाओं की तरह, सब चुप हैं।
वह पहली महिला थी जिसने सबसे पहले २२९ रन बनाए एक दिवसीय क्रिकेट मैच में
यह आस्ट्रेलिया की बेलिंडा क्लार्क थी जिसने विश्व स्तर पर पहली बार १६ दिसंबर १९९९ को भारत की जमीन पर डेनमार्क की टीम के खिलाफ एक दिवसीय क्रिकेट मैच में २२९ रन बनाकर एक नया रिकार्ड बनाया था । क्योंकि वह एक नारी थी और पुरुष प्रधान विश्व में मीडिया ने भी उसे कोंई तवज्जो नहीं दी । झूलन गोस्वामी को आईसीसी ने सर्व श्रेष्ठ खिलाड़ियों की सूची में शामिल किया था और सम्मानित किया था । यह यह उस वक्त की बात है जब वह महिला गेंद्वाजों की सूची में शिखर पर थी। न मीडिया में नाम आया न टी वी कबरेज ही था । शायद बहुत से खेल प्रेमी तो महिला क्रिकेट मैच में दिलचस्पी लेते ही नहीं होंगे । फिर इनके नाम कैसे जान पाएंगे । महिलाएं पुरुष की संगिनी है, पत्नी है, माँ है बहिन है, बेटी है, उसकी भविष्य की चिता करता है लेकिन जब वह किसी भी क्षेत्र में आगे आती है तो इस पुरुष प्रधान समाज को मिर्च लगने लगती हैं । नारी रानी बन जाती है, राष्ट्रपति बन जाती है, प्रधान मंत्री बन जाती है, आज तो हवाई जहाज से लेकर वैज्ञानिक, इंजिनीयर भी बनने लगे हैं, लेकिन फिर भी उसे अवला, असुरक्षित ही समझा जाता है । बात कुछ हद तक सही है, कितनी नारिया हैं जो शक्तिशाली किरण वेदी की तरह बहादुर दिलेर, और स्व रक्षा कर सकती हैं ? इस समाज ने तो किरण वेदी तक को नकार दिया, योग्य होते हुए भी दिल्ली का पुलिस कमीशनर न बनाकर । जो नारी सक्षम हैं वे तो आज भी अपनी पहिचान बनाए हुए हैं, बाकी ३३% आरक्षण मिलने के बावजूद अपने पुरुष पति की ही अंगुली पकड़ कर चलेंगी।
Sunday, March 14, 2010
समाज में महिलाएं
सचीन तन्दूलकर ने एक दिवसीय क्रिकेट मैच में २०० बनाए सारे विश्व में डंका बज गया की पहली बार सचीन ने एक दिवसीय मैच में २०० रन बनाकर सारे रिकार्ड तोड़ दिये१ औरत कहाँ से कहाँ पहुँच कर भी कहीं नहीं है ! जब १६/१२/१९९९ को आस्ट्रेलिया की बेलिंडा क्लार्क ने मुम्बई में डेनमार्क के खिलाफ खेलते हुए २२९ रन बनाए थे तब इतना शोर शराबा नहीं मचा था! मीडिया भी एक कोने में एक हल्की सी खबर छाप कर किनारे बैठ गया था। क्योंकि वह एक नारी थी, उसको उतना ही सम्मान दिया गया, सचीन पुरुष है, समाज पुरुष प्रधान है, फिर भल्ला पुरुष कभी नहीं चाहेगा की नारी उसका नंबर काट जाए या उसके बराबर खादी हो जाए ! भारत की प्रथम प्रधान मंत्री की पुत्री इन्द्र गांधी, प्रथम महिला प्रधान मंत्री बनी, क्यों की वह नेहरू गांधी खानदान से तालुख रखती थी इसलिए ! आज सोनिया गांधी विश्व की महिलाओं में शिखर पर है, कारण की वह दिवगंत राजीव गांधी की पत्नी है और नेहरू-गांधी परिवार की बधू है ! जो महिलाएं सक्षम हैं उन्हें रिजर्वेसन की जरूरत ही नहीं है, बल्की आरक्षण से आने वाली महिलाएं अपने पति द्वारा प्रभावित के जाएँगी! दूर दराज के पिछड़े गाँवों में जाकर देखें जहां पेपरों में तो महिलाएं महिलाएं ग्राम प्रधान हैं लेकिन या तो काम काज उनके पति करते हैं या फिर पति के दबाव में काम करती हैं !
Sunday, March 7, 2010
शादी के पचास साल
आज से ठीक पचास साल पहले ०६/०३/१९६० को मेरी शादी जयंती देवी, पुत्री श्री रंजीतसिंह गुसाईं गाँव तिमली, डबराल्स्युं के साथ हुआ था । मैं सेना में अपना भविष्य बनाने के लिए प्रवेश कर चुका था । वो ज़माना आज के जमाने से भिन्न था । उस समय का इंसान बहुत सीधा साधा, साधारण कम पढ़ा लिखा पर दुनिया के परपंचों से दूर था। सामान मिल जाता था पर पैसों की कमी थी। शादी में न कोंई टैंटों की रंगीनियाँ होती थी, न कैटरिंग सेवा उपलब्ध थी। न कैमरा न फोटो न डी वी डी, न जाज बैंड न पाईप न ब्रास बैंड । स्थानीय औजी होते थे उनके पास ढोल, तूरी, पाईप, बजाने के सामान होते थे और उन्हीं को बजा कर बारातियों का मंनोरंजन कर लिया करते थे। खाना तजुर्बेकार पंडित बनाते थे। खाना भी साधारण पर अति स्वादिष्ट होता था । जमीन में बैठ कर पत्तलों में खाना खाते थे । यहाँ कोंई बड़ा छोटा नहीं था । सभी एक साथ नीचे बैठ कर बड़े प्रेम से खाने का आनंद लेते थे । मेरे पिता जी नहीं थे, मेरी माँ मेरी मां भी थी और पिता जी भी। बड़े भाई कुंवरसिंह मुझसे चार साल बड़े थे घर के मुखिया थे, इसलिए बरात का पूरा इंतजाम करना उनके अधिकार क्षेत्र में आता था । वर पालकी में बैठता था और कहार पालकी उठाकर ले जाते थे । पहाडी इलाका, पहले ढलान फिर दो मील नदी के साथ साथ और फिर चढ़ाई थी। मैं कुछ दूर तो पालकी में गया बाकी रास्ता पैदल ही तय किया । शाम को बरात बिलकुल ठीक टाईम पर ससूराल पहुँच गयी थी। गाँव बड़ा नहीं था फिर भी सारा गाँव एक जुट था । सामियाना लगा था। बारातियों के लिए बहुत ही अच्छा इंतजाम किया गया था। हरेक बराती की सुख सुविधा का ध्यान रखा गया था । खाने में शाम को हलवा, रोटी, सब्जी, पकोड़ी और सुबह उड़द की दाल भात, पकोड़े, रोटी बनाई गयी थी ।
प्रशंचित और प्रशन मन से सब बारातियों ने भोजन ग्रहण किया । स्नेह से बनाया हुआ भोजन था इसलिए उसमें स्वाद भी था और मिठास भी थी। रात के तीन बजे उठ कर विधि विधान का अनुपालन किया गया। सुबह फेरे हुए, दोनों तरफ के विद्वान पंडितों ने श्लोकों से समा बाँध दिया। कॉल बचन हुए और शादी की प्रक्रिया विधि विधान से सम्पन्न हुई। चार बजे दिन के बरात विदा हुई, बधू अपनी सहेलियों से, माता-पिता से विदा हुई। अचानक चहल पहल और चेहरों की खुशियाँ विदाई के रंजों गम में तबदील हो गयी थी । इस तरह थी ५० साल पहले की शादी के रस्म-रिवाज, महिमान निवाजी । न कोई दहेज़ की प्रथा थी, न वधु पक्ष पर किसी किस्म से प्रेशर पड़ता था । दो परिवार एक हो जाते थे, एक दूजे का सुख दुःख बाँटते थे। मेरे ससुर जी अवकास प्राप्त जंगलात के रेंज अधिकारी थे, और मेरी पत्नी के भाई जगमोहनसिंह भी जंगलात विभाग में फौरेस्टर थे। परिवार खान दानी और अच्छे संस्कारों वाला, पढ़ा लिखा था। मुझे जैसा ससुराल चाहिए था ठीक वैसा ही मिल गया था ।
ठीक ५० साल बाद यानी ०६ मार्च २०१० शनिवार, कृष्ण पक्ष की षष्ठी यहाँ दिल्ली द्वारका में मॉस सोसायटी में मेरे बड़े लडके, राजेश बहु काजल, छोटा बेटा ब्रिजेश-बहु बिन्दु, लड़की उर्वशी और मेरे एक धेवती एक देवता (नीतिला-करण) तीन पोते आत्रेय वेदान्त, आर्नव तथा पोती आर्शिया ने मिलकर बंधू बांधव, पूरे सोसायटी के सदस्यों के साथ गोल्डन जुबली मनाई । इसमें सोसायटी के प्रधान कर्नल अनेजा जी तथा सचीव श्री आर के जैन और जैन जी की धर्म पत्नी श्रीमती शशी जी ने बड़ा योगदान दिया। इस अवसर पर सबसे वयोवृद्ध ख़ास महिमान मेरी बहु बिन्दु के दादा थे। हमें उनका आशीर्वाद मिला। शुरुआत सुन्दरकाण्ड से किया गया था । उसके बाद वर माला डाली गयी । २५० लोगों ने हमारी शादी की गोल्डन जुबली में हिस्सा लिया और इस जश्न को अधिक आकर्षक बनाने में साथ दिया। ऐसे लगा हम फिर ५० साल पीछे चले गए हैं और शादी मंडप में फेरे ले रहे हैं । बसंत का आगमन हो गया है। पेड़ पौधे अपने नए पत्तों को पाकर आनंदित हो रहे हैं। कुदरत अपनी रंगों की वर्षा कर रही है। कोयल आमों की डालियों में बैठी मस्त होकर गाना गा रही है। भंवरे सुन्दर सुन्दर फूलों में बैठे स्वर्ग का आनंद ले रहे हैं । और मैं और मेरी पत्नी स्वप्नों की डोली में बैठे नयी दुनिया की सैर कर रहे हैं।
प्रशंचित और प्रशन मन से सब बारातियों ने भोजन ग्रहण किया । स्नेह से बनाया हुआ भोजन था इसलिए उसमें स्वाद भी था और मिठास भी थी। रात के तीन बजे उठ कर विधि विधान का अनुपालन किया गया। सुबह फेरे हुए, दोनों तरफ के विद्वान पंडितों ने श्लोकों से समा बाँध दिया। कॉल बचन हुए और शादी की प्रक्रिया विधि विधान से सम्पन्न हुई। चार बजे दिन के बरात विदा हुई, बधू अपनी सहेलियों से, माता-पिता से विदा हुई। अचानक चहल पहल और चेहरों की खुशियाँ विदाई के रंजों गम में तबदील हो गयी थी । इस तरह थी ५० साल पहले की शादी के रस्म-रिवाज, महिमान निवाजी । न कोई दहेज़ की प्रथा थी, न वधु पक्ष पर किसी किस्म से प्रेशर पड़ता था । दो परिवार एक हो जाते थे, एक दूजे का सुख दुःख बाँटते थे। मेरे ससुर जी अवकास प्राप्त जंगलात के रेंज अधिकारी थे, और मेरी पत्नी के भाई जगमोहनसिंह भी जंगलात विभाग में फौरेस्टर थे। परिवार खान दानी और अच्छे संस्कारों वाला, पढ़ा लिखा था। मुझे जैसा ससुराल चाहिए था ठीक वैसा ही मिल गया था ।
ठीक ५० साल बाद यानी ०६ मार्च २०१० शनिवार, कृष्ण पक्ष की षष्ठी यहाँ दिल्ली द्वारका में मॉस सोसायटी में मेरे बड़े लडके, राजेश बहु काजल, छोटा बेटा ब्रिजेश-बहु बिन्दु, लड़की उर्वशी और मेरे एक धेवती एक देवता (नीतिला-करण) तीन पोते आत्रेय वेदान्त, आर्नव तथा पोती आर्शिया ने मिलकर बंधू बांधव, पूरे सोसायटी के सदस्यों के साथ गोल्डन जुबली मनाई । इसमें सोसायटी के प्रधान कर्नल अनेजा जी तथा सचीव श्री आर के जैन और जैन जी की धर्म पत्नी श्रीमती शशी जी ने बड़ा योगदान दिया। इस अवसर पर सबसे वयोवृद्ध ख़ास महिमान मेरी बहु बिन्दु के दादा थे। हमें उनका आशीर्वाद मिला। शुरुआत सुन्दरकाण्ड से किया गया था । उसके बाद वर माला डाली गयी । २५० लोगों ने हमारी शादी की गोल्डन जुबली में हिस्सा लिया और इस जश्न को अधिक आकर्षक बनाने में साथ दिया। ऐसे लगा हम फिर ५० साल पीछे चले गए हैं और शादी मंडप में फेरे ले रहे हैं । बसंत का आगमन हो गया है। पेड़ पौधे अपने नए पत्तों को पाकर आनंदित हो रहे हैं। कुदरत अपनी रंगों की वर्षा कर रही है। कोयल आमों की डालियों में बैठी मस्त होकर गाना गा रही है। भंवरे सुन्दर सुन्दर फूलों में बैठे स्वर्ग का आनंद ले रहे हैं । और मैं और मेरी पत्नी स्वप्नों की डोली में बैठे नयी दुनिया की सैर कर रहे हैं।
Thursday, March 4, 2010
चाँद में बरफ
नसान का दिमाग हर समय चलता रहता है । वैज्ञानिक विज्ञान के रहस्यों को समझाने के लिए जिन्दगी गुजार देते हैं, कोंई कोई तो अपने मकसद में सफल हो जाता है, कोई असफलता को गले लगा कर भारी मन से इस संसार से कूच कर जाता है । कुछ ऐसी भी विभूतियाँ होती हैं, जो जिन्दगी भर लगे रहते हैं खोज करने में, भूखे प्यासे, निर्धनता की चद्दर ओढ़े, और आख़िरी वक्त में जाकर उन्हें सफलता मिलती है और फिर सदा के लिए उनकी आँखें बंद हो जाती हैं। उनके अनुसंधान का फल बाद की पीढी उठाती है । धरती की परतें दर परतें उखाड़ी जा चुकी हैं। समुद्र का कही बार मंथन हो चुका है। नील गगन असंख्य रहस्यों से भरा हुआ है। अब इंसान के कदम आसमान के रहस्यों की खोज के लिए उठ गए हैं। भागवत पुराण में एक प्रसंग आता है कि त्रिशंकू ने महर्षि विश्वामित्र से प्रार्थना की कि "आप अपने योग बल से मुझे सशरीर स्वर्ग भेज दें "। विश्वामित्र ने अपने योग से, मन्त्रों से त्रिशंकू को आसमान की ओर उठाना शुरू कर दिया । उधर जब इंद्र को पता लगा कि मृत्यु लोक से एक इंसान सशरीर स्वर्ग लोक की बड़ी तेजी से आरहा है, उसे अपनी गद्दी की चिंता हुई, कि कहीं ये मानव स्वर्ग आकर इंद्र की गद्दी मुझसे न छीन ले। उसने तेजी से स्वर्ग की ओर आते हुए त्रिशंकू के ऊपर बज्र प्रहार कर दिया। उधर बज्र का तेज और इधर महर्षि के योगबल और मन्त्रों की शक्ती । त्रिशंकू बेचारा बीच में अटका रह गया। न ऊपर जा सका न नीचे आ सका । जहां पर वह अटका रह गया था जहां पर पृथ्वी का गुरुत्वाक्षण समाप्त होता है, उस जगह को आज वैज्ञानिक अन्तरिक्ष रेखा कहते हैं। अन्तरिक्ष यान को उड़ाने के लिए राकेट दागे जाते हैं और वे यान को इस रेखा तक पहुंचा देते हैं, यहाँ से दूसरा राकेट दागा जाता है और यान वहां से अपने गंतव्य ग्रह की तरफ उड़ने लगता है । आज इंसान चाँद ही नहीं, मंगल और शनि ग्रह की सीमा में घुस पेट कर चुका है । मंगल में तो वैज्ञानिकों ने जीवन होने का संकेत भी दे दिया है । मंगल ग्रह वैसे भी लाल रंग का सितारों के बीच अलग ही नजर आता है । अनुसंधान कर्ताओं का मानना है कि मंगल में पानी है, वायु का दबाव है । फिर तो वहां जन जीवन संभव हो सकता है । कास की वहां सचमुच में इंसान के रहने लायक जलवायु होती तो पृथ्वी पर पड़ने वाला जन संख्या का बोझ कम हो जाता। इसी तरह चन्द्र यान ने जो रिसर्च किया है उसके मुताबिक़ वहां बड़े बड़े गढ़े हैं जो बरफ से ढके हुए । जहाँ बरफ है वहां पानी है, पानी है तो हवा भी है ! चन्द्र पर सूरज की सीधी रोशनी पड़ती है जिससे वह प्रकाशित रहता है ! इस तरह चाँद पर जीव जरूर है ! हो सकता है बाइसवीं शदी तक पृथ्वी की आधी जनसंख्या चन्द्र में बस जाएगी, और धरती के सारे शैतान, अफराधी, हत्यारे, लुटेरे, कुकर्मी, साधू संतों के रूप में हब्सी, ठग बदमास, तस्कर, नेता के भेष में सरकारी खजाने को अपने घर में भरने वाले, जनता के सेवक का ढोंग रचाकर, उन्हीं से गद्दारी करने वाले लोग अपने कर्मों को सुधारने के लिए चन्द्र लोक चले जाएंगे । धरती पर पाप का बोझ कम हो जाएगा। फिर से राम राज्य आजाएगा । चन्द्र लोक में सबसे बड़ी संख्या में भारत के नेता लोग, आश्रमों, मठों के मठाधीश, डकैत, आतंकवादी, मावावादी, नक्शल पंथी हत्यारे, जमाखोर, मिलावट करने वाले, रिश्वत खोर, तश्कर, अपहरण करने वाले और महिलाओं से अभद्र व्यवहार करने वाले सबसे पहले वाले यान से भेजे जाएंगे । वहां फिर इन्हीं का मंत्री मंडल होगा, इन्हीं की कबिनेट होगी, इन्हीं की सरकार होगी । ये भी खुश और बाकी बचे धरती के प्राणी भी खुश !
Tuesday, March 2, 2010
ऐसी होली मनाई मैंने
इस साल होली पहली मार्च को पडी । गुलाबी सर्दी लेकिन ज्यों ज्यों दिनकर अपनी किरणों को फैलाता हुआ नील गगन के सीने पर अपने रथ को तेजी से बढाते हुए आगे बढ़ता गया, त्यों त्यों गर्मी का प्रभाव भी तेज होता चला गया। हम लोग अपनी सोसायटी में ही होली मनाया करते हैं, और हर साल की तरह इस साल भी भांग की ठंडाई के साथ भांग के गर्म गर्म पकोड़े । वैसे ही होली के रंगों का सरूर, फिर भांग की ठंडाई का भरा गिलास, एक नहीं दो नहीं पांच-पांच छ: छ:, ऊपर से भांग के पकोड़े, स्वाद स्वाद में कितने खा गए, हिसाब लगाने वाला भी जमीन पर पडा पडा हँसे जा रहा था। उसे देख देख कर और भी हँसे रहे थे । लेकिन हम ठहरे फ़ौजी, जल्दी किसी के हाथ आने वाले नहीं थे । हम नियमित तौर पर लम्बा समय लेते हुए, भांग की ठंडाई तथा भांग के पकोड़ों का लुफ्त ले रहे थे, धीरे धीरे। यार दोस्त आर के जैन जैसे सदा बाहर चहरे पर मुस्कान ओढे कमर को लचकाते हुए, विभिन्न मुद्राओं में डांस दिखाते हुए, जो होश में थे उनका मनोरंजन कर रहे थे । नशा तो नशा होता है, उसे नहीं पता की कौन फ़ौजी है और कौन फ़ौज नहीं है । वह तो मान न मान मैं तेरा महिमान बन कर सर पर चढ़ कर आदेश देना शुरू कर देता है, और मेरे साथ भी ठीक वैसी ही हुआ। मैं इस भांग के नशे को अपने पर हाभी नहीं होने देना चाहता था, इसलिए जल्दी ही पार्क से घर गया, नहाया धोया, कपडे बदले, और खाना खाने के लिए डिनर टेबल पर बैठ गया । प्लेट में सभी किस्म की खाद्य सामग्री रखी हुई थी। कड़ी थी, चावल थे, रायता था, मखनी दाल, छोले भटोरे, सलाद, चमच से खाना शुरू किया, जैसे जैसे प्लेट खाली होती जा रही थी, वैसे वैसे भांग अपना प्रभाव दिखाने लगा। पल में मैं मैट्रो की सवारी करने लगता, फिर अचानक हवाई जहाज में उड़ने लगता। फिर सोचता कहीं मैं
खाते खाते वेहोश न हो जाऊं, अगर ऐसा होगया तो सोसायटी में जो इज्जत अर्जित कर रखी है वो मिट्टी में न मिल जाय । यह सोच कर फिर प्लेट हाथ में लेकर चहल कदमी करने लगता । अब आलम यह था की मुझे चलते चलते स्वप्न आने लगे । मिनटों में मैं इंद्र के अखाड़े में पहुँच जाता, अपने को अफसराओं के बीच पाता। पलक झपकते ही साधुओं की टोली में जाकर भांग की चिलम पीता । फिर ख्याल आता की मैं बेहोश तो नहीं हो रहा हूँ। कहीं प्लेट हाथ से न छूट जाय। फिर शिव जी के गण अजीब अजीब वेश भूषा में नजर आये, वे सब के सब मेरा हाथ पकड़ कर मुझे नचाने लगे। अगले ही क्षण मैं विश्वामित्र बना हुआ हूँ, योग साधना में बैठा हूँ, कामदेव की फ़ौज वसंत ऋतू के साथ, धरती पर उतर रहे हैं। कामदेव ने अपने पुष्प धनुष पर काम वाण चढ़ाया और मेरे सीने पर चला दिया और ........ मेरी आँखे खुल गयी, कामदेव अपनी सेना के साथ डर कर भाग गए । मैंने फिर अपने को जोर से झटका दिया और चेतन अवस्था में आया । सोचा अब घर की तरफ भागो, कहीं भंग ने पूरी तरह से अपने आगोश में ले लिया तो मेरी इज्जत रूपी पूंजी का क्या होगा ? जल्दी जल्दी प्लेट खाली की, (मैं कभी खाने को बरबाद नहींकरता )। दो रस गुल्ले खाए और घर तरफ चल पड़ा । लिफ्ट के पास आकर बटन दबा दिया, लिफ्ट भी खुल गयी, लेकिन जैसे ही लिफ्ट के अन्दर जाने लगा, सोचने लगा की कहीं लिफ्ट में ही बेहोश हो गया तो फिर क्या होगा ? लिफ्ट से बाहर आकर सीढ़ियों से अपने घर पर आया । स्वप्न भी आ रहे हैं और सजग भी हो रहा हूँ ।
अजीब सी कसम कस । लुफ्त भी आरहा है और फिर बेहोश होने का डर भी सता रहा है । हंस रहा हूँ लेकिन दूसरों की प्रतिक्रया भी भांप रहा हूँ । नशा भी है लेकिन अपनी इज्जत का भी ख्याल है ।
खाते खाते वेहोश न हो जाऊं, अगर ऐसा होगया तो सोसायटी में जो इज्जत अर्जित कर रखी है वो मिट्टी में न मिल जाय । यह सोच कर फिर प्लेट हाथ में लेकर चहल कदमी करने लगता । अब आलम यह था की मुझे चलते चलते स्वप्न आने लगे । मिनटों में मैं इंद्र के अखाड़े में पहुँच जाता, अपने को अफसराओं के बीच पाता। पलक झपकते ही साधुओं की टोली में जाकर भांग की चिलम पीता । फिर ख्याल आता की मैं बेहोश तो नहीं हो रहा हूँ। कहीं प्लेट हाथ से न छूट जाय। फिर शिव जी के गण अजीब अजीब वेश भूषा में नजर आये, वे सब के सब मेरा हाथ पकड़ कर मुझे नचाने लगे। अगले ही क्षण मैं विश्वामित्र बना हुआ हूँ, योग साधना में बैठा हूँ, कामदेव की फ़ौज वसंत ऋतू के साथ, धरती पर उतर रहे हैं। कामदेव ने अपने पुष्प धनुष पर काम वाण चढ़ाया और मेरे सीने पर चला दिया और ........ मेरी आँखे खुल गयी, कामदेव अपनी सेना के साथ डर कर भाग गए । मैंने फिर अपने को जोर से झटका दिया और चेतन अवस्था में आया । सोचा अब घर की तरफ भागो, कहीं भंग ने पूरी तरह से अपने आगोश में ले लिया तो मेरी इज्जत रूपी पूंजी का क्या होगा ? जल्दी जल्दी प्लेट खाली की, (मैं कभी खाने को बरबाद नहींकरता )। दो रस गुल्ले खाए और घर तरफ चल पड़ा । लिफ्ट के पास आकर बटन दबा दिया, लिफ्ट भी खुल गयी, लेकिन जैसे ही लिफ्ट के अन्दर जाने लगा, सोचने लगा की कहीं लिफ्ट में ही बेहोश हो गया तो फिर क्या होगा ? लिफ्ट से बाहर आकर सीढ़ियों से अपने घर पर आया । स्वप्न भी आ रहे हैं और सजग भी हो रहा हूँ ।
अजीब सी कसम कस । लुफ्त भी आरहा है और फिर बेहोश होने का डर भी सता रहा है । हंस रहा हूँ लेकिन दूसरों की प्रतिक्रया भी भांप रहा हूँ । नशा भी है लेकिन अपनी इज्जत का भी ख्याल है ।
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