Saturday, March 27, 2010

दुश्मन से हाथ मिलाओ

जब देश आजाद हुआ था और हिन्दुस्तान के एक हिस्से को निकालकर पाकिस्तान बना दिया गया था, उस समय महात्मा गांधी जी ने कहा था की "ये तुम्हारे छोटे भाई हैं, इनको अपने हिस्से से ५० करोड़ रुपये और दे दो" ! हमारा देश ठहरा शान्ति प्रिय देश, विश्व के हर हिस्से तक हमारे सफ़ेद कबूतर उड़े! कही देशों ने उन कबूतरों को मान सम्मान दिया और कुछ ने हंसकर इसे हमारी कमजोरी समझकर कबूतरों को ही अगवा कर दिया ! इन्ही देशों में पाकिस्तान भी एक था ! पाकिस्तान ने हमारे देश द्वारा दी गयी ५० करोड़ की राशि को हथियार और गोला बारूद खरीदने में खर्च किया और उन हथियारों से हम पर ही हमला कर दिया ! सन १९४८ में पाकिस्तान ने जम्मू काश्मीर पर हमला किया ! हमें मजबूर होकर शांती के कबूतरों को पिंजरों में बंद करना पड़ा और पाकिस्तान को उसी की भाषा में जबाब देना पड़ा ! इस युद्ध में बड़ी संख्या में हमारे सैनिकों ने वीर गति पायी और जे एंड के का दो तिहाई हिस्सा जीत लिया! वे तो नेहरू जैसे राज नेता बीच में आगये और पूरे जम्मू कश्मीर को लिए बिना ही सीज फायर करावा दिए जिसका खामियाजा हम भारतवासी आज भी भूगत रहे हैं ! वे हम पर लडाई थोपते रहे, १९६५ और १९७१ की लड़ाई भारतवासी अभी भूल भी नहीं पाए थे की पाकिस्तान ने अपने फ़ौजी आकाओं को खुश करने केलिए १९९९ में फिर कारगिल पर अटैक कर दिया ! हमारी बहादूर सेना कटती रही लेकिन आगे बढ़ती गयी ! वे हारते रहे हम जीतते रहे लेकिन हमारे महान देश भक्त नेता हमारे द्वारा विजित पाकिस्तानी भूमि को उन्हें दान दक्षिणा समझ कर लौटाते रहे ! हम जीतते भी हारते रहे नेताओं की ढुलमुल नीति से ! इन नेताओं ने क्या खोया ? इनका भाई भतीजा, लड़का लड़की, पति या पत्नी सेना में थोड़ी ही है ! वे उन सैनिक परिवारों का दुःख दर्द क्या समझेंगे जिनका जवान बेटा, पति, पिता, दुश्मन से लड़ते लड़ते देश पर कुर्वान होगया !
अमेरिका ने पाकिस्तान को चेतावनी दी की अगर आयन्दा से पाकिस्तान ने भारत पर आत्नाकी हमला किया तो अमेरिका उसे आगे से वित्तीय और रक्षा संबंधी सहायता देना बंद कर देगा ! लेकिन वे बाज नहीं आये और २००८ के २६ नवम्बर के दिन मुंबई पर बड़े पैमाने पर अटैक किया गया आतंकवादियों द्वारा ! इसमें खुला हाथ था पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों का ! विश्व का दबाव पड़ा तो पाकिस्तान ने उपरी मन से कुछ लक्सरे तैयबा के खूंखार लीडरों को नजरबन्द कुछ दिन नजरबन्द रखा और फिर यह कह कर छोड़ दिया क़ि "इनके खिलाफ भारत ने कोई प्रमाणिक प्रमाण नहीं दिए, इसलिए उनके खिलाफ कोर्ट में कोई केस नहीं बनाता," वे छोड़ दिए गए ! अमेरिका सब जानते हुए भी पाकिस्तान को सामरिक और आर्थिक मदद डी रहा है तथा भारत पर दबाव डाल रहा है क़ि वह पाकिस्तान के साथ वार्ता को पहल करे ! मरता क्या न करता भारत ने एक बार फिर बिना शर्त के पाकिस्तान के दरिन्दे नेताओं से सम्बन्ध ठीक करने के लिए हाथ बड़ा दी हैं ! विश्व के बड़े बड़े देश , सुरक्षा परिषद् के पाँचों सदस्य जानते हैं क़ि पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियां आतानाक्वाद को सरक्षण दे रहे हैं और शांती प्रिय देश भारत पर हमला करवा रहे हैं, फिर आँखें मीचे चुपचाप बैठे हैं ! उधर पाकिस्तान से भारत के राशन पर जीने वाले आतंकवादियों को चेतावनियाँ मिल रही हैं क़ि "या तो भारत के भीड़ भाड़ वाले स्थानों, सैनिक ठिकानों, होटलों, सामरिक गोला बारूद के गोदामों में अटैक करें या परिणाम भुगतें " ! लोग दहशत गर्दी में जी रहे हैं, नेता संसद विधान सभावों में लड़ रहे हैं, पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं, जनता को गम राह करने के लिए आरक्षण का जाल फैला रहे हैं ! !
अरे नेता शासको, प्रशासको,
कल तुम न रहोगे, लेकिन भारत रहेगा,
और भावी पीढी तुम्हारी संतान से कहेगा,
"वे तुम्हारे पिता व् पिता मह थे,
जिन्होंने देश में गुंडा गर्दी फैलाई,
अफराध ह्त्या अपहरण और की मंहगाई,"
तुम तो यम के दरवाजे खड़े सजा का इन्तजार करोगे,
जो अत्याचार आज तुम जनता पर कर रहे हो,
उसका दंड मरने पर भरोगे !
संभल जाओ आत तायियो अभी भी होश में आओ,
असहाय निर्धन जनता पर ज्यादा जुल्म न ढावो !

Friday, March 26, 2010

वे लोग

वे लोग अधकचरे हैं,
जो कचरे का ढेर लगाते हैं,
दूसरों के घर के आगे जा कचरा फैलाते है।
फिर वे लोग क्या कहलाते हैं ?
जो सफ़ेद टोपी लगाते हैं,
रात के अँधेरे में मुंह कचरे से रंगाते हैं,
और
दिन के उजाले में सफ़ेद पोस बन जाते हैं !
समाज में तो वे भी रहते हैं,
सुरक्षा कर्मी कहलाते हैं,
छेद उसी थाली में करते
जिसमें खाना खाते हैं !
कुछ लोग तो ज्यादा कचरे हैं
संसद भवन तक जाते है,
अपने ही गुंडों से मतदाता को लुटवाते हैं !
इन लोगों के दिल पत्थर के
खुद सरकार बनाते है,
आतंकवाद से हाथ मिला देश भक्त कहलाते हैं !
देश भरा है संतों से, जनता में पूजे जाते हैं,
गुंडा गर्दी करते करते ह्त्या तक करवाते हैं,
आरक्षण कोटे में महिला
ग्राम प्रधान बन कर आई,
लडके ने काम संभाला,
महिला थी अंगूठा टेक भाई ,
लडके के मन में शैतान जागा,
करोड़ों का फिर किया घोटाला,
ये है आरक्षण का खेल,
सुरक्षित नहीं हैं अपनी रेल !
फिर भी मेरा देश महान,
नाम है इसका हिन्दुस्तान !

Tuesday, March 23, 2010

हम चलें तुम चलो

हम चलें तुम चलो ये ज़माना चले,
हर दिलों के बुझे दीप फिर से जलें,
बोलो हम क्या कहें ये ज़माना कहे,
ये जमी तो रहे हम रहे ना रहे !
देख रोशन चमन क्यों ज़माना जले,
हम चले तुम चलो, ये ज़माना चले !
पेड़ पत्तियां हिले दूर जाकर गिरें,
क्या पता टूट कर फिर मिले ना मिले,
है तम्मना जिएँ जाम भर कर पिएँ ,
कोई गम ना रहे ना कोई कुछ कहे,
रोज मिन्नत करूँ और आहें भरूँ,
अब तो रस्ता दिखा बोल मैं क्या करूँ ?
दुश्मनी का गुब्बार क्यों दिलों में पले,
हम चले तुम चलो ये ज़माना चले !

विश्व वानिकी दिवस

साप्ताहिकी धुन्धुवी के परिवार की ऑर से २१ मार्च २०१० के दिन झिन्दी चौड़ में विश्व वानिकी दिवस के अवसर पर एक स्मारिका "प्रयास" का विधिवत विमोचन किया गया ! इस अवसर पर उत्तराखंड जंगलात विभाग के प्रमुख वन संरक्षण डा० रघुवीरसिंह रावत, उपाध्यक्ष वन एंव -पर्यावरण अनुश्रवण समिति, अनिल बलूनी, शैलेंद्रसिंह रावत विधायक, श्रीमती कमला विद्यार्थी, (वीरांगना तीलू रौतेली राज्य पुरस्कार से सम्मानित), जंगलात विभाग के अन्य अधिकारी, कर्मचारी, आसपास इलाकों के ग्राम प्रधान, स्कूल के बच्चे, धुन्धुवी साप्ताहिक के लेखक तथा कई गणमान्य बुद्धजीवी इस समारोह में उपस्थित थे ! मुझे भी मेरे बेटे ब्रिजेश के साथ इस समारोह में सम्मलित होने का निमंत्रण था और मैं इस अवसर को गंवाना नहीं चाहता था ! इस समारोह की सबसे बड़ी जिम्मेदारी, धुन्धुवी के प्रधान सम्पादक सुधीन्द्र नेगी, प्रपौत्र स्वर्गीय श्री गोकुलसिंह नेगी व पुत्र स्वर्गीय श्री भूपेन्द्रसिंह नेगी, की थी और उनहोंने लगातार दो महीने कठीन मेहनत करके इस वानिकी दिवस को सफलता पूर्वक सम्मपन करने का श्रेय लिया !
मैं इस स्थान पर दिसंबर सन १९५३ ई० में अपने मामाजी स्वर्गीय श्री गोकुलसिंह जी के साथ आया था ! मामाजी का पहला परिवार था झिंडी चौड़ आने वाला ! उस समय यह इलाका पूरा जंगल था जंगली जानवरों से भरा हुआ !
ज़रा कल्पना कीजिए की आप अपनी बसी बसाई गिरस्थी, मकान, खेत खलियान, नाते रिश्ते, पास पड़ोसियों को छोड़कर एक जंगल में खुले आसमान के तले एक नयी गिरस्थी बसाने आगये हों ! पानी का सोत काफी दूर था ! खाद्य सामग्री के लिए दूर दूर तक दुकाने नहीं थी ! सबसे पहला कदम था, सुरक्षित स्थान ढूँढना रात बिताने के लिए ! फिर जंगल की सफाई करके खेतों में तब्दील करना ! यहाँ पर यह पीपल का पेड़ एक मात्र मूक गवाह है आज से ५७ साल पहले की घटनाओं का और इसी के नजदीक हम लोगों ने पहली रात बिताई थी ! उस समय यहाँ आने वाला हर व्यक्ति मेहनती था, हर एक दृढ संकल्प के साथ यहाँ आया था ! मच्छरों का दल पूरे साज बाजों के साथ आने वालों का स्वागत करने के लिए हर वक्त तत्पर रहता था ! जंगली घास से झोपड़े बनाए गए और रहने का ठिकाना किया गया ! मामाजी ने मुझे नन्ने बचों को पढ़ाने का काम दे दिया ! मैं दो महीने यहाँ रहा, कहीं से पीने का पानी, घड़ों में भर कर लाना पड़ता था ! कहने का मतलब यह एक बहुत ही संघर्ष मय समय था ! आज पूरे ५७ साल में यहाँ की काया पलट हो गयी ! पक्की सड़कें, पक्के मकान, नहर, पानी के नलके, बिजली , सजाया बाजार
पोस्ट आफिस, आने जाने की सुविधाए और वे सारी सुविधाएं जो एक सुविकसित शहर में उपलब्ध है, उच्च माद्यमिक विद्यालय, टेली फोन, हर नर नारी के पास मोबाईल फोन ! मेरे मामाजी का स्वपन साकार हो गया ! अगर आज वे ज़िंदा होते तो अपने हाथों से लगाई गयी इस फूलती फलती वाटिका को देख कर कितने खुश होते ! हाँ करीब ६-७ घंटे तक यहाँ रहे और इस पूरे समय में ज़रा भी महसूश नहीं हुआ की हम ऐसे स्थान पर बैठ हैं जो कबी घना जंगल हुआ करता था !

Wednesday, March 17, 2010

दर पे तेरे आया हूँ

आया हूँ दर पे तेरे दीप जलाने, मंदिर में घंटी है उसको बजाने,
दीपों की रोशनी से तुमको मनाने, आरती के गीतों से जग को जगाने !
आया हूँ दर पे तेरे.......
मैं तो एक आदमी हूँ, तुम तो भगवान हो,
राम कहूं कृष्ण कहूं तुम ही घनश्याम हो !
सूर्य लोक जा सके वह बाल हनुमान हो,
आदमी की भक्ती मुक्ती, तुम ही परम धाम हो !
केदार भी गया हूँ मैं तुमको मनाने,
आया हूँ दर पे तेरे दीप जलाने ! २ !
केदार तू है बद्री भी तू है,
सोमनाथ तू अमरनाथ भी तू है,
रामेश्वर तू है, जगन्नाथ तू है,
धरती और आकाश के कण कण में तू है,
प्रयाग कुम्भ गया गंगा नहाने, आया हूँ दर पे तेरे दीप जलाने,
दीपों की रोशनी से तुमको मनाने ! ( हरेंद्रसिंह रावत )

Tuesday, March 16, 2010

सरकारी राशन की दुकान

एक ज़माना था जब न कोई सरकारी राशन की दुकान हुआ करती थी, न राशन कार्ड की झंझट थी, न लम्बी लम्बी लाईने लगती थी, न तू तू मैं मैं ! अमीर गरीब तब भी थे ! जाति प्रथा थी! लेकिन समाज के सारे लोग पढ़े, अनपढ़, गरीब अमीर, सब मिलकर जिन्दगी का सफ़र तय करते थे । सेना तब भी थी, पुलिस का बंदोबस्त भी था! हिन्दू-मुसलमान भी गाँवों में बिना किसी भेद भाव के बड़े प्रेम से रहते थे । हाँ उस समय केवल एक ही मकसद था की देश को अंग्रेजों से आजाद करवाना है । कुर्वान होने वाले केवल एक ज़मात, एक जाति के नहीं थे ! "सर फरोशी की तम्मना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है !" शहीद भगत सिंह की ले से ले मिलाते हुए सारे भारतीय मिल कर गुण गुनाते थे ! हाँ, उस समय के रजवाड़े, सेठ, जमीदार जो अंग्रेजों के सहयोगी थे, इन आन्दोलनों को कुचलने में अंग्रेजों का साथ देते थे ! भारत आजाद हुआ और अंग्रेजों के ये पिछलग्गू राजनीति में छा गए। शासन की बागडोर इन्होंने ही समभा ली ! इन्होने स्वतन्त्र भारत में अंग्रेजों का ही संविधान थोड़ा बहुत तोड़ मरोड़ कर लागू कर दिया।

वोट बैंक बनाने के लिए समाज को तोड़ा जाने लगा ! पहले आरक्षण के दायरे में जाति धर्मों के बीच रेखा खींची जाने लगी ! फिर अमीर गरीब के बीच की खाई की चौडाई बढ़ती गयी। गरीबों के नाम से सरकारी सहूलियतें राजनीतिग्य, पुलिस, सरकारी कर्मचारी, अवसरवादी नेता उठाने लगे। सरकार सब्सिडी दे रही है लेकिन फायदा उठा रहे हैं पहुँच वाले लोग ! सरकारी राशन की दुकानों में जो कुछ हो रहा है उसका विवरण दिया है सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज डीपी बढ़वा ने अपनी रिपोर्ट में ! वे लिखते हैं की "डीपीएस देश का सबसे भ्रष्ट महकमा है ! सस्ता गेहूं गोदामों से सीधे मीलों में चला जाता है, इस कार्यवाही में पुलिस इन्स्पेक्टर, पीडीएस दुकान दार, सर्किल इन्सपेक्टर, गोदाम का मैनेजर राजनीति के प्रभाव शाली लोग सामिल हैं । अगर जो दुकानदार घूस देने में आनाकानी करता है, उसको सडा गला अनाज सप्लाई किया जाता है !" (सहारा १७ मार्च २०१० पृष्ठ एक )! इसी तरह से काला धन जोड़ जोड़ कर, गरीबों के बच्चों का पेट काट कर ये कुक्कर मुत्ता की तरह फलने फूलने वाले ही नेता मायावती जैसी नारी को खुश करने के लिए एक एक हजार नोटों की ५-७ करोड़ की माला बना कर मैडम के गले में डाल देते हैं ! जिस प्रदेश के करोड़ों लोग एक वक्त की रोटी के भी मोंहताज हों उसकी मुख्या मंत्री को ५-७ करोड़ रुपयों का नोटों का हार पहिनना शोभा देता है ?

जब तक सरकार भ्रष्ट नेताओं, सरकारी कर्मचारियों, पुलिस, और तमाम जिम्मेदार कर्मचारियों और अधिकारियों पर नकेल नहीं डालती, भ्रष्टाचार के कीचड़ /दल दल में पड़े लोगों को दर किनार नहीं करती, माया जैसी महिला को फूल की मालाओं से ही संतोष करने को नहीं कहती, हमारा भारत २०२० क्या विश्व शिखर में पहुँच जाएअगा ?

Monday, March 15, 2010

ई पी एल

१२ मार्च से ई पी एल क्रिकेट मैच शुरू हो चुका है । १२ को एक ही मैच था, जिसमें पिछले साल का विजेता दखन चार्जर सबसे लास्ट वाली टीम कलकाता से हार गयी । उसके बाद रोज दो मैच हो रहे हैं । दर्शक दीर्घा भरी हुई रहती है। टी वी पर क्रिकेट शाकीन मैच के अलावा कुछ और जैसे समाचार, सीरियल आदि न खुद देखते न परिवार के अन्य सदस्यों को देखने देते । अभी तक कलकता दो मैच जीत गयी है, उसी तरह दिल्ली भी। चेन्नई एक मैच दखन चार्जर से हार गयी है । विश्व के महान से महान और नए से नए खिलाड़ियों का खेल देखने का अवसर मिल रहा है । अभी तक टी २० में शतक लगाने वाला श्री लंका का ४० वर्षीय जय सूर्य ही था जिसने ४२ बौलों में शतक बनाया था, लेकिन इसमें एक नाम और जुड़ गया है, युसूफ पठान जिसने जयपुर की टीम से खेलते हुए, मुंबई के खिलाफ ३७ बौलों में शतक बनाकर भी चार रनों से हार नहीं बचा सका ।