Tuesday, March 16, 2010

सरकारी राशन की दुकान

एक ज़माना था जब न कोई सरकारी राशन की दुकान हुआ करती थी, न राशन कार्ड की झंझट थी, न लम्बी लम्बी लाईने लगती थी, न तू तू मैं मैं ! अमीर गरीब तब भी थे ! जाति प्रथा थी! लेकिन समाज के सारे लोग पढ़े, अनपढ़, गरीब अमीर, सब मिलकर जिन्दगी का सफ़र तय करते थे । सेना तब भी थी, पुलिस का बंदोबस्त भी था! हिन्दू-मुसलमान भी गाँवों में बिना किसी भेद भाव के बड़े प्रेम से रहते थे । हाँ उस समय केवल एक ही मकसद था की देश को अंग्रेजों से आजाद करवाना है । कुर्वान होने वाले केवल एक ज़मात, एक जाति के नहीं थे ! "सर फरोशी की तम्मना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है !" शहीद भगत सिंह की ले से ले मिलाते हुए सारे भारतीय मिल कर गुण गुनाते थे ! हाँ, उस समय के रजवाड़े, सेठ, जमीदार जो अंग्रेजों के सहयोगी थे, इन आन्दोलनों को कुचलने में अंग्रेजों का साथ देते थे ! भारत आजाद हुआ और अंग्रेजों के ये पिछलग्गू राजनीति में छा गए। शासन की बागडोर इन्होंने ही समभा ली ! इन्होने स्वतन्त्र भारत में अंग्रेजों का ही संविधान थोड़ा बहुत तोड़ मरोड़ कर लागू कर दिया।

वोट बैंक बनाने के लिए समाज को तोड़ा जाने लगा ! पहले आरक्षण के दायरे में जाति धर्मों के बीच रेखा खींची जाने लगी ! फिर अमीर गरीब के बीच की खाई की चौडाई बढ़ती गयी। गरीबों के नाम से सरकारी सहूलियतें राजनीतिग्य, पुलिस, सरकारी कर्मचारी, अवसरवादी नेता उठाने लगे। सरकार सब्सिडी दे रही है लेकिन फायदा उठा रहे हैं पहुँच वाले लोग ! सरकारी राशन की दुकानों में जो कुछ हो रहा है उसका विवरण दिया है सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज डीपी बढ़वा ने अपनी रिपोर्ट में ! वे लिखते हैं की "डीपीएस देश का सबसे भ्रष्ट महकमा है ! सस्ता गेहूं गोदामों से सीधे मीलों में चला जाता है, इस कार्यवाही में पुलिस इन्स्पेक्टर, पीडीएस दुकान दार, सर्किल इन्सपेक्टर, गोदाम का मैनेजर राजनीति के प्रभाव शाली लोग सामिल हैं । अगर जो दुकानदार घूस देने में आनाकानी करता है, उसको सडा गला अनाज सप्लाई किया जाता है !" (सहारा १७ मार्च २०१० पृष्ठ एक )! इसी तरह से काला धन जोड़ जोड़ कर, गरीबों के बच्चों का पेट काट कर ये कुक्कर मुत्ता की तरह फलने फूलने वाले ही नेता मायावती जैसी नारी को खुश करने के लिए एक एक हजार नोटों की ५-७ करोड़ की माला बना कर मैडम के गले में डाल देते हैं ! जिस प्रदेश के करोड़ों लोग एक वक्त की रोटी के भी मोंहताज हों उसकी मुख्या मंत्री को ५-७ करोड़ रुपयों का नोटों का हार पहिनना शोभा देता है ?

जब तक सरकार भ्रष्ट नेताओं, सरकारी कर्मचारियों, पुलिस, और तमाम जिम्मेदार कर्मचारियों और अधिकारियों पर नकेल नहीं डालती, भ्रष्टाचार के कीचड़ /दल दल में पड़े लोगों को दर किनार नहीं करती, माया जैसी महिला को फूल की मालाओं से ही संतोष करने को नहीं कहती, हमारा भारत २०२० क्या विश्व शिखर में पहुँच जाएअगा ?

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