हम चलें तुम चलो ये ज़माना चले,
हर दिलों के बुझे दीप फिर से जलें,
बोलो हम क्या कहें ये ज़माना कहे,
ये जमी तो रहे हम रहे ना रहे !
देख रोशन चमन क्यों ज़माना जले,
हम चले तुम चलो, ये ज़माना चले !
पेड़ पत्तियां हिले दूर जाकर गिरें,
क्या पता टूट कर फिर मिले ना मिले,
है तम्मना जिएँ जाम भर कर पिएँ ,
कोई गम ना रहे ना कोई कुछ कहे,
रोज मिन्नत करूँ और आहें भरूँ,
अब तो रस्ता दिखा बोल मैं क्या करूँ ?
दुश्मनी का गुब्बार क्यों दिलों में पले,
हम चले तुम चलो ये ज़माना चले !
Tuesday, March 23, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment