हाँ जनाव आज रविवार है, सारे सरकारी निजी कार्यालयों में, कारखाना फैक्टरियों में बड़े अधिकारी से लेकर छोटे से मजदूर और चपरासी तक छुट्टी कर रहे होंगे ! छ: दिन कठीन मेहनत के बाद कहीं जाकर आता है रविवार ! लेकिन यहाँ भी सभी किस्मत वाले नहीं होते ! चार हजार रुपया महीना के लेने वाले हजारों बेकार कुछ बृद्ध कुछ जवान बिना रोजगार के गार्ड्स का डंडा संभाले तमाम दिल्ली की सोसायटीज के गेटों पर खड़े मिल जाएंगे ! कृशकाया, चेहरों पर उदासी, बिना उद्देश्य के, एक निराशा भरी जिन्दगी जीने वाले ये लोग, जिनका कोई आज नहीं न कोई कल है १२ घंटे की लगातार ड्यूटी देने वाले ये लोग, बिना किसी अवकास के सश्रम ३०/३१ दिन लगातार कभी रात कभी दिन की ड्यूटी देते हैं और महीने की ७ तारीख को वेतन लेते हैं मात्र ३५००/४०००। न तो भविष्य निधि संगठन ही इनके कार्य क्षेत्र में आता है, न भविष्य निधि /पेंशन, ग्रेच्युटी और किसी किस्म की सरकार द्वारा दी हुई सुविधाएं
इन्हें मिल पाती है ! इनके ऊपर भी जिम्मेदारियां हैं, लडके हैं तो माता पिता की जिम्मेदारी, बड़े हैं तो अपने बच्चों की जिम्मेदारी ! जब मंहगाई बढ़ती है तो सबसे पहले अटैक इनके कीचन पर पड़ता है ! बच्चे को दूध नहीं मिला, बूढ़े को खिचडी नहीं बन पायी, कारण घर में पैसे नहीं हैं ! सरकार आती है, चली जाती है, देश के विधायकों और सांसदों ने अपने वेतन भत्ते बढ़ा दिए, सरकार ने सरकारी कर्मचारियों की तंख्वायें बढ़ा दी, वित्त मंत्री हर साल २८ फरवरी को संसद में अपना वजट पढ़ लेता है किसी न किसी को कुछ न कुछ दे जाता है पर कभी किसी की नजर इन बेसहारा गार्डों पर नहीं पडी ! मानव अधिकार आयोग, बहुत सारी कल्याणकारी संस्थाएं समाज कल्याण के लिए कार्य कर रहीं हैं, लेकिन कभी किसी ने इन गरीब बेसहारा, बेजूवान गाड़ों की तरफ झाँक कर भी नहीं देखा ! ये सबकी नज़रों में आते हैं, मंत्री की नज़रों में आते हैं, पुलिस के बड़े बड़े अधिकारियों की नज़रों में आते हैं ! क्या भविष्य निधि के इन्स्पेक्टर, असिस्टेंट कमीशनर, रीजनल कमीशनर जो मल्टी स्टोरीज सोसाइटियों में रहते हैं उन्हें ये दीन हीन गार्ड अल्प वेतन धारी चाबीसों घंटे गेट पर खड़े नजर नहीं आते होंगे ? क्या उन्होंने कभी सुरक्षा संस्थाओं द्वारा उनका शोषण किया जाता है जानकारी हासिल करने की कोशीश की ? नहीं की ! कोई भी एजेंसी जिसके अधिकार क्षेत्र में २० या उससे ज्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं उन्हें पी एफ की सारी सुविधाएं मिलनी चाहिए, लेकिन इनको कुछ भी नहीं मिलता ! अगर कभी भविष्य निधि संगठन के अधिकारियों को कभी समय मिले तो द्वारका रोहिणी या किसी भी दिल्ली के बड़े पौस कालोनी के किसी भी सोसायटीज में जा कर अपनी नज़रों से देख कर यकीन कर लें की गार्ड नाम धारी ये कौम कितनी दीन हीन और परताडित कौम है !
दिल्ली की मुख्या मंत्री और कांग्रेस/ भा ज पा के नेतागण क्या आपने भी कभी इन गरीब गार्डों को नहीं देखा ? अब तो देख लो, शायद आपकी छोटी सी सहायता उनके बच्चों के मुरझाए चेहरों पर ज़रा सी मुस्कान ला दे और आपका वोट बैंक बन जाए !
Saturday, February 26, 2011
Saturday, February 19, 2011
विश्व कप 2011
विश्व कप २०११ की जिम्मेदारी १९९६ की तरह फिर भारत-श्री लंका और बंगला देश को मिली है ! दंगल शुरू हो चुका है ! पहला मैच भारत और बंगला देश के मध्य शनिवार १९ फरवरी को हुआ था ! बंगला देश ने टास जीता और भारत को बैटिंग के लिए आमंत्रित किया ! भारत की ओपनिंग जोड़ी वीरेन सहवाग और सचीन तन्दुलकर मैदान में उतरे। सचीन २८ रन पर अपनी ही गलती से रन आउट हुए ! भारत का पहला विकेट ३९ पर गिरा ! फिर अपने निजि स्कोर ३९ पर गौतम गंभीर भी पैवेलियन लौट गए ! फिर आए विराट कोहली ! इन दोनों ने भारत के स्कोर को बड़ी तेजी से आगे बढ़ाया ! दूसरा विकेट १५२ पर गिरा था, सहवाग के १७५ (१४ चौके और ५ छके ) और कोहली के १०० (नावाद) की जोड़ी ने स्कोर को ३५५ पर पहुंचाया ! युसूफ पठान के ८ रन जुड़ते ही चौथे विकेट के साथ ५० ओवर पूरे और भारत के ३७० रन पूरे ! २००७ में भारत बंगलादेश से हार गया था और सेमी फाईनल तक भी नहीं पहुँच पाया था ! बंगलादेश २८३ रन ९ विकेट पर ५० ओवरों में बना पाया ! इस तरह भारत विश्व कप का पहला मैच ८७ रनों से जीत गया ! १९८३ में कैप्टेन कपिल देव ने भी १७५ रन बनाए थे विश्व कप में और कप जीत के लाए थे ! कपिल १७५ पर आउट नहीं हुए थे ! उन्होंने केवल १३८ बोलों (१६ चौके और छ छके ) में ही १७५ रन बवाए थे जबकि सहवाग ने १४० बोलें खेली ! भारतीय खिलाड़ियों को फिल्डींग में मेहनत करनी पड़ेगी ! श्रीसंत हमारा सबसे महँगा बौलर रहा, उसने केवल ५ ओवरों में विना विकेट लिए ही ५३ रन बंगलादेश की झोली में डाल दिए ! मुनाफ पटेल ने ४ विकटें ली वहीं जहीर खान ने २ और हरभजन, युसूफ पठान और युवराज ने एक एक विकटें ली ! बंगलादेश की तरफ से इकबाल ने ७० रन बनाए और कैप्टेन शकीब ने ५५ रन बटोरे बाकी सब ४० से नीचे ही रहे ! शुरुआत अच्छी रही, आगे भी जीत भारत की ही होगी !
Sunday, February 13, 2011
चलो भैरों गढ़ी वनाम लंगूरी भैरों
गढ़वाल आठवीं सदी तक ५२ गढ़ियों में बंटा था ! इन ५२ गढ़ियों में एक गढ़ी भैरों गढ़ी भी है ! वैसे पूरा उत्तरा खंड देव भूमि से जाना जाता है ! गंगोत्री, यमनोत्री, गौरी कुण्ड, केदार नाथ, बद्री नाथ, नर-नारायण पर्वत, नील कंठ, जोशीमठ, हरिद्वार, रूद्र प्रयाग, देव प्रयाग, कर्ण प्रयाग, श्री नगर, गुप्त कासी, ऋषिकेश, सहस्त्र धारा, नैनीताल, रानी खेत, कर्वाश्रम और भी बहुत सारे सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक स्थान हैं जिन्हें कुदरत ने खूबसूरती से तरासकर उत्तराखंड की सुन्दरता में चार चाँद लगा दिए हैं ! देश विदेश से असंख्य पर्यटक बड़ी संख्या में यहाँ आते हैं, यहाँ कदम कदम पर मंदिरों में शीश झुकाते हैं, गंगा - यमुना, मंदाकिनी, अलक नंदा, भागीरथी, राम गंगा में डुबकी लगाते हैं ! प्रवतों से गिरते झरने, श्वेत आवरण से लिपटी ऊंची ऊंची पर्वत श्रृंखलाएं, हरे भरे खेत, रंग विरंगे फूलों से महकती फूलों की घाटी में खो कर दिल यहीं छोड़ जाते हैं ! कुछ सैलानी तो ऐसे भी होते हैं जो बार बार इस देव भूमि में आते हैं, कुछ वापिस चले जाते हैं कुछ यहीं के हो कर रह जाते हैं !
इन खूब सूरत पहाड़ियों के ऊपर एक पहाड़ पर एक बहुत प्राचीन मंदिर है "लंगूर भैरों " मंदिर" ! गढ़वाल का एक मात्र रेलवे स्टेशन कोटद्वार से गढ़वाल मोटर ऑनर्स यूनियन की बस द्वारा दुगड्डा, फतेहपुरी, गुमखाल होते हुए केतुखाल में बस से उतरना पड़ता है ! यहाँ से पहाडी पर चढने के लिए मंदिर कमिटी ने सीमेंट रोडी बदरपुर से एक घुमावदार आराम दायक रास्ता शीधे मंदिर के आँगन तक बना रखा है ! पहली फरवरी २०११ मंगलवार को मैं अपनी पत्नी और पुत्र ब्रिजेश के साथ अपनी कार द्वारा एक बजे के लगभग हरिद्वार पहुंचे ! वहां योग गुरु स्वामी राम देव जी के उद्योग नगर पहुंचे जहां १०-१२ एकड़ भूमि पर केवल दवाइयां ही बनती हैं ! एक घंटा यहाँ घूमने में लगा ! फिर पहुंचे गंगा किनारे अलकनंदा होटल, यहाँ ६ घंटे के लिए एक कमरा लिया (किराया ६७५ रुपये), गंगा में स्नान किया, यहीं होटल में भोजन किया और ६ बजे कोटद्वार के लिए चल पड़े ! लुथापुर फैक्टरी में पंडित जी को बुला रखा था, यहीं पूजा की और रात कोटद्वार शोभा के घर पर रहे ! अगले दिन मैं अपनी पत्नी के साथ भैरों गढ़ी मंदिर दर्शन करने के लिए गया ! केतुखाल में चार छ: दुकाने हैं, यहाँ से चढ़ाई चढ़नी शुरू की, बड़े आराम से हम अगले पड़ाव तक पहुंचे ! वहां पर हनुमान जी का और काली माँ का मंदिर है ! यहाँ दर्शन करने के बाद हम पहुंचे भैरों बाबा के मंदिर में ! यहाँ से चारों तरफ दूर दूर तक का नजारा देखने लायक था ! पहाड़ों के ऊपर बसे गाँव, नदी, पर्वत श्रेणियां, पहाड़ों से पीछे लम्बे चौड़े मैदान, जंगल और दौड़ती हुई रेल और सडकों पर दौड़ती हुई बहुत सारी, मोटर, ट्रक, कारें ! मंदिर में पूजा की, पुजारी जी जो बचपन से ही मंदिर से बंधे हैं से मंदिर के बारे जान कारी ली ! यहाँ सब कुछ है, कुदरत की सुन्दरता, सड़क, आराम दायक रास्ते, गाँवों से दूर ऊंचाई पर सजा सजाया मंदिर, लेकिन पानी की समस्या है ! अब स्थानीय लोगों के सहयोग से मंदिर कमिटी के प्रयास से प्रदेश सरकार ने नय्यार नदी से पानी लाने के लिए पाइप लाइन बिछा दी गयी हैं ! लगता है अब जल्दी ही इस पूरे इलाके के साथ साथ सामने लैंसी डाउन की भी पानी की समस्या सुलझ जाएगी !
मंदिर का इतिहास
डाक्टर विष्णुदत्त कुकरेती जी ने अपनी पुस्तक "हिमालयीय संस्कृति की रीढ़ लंगूरी भैरों" में विवरण इस प्रकार दिया है,
डा० कुसुमलता पांडे ने अपने शोध प्रबंध गढ़वाल में लिखा है की 'रात प्रदेश के सात भाई सौरंयाल और नौ भाई कोठियाल नमक खरीदने बनिए की दुकान पर गए ! रात्री में भैरव सौरयाल की कंडी में बैठ गए ! प्रात: उन लोगो ने प्रस्थान किया ! लंगूर गढ़ी में इन्होंने ज्यों ही भोजन बनाकर बांटना प्रारम्भ किया, सात भाइयों का हिस्सा किया तो आठवां हिस्सा अपने आप हो गया ! इस बीच नमक की कंडी फट गयी, भैरव नाथ का लिंग वहां प्रकट हुआ ! इस लिंग के आठ हिस्से हुए जो अष्ट भैरव कहलाए, ये आठों हिस्सों में गिर गए, और उन स्थानों पर इनके मंदिर बन गए ! सबसे पहले मंदिर में हमीं गए थे, हमारे बाद धीरे धीरे लोगों का समूह आता गया ! पुजारी जी कह रहे थे की ख़ास ख़ास पर्वों पर यहाँ अच्छी खासी भीड़ होती है ! श्रद्धालु आते हैं मिन्नतें माँगते हैं और प्रश्नवित होकर अपने घरों को लौटते हैं !
डा० कुसुमलता पांडे ने अपने शोध प्रबंध गढ़वाल में लिखा है की 'रात प्रदेश के सात भाई सौरंयाल और नौ भाई कोठियाल नमक खरीदने बनिए की दुकान पर गए ! रात्री में भैरव सौरयाल की कंडी में बैठ गए ! प्रात: उन लोगो ने प्रस्थान किया ! लंगूर गढ़ी में इन्होंने ज्यों ही भोजन बनाकर बांटना प्रारम्भ किया, सात भाइयों का हिस्सा किया तो आठवां हिस्सा अपने आप हो गया ! इस बीच नमक की कंडी फट गयी, भैरव नाथ का लिंग वहां प्रकट हुआ ! इस लिंग के आठ हिस्से हुए जो अष्ट भैरव कहलाए, ये आठों हिस्सों में गिर गए, और उन स्थानों पर इनके मंदिर बन गए ! सबसे पहले मंदिर में हमीं गए थे, हमारे बाद धीरे धीरे लोगों का समूह आता गया ! पुजारी जी कह रहे थे की ख़ास ख़ास पर्वों पर यहाँ अच्छी खासी भीड़ होती है ! श्रद्धालु आते हैं मिन्नतें माँगते हैं और प्रश्नवित होकर अपने घरों को लौटते हैं !
Saturday, February 12, 2011
इंसान कहाँ जा रहा है
इंसान जब तक जमीन पर है इंसान कहलाता है लेकिन सत्ता की कुर्सी मिलते ही शैतान बन जाता है ! भारत भूमि कभी देव भूमि कही जाती थी आज असुर नगरी कहलाती है, किस नेता पर यकीन करें सबकी जेबें खाली हैं ! सभी मंत्रालय रिश्वतखोर, नौकरशाह करते चाकरी उस उद्योगपति की दुकानदार जमाखोर की जो इनकी जेबें भरता है, काला धन विदेशी बैंकों में बेनाम नाम से करता है ! आय कर वाले छापा मार रहे हैं, बैंकों के लाकर खुलवा रहे हैं, चल अचल सम्पति का व्योरा मांग रहे हैं ! सुरेश कलमाडी, राजा अरबों रुपयों का चुना सरकार पर लगाकर बजा रहे हैं बैंड बाजा ! एक सूचना के मुताबिक़ अकेले राजा ने जब वे केंद्र में मंत्री थे तीन हजार करोड़ रुपयों की घूस ली थी ! सारी राशि अकेले ही डकार गया ! अब कांग्रेस के वरिष्ट नेता और मंत्री उसे बचाने का उपक्रम कर रहे हैं ! कुछ दिन तो ड्रामा चलेगा फिर सारी फाइलें गुम हो जाएँगी और कलमाडी और राजा इज्जत के साथ छोड़ दिए जाएंगे ! फिर मंत्री बनेंगे फिर घोटाला करेंगे और......!
शीला जी ने दिल्ली की मुख्या मंत्री की कुर्सी पर बैठे बैठे १२ साल पूरे कर लिए हैं ! सुनते हैं कांग्रेसी जश्न मनाने जा रहे हैं और महंगाई के तले दबे गरीबोंके जख्मों पर नमक छिड़कने का प्रोग्राम बना रहे हैं ! उधर मिश्र में जनता द्वारा १८ दिनों की क्रान्ति रंग लाई और मिश्र के तानाशाह राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को अपने ३० साल के शासन से रुखसत लेनी पडी ! जनता एक नीरीह गाय की तरह जालिम शासकों प्रशासकों का जुल्म सह सकती है तो अंगार बनकर उन्हें जला भी सकती है ! आखिर कार सता पर चिपकने वाला मुबारक ११ फरवरी २०११ के दिन जनता के आगे घुटने टेक गया ! जनता की जीत हुई मिश्र एक तानाशाह के चंगुल से आजाद हुआ !
भारत देश में सरकार कौन चला रहा है ? मन मोहनसिंह या कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी या फिर राहुल गांधी ?
राहुल गांधी ने बिहार विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को जिताने का बेड़ा उठाया था और ४ सीटें गँवा दी ! अब कांग्रेस राजकुमार यूपी विधान सभा का नेत्रित्व करने जा रहा है, गरीबों की झोपड़ियों में खाता सोता है, जनता वोट किसको देगी आने वाला समय बताएगा ! वैसे जनता अब काफी सजग हो गयी है, इस भ्रष्ट, रिश्वत खोर, जमाखोर, महंगाई बढाने वाली कांग्रेस से अब उसका मोंह भंग हो गया है ! अब शायद ही वह दुबारा सता पर काविज हो पाएगी ! मनमोहन सिंह देश के प्रधान मंत्री आँख रहते भी धृतराष्ट्र बन रहे हैं और एक और महाभारत की व्यूह रचना कर रहे हैं ! उनके मंत्री मंडल में शकुनी, दुशासन, दर्योधन, जयद्रथ जैसे क्रूर भ्रष्ट, दुराचार, अत्याचारी लोग सामिल हैं ! बढ़ रही बबूल की शाखा, होगा वही जो राम रची राखा !
शीला जी ने दिल्ली की मुख्या मंत्री की कुर्सी पर बैठे बैठे १२ साल पूरे कर लिए हैं ! सुनते हैं कांग्रेसी जश्न मनाने जा रहे हैं और महंगाई के तले दबे गरीबोंके जख्मों पर नमक छिड़कने का प्रोग्राम बना रहे हैं ! उधर मिश्र में जनता द्वारा १८ दिनों की क्रान्ति रंग लाई और मिश्र के तानाशाह राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को अपने ३० साल के शासन से रुखसत लेनी पडी ! जनता एक नीरीह गाय की तरह जालिम शासकों प्रशासकों का जुल्म सह सकती है तो अंगार बनकर उन्हें जला भी सकती है ! आखिर कार सता पर चिपकने वाला मुबारक ११ फरवरी २०११ के दिन जनता के आगे घुटने टेक गया ! जनता की जीत हुई मिश्र एक तानाशाह के चंगुल से आजाद हुआ !
भारत देश में सरकार कौन चला रहा है ? मन मोहनसिंह या कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी या फिर राहुल गांधी ?
राहुल गांधी ने बिहार विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को जिताने का बेड़ा उठाया था और ४ सीटें गँवा दी ! अब कांग्रेस राजकुमार यूपी विधान सभा का नेत्रित्व करने जा रहा है, गरीबों की झोपड़ियों में खाता सोता है, जनता वोट किसको देगी आने वाला समय बताएगा ! वैसे जनता अब काफी सजग हो गयी है, इस भ्रष्ट, रिश्वत खोर, जमाखोर, महंगाई बढाने वाली कांग्रेस से अब उसका मोंह भंग हो गया है ! अब शायद ही वह दुबारा सता पर काविज हो पाएगी ! मनमोहन सिंह देश के प्रधान मंत्री आँख रहते भी धृतराष्ट्र बन रहे हैं और एक और महाभारत की व्यूह रचना कर रहे हैं ! उनके मंत्री मंडल में शकुनी, दुशासन, दर्योधन, जयद्रथ जैसे क्रूर भ्रष्ट, दुराचार, अत्याचारी लोग सामिल हैं ! बढ़ रही बबूल की शाखा, होगा वही जो राम रची राखा !
Wednesday, January 26, 2011
युग द्रष्टा गोकुलसिंह नेगी तीसरा भाग
जब ये झीन्डी चौड गए उस वक्त इनकी चार संतान थी भूपेंद्र सिंह और नरेन्द्र सिंह (दो लडके ) और कमला और सरला (दो लड़कियां)! झिन्डी चौड में तीन लडके धीरेन्द्रसिंह, जीतेंद्र सिंह और गजेन्द्र सिंह, एक लड़की बिमला पैदा हुए ! शरीर से तो गोकुलसिंह जी झीन्डी चौड में बस गए थे, यहाँ आकर पानी की समस्या का निदान करना था, झीन्डी चौड को सड़क द्वारा मुख्य सड़क से जोड़ना था, पोस्ट आफिस, राशन की दुकान, बच्चों के लिए स्कूल खोलना, ये सारे कार्य उन्हें ही अपने बल बूते पर करने थे ! रात दिन एक किया, घर में बच्चों को भी देखा और सरकारी कार्यालयों का चक्कर लगाते लगाते इन सारी समस्याओं को भी एक एक करके सुलझाते रहे ! साथ ही उनका मन रूपी भौंरा उड़ उड़ कर देवीखेत की उन पहाड़ियों में चला जाता था जिसको उन्होंने अपने अथक परिश्रम से दुगड्डा ब्लाक का एक मशहूर रमणीक स्थान बना दिया था ! उनका एक स्वप्न था, देवीखेत को मोटर मार्ग द्वारा चेलूसेन से जोड़ना ! और आखिर उनका वह स्वपना भी साकार हुआ १४ जनवरी सन (मकर संक्राती के शुभ दिन पर) १९८४ ई० को जब यू पी रोडवेज की पहली बस देवीखेत पहुँची और उसी दिन उस समय के रक्षा मंत्री
श्री वी पी सिंह जी (ये बाद में सन १९८९ से १९९१ तक भारत के प्रधान मंत्री भी रहे) हेलीकाप्टर से देवीखेत में उतरे थे ! उस दिन उन्होंने मकर संक्राती के गेंद के मेले का भी आनंद लिया !
श्री वी पी सिंह जी (ये बाद में सन १९८९ से १९९१ तक भारत के प्रधान मंत्री भी रहे) हेलीकाप्टर से देवीखेत में उतरे थे ! उस दिन उन्होंने मकर संक्राती के गेंद के मेले का भी आनंद लिया !
उन्हें स्वर्गीय श्री ज्ञानी जैलसिंह द्वारा, जो उस समय के भारत के राष्ट्रपति थे ने ताम्र पात्र देकर सम्मानित किया था ! ये फोटो उसी समय की है !
उन्होंने अपनी सबसे छोटी लड़की बिमला की शादी पेशावर काण्ड के हीरो स्वर्गीय श्री चन्द्रसिंह गढवाली के सुपुत्र के साथ करके गढ़वाल के दो स्वतन्त्र सेनानी परिवारों को आपस में मिला दिया ! उनके बड़े सुपुत्र भूपेंद्र सिंह नेगी आजन्म कम्युनिष्ट पार्टी के जिला स्तर पर जनरल सेक्रेटरी रहे और प्रदेश की सरकार और नेताओं की कुशासन, भ्रष्टाचार, घूस और रिश्वत खोरी के खिलाफ अपने समाचार पत्र "ठहरो" के माध्यम से अपनी आवाज उठाते रहे ! सन १९९७ ई० में अपने काम को अधूरा ही छोड़ कर वे स्वर्ग सिधार गए ! आज उनके अधूरे काम को पूरा करने का संकल्प लेकर उनके बड़े सुपुत्र सुधीन्द्र नेगी अपने समाचार पत्र "ढून्ढूवी'" के माध्यम से आगे बढ़ा रहे हैं ! सन १९९२ ई० में ८९ सालों की संघर्षमय जिन्दगी जीकर वे स्वर्गवासी हुए ! झीन्डी चौड में उनकी झोपडी आज एक पर्यटक स्थल बन गया है ! वे सच्चे देशभक्त थे और जब तक जीए जनता की भलाई और गरीबों को उनका हक़ दिलाने के लिए संघर्ष करते रहे ! देवीखेत में मंदिर की बगल में ही उनकी संग मरमर की प्रतिमा वहां के सभ्रांत स्थानीय लोगों द्वारा लगाई गयी है जो वहां के लोगों का उनके प्रति सम्मान और स्नेह का भाव दर्शाता है ! वे एक सच्चे देश भक्त गरीबों के मसिया, जनता के सेवक, न्याय प्रिय, एक आदर्श युग पुरुष थे, जो आज हमारे बीच नहीं हैं फिर भी उनकी शिक्षा और आदर्श हमें मार्ग दर्शन कराते हैं !
Saturday, January 22, 2011
युग दृष्टा गोकुलसिंह नेगी - भाग दो
देवीखेत ग्राम ढौरी नौबाडी और दिखेत की सीमा पर स्थित पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य घोड़े की काठी जैसी आकृति की बनी एक बहुत ही सुन्दर जगह है ! सन १९४५ ई० तक यहाँ एक प्राईमरी स्कूल ही थी ! प्राईमरी के लिए चौथी कक्षा तक की पढाई होती थी ! चौथी क्लास की परीक्षाएं जिला के शिक्षा विभाग के इन्सपेक्टर की देख रेख में होती थी ! उस जमाने में पांचवीं से सातवीं क्लास को मीडिल कहते थे और इलाके में भ्रीगुखाल, पौखाल और मटियाली ही मीडिल स्कूल थे ! इन स्कूलों में वही बच्चे पढ़ने जा सकते थे जिनके रिश्तेदार इन स्थानों में रहते थे, या कुछ समर्थवान पैसे वाले ही अपने बच्चों को शहरों में भेज देते थे ! एक दिन मेरे मामा जी गोकुलसिंह जी इसी स्थान पर कुछ स्थानीय लोगों के साथ बैठे थे और स्थानीय समस्याओं के बारे में बातें हो रही थी की अचानक उनके दिमाग में एक विचार आया की अगर देवीखेत में ही मीडिल स्कूल खुल जाय तो यहाँ आस पास के बहुत सारे बच्चों को आगे पढ़ने का अवसर मिल जाएगा ! सुझाव तो उपस्थित सब लोगों सुन्दर लगा लेकिन स्कूल की बिल्डिंग बनाने के लिए पैसे कहाँ से आएँगे यह सवाल बड़ा अहम् था ! आनन् फानन में एक स्कूल कमेटी बनाई गयी और श्री गोकुलसिंह जी को इस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया ! लोगों से समपर्क करना, सक्षम लोगों से डोनेसन लेना और गरीबों से श्रमदान की अपील करना ! शुभ दिन और शुभ मुहूर्त पर स्कूल बिल्डिंग की आधार शिला रखी गयी ! धीरे धीरे स्कूल की दीवारें ऊंची उठती चले गयी
सारे स्थानीय लोगों की मेहनत रंग लाई और सन १९४६ ई० में मीडिल स्कूल की पहली पांचवीं क्लास यहाँ शुरू हुई ! मीडिल स्कूल का पहला दस्ता सातवीं की परिक्षा देने जहारीखाल गया था सन १९४८ ई० में ! और आज यही मीडिल स्कूल इंटर कालेज बन गयी है ! अब तो देवीखेत गढ़वाल के नकशे पर अपनी पहिचान बन चुका था ! स्कूल के प्राणागण में उसके बाद हर साल रामलीला होने लगी और रामलीला कमेटी में मामाजी के अलावा आस पास के गाँव की जानी मानी हस्तियाँ थी ! बहुत सालों तक वे परसुराम की भूमिका निभाते रहे ! सन १९५३ ई० में उन्होंने देवीखेत में नुमायस का आयोजन कराकर तहलका मचा दिया था ! आज तो दुनिया बहुत बदल चुकी है लोगों के पास शिक्षा है, रुपया पैसा है, साधन हैं, बिजली है पानी है, लेकिन वह समय बहुत संघर्षमय था ! पैसा नहीं था, साधनों की कमी थी, सरकार खुद गरीब थी इस तरह सरकारी अनुदान नहीं मिलता था ! किसानों से लगान लिया जाता है, आज तो बहुत सारे लोगों को पता भी नहीं है की लगान किस चिड़िया का नाम है ! इन सारे सामाजिक कल्याण कारी कामों के कारण उनकी पहिचान जिला से लेकर प्रदेश तक हो गयी थी ! जनता का स्नेह और वोट उन्हें मिला और वे जिला बोर्ड के सदस्य चुने गए थे ! उस समय के प्रदेश के शिक्षा मंत्री श्री बलदेवसिंह आर्य को देवीखेत बुलवाने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है ! उन्होंने बलदेवसिंह आर्य के साथ चाय नास्ता और भोजन करके छूत अछूत, उंच नीच की दूरी मिटा कर स्थानीय लोगों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया !
दिसम्बर सन १९५३ ई० में उन्होंने अपनी जन्म भूमि ढौरी सदा के लिए छोड़ दी और आ गए भावर झिन्दी चौड ! झिन्दी चौड उन दिनों एक घना जंगल था ! जंगली जानवरों का डर मलेरिया बुखार का खौफ ! उन दिनों मैं भी उनके साथ ही झिन्दी चौड गया था ! दो दिन-रात खुले आसमान के नीचे गुजारे फिर घास पूस की झोपडी बनी ! जंगल काटे गए ! पानी के लिए काफी दूर जाना पड़ता था ! वह समय भी बड़ा संघर्षमय था ! वहां भी उन्होंने समाज कल्याण का काम हाथ में लिया ! सरकारे कार्यलयों के चक्कर लगाए, पानी की व्यवस्था करवाई, सड़क का निर्माण करवाया, पोस्ट आफिस स्कूल खुलवाये !
इस तरह धीरे धीरे दुकाने खुलने लगी, गाँव बसने लगा ! और आज झिन्दी चौड कोटद्वार भावर का एक महत्त्व पूर्ण अंग बन चुका है ! इसके पूरब में पुराणों में वर्णित प्रसिद्ध मालन नदी बहती है और उत्तर में कर्ण्वाश्रम पड़ता है !
आज के झिन्दी चौड को देख कर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है की ५८ साल पहले यह झिन्दी चौड एक भयानक जंगल मात्र था ! इस झिन्दी चौड को ये नया रूप देने का श्रेय भी श्री गोकुलसिंह जी को ही जाता है ! (बाकी अगले भाग में )
सारे स्थानीय लोगों की मेहनत रंग लाई और सन १९४६ ई० में मीडिल स्कूल की पहली पांचवीं क्लास यहाँ शुरू हुई ! मीडिल स्कूल का पहला दस्ता सातवीं की परिक्षा देने जहारीखाल गया था सन १९४८ ई० में ! और आज यही मीडिल स्कूल इंटर कालेज बन गयी है ! अब तो देवीखेत गढ़वाल के नकशे पर अपनी पहिचान बन चुका था ! स्कूल के प्राणागण में उसके बाद हर साल रामलीला होने लगी और रामलीला कमेटी में मामाजी के अलावा आस पास के गाँव की जानी मानी हस्तियाँ थी ! बहुत सालों तक वे परसुराम की भूमिका निभाते रहे ! सन १९५३ ई० में उन्होंने देवीखेत में नुमायस का आयोजन कराकर तहलका मचा दिया था ! आज तो दुनिया बहुत बदल चुकी है लोगों के पास शिक्षा है, रुपया पैसा है, साधन हैं, बिजली है पानी है, लेकिन वह समय बहुत संघर्षमय था ! पैसा नहीं था, साधनों की कमी थी, सरकार खुद गरीब थी इस तरह सरकारी अनुदान नहीं मिलता था ! किसानों से लगान लिया जाता है, आज तो बहुत सारे लोगों को पता भी नहीं है की लगान किस चिड़िया का नाम है ! इन सारे सामाजिक कल्याण कारी कामों के कारण उनकी पहिचान जिला से लेकर प्रदेश तक हो गयी थी ! जनता का स्नेह और वोट उन्हें मिला और वे जिला बोर्ड के सदस्य चुने गए थे ! उस समय के प्रदेश के शिक्षा मंत्री श्री बलदेवसिंह आर्य को देवीखेत बुलवाने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है ! उन्होंने बलदेवसिंह आर्य के साथ चाय नास्ता और भोजन करके छूत अछूत, उंच नीच की दूरी मिटा कर स्थानीय लोगों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया !
दिसम्बर सन १९५३ ई० में उन्होंने अपनी जन्म भूमि ढौरी सदा के लिए छोड़ दी और आ गए भावर झिन्दी चौड ! झिन्दी चौड उन दिनों एक घना जंगल था ! जंगली जानवरों का डर मलेरिया बुखार का खौफ ! उन दिनों मैं भी उनके साथ ही झिन्दी चौड गया था ! दो दिन-रात खुले आसमान के नीचे गुजारे फिर घास पूस की झोपडी बनी ! जंगल काटे गए ! पानी के लिए काफी दूर जाना पड़ता था ! वह समय भी बड़ा संघर्षमय था ! वहां भी उन्होंने समाज कल्याण का काम हाथ में लिया ! सरकारे कार्यलयों के चक्कर लगाए, पानी की व्यवस्था करवाई, सड़क का निर्माण करवाया, पोस्ट आफिस स्कूल खुलवाये !
इस तरह धीरे धीरे दुकाने खुलने लगी, गाँव बसने लगा ! और आज झिन्दी चौड कोटद्वार भावर का एक महत्त्व पूर्ण अंग बन चुका है ! इसके पूरब में पुराणों में वर्णित प्रसिद्ध मालन नदी बहती है और उत्तर में कर्ण्वाश्रम पड़ता है !
आज के झिन्दी चौड को देख कर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है की ५८ साल पहले यह झिन्दी चौड एक भयानक जंगल मात्र था ! इस झिन्दी चौड को ये नया रूप देने का श्रेय भी श्री गोकुलसिंह जी को ही जाता है ! (बाकी अगले भाग में )
Sunday, January 16, 2011
युग द्रष्टा गोकुलसिंह नेगी
मैं, दुगड्डा ब्लाक, तहसील कोटद्वार, गाँव डाडा, पट्टी अजमिर वल्ला जिला पौड़ी गढ़वाल का रहने वाला हूँ ! मेरे गाँव के सामने से हिंवल नदी बहती है जो चेलुसेंण से निकल कर फूलवारी में गंगा में मिल जाती है ! इस नदी की विशेषता यह है की यह उत्तर से निकल कर गंगा में भी उत्तर में ही मिलती है ! मेरे गाँव के पूर्व में डबराल स्यूं पटी में ग्राम ढौरी पड़ता है, यही मेरा मामा कोट है ! मेरी माँ कौशल्यादेवी के दो भाई थे, बड़े श्री प्रतापसिंह नेगी, जो गढ़वाल की एक जानी पहिचानी हस्ती थी ! वे स्वतंत्रता सेनानी थे और बाद में सन १९७१ से १९७७ तक सांसद रहे ! उन्हीं के छोटे भाई थे श्री गोकुलसिंह नेगी ! दुबले पतले हंसमुख चेहरा, खाली जेब पर दिल के धनी, साधनहीन पर गगन छूने की आकांक्षा, गरीब थे पर अमीरों पर भी भारी पड़ते थे ! पढ़े लिखे ज्यादा नहीं थे पर पढ़े लिखों के प्रेरणा श्रोत थे ! शरीर से कृशकाय पर चट्टान से भी टकराने का इरादा रखते थे ! उनकी वाणी में मधुरता थी, पर जरूरत पड़ने पर जोश से भरी थी ! जब वे स्टेज पर खड़े हो जाते थे तो अपनी वाणी और आकर्षक शब्दों से श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध कर देते थे ! वे स्वतन्त्र सेनानी थे, जेल गए जेल की यातनाएं सही ! वे आम जनता के मसीहा थे, स्थानीय लोगों के ही नहीं बल्की दूर दराज के गाँवों के लोगों के दिलों में भी उनके लिए आदर का भाव था और उनकी सेवा भावनाओं का ही असर था की जनता ने उन्हें डिस्ट्रिक बोर्ड के सदस्य के लिए अपना कीमती वोट देकर अपना प्रेम और समर्थन उन्हें दिया ! वे जन्म से गढ़वाली थे, गढ़वाल की सभ्यता, परम्पराएं, भेष भूषा, लोक गीत और पहाडी संस्कृति उनके रग रगों में समाई हुई थी !
बचपन
श्री गोकुलसिंह जी का जन्म सन १९०३ ई० में पौड़ी गढ़वाल जनपत में डबरास्यूं पट्टी के ढौरी गाँव नंदा नेगी परिवार में हुआ था ! उनके पिता जी का नाम श्री लूंगीसिंह था ! एक जनश्रुति के मुताबिक़ सातवीं
आठवीं शताब्दी के लगभग गढ़वाल और कुमायूं पर कैतूर राजाओं का एक छत्र राज था और मेरे मामा जी के पूर्वज सर्व श्री करमदेव जी कैतूर सम्राट के सेनापति थे ! उनकी वीरता, योग्यता, साम्राज्य के प्रति वफादारी और सच्ची निष्ठा के लिए उन्हें मौजूदा ढौरी गाँव और पूरा डाबर का इलाका जागीरदारी में इनाम के तौर पर दिया गया था ! बाद में डाबर गाँव को श्री करम देव जी ने कुल पुरोहिती में ब्राह्मणों को दान में दे दिया था ! इनकी छट्टी पीढी में हिम्मत सिंह नेगी हुए, उनके लडके का नाम तेगसिंह था ! तेगसिंह के दो लडके हुए, गोपालसिंह, लूंगीसिंह ! गोपालसिंह जी के लडके रणजीतसिंह हुए, वे जंगलात विभाग में रेंज अधिकारी थे और जवानी में ही स्वर्गवासी हो गए थे ! उनके पुत्र वीरेन्द्रसिंह जी आज अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ अपनी पुस्तैनी विरासत की देख भाल कर रहे हैं ! दूसरे लडके लूंगी सिंह जी (मेरे नाना जी) के दो पुत्र सर्वश्री प्रतापसिंह, श्री गोकुलसिंह और एक मात्र पुत्री कौश्यल्या देवी (मेरी माँ) हुई थी ! मेरे बड़े मामा श्री प्रतापसिंह जी नेगी गढ़वाल की महान विभूतियों और स्वतन्त्र सैनानियों की प्रथम पंक्ती के राजनैतिक थे ! उन्होंने सांसद के तौर पर संसद में सन १९७१ से १९७७ तक गढ़वाल का प्रतिनिधित्व किया था ! ३१ दिसंबर सन १९८४ ई० में ८८ साल की उम्र में वे स्वर्गवासी हुए ! इनकी तीन लड़कियां शकुन्तला देवी, सुरवाला और विमला और एक लड़का सुरेन्द्रसिंह हुए ! सुरेन्द्रसिंह जी कोटद्वार पौड़ी गढ़वाल में आज अपने पिता जी के नाम की कालोनी "प्रताप नगर" बसा कर वहीं रह रहे हैं ! प्रतापसिंह जी के छोटे भाई गोकुलसिंह जी जो इस लेख के मुख्य पात्र हैं, इनसे सात साल छोटे थे ! जब ये केवल १५ साल के थे माँ चल बसी, कुछ ही दिन बाद उनके पिता जी भी स्वर्वासी हो गए थे ! बचपन के दिन बहुत कष्ट पूर्ण थे ! इनकी छोटी बहींन कौशल्या देवी का विवाह अजमिर पट्टी, ग्राम डाडा, के निवासी श्री लोकसिंह के बड़े पुत्र श्री बख्तावरसिंह के साथ हुआ था ! उनके तीन लडके और एक लड़की हुई !
सर पर माँ बाप का साया नहीं बड़े भाई श्री प्रतापसिंह जी सहारनपुर में सर्विस करते थे बाद में वे कोटद्वार में ही बस गए और इसी को अपनी कर्म भूमि बना दिया ! इस तरह १५ साल की उम्र में ही उन्होंने जिन्दगी के खट्टे मीठे अनुभव कर लिए थे ! बचपन के पहाड़ जैसे कष्टों को का सामना करते करते उनके इरादे भी चट्टान जैसे ही शक्त और मजबूत हो गए थे ! उन्होंने गरीबों की गरीबी देखी, उनके नादान बच्चों के आँखों में बेबसी महसूस की ! वे स्वयं तो प्राइमरी की पढाई भी नहीं कर पाए थे लेकिन वे आने वाली पीढी के हर बच्चे को शिक्षित देखना चाहते थे ! इनकी पत्नी श्रीमती गायत्री देवी (मेरी मामी जी) ने भी कष्टों की चिंता न करते हुए कदम कदम पर मामा जी का साथ दिया ! कही बार ऐसा भी समय आया की जेब में पैसे नहीं थे, घर में राशन नहीं था, लेकिन चहरे पर हर वक्त एक कुदरती मुस्कान रहती थी जो उनके कष्टों और परेशानियों को ढक दिया करती थी, बड़ी बड़ी मुशीबतें स्वयं ही हार मान कर उनके रास्ते से हट जाती थी ! ये कुदरत का ही करिश्मा था की कठीन परस्थितियों में भी वे घबराते नहीं थे ! देश गुलाम था, आजादी के दीवानों ने गुलामी की जंजीर को तोड़ने के लिए बिगुल बजा दिया था ! मेरे दोनों मामा जी भी कूद गए थे आजादी के इस महासंग्राम में ! आजादी के दीवानों को जेल में बंद कर दिया गया, उन्हें जेल में यातनाएं दी गयी, इन्होंने देश को आजाद करने के लिए सब प्रकार के कष्ट और यातनाएं सही ! १५ अगस्त १९४७ ई० को देश आजाद हुआ लेकिन लाला लाजपत राय, सुभाष चन्द्र बोस, भगतसिंह, चन्द्र शेखर आजाद जैसे शहीदों रक्त से नहा कर ! जो जिन्दा रह गए वे स्वतन्त्र सेनानी कहलाये ! देश में अपनी सरकार बनी और मेरे मामाओं को सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी के लिए ताम्र पात्र से सम्मानित किया ! श्री गोकुलसिंह ने स्थानीय लोगों की सहायता से देवीखेत में तिरंगा झंडा फहराकर पहला स्वतंत्रता दिवस बड़े धूम धाम से मनाया ! (बाकी दूसरे भाग में )
बचपन
श्री गोकुलसिंह जी का जन्म सन १९०३ ई० में पौड़ी गढ़वाल जनपत में डबरास्यूं पट्टी के ढौरी गाँव नंदा नेगी परिवार में हुआ था ! उनके पिता जी का नाम श्री लूंगीसिंह था ! एक जनश्रुति के मुताबिक़ सातवीं
आठवीं शताब्दी के लगभग गढ़वाल और कुमायूं पर कैतूर राजाओं का एक छत्र राज था और मेरे मामा जी के पूर्वज सर्व श्री करमदेव जी कैतूर सम्राट के सेनापति थे ! उनकी वीरता, योग्यता, साम्राज्य के प्रति वफादारी और सच्ची निष्ठा के लिए उन्हें मौजूदा ढौरी गाँव और पूरा डाबर का इलाका जागीरदारी में इनाम के तौर पर दिया गया था ! बाद में डाबर गाँव को श्री करम देव जी ने कुल पुरोहिती में ब्राह्मणों को दान में दे दिया था ! इनकी छट्टी पीढी में हिम्मत सिंह नेगी हुए, उनके लडके का नाम तेगसिंह था ! तेगसिंह के दो लडके हुए, गोपालसिंह, लूंगीसिंह ! गोपालसिंह जी के लडके रणजीतसिंह हुए, वे जंगलात विभाग में रेंज अधिकारी थे और जवानी में ही स्वर्गवासी हो गए थे ! उनके पुत्र वीरेन्द्रसिंह जी आज अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ अपनी पुस्तैनी विरासत की देख भाल कर रहे हैं ! दूसरे लडके लूंगी सिंह जी (मेरे नाना जी) के दो पुत्र सर्वश्री प्रतापसिंह, श्री गोकुलसिंह और एक मात्र पुत्री कौश्यल्या देवी (मेरी माँ) हुई थी ! मेरे बड़े मामा श्री प्रतापसिंह जी नेगी गढ़वाल की महान विभूतियों और स्वतन्त्र सैनानियों की प्रथम पंक्ती के राजनैतिक थे ! उन्होंने सांसद के तौर पर संसद में सन १९७१ से १९७७ तक गढ़वाल का प्रतिनिधित्व किया था ! ३१ दिसंबर सन १९८४ ई० में ८८ साल की उम्र में वे स्वर्गवासी हुए ! इनकी तीन लड़कियां शकुन्तला देवी, सुरवाला और विमला और एक लड़का सुरेन्द्रसिंह हुए ! सुरेन्द्रसिंह जी कोटद्वार पौड़ी गढ़वाल में आज अपने पिता जी के नाम की कालोनी "प्रताप नगर" बसा कर वहीं रह रहे हैं ! प्रतापसिंह जी के छोटे भाई गोकुलसिंह जी जो इस लेख के मुख्य पात्र हैं, इनसे सात साल छोटे थे ! जब ये केवल १५ साल के थे माँ चल बसी, कुछ ही दिन बाद उनके पिता जी भी स्वर्वासी हो गए थे ! बचपन के दिन बहुत कष्ट पूर्ण थे ! इनकी छोटी बहींन कौशल्या देवी का विवाह अजमिर पट्टी, ग्राम डाडा, के निवासी श्री लोकसिंह के बड़े पुत्र श्री बख्तावरसिंह के साथ हुआ था ! उनके तीन लडके और एक लड़की हुई !
सर पर माँ बाप का साया नहीं बड़े भाई श्री प्रतापसिंह जी सहारनपुर में सर्विस करते थे बाद में वे कोटद्वार में ही बस गए और इसी को अपनी कर्म भूमि बना दिया ! इस तरह १५ साल की उम्र में ही उन्होंने जिन्दगी के खट्टे मीठे अनुभव कर लिए थे ! बचपन के पहाड़ जैसे कष्टों को का सामना करते करते उनके इरादे भी चट्टान जैसे ही शक्त और मजबूत हो गए थे ! उन्होंने गरीबों की गरीबी देखी, उनके नादान बच्चों के आँखों में बेबसी महसूस की ! वे स्वयं तो प्राइमरी की पढाई भी नहीं कर पाए थे लेकिन वे आने वाली पीढी के हर बच्चे को शिक्षित देखना चाहते थे ! इनकी पत्नी श्रीमती गायत्री देवी (मेरी मामी जी) ने भी कष्टों की चिंता न करते हुए कदम कदम पर मामा जी का साथ दिया ! कही बार ऐसा भी समय आया की जेब में पैसे नहीं थे, घर में राशन नहीं था, लेकिन चहरे पर हर वक्त एक कुदरती मुस्कान रहती थी जो उनके कष्टों और परेशानियों को ढक दिया करती थी, बड़ी बड़ी मुशीबतें स्वयं ही हार मान कर उनके रास्ते से हट जाती थी ! ये कुदरत का ही करिश्मा था की कठीन परस्थितियों में भी वे घबराते नहीं थे ! देश गुलाम था, आजादी के दीवानों ने गुलामी की जंजीर को तोड़ने के लिए बिगुल बजा दिया था ! मेरे दोनों मामा जी भी कूद गए थे आजादी के इस महासंग्राम में ! आजादी के दीवानों को जेल में बंद कर दिया गया, उन्हें जेल में यातनाएं दी गयी, इन्होंने देश को आजाद करने के लिए सब प्रकार के कष्ट और यातनाएं सही ! १५ अगस्त १९४७ ई० को देश आजाद हुआ लेकिन लाला लाजपत राय, सुभाष चन्द्र बोस, भगतसिंह, चन्द्र शेखर आजाद जैसे शहीदों रक्त से नहा कर ! जो जिन्दा रह गए वे स्वतन्त्र सेनानी कहलाये ! देश में अपनी सरकार बनी और मेरे मामाओं को सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी के लिए ताम्र पात्र से सम्मानित किया ! श्री गोकुलसिंह ने स्थानीय लोगों की सहायता से देवीखेत में तिरंगा झंडा फहराकर पहला स्वतंत्रता दिवस बड़े धूम धाम से मनाया ! (बाकी दूसरे भाग में )
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