बैठकर पर्वत शिखर पर,
देखता हूँ बादलों को,
फिरते हैं आवारा बन कर,
हैं डराते बिजली गिराकर,
या वारीश की बुँदे लिए,
आशा का एक दीप दिखाकर !
जब चाहें जिधर जांय,
जैसा चाहे रूप बनाय,
पहुँच जाएंगे अरब ईरान,
या फिर रूस चीन जापान,
राष्ट्रपति भवन आ जाते,
सुरक्षा दल कुछ कह न पाते !
ताजमहल को ढक लेंगे,
जब शाहजहाँ इधर नजर करेंगे !
इन्हें वीजा न पास पोर्ट चाहिए,
दर दर भटकते इन्हें पाइए !
रोक नहीं टोक नहीं,
है हकीकत जोक नहीं !
सिकंदर ने देश जीते,
हिटलर के दिन बीते,
ये इनसे भी डरके ना भागे,
सदा रहे इनसे भी आगे !
पूरे गगन पर राज है इनका,
कल भी था और आज भी इनका !
जिस देश ने गुस्सा दिलाया,
गर्मी ने उसको जलाया,
फिर इतनी वारीष आई,
बाढ़ ने तवाही मचाई !
पर बादल भी खुश नहीं हैं,
इनका अपने पर बस नहीं है !
जब होता आंधी का जोर,
भागे बादल मचाके शोर !
Monday, September 13, 2010
Sunday, September 12, 2010
भूली बिसरी यादें
सन १९७० ई० में मेरी यूनिट मिजोराम में थी ! सब कम्पनियां अलग अलग थी, बटालियन मुख्यालय सेलिंग एक पहाडी के ऊपर था ! जहां पर हमारा मुख्यालय था वह कुदरती पहाडी के ऊपर समतल मैदान जैसा बना था ! यह तीन तरफ से जंगल से ढका था और इसके दक्षिण में उठती हुई पहाडी थी, जिसकी चोटी पर एक गाँव था जिसका नाम था थिनसुथलियां ! हमारी यूनिट की एक कंपनी इसी गाँव में रहती थी ! यहाँ की एक विशेषता थी कि सरकार ने इस प्रदेश के सारे लोगों को पहाड़ों की चोटियों से उतार कर ऐसे गाँव बसाए जो सडकों के किनारें हों, तथा सारे गावों में १२ वीं तक की स्कूल/कालेज, क्लीनिक जहाँ हर समय डा० नर्श और दवाइयों की व्यवस्था हो ! खेल के मैदान ! यहाँ के लोग सारे ईसाई हैं इस तरह हर गाँव में एक एक चर्च भी हैं जहां सारे लोग जवान, बच्चे और बूढ़े हर इतवार को प्रार्थना करने इकट्ठे होते हैं ! काम धंधों के मामले में यहाँ के लोग कुछ कृषि करते हैं और बाकी दुकानदारी, मजदूरी, पुलिस, सेना और अन्य महकमों में नौकरी करते हैं ! यहाँ के लोग मिलनसार और ईमानदार हैं लेकिन जिस किसी ने भी इनके साथ दुश्मनी मोल ले ली तो ये लोग उसे नहीं छोड़ते हैं ! कद काठी में मजबूत और दिलेर हैं ! यहाँ उन दिनों लडकियां ज्यादा थी, लडके कम थे ! लड़कियां बाहर वालों से भी शादी कर लेंगी लेकिन शर्त यह है कि उसे यहीं इन लोगों के बीच रहना पडेगा ! लडके को कप्पी और लडके को कप्पू कहते हैं ! जंगल बहुत घने हैं और इन जंगलों में जीवन दायिनी जडी बूटियों के अलावा जहरीले बेलें भी होती हैं ! इसकी जानकारी देने के लिए यहाँ आने वाली हर सेना की बटालियन के लोगों को एक महीने की जंगल के पेड़ पौधे, पानी की शुद्धता की जांच करने की ट्रेनिंग दी जाती है ! हमारी यूनिट के पूर्व में उतरती हुई पहाडी एक पहाडी नदी की तरफ उतरती थी, और पश्चिम दिशा में प्रदेश की राज धानी आइजोल था ! पानी के चश्मे बहुत सारे हैं लेकिन पीने लायक बहुत कम सोत हैं ! यही कारण है कि यहाँ आकर ज्यादातर जवान पेट के मरीज बन जाते हैं ! वैसे कुदरती सुंदरता बिखरी है चारों ओर ! खाने पीने के मामले में ये लोग मांसहारी हैं और सांप तक भी खा जाते हैं !
यहाँ की एक विशेषता और है कि यहाँ सारा इलाका पहाडी है और इन सपाट पहाड़ों में लोग धान की खेती करते हैं ! यहाँ एक प्रकार का जंगली केला भी होता है जिसका फल छोटी अंगुली के भी आधे के बराबर होता है लेकिन मिठास, एक बार एक केला खा लिया तो ६, ७ घंटे तक इसकी मिठास मुंह में बनी रहेगी !
ऐसे स्थान में तीन साल का समय बिताना बहुत मुश्किल होता है, वशर्ते आपकी एक अच्छी कंपनी न हो ! तो जब हम यहाँ आए तो हमने चार लोगों की एक टीम बनाई जिनकी विचारधाराएं, खान पान, रहन सहन आदतें मेल खा रही थी ! वैसे भी जब आप सेना का अंग बन गए हैं तो समय को एक यादगार बनाने के लिए अपनी कुछ इच्छाओं को भी त्यागना पड़ता है ! कुछ हद तक फ्लेक्षबिलिटी जरूरी है जिन्दगी को मजे से जीने के लिए ! तो हमारी टीम में मैं राजपूत, एक रहीम खान मुसलमान (मुंबई का), एक सरदार हरभजनसिंह और एक ईसाई था नाम था टॉम ! हम चारों शाम को चार या पांच बजे सड़क के साथ साथ कभी उत्तर, कभी दक्षिण दिशा को तो कभी पूर्व तो कभी पश्चिम दिशा में सैर को निकल पड़ते थे ! रहीम खान पेंटर था साथ ही बिना स्कूली शिक्षा लिए वह एक कुदरती आर्टिस्ट कलाकार भी था ! उसकी खूबी थी कि वह चाय पीते पीते सामने वाली की फोटो बना देता था ! उसने एक जंगल का शीन तैयार किया था जहां एक सूखा पेड़ टहनियों के साथ दिखाया गया था, उसके साथ छोटी छोटी झाड़ियाँ, दूरी पर दो तीन हिरन कान खड़े किये हुए और उस पेड़ पर बैठी तीन चार चिड़ियाँ ! यह शीन
इतना आकर्षक बना कि यूनिट के आफिसर्स म्यस, ब्रिगेड मुख्यालय में भी इस शीन को लगाया गया ! एक बार रहीम खान थिनसुथलिया गाँव में चाय पी रहा था ! यहाँ दुकानों में ज्यादातर जवान लड़कियां ही बैठती हैं ! चाय देने वाली भी एक लड़की ही थी, रहीम खान ने चाय पीते पीते एक छोटे से कागज़ पर उस सुन्दर लड़की की तस्वीर बना डाली ! तस्वीर देखकर लड़की ने रहीम खान से चाय के पैसे पच्चीस पैसे तो लिए लेकिन उस समय के पांच रुपये का मुर्गा मुफ्त में दे दिया जिसे हम चारों ने मिल बाँट कर खाया ! सरदार हरभजनसिंह की बात भी न्यारी थी, यूनिट के सब जाट, राजपूत, मुसलमान उससे पंगा लेते थे और उससे प्यारी प्यारी पंजाबी में गाली खाते थे ! सब एक तरफ हो जाते और अकेला सरदार हरभजनसिंह एक लाख के बराबर पड़ता था उन लोगों पर ! न कोई उसकी गालियों को बुरा मानता न हरभजनसिंह ही किसी के मजाक को सीरियस लेता ! उसी तरह टाम जोक सुनाया करता था और खूब हंसाया करता था ! और मैं रोज एक व्यंग कविता बना कर सुनाता था और सबका मनोरंजन करता था ! ये हमारी यारी तब तक जिन्दा रही जब तक हम मिलोराम में रहे ! मिजोराम से निकलते ही हम लोगों की भी अलग अलग जगहों पर पोस्टिंग हो गयी और हम बिछुड़ गए फिर कभी दुबारा नहीं मिल पाए !
यहाँ की एक विशेषता और है कि यहाँ सारा इलाका पहाडी है और इन सपाट पहाड़ों में लोग धान की खेती करते हैं ! यहाँ एक प्रकार का जंगली केला भी होता है जिसका फल छोटी अंगुली के भी आधे के बराबर होता है लेकिन मिठास, एक बार एक केला खा लिया तो ६, ७ घंटे तक इसकी मिठास मुंह में बनी रहेगी !
ऐसे स्थान में तीन साल का समय बिताना बहुत मुश्किल होता है, वशर्ते आपकी एक अच्छी कंपनी न हो ! तो जब हम यहाँ आए तो हमने चार लोगों की एक टीम बनाई जिनकी विचारधाराएं, खान पान, रहन सहन आदतें मेल खा रही थी ! वैसे भी जब आप सेना का अंग बन गए हैं तो समय को एक यादगार बनाने के लिए अपनी कुछ इच्छाओं को भी त्यागना पड़ता है ! कुछ हद तक फ्लेक्षबिलिटी जरूरी है जिन्दगी को मजे से जीने के लिए ! तो हमारी टीम में मैं राजपूत, एक रहीम खान मुसलमान (मुंबई का), एक सरदार हरभजनसिंह और एक ईसाई था नाम था टॉम ! हम चारों शाम को चार या पांच बजे सड़क के साथ साथ कभी उत्तर, कभी दक्षिण दिशा को तो कभी पूर्व तो कभी पश्चिम दिशा में सैर को निकल पड़ते थे ! रहीम खान पेंटर था साथ ही बिना स्कूली शिक्षा लिए वह एक कुदरती आर्टिस्ट कलाकार भी था ! उसकी खूबी थी कि वह चाय पीते पीते सामने वाली की फोटो बना देता था ! उसने एक जंगल का शीन तैयार किया था जहां एक सूखा पेड़ टहनियों के साथ दिखाया गया था, उसके साथ छोटी छोटी झाड़ियाँ, दूरी पर दो तीन हिरन कान खड़े किये हुए और उस पेड़ पर बैठी तीन चार चिड़ियाँ ! यह शीन
इतना आकर्षक बना कि यूनिट के आफिसर्स म्यस, ब्रिगेड मुख्यालय में भी इस शीन को लगाया गया ! एक बार रहीम खान थिनसुथलिया गाँव में चाय पी रहा था ! यहाँ दुकानों में ज्यादातर जवान लड़कियां ही बैठती हैं ! चाय देने वाली भी एक लड़की ही थी, रहीम खान ने चाय पीते पीते एक छोटे से कागज़ पर उस सुन्दर लड़की की तस्वीर बना डाली ! तस्वीर देखकर लड़की ने रहीम खान से चाय के पैसे पच्चीस पैसे तो लिए लेकिन उस समय के पांच रुपये का मुर्गा मुफ्त में दे दिया जिसे हम चारों ने मिल बाँट कर खाया ! सरदार हरभजनसिंह की बात भी न्यारी थी, यूनिट के सब जाट, राजपूत, मुसलमान उससे पंगा लेते थे और उससे प्यारी प्यारी पंजाबी में गाली खाते थे ! सब एक तरफ हो जाते और अकेला सरदार हरभजनसिंह एक लाख के बराबर पड़ता था उन लोगों पर ! न कोई उसकी गालियों को बुरा मानता न हरभजनसिंह ही किसी के मजाक को सीरियस लेता ! उसी तरह टाम जोक सुनाया करता था और खूब हंसाया करता था ! और मैं रोज एक व्यंग कविता बना कर सुनाता था और सबका मनोरंजन करता था ! ये हमारी यारी तब तक जिन्दा रही जब तक हम मिलोराम में रहे ! मिजोराम से निकलते ही हम लोगों की भी अलग अलग जगहों पर पोस्टिंग हो गयी और हम बिछुड़ गए फिर कभी दुबारा नहीं मिल पाए !
Friday, September 10, 2010
मेरी कहानी (इकतीसवां भाग)
जिन्दगी की गाडी चलाती जा रही थी, बीच बीच में स्टेशन आते रहे कोइ छोटे छोटे तो कोइ बड़े बड़े जहां न चाहते हुए भी गाडी रुक जाती थी बिना किसी वजह के, बड़ी बोरियत होती थी इस बेवजह रुकने पर, क्यों की जिन्दगी चलने का नाम है ! चलते ही चलो ! गांधी जी का भी एक नारा था कि ' अगर कोई नहीं है साथ में तो इकला चलो पर चलो' ! १९५६ ई० में जहरीखाल (पौड़ी गढ़वाल) गया हुआ था १२ वीं की परीक्षा देने, उन्हीं दिनों लैंसीडाउन में (गढ़वाल राईफल्स का रेगिमेंटल सेंटर) उस जमाने के एक मात्र सिनेमा हाल में उस समय के मशहूर ऐक्टर, प्रोड्युजर, डाईरेक्टर राजकपूर साहेब की फिल्म चल रही थी "श्री चार सौ बीस " । उसका पहला ही गाना था
'मेरा जूता है जापानी, ये पैंट इंग्लिस्तानी सर पे लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी !
चलना जीवन की कहानी रुकना मौत की निशानी, सर पे लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी ' !
वैसे श्री चार सौ बीस के सारे ही गाने बड़े पौपुलर हुए थे, लेकिन यह गाना देश में ही नहीं विदेशों में भी अपनी अमिट छाप छोड़ गया है ! उस समय इस गाने के मतलब को नहीं समझ पाए थे, लेकिन समय के आंधी तूफानों से भिड़ते, लड़ते, गिरते, पड़ते आगे बढ़ते , एक शब्द, एक लाईन का मतलब समझ में आने लगा ! बचपन भाग रहा है जवानी की तरफ, जवानी भाग रही है अपनी मंजिल की ओर ! जो गिरते हुए भी उठ उठ कर फिर चल रहे हैं, क्यों गिरे थे, उससे कुछ शबक सिख कर बढ़ रहे हैं मंजिल की ओर, अटल विश्वास के साथ, वे जरूर पहुंचते हैं अपनी मंजिल पर ! लेकिन जो राह के बीच में ही रुक जाते हैं, हार जाते हैं, पीछे रह जाते हैं, पछताते हैं ! उस जमाने में वह निरी एक फिल्म थी, गरीब-अमीर की लड़ाई थी ! बड़ों के पास सब कुछ होते हुए भी वे गरीब को ही लूट रहे थे, फिर भी गरीब थे और गरीब लूटते थे फिर भी देते ही थे लेते नहीं थे !
ठीक इसी ट्यून पर एक स्वयंभू प्रोपर्टी डीलर ने किसी किसान की जमीन को बिना उसकी जानकारी के प्लाट काट काट कर सेल करने पर लगा दिया ! अपने पैसों से उसने पक्की सड़कें और नालियां बनाईं ! बड़ी संख्या में लोगों ने प्रीमियम की राशि उसे थमा दी और उसने एक १० रुपये के स्टाम्प्स पेपर पर रसीद बना बनाकर पकड़ा दी खरीददार को ! इस तरह ३० - ४० लाख की पूंजी जमा हो गयी ! जब रजिस्ट्री की बारी आई तो पता चला की ये सब तो एक फ्राड था ! लोगों ने उसकी पिटाई भी की ! पुलिस लाक अप में भी रहा ! लेकिन उसके नाम पर कुछ भी नहीं था ! केस बन नहीं सकता था क्योंकि कोर्ट में केश के सही पेपर की जरूरत पड़ती है, वह किसी के पास नहीं था ! लोग सर पीट रहे हैं और वह मूंछों पर ताव देता घूम रहा है लूटने वालों के घर के आगे से ! मैं भी आगया था इस सज्जन के भेष में दुर्र्जन के झांसे में ! मेरे भी डेढ़ लाख फंस गए थे ! मैंने किसी न किसी तरह से साम दाम दंड भेद से उससे इस राशि के चेक ले लिए जो बाद में बाउंस हो गए ! वकील अच्छा मिल गया, केस ४२० का लगा ! डेढ़ साल तो लगा पर मेरा पैसा मुझे मिल गया ! इस से एक नयी बात सीखने को मिली कि जहां आप मकान दुकान के लिए प्लाट खरीद रहे हैं, पहले पता कर लें कि वह जमीन किसान की ही है न कि पंचायत की जमीन है ! आज कल अफराधों में लिप्त कुछ प्रोपर्टी डीलर डी डी ए की जमीन भी बेच रहे हैं, इसका भी पता कर लें ! वह जमीन क़ानून के दायरे में तो नहीं आ रही है या पहले ही उस पर झगड़ा चल रहा हो ! पूरी जानकारी के बाद ही दिल्ली या दिल्ली के के बाहर शहर या कस्बों में प्लाट खरीदें !
'मेरा जूता है जापानी, ये पैंट इंग्लिस्तानी सर पे लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी !
चलना जीवन की कहानी रुकना मौत की निशानी, सर पे लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी ' !
वैसे श्री चार सौ बीस के सारे ही गाने बड़े पौपुलर हुए थे, लेकिन यह गाना देश में ही नहीं विदेशों में भी अपनी अमिट छाप छोड़ गया है ! उस समय इस गाने के मतलब को नहीं समझ पाए थे, लेकिन समय के आंधी तूफानों से भिड़ते, लड़ते, गिरते, पड़ते आगे बढ़ते , एक शब्द, एक लाईन का मतलब समझ में आने लगा ! बचपन भाग रहा है जवानी की तरफ, जवानी भाग रही है अपनी मंजिल की ओर ! जो गिरते हुए भी उठ उठ कर फिर चल रहे हैं, क्यों गिरे थे, उससे कुछ शबक सिख कर बढ़ रहे हैं मंजिल की ओर, अटल विश्वास के साथ, वे जरूर पहुंचते हैं अपनी मंजिल पर ! लेकिन जो राह के बीच में ही रुक जाते हैं, हार जाते हैं, पीछे रह जाते हैं, पछताते हैं ! उस जमाने में वह निरी एक फिल्म थी, गरीब-अमीर की लड़ाई थी ! बड़ों के पास सब कुछ होते हुए भी वे गरीब को ही लूट रहे थे, फिर भी गरीब थे और गरीब लूटते थे फिर भी देते ही थे लेते नहीं थे !
ठीक इसी ट्यून पर एक स्वयंभू प्रोपर्टी डीलर ने किसी किसान की जमीन को बिना उसकी जानकारी के प्लाट काट काट कर सेल करने पर लगा दिया ! अपने पैसों से उसने पक्की सड़कें और नालियां बनाईं ! बड़ी संख्या में लोगों ने प्रीमियम की राशि उसे थमा दी और उसने एक १० रुपये के स्टाम्प्स पेपर पर रसीद बना बनाकर पकड़ा दी खरीददार को ! इस तरह ३० - ४० लाख की पूंजी जमा हो गयी ! जब रजिस्ट्री की बारी आई तो पता चला की ये सब तो एक फ्राड था ! लोगों ने उसकी पिटाई भी की ! पुलिस लाक अप में भी रहा ! लेकिन उसके नाम पर कुछ भी नहीं था ! केस बन नहीं सकता था क्योंकि कोर्ट में केश के सही पेपर की जरूरत पड़ती है, वह किसी के पास नहीं था ! लोग सर पीट रहे हैं और वह मूंछों पर ताव देता घूम रहा है लूटने वालों के घर के आगे से ! मैं भी आगया था इस सज्जन के भेष में दुर्र्जन के झांसे में ! मेरे भी डेढ़ लाख फंस गए थे ! मैंने किसी न किसी तरह से साम दाम दंड भेद से उससे इस राशि के चेक ले लिए जो बाद में बाउंस हो गए ! वकील अच्छा मिल गया, केस ४२० का लगा ! डेढ़ साल तो लगा पर मेरा पैसा मुझे मिल गया ! इस से एक नयी बात सीखने को मिली कि जहां आप मकान दुकान के लिए प्लाट खरीद रहे हैं, पहले पता कर लें कि वह जमीन किसान की ही है न कि पंचायत की जमीन है ! आज कल अफराधों में लिप्त कुछ प्रोपर्टी डीलर डी डी ए की जमीन भी बेच रहे हैं, इसका भी पता कर लें ! वह जमीन क़ानून के दायरे में तो नहीं आ रही है या पहले ही उस पर झगड़ा चल रहा हो ! पूरी जानकारी के बाद ही दिल्ली या दिल्ली के के बाहर शहर या कस्बों में प्लाट खरीदें !
Wednesday, September 8, 2010
भगवान् अगर हैं तो कहाँ हैं ?
हमारे पुराण, निषद, वेद, रामायण, महाभारत, श्रीभागवत कथा, श्री गीता, ये सभी कहते हैं की "भगवान् हैं, सब जगह व्याप्त है, हर दिल में है " ! कोई कहता है की अगर भगवान सचमुच में है तो वह प्रकट क्यों नहीं होता ? कोई कहता है मैंने भगवान् को अपने अन्दर महसूश किया है ! अब इस बारे में एक छोटी सी कहानी पर ध्यान दें !
एक गुरु के चार चेले थे ! उन्हें वे आश्रम में विद्या का ज्ञान करा रहे थे ! ईश्वर चिंतन, ईश्वर की हजारों आँखें हैं और वे हर एक पर नजर रखते हैं ! जीवों के प्रति दया भाव, सच्च बोलना। अहिंसा, पवित्रता, आदि आदि विषयों की जानकारी दी जाती थी ! जब आश्रम के नियमों के अनुसार पढाई समाप्त हो गयी तो गुरु जी ने इन विद्यार्थियों की परिक्षा लेने की ठानी ! उन्होंने एक दिन प्रात: ही इन चारों चेलों को एक एक कबूतर दिए और कहा , "देखो तुमने ये कबूतर मारने हैं लेकिन ऐसी जगह पर मारने हैं जहां कोई नहीं देख रहा हो !" इन चेलों में से तीन चेलों ने तो कबूतर मार दिए, लेकिन चौथे ने नहीं मारा और वैसे ही जिन्दे कबूतर को लेकर वापिस गुरु जी के पास आ गया ! गुरु जी ने तीनों से प्रश्न किया की जब तुम कबूतर को मार रहे थे उस समय तुम्हे किसी ने नहीं देखा, तीनों ने ना में जबाब दिया ! जब गुरु जी ने चौथे से पूछा की क्या तुम्हे कोई ऐसी जगह नहीं मिली कि जहां तुम्हे कोई नहीं देख रहा हो ? चेला रोते हुए बोला, "गुरु जी मैं गुफा के अन्दर अँधेरे में गया, मकान के अन्दर गया, पेड़ की जड़ में सुरंग में भी गया जहाँ घुप्प अन्धेरा था लेकिन मुझे सब जगह लगा कि उस अँधेरे में भी मुझे दो आँखें घूर रही हैं ! "
गुरु ने कहा वही ईश्वर था और तुम ही सच्चे विद्यार्थी हो जिसने असली विद्या ग्रहण की ! तुमने साक्षात ईश्वर के दर्शन कर दिए ! भला जिन विद्यार्थियों को शिक्षा दी गयी हो 'अहिंसा परमो धर्मा' की वे ही कबूतर मार कर ले आएं तो वे तो नीरे मुर्ख के मुर्ख ही रहे ! भगवान् सब जगह हैं सारा जगत ईश्वर मयी है, वह सबको दर्शन देते हैं ठीक उसी रूप में जैसे इंसान की प्रवृति होती है ! जब राजा जनक के आँगन में सीता स्वयंबर के समय सारे देशों के राजा-महाराजा वहां बैठे थे, उनमें मनुष्य भी थे, सुर भी थे और असुर भी थे ! मनुष्य भगवान राम को देख रहे थे वे मनुष्यों में श्रेष्ठ मनुष्य लग रहेथे, देवताओं को देवताओं में सर्व श्रेष्ठ देवता लग रहे थे, लेकिन राक्षसों को साक्षात विराट रूप धरे महाकाल लग रहे थे ! जैसे इंसान की बुद्धी होगी वैसे ही ईश्वर का स्वरूप उसे नजर आएगा ! जिन्दगी में एक बार वह ईश्वर हर एक के दरवाजे पर दस्तखत देता है कभी साधू सन्यासी का रूप बनाकर कभी भिखारी बनकर, भाग्यवान ज्ञानी भक्त उन्हें पहिचान लेते हैं और दर्शनों का लाभ उठा लेते हैं ! जो भगवान् को नहीं मानते वे भी भगवान् का नाम ले लेते हैं चाहे यही कहते हैं कि "भगवान् नहीं है, कोरी कल्पना है" ! हो सकता है वे भी अपनी जगह सही हों !!
एक गुरु के चार चेले थे ! उन्हें वे आश्रम में विद्या का ज्ञान करा रहे थे ! ईश्वर चिंतन, ईश्वर की हजारों आँखें हैं और वे हर एक पर नजर रखते हैं ! जीवों के प्रति दया भाव, सच्च बोलना। अहिंसा, पवित्रता, आदि आदि विषयों की जानकारी दी जाती थी ! जब आश्रम के नियमों के अनुसार पढाई समाप्त हो गयी तो गुरु जी ने इन विद्यार्थियों की परिक्षा लेने की ठानी ! उन्होंने एक दिन प्रात: ही इन चारों चेलों को एक एक कबूतर दिए और कहा , "देखो तुमने ये कबूतर मारने हैं लेकिन ऐसी जगह पर मारने हैं जहां कोई नहीं देख रहा हो !" इन चेलों में से तीन चेलों ने तो कबूतर मार दिए, लेकिन चौथे ने नहीं मारा और वैसे ही जिन्दे कबूतर को लेकर वापिस गुरु जी के पास आ गया ! गुरु जी ने तीनों से प्रश्न किया की जब तुम कबूतर को मार रहे थे उस समय तुम्हे किसी ने नहीं देखा, तीनों ने ना में जबाब दिया ! जब गुरु जी ने चौथे से पूछा की क्या तुम्हे कोई ऐसी जगह नहीं मिली कि जहां तुम्हे कोई नहीं देख रहा हो ? चेला रोते हुए बोला, "गुरु जी मैं गुफा के अन्दर अँधेरे में गया, मकान के अन्दर गया, पेड़ की जड़ में सुरंग में भी गया जहाँ घुप्प अन्धेरा था लेकिन मुझे सब जगह लगा कि उस अँधेरे में भी मुझे दो आँखें घूर रही हैं ! "
गुरु ने कहा वही ईश्वर था और तुम ही सच्चे विद्यार्थी हो जिसने असली विद्या ग्रहण की ! तुमने साक्षात ईश्वर के दर्शन कर दिए ! भला जिन विद्यार्थियों को शिक्षा दी गयी हो 'अहिंसा परमो धर्मा' की वे ही कबूतर मार कर ले आएं तो वे तो नीरे मुर्ख के मुर्ख ही रहे ! भगवान् सब जगह हैं सारा जगत ईश्वर मयी है, वह सबको दर्शन देते हैं ठीक उसी रूप में जैसे इंसान की प्रवृति होती है ! जब राजा जनक के आँगन में सीता स्वयंबर के समय सारे देशों के राजा-महाराजा वहां बैठे थे, उनमें मनुष्य भी थे, सुर भी थे और असुर भी थे ! मनुष्य भगवान राम को देख रहे थे वे मनुष्यों में श्रेष्ठ मनुष्य लग रहेथे, देवताओं को देवताओं में सर्व श्रेष्ठ देवता लग रहे थे, लेकिन राक्षसों को साक्षात विराट रूप धरे महाकाल लग रहे थे ! जैसे इंसान की बुद्धी होगी वैसे ही ईश्वर का स्वरूप उसे नजर आएगा ! जिन्दगी में एक बार वह ईश्वर हर एक के दरवाजे पर दस्तखत देता है कभी साधू सन्यासी का रूप बनाकर कभी भिखारी बनकर, भाग्यवान ज्ञानी भक्त उन्हें पहिचान लेते हैं और दर्शनों का लाभ उठा लेते हैं ! जो भगवान् को नहीं मानते वे भी भगवान् का नाम ले लेते हैं चाहे यही कहते हैं कि "भगवान् नहीं है, कोरी कल्पना है" ! हो सकता है वे भी अपनी जगह सही हों !!
Tuesday, September 7, 2010
क्या आपने कभी अपने बारे में भी सोचा है ?
जिन्दगी की इस भाग दौड़ में कभी मौक़ा ही नहीं मिला, अपने बारे में सोचने का ! पता ही नहीं चला की कब बचपन आया, कब खुली हवा में पार्क में जाकर दौड़े भागे, गललियों में गिल्ली डंडा खेले, क्रिकेट की बॉल फेंक कर कितनों की खिड़की के शीशे फोड़े, कितने अंकलों की डाट डपट खाई होगी ! नाजुक कंधा बस्ता भारी के बोझ तले, टीचर के होम वर्क से बड़े हुए, स्कूल कालेज की मस्ती, विकास और मंहगाई की आंधी ने दिखाई हर एक को उसकी माली
हस्ती ! कालेज से निकलते ही नौकरी की तलाश ! शादी फिर बच्चे ! रात देर तक घर पहुंचना, फिर सुबह सबेरे जल्दी उठकर वही भाग दौड़, बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजना, बस से नहीं तो स्वयं अपनी कार, मोटर साईकिल, साईकिल या फिर रिक्सा से ! खुद तैयार होकर आफिस के लिए निकलना ! रास्ता ठीक मिल गया तो बिलकुल समय पर दफ्तर में हाजिरी लग जाएगी और अगर जो अमूमन होता ही रहता है, किसी नेता ने जलूस निकाल लिया, कोइ मंत्री परिवार के साथ विदेश यात्रा पर जा रहा है, किसी ब्यूरो क्रिएट या नेता के लड़की या लडके की शादी है और पूरे रोड को सुबह से ही जाम कर दिया गया है, किसी धार्मिक संस्था ने झांकी निकाल ली और सड़क जाम करदी तो ऑफिस से गैरहाजिरी तो होगी ही, साथ ही अपने बॉस की घुड़की सुनने को मिलेगी वह अलग ! जहाँ मिंया बीबी दोनों ही सर्विस पर चले जाते हैं, उनको माई (मेड) चौबीस घंटे के लिए रखनी पड़ती है, ताकी जब बच्चे स्कूल से आएं तो उन्हें वह संभाल सके, अगर माई शरीफ मिल गयी जो आज के ज़माने में मिलनी मुश्किल ही नहीं असंभव भी है, तो आप दफ्तर में मन लगाकर काम कर सकेंगे नहीं तो मन तो घर पर रहेगा फिर जो भी काम करोगे गलत होगा और फिर बॉस की वह सब कुछ सुननी पड़ेगी जिसकी आपने कभी अपेक्षा भी नहीं की होगी ! अब आपके पास दो ही रास्ते बचते हैं या तो बॉस के मुंह पर खरी खोटी सुनाकर अपनी दिल की भड़ास मिटाकर रिजाइन कर दो या फिर निरी गाय बन कर चुप चाप उसकी सुनते रहो, मन ही मन मुस्कराते रहो, बॉस जब थक जाएगा अपने आप चुप हो जाएगा ! यारो वह भी पंच तत्व का इसी धरती का जीव है हमारी तरह ! रात को हारे थके घर आए, किसी रिश्तेदार के लडके का कार्ड आपका इंतज़ार करते मिलेगा ! जाना पडेगा पूरे परिवार के साथ बुलाया है, बच्चे तो खुश हैं लेकिन अगर रिश्तेदार आपकी ससुराल की तरफ का निकला तो बीबी भी खुश पर आपका मुंह लटक जाएगा ! अगर आपका रिश्तेदार निकला तो बी बी का मुंह सूजा सूजा लगेगा ! जेब तो दोनों तरफ से आपकी ही कटनी है और रात खराब होगी सो अलग ! दफ्तर में बोनस मिला, आपने कही दिन पहले ही इस बोनस की राशि का सही सदुपयोग करने की योजना बनाई थी, उसी दिन बच्चों के बैग में होम वर्क की डायरी में स्कूल का एक अतिआवश्यक नोटिस मिला, लिखा था, "इस महीने की पहली तारीख से हर बच्चे की फीस में ५० फी सड़ी इजाफा किया गया है, बिना किसी हो हल्ला के जमा करा दें नहीं तो अपने बच्चे के लिए कोई और स्कूल ढूंढ लें" ! इसी तरह जिन्दगी के नरम गरम थपेड़ों को झेलते हुए समय कब निकल गया, पता भी नहीं चला और ६० साल की उम्र होते ही आपका रिटायरमेंट का दिन आ गया ! शरीर थका थका सा है, लगता है आप ७० पार कर गए हैं !
अब पीछे झाँक कर देखिये इन साठ सालों में आपने इस शरीर को पुष्ट करने में कितना दिन या महीना लगाया ! शरीर अब थक गया है, कही रोग शरीर में अड्डा जमा चुके हैं ! हर दिन डाक्टर की क्लीनिक में जाना पड़ता है, वह भी हैरान है की इतने सारे रोग, इलाज करूं तो शुरू कहाँ से करूं ? फिर वह कोई न कोई गोली देकर पीछा छुड़ा देता है, आपको आराम आ रहा है या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है !
आपकी पड़ोस में जो सज्जन रहते हैं, वे पहले सेना में थे, २० साल की सर्विस होते ही ३८ साल में उन्हें रिटायर कर दिया गया था ! बड़ी भाग दौड़ की एक क्लास फॉर की सर्विस मिली ! उसको भी बच्चों को पढ़ाना था, पेंशन भी कम थी, जो अब वेतन भता मिल रहा था वह भी कम था, उन्हें भी रिश्तेदारियों में शादी-विवाह, जन्म दिन या अन्य समारोहों में भाग लेने जाना पड़ता था ! लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी ! सूरज उदय होने से पहले ये दोनों मिया बीबी उठते, हाथ देखते यह मन्त्र पढ़ते हुए, "कराग्रे लक्ष्मी बसती, कर मध्ये सरस्वती, कर मूले स्थितो बष्णु प्रभाते कर दर्शने" ! दैनिक क्रियाओं से रुक्सत होकर आधा घंटा व्यायाम - योगा करते, एक मील की सैर करके आते, तरो ताजा होकर बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करते, उन्हें स्कूल भेज कर स्वयं भी आफिस ड्यूटी पर चला जाता ! हर किसी से हंस कर बातें करता ! वक्त बेवक्त हर किसी की मदद को हमेशा आगे रहता ! बीबी घर में पास पड़ोस के बच्चों को इकट्ठा करके उन्हें बच्चों के खेल खिलाती, उनका मंनोरंजन करती ! छुट्टी के दिन महिलाओं को दश्कारी की ट्रेनिंग देती जो उसने अपने पति के साथ फ़ौज में रहते हुए सीखी थी ! इस तरह दोनों मियाँ बीबी मिल जुलकर गृहस्थी की गाडी को बिना किसी परेशानी के आगे खींचते चले गए ! आज उनके बच्चे भी स्वस्थ हैं बड़े हो गए हैं, और नौकरी करके माँ बाप का सहारा बन गए हैं ! अब ये सज्जन भी रिटायर हो गए हैं, पर चहरे पर वहीं चिरपरिचित मुस्कान, वही ताजगी, वही फूर्ती, कोई रोग नहीं, ६० पूरे हो चुके हैं लेकिन पचास के लगते हैं ! कारण समय की पावंदी, जल्दी सोना, जल्दी उठना ! सूरज के उदय होने से पहले की लालिमा के दर्शन करना ! अनुशासन, व्यायाम-योग नियमित तौर पर बिना नागा के करना ! वे इस युक्ती पर विश्वास करते हैं की पहले शरीर को थकाओ और फिर आराम करो, मजा आएगा ! वे कालोनी में काफी लोक प्रिय हैं ! कालोनी के हर राग रंग में हमेशा आगे रहते हैं ! क्या यह सब फ़ौजी ट्रेनिंग का कमाल है या कुछ और ? उनका कहना था आप अगर केवल आधा घंटा भी रोज इस शरीर को पुष्ट करने में लगाएंगे तो महीने में १५ घंटे ही लगे और साल में १८० घंटे, यानी ज्यादा से ज्यादा ८ दिन ! क्या जिस शरीर से आपने जिन्दगी की इतनी भारी गाडी खींचनी है, उसके इंजन में आप ८ दिन का ग्रीसिलिन भी नहीं लगा सकते ? बस केवल ८ दिन और जिन्दगी भर की मुस्कान !
हस्ती ! कालेज से निकलते ही नौकरी की तलाश ! शादी फिर बच्चे ! रात देर तक घर पहुंचना, फिर सुबह सबेरे जल्दी उठकर वही भाग दौड़, बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजना, बस से नहीं तो स्वयं अपनी कार, मोटर साईकिल, साईकिल या फिर रिक्सा से ! खुद तैयार होकर आफिस के लिए निकलना ! रास्ता ठीक मिल गया तो बिलकुल समय पर दफ्तर में हाजिरी लग जाएगी और अगर जो अमूमन होता ही रहता है, किसी नेता ने जलूस निकाल लिया, कोइ मंत्री परिवार के साथ विदेश यात्रा पर जा रहा है, किसी ब्यूरो क्रिएट या नेता के लड़की या लडके की शादी है और पूरे रोड को सुबह से ही जाम कर दिया गया है, किसी धार्मिक संस्था ने झांकी निकाल ली और सड़क जाम करदी तो ऑफिस से गैरहाजिरी तो होगी ही, साथ ही अपने बॉस की घुड़की सुनने को मिलेगी वह अलग ! जहाँ मिंया बीबी दोनों ही सर्विस पर चले जाते हैं, उनको माई (मेड) चौबीस घंटे के लिए रखनी पड़ती है, ताकी जब बच्चे स्कूल से आएं तो उन्हें वह संभाल सके, अगर माई शरीफ मिल गयी जो आज के ज़माने में मिलनी मुश्किल ही नहीं असंभव भी है, तो आप दफ्तर में मन लगाकर काम कर सकेंगे नहीं तो मन तो घर पर रहेगा फिर जो भी काम करोगे गलत होगा और फिर बॉस की वह सब कुछ सुननी पड़ेगी जिसकी आपने कभी अपेक्षा भी नहीं की होगी ! अब आपके पास दो ही रास्ते बचते हैं या तो बॉस के मुंह पर खरी खोटी सुनाकर अपनी दिल की भड़ास मिटाकर रिजाइन कर दो या फिर निरी गाय बन कर चुप चाप उसकी सुनते रहो, मन ही मन मुस्कराते रहो, बॉस जब थक जाएगा अपने आप चुप हो जाएगा ! यारो वह भी पंच तत्व का इसी धरती का जीव है हमारी तरह ! रात को हारे थके घर आए, किसी रिश्तेदार के लडके का कार्ड आपका इंतज़ार करते मिलेगा ! जाना पडेगा पूरे परिवार के साथ बुलाया है, बच्चे तो खुश हैं लेकिन अगर रिश्तेदार आपकी ससुराल की तरफ का निकला तो बीबी भी खुश पर आपका मुंह लटक जाएगा ! अगर आपका रिश्तेदार निकला तो बी बी का मुंह सूजा सूजा लगेगा ! जेब तो दोनों तरफ से आपकी ही कटनी है और रात खराब होगी सो अलग ! दफ्तर में बोनस मिला, आपने कही दिन पहले ही इस बोनस की राशि का सही सदुपयोग करने की योजना बनाई थी, उसी दिन बच्चों के बैग में होम वर्क की डायरी में स्कूल का एक अतिआवश्यक नोटिस मिला, लिखा था, "इस महीने की पहली तारीख से हर बच्चे की फीस में ५० फी सड़ी इजाफा किया गया है, बिना किसी हो हल्ला के जमा करा दें नहीं तो अपने बच्चे के लिए कोई और स्कूल ढूंढ लें" ! इसी तरह जिन्दगी के नरम गरम थपेड़ों को झेलते हुए समय कब निकल गया, पता भी नहीं चला और ६० साल की उम्र होते ही आपका रिटायरमेंट का दिन आ गया ! शरीर थका थका सा है, लगता है आप ७० पार कर गए हैं !
अब पीछे झाँक कर देखिये इन साठ सालों में आपने इस शरीर को पुष्ट करने में कितना दिन या महीना लगाया ! शरीर अब थक गया है, कही रोग शरीर में अड्डा जमा चुके हैं ! हर दिन डाक्टर की क्लीनिक में जाना पड़ता है, वह भी हैरान है की इतने सारे रोग, इलाज करूं तो शुरू कहाँ से करूं ? फिर वह कोई न कोई गोली देकर पीछा छुड़ा देता है, आपको आराम आ रहा है या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है !
आपकी पड़ोस में जो सज्जन रहते हैं, वे पहले सेना में थे, २० साल की सर्विस होते ही ३८ साल में उन्हें रिटायर कर दिया गया था ! बड़ी भाग दौड़ की एक क्लास फॉर की सर्विस मिली ! उसको भी बच्चों को पढ़ाना था, पेंशन भी कम थी, जो अब वेतन भता मिल रहा था वह भी कम था, उन्हें भी रिश्तेदारियों में शादी-विवाह, जन्म दिन या अन्य समारोहों में भाग लेने जाना पड़ता था ! लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी ! सूरज उदय होने से पहले ये दोनों मिया बीबी उठते, हाथ देखते यह मन्त्र पढ़ते हुए, "कराग्रे लक्ष्मी बसती, कर मध्ये सरस्वती, कर मूले स्थितो बष्णु प्रभाते कर दर्शने" ! दैनिक क्रियाओं से रुक्सत होकर आधा घंटा व्यायाम - योगा करते, एक मील की सैर करके आते, तरो ताजा होकर बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करते, उन्हें स्कूल भेज कर स्वयं भी आफिस ड्यूटी पर चला जाता ! हर किसी से हंस कर बातें करता ! वक्त बेवक्त हर किसी की मदद को हमेशा आगे रहता ! बीबी घर में पास पड़ोस के बच्चों को इकट्ठा करके उन्हें बच्चों के खेल खिलाती, उनका मंनोरंजन करती ! छुट्टी के दिन महिलाओं को दश्कारी की ट्रेनिंग देती जो उसने अपने पति के साथ फ़ौज में रहते हुए सीखी थी ! इस तरह दोनों मियाँ बीबी मिल जुलकर गृहस्थी की गाडी को बिना किसी परेशानी के आगे खींचते चले गए ! आज उनके बच्चे भी स्वस्थ हैं बड़े हो गए हैं, और नौकरी करके माँ बाप का सहारा बन गए हैं ! अब ये सज्जन भी रिटायर हो गए हैं, पर चहरे पर वहीं चिरपरिचित मुस्कान, वही ताजगी, वही फूर्ती, कोई रोग नहीं, ६० पूरे हो चुके हैं लेकिन पचास के लगते हैं ! कारण समय की पावंदी, जल्दी सोना, जल्दी उठना ! सूरज के उदय होने से पहले की लालिमा के दर्शन करना ! अनुशासन, व्यायाम-योग नियमित तौर पर बिना नागा के करना ! वे इस युक्ती पर विश्वास करते हैं की पहले शरीर को थकाओ और फिर आराम करो, मजा आएगा ! वे कालोनी में काफी लोक प्रिय हैं ! कालोनी के हर राग रंग में हमेशा आगे रहते हैं ! क्या यह सब फ़ौजी ट्रेनिंग का कमाल है या कुछ और ? उनका कहना था आप अगर केवल आधा घंटा भी रोज इस शरीर को पुष्ट करने में लगाएंगे तो महीने में १५ घंटे ही लगे और साल में १८० घंटे, यानी ज्यादा से ज्यादा ८ दिन ! क्या जिस शरीर से आपने जिन्दगी की इतनी भारी गाडी खींचनी है, उसके इंजन में आप ८ दिन का ग्रीसिलिन भी नहीं लगा सकते ? बस केवल ८ दिन और जिन्दगी भर की मुस्कान !
Sunday, September 5, 2010
एक सन्देश - देश के नागरिकों के नाम
हमारा भारत देश एक महान देश है, इसकी संस्कृति और सभ्यता की जड़ें बहुत गहरी हैं ! इसकी समृद्धि की चर्चा विदेशों में भी होती थी और यही कारण था की विदेशी बार बार यहाँ आते रहे, मार काट करते रहे, लुटेरे धन दौलत लूट के ले जाते रहे और असमर्थ, साधनहीन विदेशी यहीं बस जाते थे ! तुर्कों का आक्रमण हुआ, मंगोलों ने आकर मार काट की, अफगान आये मुग़ल आये ! लाखों लोग हर आक्रमण में मरते रहे, कटते रहे, लुटते रहे ! जोर जबरदस्ती धर्म परिवर्तन होते रहे ! १०९२ की तराई के युद्ध में पृथ्वी राज चौहान के बाद मोहम्मद गोरी तो मार काट, लूट पाट करके वापिस गौर देश चला गया और पीछे छोड़ गया अपना गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को यहाँ का शासक बनाकर ! १७५७ ई० में अंग्रेजों ने बंगाल के शासक शिराजुद्दीन को मार कर भारत में अपने पैर जमाने शुरू कर दिए थे ! कोलंबस जो भारत की धन सम्पति के लालच में इंडिया की जगह अमेरिका पहुँच गया ! फ्रांस, पुर्तगाल, स्पेन, डच, ब्रिटेन ये तमाम यूरोपियन लोग समय समय पर भारत आते रहे व्यापारी बन कर और यहाँ के लोगों की आपस की लड़ाई, सज्जनता और सीधेपन का फ़ायदा उठाकर पूरे देश को ही हड़प कर गए ! १८५७ ई० का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ने तो रही सही कसर पूरी कर दी और अंग्रेज हिन्दुस्तानी राजा, महाराजाओं को आपस में लड़वा कर यहाँ के सर्वे सर्वा बन गए ! अगर हम लोग अपने निजी स्वार्थों के कारण आपस में नहीं लड़ते, आपस में मिल कर विदेशी लुटेरों का मुकाबला करते तो क्या देश १०९२ से लेकर १९४७ई० तक गुलाम बन कर रहता ?हमारे पास आत्मिक बल था, ताकत थी, तकनीक थी, विज्ञान था, इंसानियत थी लेकिन इतना होने के बावजूद हमारे पास एकता नहीं थी ! पड़ोसी ने अपने पड़ोसी की समय पर सहायता करना तो दूर, उसको मरवाने में दुश्मन का साथ दिया, नतीजा अगली बार जब उसकी बारी आई तो उसको बचाने कौन आता ? लाखों की कुर्बानियां देकर यह आजादी हमने हासिल की है ! बड़े बड़े देश के रत्न हमने स्वतंत्रता की बली बेदी पर चदा दिए, ६३ साल स्वतंत्र हुए भी हो गए ! आम आदमी को क्या मिला पांच साल में एक बार वोट देने का अधिकार, वह भी नेता की गुंडागर्दी के आगे लाचार हो जाता है !
सारा देश खुश था, "हम आजाद हो गए, "! लेकिन स्वप्न भग्न हो गया पहले अंग्रेजों के गुलाम थे अब नेताओं के ! गरीब तो गरीबी रेखा से भी नीचे चला गया, नेता आसमान की नीलीमा को छू रहा है ! इनके बेनामी खाते स्वीस बैंक में अरबों का देश से चुराया हुआ पैसा जमा है ! मजे की बात यह है की सरकार जानते हुए भी इसे वापिस नहीं मंगा पा रही ! कल तक जो देश गरीबी से उभरने के लिए भारत की समृद्धि देख देख कर ललचाया करते थे, वे ही आज हमारे सामने ऊंचे हो गए और हम, नेता कहते हैं भारत विकासशील देश है ! इस बात कभी पर किसी ने विचार किया है की आखिर इसका कारण क्या है ? हम दुनिया की रेस में हर बार पिछड़ क्यों रहे हैं ? लूट खशोट, रिश्वतवाजी, घूसखोरी, भ्रष्टाचार ! भाई भतीजा बाद, सता पर पैत्रिक अधिकार ! दादा प्रधान मंत्री तो, बाप भी और फिर पोता भी प्रधान मंत्री बनेगा ! संसद सदस्य की सीट एक बाद हथिया ली तो फिर लड़का ही एम पी बनेगा ! और देश की जनता आज भी उतनी ही भोली है जितनी पहले थी ! क्यों देते हैं ये लोग उसी परिवार को वोट !
अब हमें अपने दिल दिमाग का इस्तेमाल करना होगा ! क्षेत्रवाद, भाई भतीजा वाद, जातिवाद, धर्मवाद, पार्टीवाद से ऊपर उठकर देश की सुख समृद्धि पर विचार करना पडेगा ! मिलकर चलो ! अधिकारों के लिए लड़ो !
सबसे पहले देश उसके बाद, प्रदेश, जिला, तहसील का ध्यान रखो ! विदेशों में एक हिन्दुस्तानी दूसरे हिन्दुस्तानी से मिलता है, परिचय पूछेगा, " कहाँ के हो, पंजाबी हो, बंगाली हो, गुजराती हो, बिहारी, उडीया, छतीसगढ़ी, झारखंडी या उत्तराखंडी हो ? पहले भारतीय हैं फिर, महाराष्ट्रीयन, मद्रासी, कर्नाटकी या और कोई हैं ! अगर हम सब मिलकर हिन्दुस्तानी बन जांय, उंच नीच, जाति पांति, हिन्दू मुसलिम, सिख ईसाई के बंधनों से ऊपर उठ जांय तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा ख़्वाब की हम विश्व में नंबर वन बनेंगे पूरा होने में देर नहीं लगेगी ! क्रिकेट की तरह ओलम्पिक, एशियाड, में चीन की तरह हमारे भी आँगन में गोल्ड और सिल्वर के मैडल गिरेंगे !
सारा देश खुश था, "हम आजाद हो गए, "! लेकिन स्वप्न भग्न हो गया पहले अंग्रेजों के गुलाम थे अब नेताओं के ! गरीब तो गरीबी रेखा से भी नीचे चला गया, नेता आसमान की नीलीमा को छू रहा है ! इनके बेनामी खाते स्वीस बैंक में अरबों का देश से चुराया हुआ पैसा जमा है ! मजे की बात यह है की सरकार जानते हुए भी इसे वापिस नहीं मंगा पा रही ! कल तक जो देश गरीबी से उभरने के लिए भारत की समृद्धि देख देख कर ललचाया करते थे, वे ही आज हमारे सामने ऊंचे हो गए और हम, नेता कहते हैं भारत विकासशील देश है ! इस बात कभी पर किसी ने विचार किया है की आखिर इसका कारण क्या है ? हम दुनिया की रेस में हर बार पिछड़ क्यों रहे हैं ? लूट खशोट, रिश्वतवाजी, घूसखोरी, भ्रष्टाचार ! भाई भतीजा बाद, सता पर पैत्रिक अधिकार ! दादा प्रधान मंत्री तो, बाप भी और फिर पोता भी प्रधान मंत्री बनेगा ! संसद सदस्य की सीट एक बाद हथिया ली तो फिर लड़का ही एम पी बनेगा ! और देश की जनता आज भी उतनी ही भोली है जितनी पहले थी ! क्यों देते हैं ये लोग उसी परिवार को वोट !
अब हमें अपने दिल दिमाग का इस्तेमाल करना होगा ! क्षेत्रवाद, भाई भतीजा वाद, जातिवाद, धर्मवाद, पार्टीवाद से ऊपर उठकर देश की सुख समृद्धि पर विचार करना पडेगा ! मिलकर चलो ! अधिकारों के लिए लड़ो !
सबसे पहले देश उसके बाद, प्रदेश, जिला, तहसील का ध्यान रखो ! विदेशों में एक हिन्दुस्तानी दूसरे हिन्दुस्तानी से मिलता है, परिचय पूछेगा, " कहाँ के हो, पंजाबी हो, बंगाली हो, गुजराती हो, बिहारी, उडीया, छतीसगढ़ी, झारखंडी या उत्तराखंडी हो ? पहले भारतीय हैं फिर, महाराष्ट्रीयन, मद्रासी, कर्नाटकी या और कोई हैं ! अगर हम सब मिलकर हिन्दुस्तानी बन जांय, उंच नीच, जाति पांति, हिन्दू मुसलिम, सिख ईसाई के बंधनों से ऊपर उठ जांय तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा ख़्वाब की हम विश्व में नंबर वन बनेंगे पूरा होने में देर नहीं लगेगी ! क्रिकेट की तरह ओलम्पिक, एशियाड, में चीन की तरह हमारे भी आँगन में गोल्ड और सिल्वर के मैडल गिरेंगे !
Saturday, September 4, 2010
आसन योग विज्ञान
योग एक जीने की कला है ! मैं उस योग की बात नहीं कर रहा हूँ, जो बड़े बड़े योगी, ऋषि, मुनि, ज्ञानी, ध्यानी लोगों द्वारा अपनाया जाता है ! मैं केवल आम लोगों द्वारा अपनाया हुआ योग की बात कर हूँ, जिससे आम आदमी भी समय का पावंद होते हुए, बाबा रामदेव द्वारा चलाए गए इस अभियान का हिस्सा बन जांय ! बचपन मस्ती का नाम है लेकिन आज तो हालत यह है की बच्चा डेढ़ या ज्यादा से ज्यादा दो साल का हुआ की उसे स्कूल में भरती कर दिया जाता है ! एक बस्ता उसके कंधे पर बांध दिया जाता है ! नाजुक कंधे बस्ता भारी ! ३ - ४ घंटे वह वहां रहता है, माँ बाप को काम पर जाना होता है ! घरों में काम वाली बच्चों को देखने के लिए रखी जाती है, बच्चों को कब खाना खिलाना है, कब पानी पिलाना है, कब उन्हें पार्क में भेजना है, ये सब काम वाली के ऊपर छोड़ दिया जाता है ! मासूम बच्चे अपना बचपन ऐसे माहोल में बिताते हैं ! जो संस्कार उन्हें माँ बाप से मिलने चाहिए, उसे वे वंचित रह जाते हैं ! आज तो आलम यह है कुछ बच्चों को अपने दादा जी का भी नाम मालूम नहीं है ! हमारी सभ्यता संस्कृति जिसपर हम अभिमान करते हैं धीरे धीरे हमसे जुदा हो रही है ! इस भारतीय संस्कृति, सभ्यता का नाम है योग, जहां हम आचार, व्यवहार, यम, नियम, अस्तेय, अपरिग्रह संतोष और स्वाध्याय से साक्षात्कार होते हैं !
वैसे भी दिन भर की भाग दौड़, शाम को हारे थके घर आये, बच्चे चिपक जाएंगे, फिर समय ऐसे ही निकल जाता है, पता भी नहीं लगता शरीर का कौन सा अंग आपसे दगा करने लग गया है, जब पता चलता है बहुत देर हो जाती है ! डाक्टर का बिल भरते चलो, दवा से ज़रा सा आराम मिला फिर वही हालात ! आज इस मशीनी युग में हर कोई किसी न किसी रोग से पीड़ित है, बूढ़े ही नहीं, जवान और बच्चे भी ! दिमागी टेंशन, हाई ब्लड प्रेशर, सुगर, कब्जियत, पेशाब में रुकावट, गुर्दों की खराबी, कमर में दर्द, गर्दन का दर्द, गले में खराबी, कमजोरी, भूख न लगना, ऐसे ही बहुत सारी बीमारियाँ ! आज गुरु रामदेव जी जो अभियान चला रहे हैं वह सब आम जनता को इन कष्टों से छुटकारा देने के लिए है ! टी वी पर प्रोग्राम आते हैं, योग गुरु श्री तिवारी जी भी जी टी वी पर अपना प्रोग्राम देते हैं ! उठिए जागिए, समय रहते आपके पास पड़ोस में पार्कों में किसी न किसी संस्था द्वारा योग की क्लासें चलाई जा रही हैं ! आधा घंटा भी आप रोज योगा - व्यायाम करेंगे, रोग स्वयं ही आपसे किनारा करने लगेगा ! बुढापा आपके नजदीक भी नहीं आएगा ! यहाँ आपको योगासन, प्राणायाम, नेत्र सुरक्षा व्यायाम की शिक्षा दी जाती है ! अरे आज तो विदेशों में भी भारतीय योग संस्थान, पतंजलि योग संस्थान द्वारा योगा क्लासें चलाई जा रही हैं, उठिए देखिए और इसमें शामिल हो जाइए ! "ओउम"
वैसे भी दिन भर की भाग दौड़, शाम को हारे थके घर आये, बच्चे चिपक जाएंगे, फिर समय ऐसे ही निकल जाता है, पता भी नहीं लगता शरीर का कौन सा अंग आपसे दगा करने लग गया है, जब पता चलता है बहुत देर हो जाती है ! डाक्टर का बिल भरते चलो, दवा से ज़रा सा आराम मिला फिर वही हालात ! आज इस मशीनी युग में हर कोई किसी न किसी रोग से पीड़ित है, बूढ़े ही नहीं, जवान और बच्चे भी ! दिमागी टेंशन, हाई ब्लड प्रेशर, सुगर, कब्जियत, पेशाब में रुकावट, गुर्दों की खराबी, कमर में दर्द, गर्दन का दर्द, गले में खराबी, कमजोरी, भूख न लगना, ऐसे ही बहुत सारी बीमारियाँ ! आज गुरु रामदेव जी जो अभियान चला रहे हैं वह सब आम जनता को इन कष्टों से छुटकारा देने के लिए है ! टी वी पर प्रोग्राम आते हैं, योग गुरु श्री तिवारी जी भी जी टी वी पर अपना प्रोग्राम देते हैं ! उठिए जागिए, समय रहते आपके पास पड़ोस में पार्कों में किसी न किसी संस्था द्वारा योग की क्लासें चलाई जा रही हैं ! आधा घंटा भी आप रोज योगा - व्यायाम करेंगे, रोग स्वयं ही आपसे किनारा करने लगेगा ! बुढापा आपके नजदीक भी नहीं आएगा ! यहाँ आपको योगासन, प्राणायाम, नेत्र सुरक्षा व्यायाम की शिक्षा दी जाती है ! अरे आज तो विदेशों में भी भारतीय योग संस्थान, पतंजलि योग संस्थान द्वारा योगा क्लासें चलाई जा रही हैं, उठिए देखिए और इसमें शामिल हो जाइए ! "ओउम"
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