Monday, September 13, 2010

बादल

बैठकर पर्वत शिखर पर,
देखता हूँ बादलों को,
फिरते हैं आवारा बन कर,
हैं डराते बिजली गिराकर,
या वारीश की बुँदे लिए,
आशा का एक दीप दिखाकर !
जब चाहें जिधर जांय,
जैसा चाहे रूप बनाय,
पहुँच जाएंगे अरब ईरान,
या फिर रूस चीन जापान,
राष्ट्रपति भवन आ जाते,
सुरक्षा दल कुछ कह न पाते !
ताजमहल को ढक लेंगे,
जब शाहजहाँ इधर नजर करेंगे !
इन्हें वीजा न पास पोर्ट चाहिए,
दर दर भटकते इन्हें पाइए !
रोक नहीं टोक नहीं,
है हकीकत जोक नहीं !
सिकंदर ने देश जीते,
हिटलर के दिन बीते,
ये इनसे भी डरके ना भागे,
सदा रहे इनसे भी आगे !
पूरे गगन पर राज है इनका,
कल भी था और आज भी इनका !
जिस देश ने गुस्सा दिलाया,
गर्मी ने उसको जलाया,
फिर इतनी वारीष आई,
बाढ़ ने तवाही मचाई !
पर बादल भी खुश नहीं हैं,
इनका अपने पर बस नहीं है !
जब होता आंधी का जोर,
भागे बादल मचाके शोर !

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