बैठकर पर्वत शिखर पर,
देखता हूँ बादलों को,
फिरते हैं आवारा बन कर,
हैं डराते बिजली गिराकर,
या वारीश की बुँदे लिए,
आशा का एक दीप दिखाकर !
जब चाहें जिधर जांय,
जैसा चाहे रूप बनाय,
पहुँच जाएंगे अरब ईरान,
या फिर रूस चीन जापान,
राष्ट्रपति भवन आ जाते,
सुरक्षा दल कुछ कह न पाते !
ताजमहल को ढक लेंगे,
जब शाहजहाँ इधर नजर करेंगे !
इन्हें वीजा न पास पोर्ट चाहिए,
दर दर भटकते इन्हें पाइए !
रोक नहीं टोक नहीं,
है हकीकत जोक नहीं !
सिकंदर ने देश जीते,
हिटलर के दिन बीते,
ये इनसे भी डरके ना भागे,
सदा रहे इनसे भी आगे !
पूरे गगन पर राज है इनका,
कल भी था और आज भी इनका !
जिस देश ने गुस्सा दिलाया,
गर्मी ने उसको जलाया,
फिर इतनी वारीष आई,
बाढ़ ने तवाही मचाई !
पर बादल भी खुश नहीं हैं,
इनका अपने पर बस नहीं है !
जब होता आंधी का जोर,
भागे बादल मचाके शोर !
Monday, September 13, 2010
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