जिन्दगी की गाडी चलाती जा रही थी, बीच बीच में स्टेशन आते रहे कोइ छोटे छोटे तो कोइ बड़े बड़े जहां न चाहते हुए भी गाडी रुक जाती थी बिना किसी वजह के, बड़ी बोरियत होती थी इस बेवजह रुकने पर, क्यों की जिन्दगी चलने का नाम है ! चलते ही चलो ! गांधी जी का भी एक नारा था कि ' अगर कोई नहीं है साथ में तो इकला चलो पर चलो' ! १९५६ ई० में जहरीखाल (पौड़ी गढ़वाल) गया हुआ था १२ वीं की परीक्षा देने, उन्हीं दिनों लैंसीडाउन में (गढ़वाल राईफल्स का रेगिमेंटल सेंटर) उस जमाने के एक मात्र सिनेमा हाल में उस समय के मशहूर ऐक्टर, प्रोड्युजर, डाईरेक्टर राजकपूर साहेब की फिल्म चल रही थी "श्री चार सौ बीस " । उसका पहला ही गाना था
'मेरा जूता है जापानी, ये पैंट इंग्लिस्तानी सर पे लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी !
चलना जीवन की कहानी रुकना मौत की निशानी, सर पे लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी ' !
वैसे श्री चार सौ बीस के सारे ही गाने बड़े पौपुलर हुए थे, लेकिन यह गाना देश में ही नहीं विदेशों में भी अपनी अमिट छाप छोड़ गया है ! उस समय इस गाने के मतलब को नहीं समझ पाए थे, लेकिन समय के आंधी तूफानों से भिड़ते, लड़ते, गिरते, पड़ते आगे बढ़ते , एक शब्द, एक लाईन का मतलब समझ में आने लगा ! बचपन भाग रहा है जवानी की तरफ, जवानी भाग रही है अपनी मंजिल की ओर ! जो गिरते हुए भी उठ उठ कर फिर चल रहे हैं, क्यों गिरे थे, उससे कुछ शबक सिख कर बढ़ रहे हैं मंजिल की ओर, अटल विश्वास के साथ, वे जरूर पहुंचते हैं अपनी मंजिल पर ! लेकिन जो राह के बीच में ही रुक जाते हैं, हार जाते हैं, पीछे रह जाते हैं, पछताते हैं ! उस जमाने में वह निरी एक फिल्म थी, गरीब-अमीर की लड़ाई थी ! बड़ों के पास सब कुछ होते हुए भी वे गरीब को ही लूट रहे थे, फिर भी गरीब थे और गरीब लूटते थे फिर भी देते ही थे लेते नहीं थे !
ठीक इसी ट्यून पर एक स्वयंभू प्रोपर्टी डीलर ने किसी किसान की जमीन को बिना उसकी जानकारी के प्लाट काट काट कर सेल करने पर लगा दिया ! अपने पैसों से उसने पक्की सड़कें और नालियां बनाईं ! बड़ी संख्या में लोगों ने प्रीमियम की राशि उसे थमा दी और उसने एक १० रुपये के स्टाम्प्स पेपर पर रसीद बना बनाकर पकड़ा दी खरीददार को ! इस तरह ३० - ४० लाख की पूंजी जमा हो गयी ! जब रजिस्ट्री की बारी आई तो पता चला की ये सब तो एक फ्राड था ! लोगों ने उसकी पिटाई भी की ! पुलिस लाक अप में भी रहा ! लेकिन उसके नाम पर कुछ भी नहीं था ! केस बन नहीं सकता था क्योंकि कोर्ट में केश के सही पेपर की जरूरत पड़ती है, वह किसी के पास नहीं था ! लोग सर पीट रहे हैं और वह मूंछों पर ताव देता घूम रहा है लूटने वालों के घर के आगे से ! मैं भी आगया था इस सज्जन के भेष में दुर्र्जन के झांसे में ! मेरे भी डेढ़ लाख फंस गए थे ! मैंने किसी न किसी तरह से साम दाम दंड भेद से उससे इस राशि के चेक ले लिए जो बाद में बाउंस हो गए ! वकील अच्छा मिल गया, केस ४२० का लगा ! डेढ़ साल तो लगा पर मेरा पैसा मुझे मिल गया ! इस से एक नयी बात सीखने को मिली कि जहां आप मकान दुकान के लिए प्लाट खरीद रहे हैं, पहले पता कर लें कि वह जमीन किसान की ही है न कि पंचायत की जमीन है ! आज कल अफराधों में लिप्त कुछ प्रोपर्टी डीलर डी डी ए की जमीन भी बेच रहे हैं, इसका भी पता कर लें ! वह जमीन क़ानून के दायरे में तो नहीं आ रही है या पहले ही उस पर झगड़ा चल रहा हो ! पूरी जानकारी के बाद ही दिल्ली या दिल्ली के के बाहर शहर या कस्बों में प्लाट खरीदें !
Friday, September 10, 2010
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