Wednesday, September 8, 2010

भगवान् अगर हैं तो कहाँ हैं ?

हमारे पुराण, निषद, वेद, रामायण, महाभारत, श्रीभागवत कथा, श्री गीता, ये सभी कहते हैं की "भगवान् हैं, सब जगह व्याप्त है, हर दिल में है " ! कोई कहता है की अगर भगवान सचमुच में है तो वह प्रकट क्यों नहीं होता ? कोई कहता है मैंने भगवान् को अपने अन्दर महसूश किया है ! अब इस बारे में एक छोटी सी कहानी पर ध्यान दें !
एक गुरु के चार चेले थे ! उन्हें वे आश्रम में विद्या का ज्ञान करा रहे थे ! ईश्वर चिंतन, ईश्वर की हजारों आँखें हैं और वे हर एक पर नजर रखते हैं ! जीवों के प्रति दया भाव, सच्च बोलना। अहिंसा, पवित्रता, आदि आदि विषयों की जानकारी दी जाती थी ! जब आश्रम के नियमों के अनुसार पढाई समाप्त हो गयी तो गुरु जी ने इन विद्यार्थियों की परिक्षा लेने की ठानी ! उन्होंने एक दिन प्रात: ही इन चारों चेलों को एक एक कबूतर दिए और कहा , "देखो तुमने ये कबूतर मारने हैं लेकिन ऐसी जगह पर मारने हैं जहां कोई नहीं देख रहा हो !" इन चेलों में से तीन चेलों ने तो कबूतर मार दिए, लेकिन चौथे ने नहीं मारा और वैसे ही जिन्दे कबूतर को लेकर वापिस गुरु जी के पास आ गया ! गुरु जी ने तीनों से प्रश्न किया की जब तुम कबूतर को मार रहे थे उस समय तुम्हे किसी ने नहीं देखा, तीनों ने ना में जबाब दिया ! जब गुरु जी ने चौथे से पूछा की क्या तुम्हे कोई ऐसी जगह नहीं मिली कि जहां तुम्हे कोई नहीं देख रहा हो ? चेला रोते हुए बोला, "गुरु जी मैं गुफा के अन्दर अँधेरे में गया, मकान के अन्दर गया, पेड़ की जड़ में सुरंग में भी गया जहाँ घुप्प अन्धेरा था लेकिन मुझे सब जगह लगा कि उस अँधेरे में भी मुझे दो आँखें घूर रही हैं ! "
गुरु ने कहा वही ईश्वर था और तुम ही सच्चे विद्यार्थी हो जिसने असली विद्या ग्रहण की ! तुमने साक्षात ईश्वर के दर्शन कर दिए ! भला जिन विद्यार्थियों को शिक्षा दी गयी हो 'अहिंसा परमो धर्मा' की वे ही कबूतर मार कर ले आएं तो वे तो नीरे मुर्ख के मुर्ख ही रहे ! भगवान् सब जगह हैं सारा जगत ईश्वर मयी है, वह सबको दर्शन देते हैं ठीक उसी रूप में जैसे इंसान की प्रवृति होती है ! जब राजा जनक के आँगन में सीता स्वयंबर के समय सारे देशों के राजा-महाराजा वहां बैठे थे, उनमें मनुष्य भी थे, सुर भी थे और असुर भी थे ! मनुष्य भगवान राम को देख रहे थे वे मनुष्यों में श्रेष्ठ मनुष्य लग रहेथे, देवताओं को देवताओं में सर्व श्रेष्ठ देवता लग रहे थे, लेकिन राक्षसों को साक्षात विराट रूप धरे महाकाल लग रहे थे ! जैसे इंसान की बुद्धी होगी वैसे ही ईश्वर का स्वरूप उसे नजर आएगा ! जिन्दगी में एक बार वह ईश्वर हर एक के दरवाजे पर दस्तखत देता है कभी साधू सन्यासी का रूप बनाकर कभी भिखारी बनकर, भाग्यवान ज्ञानी भक्त उन्हें पहिचान लेते हैं और दर्शनों का लाभ उठा लेते हैं ! जो भगवान् को नहीं मानते वे भी भगवान् का नाम ले लेते हैं चाहे यही कहते हैं कि "भगवान् नहीं है, कोरी कल्पना है" ! हो सकता है वे भी अपनी जगह सही हों !!

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