Sunday, September 19, 2010

देश के लोग विदेश में

यहाँ अमेरिका में बहुत से मतलब लाखों की संख्या में हिन्दुस्तानी मूल के लोग हैं ! कुछ कही पीढ़ियों से रह रहे हैं, कुछ पिछले चालीस या पचास सालों से हैं ! जो पहले से हैं जिनके दादा परदादा यहाँ आए थे और यहीं के होकर रह गए, एक दो पीढी वाले लोग भी धीरे धीरे यहीं के र्रंग में रंग गए हैं ! अब एक तीसरी प्रकार के लोग हैं जो ऐ ऐ टी या मेडिकल से डिग्री पी एच डी करके यहाँ आकर अपना कैरियर बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं ! मकान किराए पर लेने से अच्छा है बैंक से लोन लेकर ही मकान खरीद लें ! और हर नया हिन्दुस्तानी यहाँ आकर इंजिनीयर डाअच्छी कमाई कर रहे हैं, कुछ यहीं की लड़की से शादी करके यंही के हो जाते हैं, लेकिन ज्यादातर लडके अपने हिन्दुस्तानी मूल की लड़कियों से ही शादी करते हैं ! उनके बच्चे यहीं के रंग में रंग गए, जिन्होंने हिन्दुस्तान देखा ही नहीं है जिनको यह भी पता नहीं है की उनके माँ बाप हिन्दुस्तान के हैं और उनके दादा दादी नाना नानी हिन्दुस्तान में रह रहे हैं !
यहाँ १८ तारीख को राजेश के दोस्त युद्धवीर सिंह के लड़की के जन्म दिन पर उनके घर गए थे ! वहां काफी हिन्दुस्तानी परिवार के लोग आए हुए थे, कुछ के माँ बाप हमारी तरह भारत से यहाँ आए हुए थे और कुछ ऐसे भी थे जिनको ३५ - ४० साल यही हो गए, सर्विस से अवकास ले चुके हैं, लेकिन फिर भी पार्ट टाईम जाब कर रहे हैं ! एक सज्जन मिले वोहरा जी, दिल्ली कीर्ती नगर में उनकी प्रोपर्टी है ! प्रोपर्टी उनके साले, रिश्तेदार देखते हैं जो कभी कभी उनके पास य्याहं अमेरिका भी आते हैं ! इनकी तीन लड़कियां हैं और तीनों की शादी अच्छे परिवारों में हुई है और लड़की दामाद यहीं अमेरिका में अच्छी नौकरियों में हैं ! अब ६५ पार कर चुके हैं लेकिन मस्त हैं, पैसों की कमी नहीं, पार्ट टाईम जाब करते हैं ताकी समय कटता रहे और बेकार बैठे ठाले से होने वाली दिमागी परेशानियों से बच के रह सकें ! मैंने जब उनसे पूछा की " क्या उन्हें अपनी जन्म भूमि के खेतों की खूसबू की याद आती है, " उनका दिल भर गया, कहने लगे, " आपने मेरी नाजुक रग को छू दिया, जब कभी फुर्सत में होता हूँ, मन उड़ कर चला जाता है अपने उन हरे भरे खेतों में, लोक गीतों में, उस मिट्टी की भिनी भिनी खुशबू में ! बहुत याद आती है लेकिन इस मकडी के जाल से अब छूट नहीं सकता ! अब यहीं को हो कर रहा गया ! कभी अगर जाने का मन होता है तो पत्नी तैयार नहीं होती, वह पोते पोतियों में खो गयी है ! एक सजन कहने लगे की "हम ६ महीने के लिए आते थे, लडके ने ग्रीन कार्ड बना दिया, और फंस गए, न जाते बनाता है न रहते बनता है ! एक और सजन मिले जिनकी उम्र ६२ हो गयी है और अभी तक कुंवारे हैं ! उनका कहना है "तलाश है एक अच्छी अपनी की जो अभी तक नहीं मिली है, मैं जात पांत, धर्म देश के बंधन से बहुत ऊंचा उठ गया है, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, अमेरिकाम, बंगाली, पाकिस्तानी, चीनी कोई भी हो लेकिन कोई जो मुझे पसंद है, मुझे पसंद नहीं करती, जो मुझे पसंद करती है वह मुझे नहीं जचती है " ! वैसी जन्म दिन पार्टी बड़ी मजेदार रही ! ६ - ७ घंटे पता ही नहीं लगा की समय कैसे निकल गया !

Friday, September 17, 2010

रामायण के रहस्य (पांचवां भाग)

रावण जब सीता जी का हरण करके लाया था तो भक्त विभीषण ने रावण को आगाह किया था की वह जो कुछ भी कर रहा है वह एक राजा के कर्म क्षेत्र के बाहर है ! नैतिकता भी पर स्त्री का अपहरण करने की इजाजत नहीं देता ! अब अगर लंका को बचाना है तो सीता जी को आदर के साथ भगवान राम को सौंप दो ! इस से नाराज होकर रावण ने उन्हें लात मार कर अपनी सभा से बाहर निकाल दिया था ! वे संत थे इसलिए फिर भी उन्होंने रावण के पाँव पकड़ लिए और विनती की कि वे अधर्म का रास्ता छोड़ कर भगवान राम की शरण में चले जांय ! लेकिन रावण ने उसकी एक भी बात नहीं मानी और धिक्का देकर लंका को ही छोड़ कर जाने को कह दिया ! वह भगवान की शरण में आ गया और भगवान राम ने उसी समय उसे राज तिलक करके लंकापति घोषित कर दिया ! रावन के मरने के बाद विधि विधान से लंका के राजा के रूप में उनका राज तिलक कर दिया गया ! अब जानकी जी भगवान राम के सामने लाई गयी ! भगवान जी ने उनकी पवित्रता की परीक्षा करने के लिए उन्हें अग्नि में प्रवेश करने को कहा ! इस तरह सीता जी का प्रतिविम्ब अग्नि में प्रवेश कर गया और असली सीता जी अग्नि से बाहर आ गयी ! रावण
के पास एक पुष्क विमान था, अयोध्या जाने के लिए इसी विमान को तैयार किया गया ! जब विमान में राम, लक्ष्मण, सीता जी, हनुमान जी, सुग्रीब, जामवंत, अंगद और विभीषण बैठ गए और विमान उड़ने के लिए तैयार हो गया तो जिस पर्वत को हनुमान जी हिमालय से उखाड़ कर लाए थे संजीवनी वटी के साथ वह उठ कर हनुमान जी की पीठ पर चिपक गया यह कह कर कि "मुझे हिमालय पर्वत से उखाड़ कर अपना मतलब सिद्ध करके मुझे यहीं छोड़ कर जा रहे हो "? भगवान् राम ने कहा "नहीं हम तुम्हे ऐसे ही नहीं छोड़ेंगे, अब हम तुम्हे विंद्रावन में स्थापित करेंगे और आने वाले दिनों में वहीं पर तुम्हारी पूजा होगी "! इस तरह उस पर्वत खंड को हनुमान जी ने मथुरा के नजदीक वृंदा वन में उतार दिया और द्वापर में कृष्ण जी ने इसी पर्वत को गोवर्धन पर्वत के नाम से उसकी पूजा शुरू करवाई !
भगवान् राम अयोध्या पहुंचे, वहां उनका राज्य भिषेक किया गया ! अयोध्या में राम राज्य था ! सब लोग सुखी थे, राज्य में चारों और अमन चैन और शांती का माहोल था ! पर शायद माता सीता जी को अभी और कष्टों का सामना करना था ! भगवान राम ने एक धोबी के अपनी पत्नी को कहे गए शब्दों के कारण कि " राम ने अपनी पत्नी को एक साल तक रावण की कैद में रहने पर भी अपना लिया लेकिन मैं रामचंद्र जी की तरह तुम्हे नहीं अपना सकता " ! इसी बात को लेकर भगवान ने मर्यादा के नाम पर सीता जी को वनवास दे दिया ! लक्ष्मण जी को आदेश दिया गया कि वे सीता जी को जंगल घुमाने के बहाने जंगल में छोड़ कर आएं ! कितना कष्ट हुआ होगा लक्ष्मण जी को ! लेकिन राज्याज्ञा थी इसलिए भारी मन से वे सीता जी को वियावान जंगल में छोड़ कर वापिस अयोध्या आ गए ! आते हुए कितना आंसू बहाया होगा उन्होंने ! जिनकी सुरक्षा के लिए वे भगवान राम के साथ १४ साल वनवास में रहे, सीता को रावण की कैद से छुड़ाने के लिए मेघनाथ द्वारा चलाया गया ब्रह्माश्त्र को आत्मसात किया और मुर्छित हुये थे ! आज उसी महारानी सीता माता को वे जंगल में असुरक्षित छोड़ कर आ गए ! उधर जंगल में भटकती सीता जी को महर्षि बाल्मिकी जी मिल गए और वे सीता जी को अपने आश्रम में ले गए ! इसी आश्रम में सीता जी का पुत्र लब का जन्म हुआ ! एक दिन सीता जी चश्मे से पानी लाने जा रही थी, लब आँगन में खेल रहा था ! बाल्मिकी जी ध्यान मग्न होकर लिखने में लीन थे ! सीता जी लब को बाल्मिकी जी के भरोषे पर छोड़ कर चश्मे पर चली गयी ! अचानक बाल्मिकी जी का ध्यान टूटा, देखा बालक लब वहां नहीं है ! उन्होंने चारों ओर ढूँढा लेकिन बच्चे का कहीं भी पता नहीं चला ! अब वे सीता जी को क्या जबाब देंगे, इसी डर के मारे उन्होंने जल्दी से 'कुश' इकट्ठा किया उसे एक गद्दी पर रख कर अपनी मन्त्र शक्ती से एक बच्चे को प्रकट कर दिया ! कुछ देर बाद सीता जी पानी लेकर आ गयी, उनके साथ साथ लब आ रहा था जो बिना बाल्मिकी जी की जानकारी के अपनी माँ के साथ चला गया था ! इस तरह लब कुश दो भाई हुए ! भगवान् रामचंद्र जे अश्वमेध यज्ञ किया ! अश्वमेध यज्ञ का घोडा आश्रम में चला गया वहां लव कुश ने घोड़े को बाँध दिया ! शत्रुघन लक्षमण लव कुश के वाणों से घायल हो गए ! भगवान् राम अब स्वयं इन दोनों बच्चों से युद्ध करने मैदान में पंहुचे ! हनुमान जी किसी तरह आश्रम में पहुंचे वहां उन्हें सीता माता के दर्शन हुए ! यह सुनकर की लव कुश अपने पिता भगवान् राम से युद्ध कर रहे हैं सीता जी जल्दी से वहां आई और दोनों बच्चों को बताया की 'जिनसे तुम लड़ाई करने जा रहे हो वे तुम्हारे पिता श्री रामचंद्र भगवान हैं" ! माता सीता ने दोनों बच्चों को अपने पिता के हवाले किया और स्वयम धरती माँ की गोद में समा गयी !

Thursday, September 16, 2010

रामायण के रहस्य (चौथा भाग)

अब भगवान राम अपनी सेना को साथ लेकर लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र तट पर पहुंचे ! वहां उन्होंने शिव लिंग की स्थापना की ! भगवान राम जब शिव लिंग की स्थापना के लिए किसी पुरोहित की तलाश में थे तो अचानक लंका पति रावण ब्राह्मण का भेष बनाकर वहां पूजा स्थल पर पहुँच गया !, उन्होंने विधि विधान से शिव जी की पूजा की और लिंग स्थापना में राम का सहयोग किया ! भगवान राम के अलावा इस भेद को कोई भी नहीं जान पाया ! रावण ने स्वयं रामेश्वर में शिव लिंग स्थापित करके और शंकर की पूजा करके, अपने स्वर्ग जाने की पहली सीढी तैयार कर दी थी ! फिर रामचंद्र जी ने लंका जाने के लिए समुद्र से रास्ता माँगा ! लेकिन तीन दिन बीतने पर भी समुद्र में जब कोई हलचल नहीं हुई तो भगवान् क्रोधित हो गए और उन्होंने धनुष पर वाण चढ़ा दिया, इस से भगवान् के क्रोध की अग्नि से समुद्र जलने लगा, चारों ओर हां हां कार मच गया ! जल चर ब्याकुल होने लगे, तब कहीं जाकर समुद्र की नींद खुली ! वे हाथ जोड़ कर राम के आगे खड़े हो गए और कहने लगे "प्रभु मैं तो जड़ हूँ, जल्दी से सजग नहीं हो पाता, मेरी गलती की सजा मेरे अन्दर पलने वाले इन जीव जंतुओं को मत दो ! इस तरह समुद्र के अनुनय विनय करने पर भगवान् का गुस्सा ठंडा हुआ ! राम बोले, "लेकिन जो बाण धनुष पर चढ़ चुका है उसका क्या करें " ? ! समुद्र ने दुखी होकर कहा "प्रभु मेरे उत्तर दिशा में कुछ दुष्ट लोग बसते हैं जो मुझे बहुत कष्ट पहुंचाते रहते हैं, आप इस वाण से उनका संहार करें ! इस तरह भगवान् ने वह वाण उत्तर दिशा की ओर चला दिया और दुष्टों का संहार किया ! समुद्र ने फिर भगवान् को समुद्र पार करने की विधि बताई और इस तरह से पूरी बानर और रिक्ष सेना सागर पार हो गयी ! उधर रावण को राम की सेना लंका पहुँच गयी है, का समाचार मिला ! लेकिन न रावण को न उसके सभा सदों को इस समाचार से कोई अचम्भा हुआ न वे भयभीत ही हुए ! जैसे रावण को पहले से ही पता था की 'श्री रामचंद्र जी लंका विजय करने आएँगे' सो आ गए ! भगवान राम ने मर्यादा का पालन करते हुए बाली पुत्र अंगद को रावण के दरवार men शांती का प्रस्ताव लेकर भेजा ! अब अंगद के रास्ते में लंका दरवार जाने के लिए कोई रुकावट नहीं थी, क्योंकि उनका प्रतिद्वन्दी रावण पुत्र अक्षय कुमार हनुमान जी के हाथों मारा जा चुका था ! अंगद ने रावण के दरवार में अपना पाँव धरती पर रोपते हुए रावण से कहा कि "आपकी सेना का कोई भी वीर अगर मेरे पाँव को उठा देगा तो मैं भगवान राम का एक सेवक राम की सेना की हार मान कर सेना सहित लंका से खाली हाथ लौट जाउंगा !
मेघनाथ जैसे इन्द्रजीत अंगद का पाँव नहीं उठा पाया, तमाम शूरमा पशीना पोंछते नजर आए ! जब रावण दरवार के सारे वीर रणधीर अंगद के पाँव को उठाना तो दूर की बात है हिला भी नहीं पाए तो रावण क्रोधित होकर अपने आसन से उठा और अंगद का पाँव उठाने के लिए उसके सामने आकर जैसे ही झुका, अंगद ने जल्दी से अपना पाँव हटाते हुए कहा, "रावण मेरे पांवों में पड़ने से तुम्हारा उद्धार नहीं होगा, भगवान राम के चरणों में गिरो मुक्ती मिल जाएगी " ! ठीक उसी समय अंगद ने रावण के सिर से उसका राज मुकुट उतार कर राम की ओर फेंक दिया ! वह केवल रावण का राज मुकुट ही नहीं था बल्की राजा की चार शक्तियां, साम, दाम, दंड, भेद भी थे जो रावण से सदा के लिए विदा हो गए ! उसका ऐश्वर्य, तेज, वैभव, गौरव और सारी सिद्धियाँ भी उससे जुदा हो गयी ! रावण को सब ज्ञान है लेकिन वही सिंघ नाद, वहीं घमंड वही ऐंठ ! एक एक करके उसके सेना के बड़े बड़े दिग्गज रण क्षेत्र में ढेर होते गए लेकिन फिर भी उसके माथे पर कभी कोई सिकन नहीं आई ! रावण का लड़का मेघनाथ, जिसने देवताओं के राजा इंद्र को हराकर इन्द्रजीत का खिलाप पाया था, कही मायावी शक्तियों का जानकार था ! उसके पास घोर तपस्या से प्राप्त किया हुआ एक ब्रह्माश्र भी था ! जब उसकी सारी मायावी शक्तियां लक्ष्मण जी के आगे बेकार हो गयी तो उसने अपनी जान बचाते हुए लक्ष्मण जी पर ब्रह्माश्र चला दिया, जिसे लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए ! हनुमान जी हिमालय पर्वत से संजीवनी वटी लाते हैं जिससे लक्ष्मण जी स्वस्थ हो जाते हैं ! फिर लक्ष्मण जी के हाथों मेघनाथ मारा जाता है, रामचंद्र जी कुम्भ करण को भी अपने धाम पहुंचा देते हैं ! रावण रामचंद्र जी सहित सारी सेना को नाग पास में जकड़ देता है, नारद जी के कहने पर हनुमान जी विष्णु के वाहन पक्षी राज गरुड़ को लाते हैं, जो सारे नागों को निगल कर राम सहित पूरी सेना को नाग पास घेरे से बाहर निकाल लेते हैं ! रावण को अपने पुत्र अहिरावण की याद आती है जो पाताल लोक का स्वामी है ! वह अपनी मायावी शक्तियों का सहारा लेकर सारी राम सेना को मन्त्र मोंह में बाँध कर राम -लक्ष्मण को पाताल लोक ले जाता है ! राम चाहते तो अहिरावण को यहीं मार डालते लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और जानबूझ कर उसके साथ पाताल लोक चले गए ! साथ ही हनुमान जी भी अपने स्वामी राम की टोह लेते हुए पाताल लोक पहुँच जाते हैं ! हनुमान जी को द्वार पर मकर ध्वज नामक द्वार पाल ने रोक दिया ! हनुमान जी ने अपनी सारी तरकीबें अजमा ली लेकिन मकर ध्वज के आगे उनकी एक न चली ! युद्ध में भी वह बराबर की टक्कर दे रहा था ! हनुमान जी का माथा ठनका कि पाताल लोक में इतना वीर रणधीर, चतुर और सभ्य अहिरावण का द्वार पाल कौन हो सकता है ! हनुमान जी ने उसे उसके पिता का नाम पूछ लिया ! उसने पिता का नाम हनुमान बताया ! अब हनुमान जी हैरान हो गए कि "मैं तो ब्रह्मचारी हूँ फिर मेरा लड़का ये मकर ध्वज कैसे हो सकता है "? उसने बताया कि "मेरे पिता हनुमान जी जब लंका सीता माता की खोज लेने के लिए जा रहे थे तो आसमान में उड़ते हुए उनके शरीर से एक बूंद पशीने की समुद्र में गिर गयी थी, मेरी माँ मच्छली ने उस बूंद को उदर-अस्त कर दिया था उसी पशीने की बूँद से मेरा जन्म हुआ !" हनुमान जी ने कहा, "मैं ही तुम्हारा पिता हनुमान हूँ, मैं भी अपने स्वामी राम को अहिरावण के चंगुल से छुड़ाने के लिये आया हूँ, तुम मुझे अन्दर जाने दो " ! मकरध्वज ने कहा कि "मैं अपने स्वामी के साथ गद्दारी नहीं कर सकता, बिना मुझे हराए आप अन्दर नहीं जा सकते" ! आखीर में हनुमान जी ने मकरध्वज को अपने पाँव के बाल से बाँध दिया और अन्दर जाकर अहिरावण को सेना सहित मार कर भगवान् राम लक्ष्मण को सकुशल वापिस ले आये ! द्वार पर बंधे हुए मकर ध्वज की तरफ
इशारा करते हुए भगवान राम ने हनुमान जी से पूछा कि "यह कौन है और इसे बाँध के क्यों रखा हुया है "! हनुमान जी ने रामचंद्र जी को सारी कहानी बता दी ! भगवान् राम ने उसे खुलवाकर लक्ष्मण जी से उसे पाताल लोक की गद्दी पर बिठाने के लिए कहा ! उसी समय मकर ध्वज का राज तिलक किया गया ! राम-लक्ष्मण को लेकर हनुमान जी अपने समर कैम्प में पहुंचे ! रामा दल में फिर से खुशी की लहर दौड़ गयी ! अब लंका में केवल एक रावण ही बचा रह गया जिसको भगवान् जी ने युद्ध भूमि में गिरा कर अपने धाम में पहुंचा दिया और यही रावण की इच्छा थी !
(अगले भाग में जारी )

Wednesday, September 15, 2010

रामायण के रहस्य (तीसरा भाग)

पम्पा सरोवर में स्वर्ग जाने से पहले तपस्वनी सबरी ने भगवान् राम को सुग्रीब का पता दिया था और उनसे अनुरोध किया था की "सीता माता का पता लगाने के लिए किशकिन्धा पर्वत पर आप सुग्रीब से मित्रता करें, वे अपनी बन्दर सेना द्वारा आपकी सहायता करेंगे " ! भगवान जी ने अपने हाथों से सबरी के शव को मुखाग्नि दी उन्हें पंचतत्व के सुपुर्द किया और किशकिन्धा की ओर चल पड़े ! किशकिन्धा पर्वत पर सुग्रीब अपने चन्द मंत्रियों के साथ बाली के भय से छिप कर रह रहा था ! उसने पर्वत के नीचे दो वनवासी भेष में धनुष वाण धारण किए दो क्षत्रिय वीरों देख कर हनुमान जी को पता लगाने के लिए उनके पास भेजा ! हनुमान जी ने ब्राह्मण भेष बना कर उनके नजदीक जाकर उनका परिचय पूछा ! जब भगवान ने अपना परिचय दिया, वन वन फिरने का कारण बताया, तो हनुमान जी अपने असली रूप में आकर उनके चरणों में गिर पड़े और कहने लगे, "भववन मैं तो ठहरा एक निरा बन्दर आपको पहचान नहीं पाया, पर आप तो परब्रह्म परमेश्वर हो, सब जानते हुए भी कैसे अनजान बन गए" ? भगवान रामचंद्र जी ने हनुमान जी को अपने गले लगा लिया ! हनुमान जी दोनों भाइयों को अपने कन्धों पर बिठाकर पर्वत के ऊपर जहाँ सुग्रीब छिपा हुआ था ले आए, सुग्रीब से भगवान का परिचय कराया ओर दोनों की मित्रता कराई ! बाली बानरों का राजा और सुग्रीब का बड़ा भाई था ! दोनों आपस में बड़े प्रेम से रहते थे, लेकिन विधि को इनका प्रेम रास नहीं आया और एक दिन बाली ने सुग्रीब को अकारण ही मार पीट कर राज भवन से भगा दिया और उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बनाकर रख लिया ! चौकी नाम के महामुनि के शाप के कारण बाली किशकिन्धा पर्वत पर नहीं जा सकता था ! सुग्रीब इसी पर्वत पर रहने लगा अपने मित्रों के साथ, यह स्थान उसके लिए सुरक्षित था ! स्वयं सुग्रीब सूर्य पुत्र होते हुए बड़ा बलशाली था लेकिन बाली से कम क्योंकि बाली ने बहुत कठीन तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान माँगा था कि "कोई भी शत्रु जो मेरे साथ आमने सामने का युद्ध करेगा उसका आधा बल मुझ में समा जाय "! ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहकर वरदान की पुष्टी कर दी थी ! इस तरह कोई भी यहाँ तक स्वयं भगवान रामचंद्र जी भी शत्रु रूप में उसके सामने नहीं पड़ना चाहते थे और मजबूरी में उन्होंने उस पर छिप कर वाण मारा ! ये बाली वही बाली था जिसने रावण को छ: महीने तक अपनी बगल में दबाकर रखा था ! अंत समय में भगवान राम ने उस से कहा था कि "अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हे प्राण दान दे सकता हूँ" ! उसने जबाब दिया था, "भगवन, इस समय मैं आपके हाथों मरकर, सब पापों से मुक्त होकर , आपके धाम को जा रहा हूँ, इस शुभ अवसर को मैं कैसे छोड़ दूं, अब तो मुझे इजाजत दो, पर जाने से पहले मैं अपने प्रिय पुत्र अंगद को आपके सुपुर्द कर देना चाहता हूँ, मेरे बाद सुग्रीब उसे कोई नुकशान न पहुंचा पाए " ! भगवान् राम ने उसे आश्वासन देकर विदा किया और अपने धाम पहुंचा दिया ! सुग्रीब के साथ रिक्ष राज जामवंत भी थे ! इस तरह अब भगवान राम की सेना में बंदरों के अलावा रीछ भी सामिल हो गए थे ! सुग्रीब का राज तिलक किया गया, अंगद को राजकुमार बना दिया गया !
हनुमान जी
रामायण के पात्रों में बजरंग बली हनुमान जी का विशिष्ट स्थान है ! उन्हें पवन तनय, शंकर भगवान् का बारहवां अवतार बताया गया है, उनकी माता तेजस्वनी अन्जनी हैं, पिता बानरों के राजा केशरी हैं ! शंकर सुवन केशरी नंदन, तेज प्रताप महा जगबंदन ! रामायण का सुन्दरकाण्ड हनुमान जी के नाम पर है ! जब सीता जी की खोज करते करते अंगद के नेतृत्व में हनुमान जी, जामवंत बानर सेना के साथ समुद्र तट पर पहुंचे, तो समुद्र कूद कर उस पार लंका में जाने के लिए किसको भेजा जाय, यह सवाल खड़ा होगया ! अंगद नायक हैं , उन्हें नहीं भेजा जा सकता ! इसके अलावा भी अंगद के न जाने का एक और कारण भी था ! रावण का पुत्र अक्षय कुमार और बाली पुत्र अंगद एक ही आश्रम में एक ही गुरु जी से शिक्षा ले रहे थे ! किसी बात को लेकर गुरु जी अंगद से खपा होगये और उन्होंने उसे शाप दे दिया कि "अगर वह रावण की नगरी लंका में प्रवेश करेगा तो रावण पुत्र अक्षय कुमार के हाथों मारा जाएगा "! इस तरह जब तक अक्षय कुमार ज़िंदा है, अंगद लंका नहीं जा सकता था , इस बात को जामवंत जी जानते थे ! जामवंत जी कहते हैं, "जवानी में लंका से भी दूर तक की छलांग लगा सकता था, लेकिन अब बुढा होगया हूँ, छलांग मार कर लंका में जा तो सकता हूँ, लेकिन वापिस नहीं आ सकता ! हनुमान जी अपनी शक्ती से बे खबर एक ओर चुप चाप खड़े थे ! वे बचपन में बड़े शरारती थे, ऋषि मुनियों को बहुत तंग करते थे, उनकी इस शरारत से तंग आकर एक महर्षि ने उन्हें शाप दे डाला, "कि जब तक कोई तुम्हे यह याद नहीं दिलाएगा कि तुम कितने वलवान और शक्तिशाली हो, तुम्हे अपने बल का ज्ञान नहीं होगा" ! जामवंत जी इस बात को जानते थे, इसलिए उन्होंने हनुमान जी को याद दिलाया कि "तुम तो बड़े बलशाली और पराक्रमी हो, तुम्हारे लिए समुद्र पार करना बड़ा आसान है, उठो और छलांग लगाओ " ! जैसे ही उन्हें अपनी ताकत की याद दिलाई गयी वैसे ही बिना एक क्षण की भी देर किए उन्होंने समुद्र में छलांग लगा दी और लंका पहुँच गए ! वहां माता सीता जी का पता किया, भक्त विभीषण जी से मुलाक़ात की, कही राक्षसों के साथ अक्षय कुमार को मौत के घाट उतारा और आते आते लंका को ही जला आए ! (बाग़ ४ में जारी)

Tuesday, September 14, 2010

रामायण के रहस्य (भाग दो)

मारीच सोने का मृग बना और राम का नाम लेते लेते पहुँच गया पंचवटी में ! सीता जी ने भगवान राम से कहा कि
"हे प्राण नाथ आप इस स्वर्ण मृग को मार कर इसकी सोने की छाल मेरे लिए लेते आइये ! राम मृग मारने चले गए, मृग ने मरने से पहले जोर से चिल्लाकर लक्ष्मण का नाम लिया ! अब सीता जी लक्ष्मण जी को भगवान् राम की मदद को भेज देती हैं ! इधर पीछे से रावण आता है और सीता जी का हरण कर ले जाता है ! रास्ते में जटायु ने रावण को रोकने की कोशीश की और रावण की तलवार से अपने पंख गँवा बैठा ! राम विलाप कर रहे हैं, पेड़ पौधे, पशु पक्षी से सीता जी का पता पूछते हैं ! लक्ष्मण जी भी भगवान् राम की हालत देखकर बहुत दुखी होते हैं ! उधर दूसरे रास्ते से भगवान् शंकर माँ सति के साथजा रहे थे ! भगवान् शंकर ने राम की तरफ देख कर सर झुका दिया ! यह देख कर सति जी ने शंकर जी से पूछ लिया "प्रभु आप तो देवों के भी देव हैं फिर एक वनवासी राजकुमार जो अपनी पत्नी के वियोग में आंसू बहाता हुआ चला जा रहा है आप उसी को सर झुका रहे हैं ? ये क्या रहस्य है" ? शंकर जी ने कहा " देवी ये साक्षात परमेश्वर हैं, राम के रूप में दुष्टों का नाश करने धरती पर अवतार लेकर आये हैं " ! ये बात सति जी को हजम नहीं हुई ! सोचने लगी "अगर ये परमेश्वर के अवतार हैं तो साधारण मनुष्य की तरह पत्नी के वियोग में दर दर क्यों भटक रहे हैं " ! शंकर जी से बोली "मैं परिक्षा लेकर देखूं "? शंकर जी का माथा ठनका ! सोचने लगे लगता है कुछ अनहोनी होने वाली है ! बोले, "जाओ परिक्षा लेकर जल्दी लौटना" ! सति ने सीता का भेष बनाया और जिस रास्ते से भगवान् राम आ रहे थे वहीं रास्ते में खडी हो गयी ! भगवान् राम ने उन्हें देख कर हाथ जोड़ कर कहा, "प्रणाम मातेश्वरी , बाबा भोले शंकर कहाँ हैं " ? सुनते ही लगा जैसे उनके सिर पर हजारों घड़े पानी के गिर गए हों ! वे भयभीत हो गयी, गला सुख गया, वे पसीना पसीना हो गयी ! अब वे जिधर भी नजर उठाती हैं राम सीता और लक्ष्मण ही नजर आते हैं ! इधर उधर और सब तरफ वही राम सीता और लक्ष्मण ! किसी तरह वापस अपने आश्रम में पहुँची ! शंकर जी के पूछने पर कि "परिक्षा ले ली, तसल्ली हो गयी" उनसे भी झूठ बोल गयी "हाँ मुझे आपकी बातों पर विशवास हो गया परीक्षा ले ने की आवश्यकता ही नहीं पडी "! शंकर जी ने ध्यान मग्न हो कर सब कुछ अपने चक्षुवों से देख लिया, कि सति सीता जी का भेष बनाकर उस रास्ते पर खडी हो गयी थी जिस रास्ते पर भगवान् जा रहे थे, तथा उसके बाद सति ने जो कुछ देखा वह सब कुछ उन्हें अपने ध्यान में दिखाई दिया कि " सति ने पर स्त्री का भेष बनाया और मुझ से झूठ बोला कि परिक्षा लेने की जरूरत नहीं पडी " ! अब शंकर जी सति से अलग अलग ही रहने लगे ! ज्यादा से ज्यादा समय वे ध्यानमग्न रहने लगे ! सति को भी अपनी गलती का अहसास हो गया था ! उन्हीं दिनों उनके पिता जी राजा दक्ष एक बहुत बड़ा यज्ञ करने जा रहे थे जिसमें उन्होंने सारे देवताओं को बुलाया था छोड़ कर महादेव जी के ! जब सति ने अपने पिता जी द्वारा किए गए यज्ञ में जाने की इच्छा जाहिर की तो पहले तो बिना बुलाने पर 'मान न मान मैं तेरा महिमान' बनकर जाना अपमान होने का अंदेशा है, शंकर जी ने जाने से मना कर दिया, लेकिन जब सति जिद करने लगी तो शंकर भगवान ने अपने एक ख़ास गण के साथ उन्हें विदा कर दिया ! जब सति अपने पिता जी के घर पहुँची वहां उनकी माँ के अलावा किसी ने भी उनसे ढंग से बात नहीं की, यहाँ तक राजा दक्ष ने भी ! द्वार पर उनके पति शंकर की प्रतिमा लगी थी द्वार पाल के रूप में ! सति को यह देख पडा कष्ट हुआ, अपने पति का अपमान उनसे बर्दास्त नहीं हुआ और उन्होंने भभकती हुई हवनकुंड की अग्नि में छलांग लगा दी ! सति के हवनकुंड में गिरते ही उनके साथ भगवान शंकर के गण ने वहां तोड़ फोड़ शुरू करदी ! यज्ञ की व्यवस्था तार तार हो गयी ! शंकर भगवान जी ने आकर बाकी रही सही कमी पूरी कर दी, यज्ञ में आने वालों को दंड दिया गया ! यज्ञ के ध्वंस होते ही राजा दक्ष भी परलोक सिधार गए ! शंकर जी ने सति के जले हुए शरीर को कंधे पर उठाते हुए पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण की परिक्रमा कर डाली ! इस तरह की परिक्रमा में कहीं सति की आँखे गिरी, कहीं सर गिरा कहीं हाथ गिरे, तो कहीं पाँव गिरे, इस तरह जहाँ जहाँ भी माँ सति के शरीर के अंग गिरे वहीं आज उनके नाम के मंदिर बने हुए हैं ! सति का दुबारा जन्म हुआ हिमालय के यहाँ पार्वती नाम से ! आज हम उन्हें श्रद्धा भक्ति से शिव-पारवती के नाम याद करते हैं और उनकी पूजा करते हैं !
सबरी को दर्शन
सबरी नाम की भीलनी अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए, कही सालों से वियावान जंगल के एक आश्रम में भगवान राम का इंतज़ार कर रही थी ! वह रोज सबेरे ही उठ कर दूर तक झाडू लगाती थी, रास्ते के कंकण पत्थर हटाती थी, दूर रास्ते में आश्रम तक ताजे ताजे फूल बिछाती थी ! रोज ताजे ताजे मीठे बेर चख चख कर भगवान को भोग लगाने को इकट्ठा करती थी ! उसे पक्का भरोसा था की इस शरीर को त्यागने से पहले भगवान राम उसके आश्रम में जरूर आएँगे ! उसके गुरु ने स्वर्ग जाते हुए उससे कहा था और उसको अपने गुरु के वचनों पर पूरा भरोषा था ! और भगवान् राम आये, भगवान राम को देखकर वह अपनी सुध बुध भूल गयी, उसके चरण धोकर पहले सर चढ़ाया फिर उसे पिया ! बेर चख चख कर भगवान को खिला रही है और भगवान राम बड़े प्रेम से उन बेरों को खा रहे हैं ! ऋषि मुनि साधु सन्यासी जिन के चरण कमलों के दर्शन करने के लिए कही जन्म बीता देते हैं वही भगवान राम सबरी के झुठे बेर बड़े प्रेम से खा रहे हैं, "भगवान से सच्ची श्रद्धा और भक्ती का फल" ! सबरी प्रेम में विह्वल होकर झुठे बेर कभी राम को खिलाती हैं कभी लक्ष्मण जी को देती हैं, लेकिन जहां राम उन बेरों को प्रेम से खा रहे हैं वहीं लक्ष्मण जी उन बेरों को उत्तर दिशा में फेंक देते हैं !
आने वाले दिनों में वही बेर के फेंके हुए दाने संजीवनी बूटी बनकर लक्षमण जी के प्राणों की रक्षा करते हैं ! भगवान राम के दर्शन के लिए ही सबरी आज तक जिन्दा थी, उनके दर्शन के बाद उनके सामने ही वह उनका नाम लेते हुए राम के धाम को चली गयी ! (तीसरे भाग में जारी )

Monday, September 13, 2010

रामायण के रहस्य

भगवान राम लक्षमण जानकी माँ पंचवटी में अपनी पर्ण कुटी बना कर रह रहे थे ! सुर्पंखां आई नाक कटवा कर चली गयी ! अपने भाई खर दूषण के पास गयी दोनों को सेना सहित राम के हाथों स्वर्ग पहुंचा गयी ! जब खर दूषण मारे गए, तो एक दिन जब लक्षमण जंगल में लकड़ी लेने गए थे भगवान राम चन्द्र जी ने सीता जी से कहा, "प्रिये अब मैं अपनी लीला शुरू करने जा रहा हूँ ! खर दूषण मारे गए, सूर्पनखां जब यह समाचार लेकर लंका जाएगी तो रावण आमने सामने की लड़ाई तो नहीं करेगा बल्की कोई न कोई चाल खेलेगा और मुझे अब दुष्टों को मारने के लिए लीला करनी है ! जब तक मैं पूरे राक्षसों को इस धरती से नहीं मिटा देता तब तक तुम अग्नि की सुरक्षा में रहो" ! भगवान् रामचंद्र जी ने उसी समय अग्नि प्रज्वलित की और सीता जी भगवान जी की आज्ञा लेकर अग्नि में प्रवेश कर गयी ! सीता माता जी के स्थान पर ब्रह्मा जी ने सीता जी के प्रतिबिम्ब को ही सीता जी बनाकर उनके स्थान पर बिठा दिया ! लक्षमण जी को इस लीला का पता भी नहीं चला !
आदो राम तपो वनादी गमनं, हत्वा मृगा कांचनम,
वैदेही हरणं जटायू मरणं, सुग्रीब संभाषणं,
बाली निर्दलम समुद्र तरणं, लंकापुरी दहनं,
पश्चात रावण कुम्भकरण हननम एदपि रामायणम !!
वहां लंका में सुर्पंखां ने रावण को सब कुछ बता दिया, की किस तरह राम लक्ष्मण सीता पंचवटी में रहते हैं, कैसे लक्ष्मण ने उसकी नाक काटी और किस तरहसे राम ने खर दूषण का वध कर दिया ! खर दूषण वध हो गया राम के द्वारा सुनकर रावण चौकना हो गया ! वह बहुत बड़ा विद्वान है, ८४ भाषाओं का ज्ञाता है ! वह मन ही मन सोचता है "खर दूषण मोही सम बलवंता, उन्हें मार सके न बिन भगवंता", "यानी की बिना भगवान के खर दूषण को कोई नहीं मार सकता, इसका मतलब राम के रूप में साक्षात भगवान इस धरती पर अवतार ले चुके हैं ! अब अगर मैं उनकी शरण में जाता हूँ तो मेरा कल्याण नहीं होगा ! वे अपने भगतों को नहीं मारते और मेरे पापों का प्राश्चित नहीं हो पाएगा ! अब मेरे पाप सबसे सरल रास्ता है की मैं उनसे बैर करूँ, उनकी भार्या सीता का हरण करूं और लड़ाई करते हुए उनके हाथों मरकर पूरे राक्षस जाति का उधार करूँ ! " ताड़का एक बड़ी दुष्ट राक्षसणी थी, उसके दो पुत्र थे, मारीच और सुबाहू ! ताड़का और सुबाहू को तो भगवान राम ने ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा करते हुए मार गिराया था और मारीच को अपने बाण की शक्ती से उड़ा कर रावण की लंका में पहुंचा दिया था ! अब मारीच काफी बुढा हो चुका था लेकिन अपने माया जाल से रूप बदलने में माहिर था ! रावण को उसकी याद आई और उसे सोने का मृग बनकर पंचवटी जाने का आदेश दिया ! मार्च को अपनी मृत्यु सामने नजर आने लगी, सोचा अगर सोने का मृग बनकर पंचवटी नहीं गया तो ये दुष्ट राक्षस मुझे मार डालेगा, पंचवटी जाने से राम के वाणों से बच नहीं पाउँगा ! 'क्यों न श्री रामचन्द्र के वाणों से मर कर मोक्ष को प्राप्त करूँ '! वह तैयार हो गया !
सीता जी कौन थी ?
सीता जी लक्ष्मी जी के अवतार हैं और जब भी परमेश्वर अवतार लेकर धरती पर आते हैं तो लक्ष्मी जी उनकी शक्ती बनकर उनके साथ ही धरती पर अवतरित होती हैं ! ग्रन्थ कहते हैं कि एक बार रावण ने धरती के सारे ऋषि मुनियों पर उसके राज्य की सीमा के अन्दर रहने और उसकी पूजा न करके भगवान की पूजा करने वालों पर टैक्श लगा दिया ! इन तपस्विओं के पास देने के लिए कुछ नहीं था तो रावण की आज्ञा से उसके सैनिकों ने हर ऋषि मुनि से उसकी अंगुली काट कर रक्त के रूप में कर वसूल किया ! इस तरह रक्त से एक घडा भर गया ! वह घडा राजा जनक के राज्य की सीमा के अन्दर गाड़ा गया ! एक बार राजा जनक के राज्य में अकाल पड़ गया, वारीष नहीं हुई, चारों और हाहाकार मच गया, लोग भूखों मरने लगे ! राजा जनक बहुत चिंतित हुए, उन्होंने राज्य के विद्वानों, ज्ञानी, ऋषि मुनियों और कुल पुरोहित को बुलाकर उनसे इस अकाल से छुटकारा पाने का उपाय पूछा ! जाने माने विद्वाओं ने राजा जनक को जबाब दिया कि "जब महाराजा जनक स्वयं अपने राज्य की सीमा के अन्दर हल लगाएंगे तभी बारीष होगी और देश वासियों को इस भीषण अकाल से छुटकारा मिल पाएगा "! कहते हैं राजा जनक ने जैसे ही हल लगाना शुरू किया तो पहले ही सीं (हल के फल से चीरी हुई लाइन) पर हल के फल से कोई वस्तु टकराई ! उन्होंने हल खडा करके अपने सैनिकों से उस स्थान की खुदाई करवाई ! खदाई में एक घडा निकला और घड़े के अन्दर एक नन्नी सी बच्ची निकली, आगे चलाकर यही भगवान राम की भार्या सीता हुई ! इस तरह सीता जी को रावण की पुत्री भी कहा जाता है ! बाकी दूसरे भाग में

बादल

बैठकर पर्वत शिखर पर,
देखता हूँ बादलों को,
फिरते हैं आवारा बन कर,
हैं डराते बिजली गिराकर,
या वारीश की बुँदे लिए,
आशा का एक दीप दिखाकर !
जब चाहें जिधर जांय,
जैसा चाहे रूप बनाय,
पहुँच जाएंगे अरब ईरान,
या फिर रूस चीन जापान,
राष्ट्रपति भवन आ जाते,
सुरक्षा दल कुछ कह न पाते !
ताजमहल को ढक लेंगे,
जब शाहजहाँ इधर नजर करेंगे !
इन्हें वीजा न पास पोर्ट चाहिए,
दर दर भटकते इन्हें पाइए !
रोक नहीं टोक नहीं,
है हकीकत जोक नहीं !
सिकंदर ने देश जीते,
हिटलर के दिन बीते,
ये इनसे भी डरके ना भागे,
सदा रहे इनसे भी आगे !
पूरे गगन पर राज है इनका,
कल भी था और आज भी इनका !
जिस देश ने गुस्सा दिलाया,
गर्मी ने उसको जलाया,
फिर इतनी वारीष आई,
बाढ़ ने तवाही मचाई !
पर बादल भी खुश नहीं हैं,
इनका अपने पर बस नहीं है !
जब होता आंधी का जोर,
भागे बादल मचाके शोर !