Wednesday, September 15, 2010

रामायण के रहस्य (तीसरा भाग)

पम्पा सरोवर में स्वर्ग जाने से पहले तपस्वनी सबरी ने भगवान् राम को सुग्रीब का पता दिया था और उनसे अनुरोध किया था की "सीता माता का पता लगाने के लिए किशकिन्धा पर्वत पर आप सुग्रीब से मित्रता करें, वे अपनी बन्दर सेना द्वारा आपकी सहायता करेंगे " ! भगवान जी ने अपने हाथों से सबरी के शव को मुखाग्नि दी उन्हें पंचतत्व के सुपुर्द किया और किशकिन्धा की ओर चल पड़े ! किशकिन्धा पर्वत पर सुग्रीब अपने चन्द मंत्रियों के साथ बाली के भय से छिप कर रह रहा था ! उसने पर्वत के नीचे दो वनवासी भेष में धनुष वाण धारण किए दो क्षत्रिय वीरों देख कर हनुमान जी को पता लगाने के लिए उनके पास भेजा ! हनुमान जी ने ब्राह्मण भेष बना कर उनके नजदीक जाकर उनका परिचय पूछा ! जब भगवान ने अपना परिचय दिया, वन वन फिरने का कारण बताया, तो हनुमान जी अपने असली रूप में आकर उनके चरणों में गिर पड़े और कहने लगे, "भववन मैं तो ठहरा एक निरा बन्दर आपको पहचान नहीं पाया, पर आप तो परब्रह्म परमेश्वर हो, सब जानते हुए भी कैसे अनजान बन गए" ? भगवान रामचंद्र जी ने हनुमान जी को अपने गले लगा लिया ! हनुमान जी दोनों भाइयों को अपने कन्धों पर बिठाकर पर्वत के ऊपर जहाँ सुग्रीब छिपा हुआ था ले आए, सुग्रीब से भगवान का परिचय कराया ओर दोनों की मित्रता कराई ! बाली बानरों का राजा और सुग्रीब का बड़ा भाई था ! दोनों आपस में बड़े प्रेम से रहते थे, लेकिन विधि को इनका प्रेम रास नहीं आया और एक दिन बाली ने सुग्रीब को अकारण ही मार पीट कर राज भवन से भगा दिया और उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बनाकर रख लिया ! चौकी नाम के महामुनि के शाप के कारण बाली किशकिन्धा पर्वत पर नहीं जा सकता था ! सुग्रीब इसी पर्वत पर रहने लगा अपने मित्रों के साथ, यह स्थान उसके लिए सुरक्षित था ! स्वयं सुग्रीब सूर्य पुत्र होते हुए बड़ा बलशाली था लेकिन बाली से कम क्योंकि बाली ने बहुत कठीन तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान माँगा था कि "कोई भी शत्रु जो मेरे साथ आमने सामने का युद्ध करेगा उसका आधा बल मुझ में समा जाय "! ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहकर वरदान की पुष्टी कर दी थी ! इस तरह कोई भी यहाँ तक स्वयं भगवान रामचंद्र जी भी शत्रु रूप में उसके सामने नहीं पड़ना चाहते थे और मजबूरी में उन्होंने उस पर छिप कर वाण मारा ! ये बाली वही बाली था जिसने रावण को छ: महीने तक अपनी बगल में दबाकर रखा था ! अंत समय में भगवान राम ने उस से कहा था कि "अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हे प्राण दान दे सकता हूँ" ! उसने जबाब दिया था, "भगवन, इस समय मैं आपके हाथों मरकर, सब पापों से मुक्त होकर , आपके धाम को जा रहा हूँ, इस शुभ अवसर को मैं कैसे छोड़ दूं, अब तो मुझे इजाजत दो, पर जाने से पहले मैं अपने प्रिय पुत्र अंगद को आपके सुपुर्द कर देना चाहता हूँ, मेरे बाद सुग्रीब उसे कोई नुकशान न पहुंचा पाए " ! भगवान् राम ने उसे आश्वासन देकर विदा किया और अपने धाम पहुंचा दिया ! सुग्रीब के साथ रिक्ष राज जामवंत भी थे ! इस तरह अब भगवान राम की सेना में बंदरों के अलावा रीछ भी सामिल हो गए थे ! सुग्रीब का राज तिलक किया गया, अंगद को राजकुमार बना दिया गया !
हनुमान जी
रामायण के पात्रों में बजरंग बली हनुमान जी का विशिष्ट स्थान है ! उन्हें पवन तनय, शंकर भगवान् का बारहवां अवतार बताया गया है, उनकी माता तेजस्वनी अन्जनी हैं, पिता बानरों के राजा केशरी हैं ! शंकर सुवन केशरी नंदन, तेज प्रताप महा जगबंदन ! रामायण का सुन्दरकाण्ड हनुमान जी के नाम पर है ! जब सीता जी की खोज करते करते अंगद के नेतृत्व में हनुमान जी, जामवंत बानर सेना के साथ समुद्र तट पर पहुंचे, तो समुद्र कूद कर उस पार लंका में जाने के लिए किसको भेजा जाय, यह सवाल खड़ा होगया ! अंगद नायक हैं , उन्हें नहीं भेजा जा सकता ! इसके अलावा भी अंगद के न जाने का एक और कारण भी था ! रावण का पुत्र अक्षय कुमार और बाली पुत्र अंगद एक ही आश्रम में एक ही गुरु जी से शिक्षा ले रहे थे ! किसी बात को लेकर गुरु जी अंगद से खपा होगये और उन्होंने उसे शाप दे दिया कि "अगर वह रावण की नगरी लंका में प्रवेश करेगा तो रावण पुत्र अक्षय कुमार के हाथों मारा जाएगा "! इस तरह जब तक अक्षय कुमार ज़िंदा है, अंगद लंका नहीं जा सकता था , इस बात को जामवंत जी जानते थे ! जामवंत जी कहते हैं, "जवानी में लंका से भी दूर तक की छलांग लगा सकता था, लेकिन अब बुढा होगया हूँ, छलांग मार कर लंका में जा तो सकता हूँ, लेकिन वापिस नहीं आ सकता ! हनुमान जी अपनी शक्ती से बे खबर एक ओर चुप चाप खड़े थे ! वे बचपन में बड़े शरारती थे, ऋषि मुनियों को बहुत तंग करते थे, उनकी इस शरारत से तंग आकर एक महर्षि ने उन्हें शाप दे डाला, "कि जब तक कोई तुम्हे यह याद नहीं दिलाएगा कि तुम कितने वलवान और शक्तिशाली हो, तुम्हे अपने बल का ज्ञान नहीं होगा" ! जामवंत जी इस बात को जानते थे, इसलिए उन्होंने हनुमान जी को याद दिलाया कि "तुम तो बड़े बलशाली और पराक्रमी हो, तुम्हारे लिए समुद्र पार करना बड़ा आसान है, उठो और छलांग लगाओ " ! जैसे ही उन्हें अपनी ताकत की याद दिलाई गयी वैसे ही बिना एक क्षण की भी देर किए उन्होंने समुद्र में छलांग लगा दी और लंका पहुँच गए ! वहां माता सीता जी का पता किया, भक्त विभीषण जी से मुलाक़ात की, कही राक्षसों के साथ अक्षय कुमार को मौत के घाट उतारा और आते आते लंका को ही जला आए ! (बाग़ ४ में जारी)

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