Tuesday, September 14, 2010

रामायण के रहस्य (भाग दो)

मारीच सोने का मृग बना और राम का नाम लेते लेते पहुँच गया पंचवटी में ! सीता जी ने भगवान राम से कहा कि
"हे प्राण नाथ आप इस स्वर्ण मृग को मार कर इसकी सोने की छाल मेरे लिए लेते आइये ! राम मृग मारने चले गए, मृग ने मरने से पहले जोर से चिल्लाकर लक्ष्मण का नाम लिया ! अब सीता जी लक्ष्मण जी को भगवान् राम की मदद को भेज देती हैं ! इधर पीछे से रावण आता है और सीता जी का हरण कर ले जाता है ! रास्ते में जटायु ने रावण को रोकने की कोशीश की और रावण की तलवार से अपने पंख गँवा बैठा ! राम विलाप कर रहे हैं, पेड़ पौधे, पशु पक्षी से सीता जी का पता पूछते हैं ! लक्ष्मण जी भी भगवान् राम की हालत देखकर बहुत दुखी होते हैं ! उधर दूसरे रास्ते से भगवान् शंकर माँ सति के साथजा रहे थे ! भगवान् शंकर ने राम की तरफ देख कर सर झुका दिया ! यह देख कर सति जी ने शंकर जी से पूछ लिया "प्रभु आप तो देवों के भी देव हैं फिर एक वनवासी राजकुमार जो अपनी पत्नी के वियोग में आंसू बहाता हुआ चला जा रहा है आप उसी को सर झुका रहे हैं ? ये क्या रहस्य है" ? शंकर जी ने कहा " देवी ये साक्षात परमेश्वर हैं, राम के रूप में दुष्टों का नाश करने धरती पर अवतार लेकर आये हैं " ! ये बात सति जी को हजम नहीं हुई ! सोचने लगी "अगर ये परमेश्वर के अवतार हैं तो साधारण मनुष्य की तरह पत्नी के वियोग में दर दर क्यों भटक रहे हैं " ! शंकर जी से बोली "मैं परिक्षा लेकर देखूं "? शंकर जी का माथा ठनका ! सोचने लगे लगता है कुछ अनहोनी होने वाली है ! बोले, "जाओ परिक्षा लेकर जल्दी लौटना" ! सति ने सीता का भेष बनाया और जिस रास्ते से भगवान् राम आ रहे थे वहीं रास्ते में खडी हो गयी ! भगवान् राम ने उन्हें देख कर हाथ जोड़ कर कहा, "प्रणाम मातेश्वरी , बाबा भोले शंकर कहाँ हैं " ? सुनते ही लगा जैसे उनके सिर पर हजारों घड़े पानी के गिर गए हों ! वे भयभीत हो गयी, गला सुख गया, वे पसीना पसीना हो गयी ! अब वे जिधर भी नजर उठाती हैं राम सीता और लक्ष्मण ही नजर आते हैं ! इधर उधर और सब तरफ वही राम सीता और लक्ष्मण ! किसी तरह वापस अपने आश्रम में पहुँची ! शंकर जी के पूछने पर कि "परिक्षा ले ली, तसल्ली हो गयी" उनसे भी झूठ बोल गयी "हाँ मुझे आपकी बातों पर विशवास हो गया परीक्षा ले ने की आवश्यकता ही नहीं पडी "! शंकर जी ने ध्यान मग्न हो कर सब कुछ अपने चक्षुवों से देख लिया, कि सति सीता जी का भेष बनाकर उस रास्ते पर खडी हो गयी थी जिस रास्ते पर भगवान् जा रहे थे, तथा उसके बाद सति ने जो कुछ देखा वह सब कुछ उन्हें अपने ध्यान में दिखाई दिया कि " सति ने पर स्त्री का भेष बनाया और मुझ से झूठ बोला कि परिक्षा लेने की जरूरत नहीं पडी " ! अब शंकर जी सति से अलग अलग ही रहने लगे ! ज्यादा से ज्यादा समय वे ध्यानमग्न रहने लगे ! सति को भी अपनी गलती का अहसास हो गया था ! उन्हीं दिनों उनके पिता जी राजा दक्ष एक बहुत बड़ा यज्ञ करने जा रहे थे जिसमें उन्होंने सारे देवताओं को बुलाया था छोड़ कर महादेव जी के ! जब सति ने अपने पिता जी द्वारा किए गए यज्ञ में जाने की इच्छा जाहिर की तो पहले तो बिना बुलाने पर 'मान न मान मैं तेरा महिमान' बनकर जाना अपमान होने का अंदेशा है, शंकर जी ने जाने से मना कर दिया, लेकिन जब सति जिद करने लगी तो शंकर भगवान ने अपने एक ख़ास गण के साथ उन्हें विदा कर दिया ! जब सति अपने पिता जी के घर पहुँची वहां उनकी माँ के अलावा किसी ने भी उनसे ढंग से बात नहीं की, यहाँ तक राजा दक्ष ने भी ! द्वार पर उनके पति शंकर की प्रतिमा लगी थी द्वार पाल के रूप में ! सति को यह देख पडा कष्ट हुआ, अपने पति का अपमान उनसे बर्दास्त नहीं हुआ और उन्होंने भभकती हुई हवनकुंड की अग्नि में छलांग लगा दी ! सति के हवनकुंड में गिरते ही उनके साथ भगवान शंकर के गण ने वहां तोड़ फोड़ शुरू करदी ! यज्ञ की व्यवस्था तार तार हो गयी ! शंकर भगवान जी ने आकर बाकी रही सही कमी पूरी कर दी, यज्ञ में आने वालों को दंड दिया गया ! यज्ञ के ध्वंस होते ही राजा दक्ष भी परलोक सिधार गए ! शंकर जी ने सति के जले हुए शरीर को कंधे पर उठाते हुए पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण की परिक्रमा कर डाली ! इस तरह की परिक्रमा में कहीं सति की आँखे गिरी, कहीं सर गिरा कहीं हाथ गिरे, तो कहीं पाँव गिरे, इस तरह जहाँ जहाँ भी माँ सति के शरीर के अंग गिरे वहीं आज उनके नाम के मंदिर बने हुए हैं ! सति का दुबारा जन्म हुआ हिमालय के यहाँ पार्वती नाम से ! आज हम उन्हें श्रद्धा भक्ति से शिव-पारवती के नाम याद करते हैं और उनकी पूजा करते हैं !
सबरी को दर्शन
सबरी नाम की भीलनी अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए, कही सालों से वियावान जंगल के एक आश्रम में भगवान राम का इंतज़ार कर रही थी ! वह रोज सबेरे ही उठ कर दूर तक झाडू लगाती थी, रास्ते के कंकण पत्थर हटाती थी, दूर रास्ते में आश्रम तक ताजे ताजे फूल बिछाती थी ! रोज ताजे ताजे मीठे बेर चख चख कर भगवान को भोग लगाने को इकट्ठा करती थी ! उसे पक्का भरोसा था की इस शरीर को त्यागने से पहले भगवान राम उसके आश्रम में जरूर आएँगे ! उसके गुरु ने स्वर्ग जाते हुए उससे कहा था और उसको अपने गुरु के वचनों पर पूरा भरोषा था ! और भगवान् राम आये, भगवान राम को देखकर वह अपनी सुध बुध भूल गयी, उसके चरण धोकर पहले सर चढ़ाया फिर उसे पिया ! बेर चख चख कर भगवान को खिला रही है और भगवान राम बड़े प्रेम से उन बेरों को खा रहे हैं ! ऋषि मुनि साधु सन्यासी जिन के चरण कमलों के दर्शन करने के लिए कही जन्म बीता देते हैं वही भगवान राम सबरी के झुठे बेर बड़े प्रेम से खा रहे हैं, "भगवान से सच्ची श्रद्धा और भक्ती का फल" ! सबरी प्रेम में विह्वल होकर झुठे बेर कभी राम को खिलाती हैं कभी लक्ष्मण जी को देती हैं, लेकिन जहां राम उन बेरों को प्रेम से खा रहे हैं वहीं लक्ष्मण जी उन बेरों को उत्तर दिशा में फेंक देते हैं !
आने वाले दिनों में वही बेर के फेंके हुए दाने संजीवनी बूटी बनकर लक्षमण जी के प्राणों की रक्षा करते हैं ! भगवान राम के दर्शन के लिए ही सबरी आज तक जिन्दा थी, उनके दर्शन के बाद उनके सामने ही वह उनका नाम लेते हुए राम के धाम को चली गयी ! (तीसरे भाग में जारी )

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