Sunday, October 25, 2009

एक लम्बी यात्रा

चला जा रहा हूँ , जीवन यात्रा पर,
मंजिल कहाँ है पता भी नहीं है, या दूर है या फ़िर यहीं है !
न कोई भय न डर, उडता जा रहा हूँ बिना पर !
रात का अँधेरा, करता बसेरा उड़ते पंछी की तरह,
किसी सराय में या किसी डाल पर,
यह सोच कर कहीं सो न जाऊं, स्वपनों में खो न जाऊं!
सबेरे उठना अगले पड़ाव तक चलना,
कितने पड़ाव आयेंगे, मुसकराते फूलों में बैठे भंवरे गुन गुनाएंगे !
नए चहरे मिलेंगे, साथ साथ चलेंगे,
कुछ राहों में बिछुड़ जाएंगे, कभी खुशी कभी गम का आलम बनाएंगे !
यही सोच कर चला जा रहा हूँ आगे ही आगे,
नींद आने से पहले मंजिल तक पहुँचना चाहता हूँ !
इच्छा है नाप लूँ आसमान की ऊंचाई, समुद्र की गहराई,
जानता हूँ चलते चलते शरीर का कौन सा अंग कहाँ गिर जाए,
अनजान वीरान जंगलों में कौन सा हिसक sher बघेरा सामने आ जाए !
सूरज चाँद निकलेंगे, फ़िर अस्त हो जाएंगे, सितारे जगमगाएंगे फ़िर फीके पड़ जाएंगे,
मुस्कराते फूल भी मुरझा जाएंगे,
इन राहों में किसान होंगे, मजदूर होंगे,
नंगे भूखे बच्चे होंगे, अपंग असहाय भिखारी होंगे,
नेता होंगें seth dhanpati honge, vyaapaaree yaa अभिनेता होंगे,
इन सब से मिलकर चलना होगा, जिंदगी की हकीकत को समझाना होगा,
जिन्दगी की सांझ आने से पहले मैं मंजिल तक जाना चाहता हूँ !
मंजिल को पाना चाहता हूँ !

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