Friday, June 25, 2010

मैं भी जवाँ

मैं भी जवाँ तुम भी जवाँ
फिर ये बचपन बुढापा कहाँ ?
नज़ारे कुदरत के बिखरे जहां,
हर दिल की धड़कन धड़के वहां !
संगीत कानों में बजने लगे,
लबों से गीत निकलने लगे,
पाँव जमीन पे थरकने लगे,
चकवा चकवी से मिलने लगे,
रंगीन स्वप्ने आँखों में सजे,
पायल या घूंघरू पावों में बजे !
बन ठन के दुलहन चली है कहाँ ?
नज़ारे कुदरत के बिखरे यहाँ !!
अमुवा की डाली पे कोयल के गीत,
घाटी में गूंज रहे संगीत,
नदियों की कल कल
चलता ही चल ,
रुक न पाए एक भी पल,
बादल भी करते हैं अपना काम,
बरसाता पानी सुबह और शाम,
हवा का झोंका हिलते हैं पेड़,
गिरते हैं पते मत इनको छेद !
कुदरत ने सबको किया है जवाँ,
फिर ये बचपन बुढापा कहाँ ?

3 comments:

  1. aapki jawani aapke lekhan me jhalakti hai aur wah bada hi murkh prani hoga jo aapko jawan na kahega bas aise hi jawani ko barkarar rakhen aap taki ham apne aapko jawan samjhne lage sath hi hi apne lekhan se apne doston me bhi jawani lahar bikherte rahen dhanyawad.
    a k dubey.

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