Thursday, November 18, 2010

जिन्दगी के ७५ बसंत

हाँ आज मैंने अपनी जिन्दगी के ७५ बसंत पूरे कर लिए हैं और ७६ वीं सीढ़ी में कदम रख दिए ! २००३ ई० में मैं इन दिनों उटाह (अमेरिका) में था ! उसके बाद २००६ से २०१० तक मैं अपना जन्म दिन अमरीका में ही मनाता आ
रहा हूँ ! यहाँ मेरा सबसे छोटा पोता है वेदान्त, मैं उसके साथ बच्चा बन जाता हूँ ! आत्रेय सात साल का हो गया है, लेकिन दादा के साथ उसका भी लगाव ज्यादा ही है ! इस तरह दोनों बच्चों के साथ अपना जन्म दिन मनाने का आनंद ही और है !आज सुबह उठ कर परमपिता परमात्मा को नमस्कार किया, स्नान करके पूजा की, योगा प्रायाम करके २ मील की सैर करने कालोनी के पूरब दक्षिण में एक छोटी सी पहाडी है, उसके ऊपर खड़े होकर सूरज की प्रथम सुनहरी किरणों के नज़ारे देखे, फिर बच्चों के बीच हंसते खेलते हुए उन्हें स्कूल भेजा ! काजल और मेरी पत्नी ने मुझे जन्म दिन पर बधाई दी और गर्म गर्म मीठे हलवा खिला कर मीठे मूंह से दिन की शुरुआत हो गयी ! कम्यूटर पर मेल देखी, कही दोस्तों, साथियों और भारत से बच्चों की मेल देखी सब मेरे जन्म दिन की बधाई के थे !
दिल्ली से मेरी पोती आर्शिया और पोता अरनव ने भी मुझे जन्म दिन की वधाई दी अपनी तूतली बोली में (वह अभी एक साल और ९ महीने का है ) ! पटपडगंज दिल्ली से लड़की का तथा मेरी ध्योती नीतिका ने भी फोन पर अपना सन्देश दिया ! राजेश इस समय बंगलौर में है एक जरूरी मीटिंग के लिए, उसने भी फोन करके जन्म दिन की बधाई दी इसी तरह ब्रिजेश और बिन्दू भी पीछे नहीं रहे ! फिर दोस्तों के फोन आने शुरू हुए, कुछ पूछते थे "रावत जी अब कितने साल के हो गए "? और मैं गर्व से कहता की "अनुमान लगाओ," *७०, ८० ", ७० तक तो मैं मुस्कराता रहता लेकिन जब ८० कहते तो मैं आपा खो देता, "कमाल करते हैं आप, अभी बहुत सारे बच्चे मुझे अंकल कह कर पुकारत्ते हैं और आप मुझे ८० का बताते हैं ", वे कहते
"रावत जी माफ़ करना, आपका कसरती शरीर देखकर तथा बालों से आप ६५ के लगते हैं लेकिन चहरे की झुरियां हमें चक्कर में डाल देती हैं यकीन मानो आपके शरीर की लचक और स्फूर्ति देखकर कोई आपको ६०-६५ से से ऊपर का नहीं कह सकता और मेरे मन में खुशियों की फूल झड़ियां झड़ने लगती ! शाम तक बच्चे स्कूल से वापिस आजाते हैं फिर हो जाती बचों के साथ लुका छिपी, कबड्डी कबड्डी, दौड़ भाग ! एक सजन ने मुझे पूछा "रावत जी आप इस उम्र में भी इतनी दौड़ भाग वह भी बच्चों के साथ कैसे करलेते हैं " ? मैं जबाब देता हूँ, सुबह सुबह उठ कर स्नान ध्यान, योग, कसरत, प्राणायाम और सूरज निकलने के साथ ही २ मील की सैर ये सब मेरे दैनिक कार्य कर्म में सामिल है !
मैं यहाँ ६ दिसंबर तक हूँ फिर इंडिया चला जाउंगा और वहां भी यह नियम इसी तरह पालन किया जाएगा ! यहाँ के लोगों के पास पैसा है, सजा सजाया शानदार मकान है, महंगी कार हैं, दिमाग है, वह सब कुछ है जिसको हम भौतिक सुख कहते हैं, लेकिन मन की शांती नहीं है , जिस्मानी स्थिरता नहीं है ! जवानी पैसा कमाने और भाग दौड़ में बीत जाता है और बुढापा बीमारियों के बोझ तले बीतता है ! मैं योग गुरु बाबा रामदेव के बताए हुए वसूलों का पालन करता हूँ , दिमाग को चिंता मुक्त रखता हूँ ! आप भी इस विधि को अपनाइए !

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