हमारा यह शरीर पंच तत्व का है ! ईश्वर एक सुन्दर सी आकृति रूप में बच्चे को माँ बाप के आँगन में उतार देता है साथ ही उस बच्चे की देख रेख की भी जिम्मेदारी उनके कन्धों में डाल देता है ! अब माँ बाप जैसे माहौल में होंगे उसी तरीके से बच्चे की देख रेख, लालन पालन वे अपनी हैसियत से करते हैं ! यहाँ तक बच्चा अपने पिछले कर्म और संसकारों के सहारे पंहुचता है, अगर अच्छे कर्म थे तो किसी ऊंच्चे खानदान में, किसी ईश्वर भक्त के आँगन में, किसी सरस्वती की उपासना करने वाले सज्जन के घर में जन्म लेता है, नहीं तो किसी गरीब की झोपडी या किसी मजदूर की तपस्या से कमाई हुई पूंजी के तौर पर गुदड़ी का लाल बनकर उनके अतृप्त मन को तृप्त करने के लिए उनके घर का चिराग बन जाता है ! जब तक बच्चा होश संभालता है तब तक माँ बाप उसकी हर हरकत पर नजर रखते हैं ! उसके खान पान, रहन सहन और बोल चाल पर उसके माँ बाप की शिक्षा, सभ्यता और संस्कारों का असर पड़ता है ! ज्यों ज्यों वह बड़ा होता जाता है पास पडोस के बच्चों की संगत करता है, स्कूल जाता है वहां विभिन्न संस्कार और परस्थितियों से जूझते माँ बाप के बच्चे पढ़ते हैं, जिस बच्चे के विचारों से उसके विचार मेल खाते हैं, उस से उसकी दोस्ती हो जाती है ! अगर वह बच्चा संस्कारिक है, अच्छी सभ्यता वाला, अच्छी भाषा बोलने वाला है तो ये गुण उसके खान पान रहन सहन पर भी असर डालते हैं ! खान पान में पांच तत्वों की पूर्ती होती रहती है, इसी हिसाब से दिमाग बढ़ता है, शरीर बढ़ता है, पांच ज्ञान इन्द्रियाँ और पांच कर्म इन्द्रियों का विकास होने लगता है ! अगर माँ बाप का आँगन जो बच्चे की जिन्दगी की पहली सीढी है वही विकृत है, घर का माहौल ही दूषित है तो बच्चे का विकास भी वैसे ही होगा ! यहाँ पर सवाल उठता है की क्या बच्चे के संस्कार, खान पान पर और भाषा पर माँ बाप के गरीबी और अमीरी का असर पड़ता है ? अमीरी और गरीबी का असर तो बच्चे के खान पान रहन सहन, पहनावा और वातावरण पर पड़ता है लेकिन बुद्धी के विकास में अमीरी गरीबी आड़े नहीं आती ! माँ बाप गरीब हैं और अच्छे संस्कार और भाषा वाले हैं, महत्वाकांक्षी हैं, बच्चों के भविष्य के प्रति सजग हैं और लगनशील हैं उनके बच्चे झोपड़ियों से निकल कर बंगलों में पहुँच जाते हैं ! हाल ही में दो मजदूरों के बच्चे एक
ऐ ए एस में निकला है तो दूसरा ऐ ऐ टी के लिए क्वालीफाई कर गया है ! यह तो जीता जगता उदाहरण है ! फिर सभी अम्मीरों और नौकरसाहों के बच्चे ऊँची डिग्री नहीं ले पाते जो गरीबों के बच्चे ले जाते हैं ! हाँ राज नीति ही एक ऐसा स्थान है जहां सारी सीटें नेताओं और नौकरशाहों के लिए आरक्षित हैं !
अब रही इस पंच तत्व रूपी शरीर को संवारने की बात तो हर इंसान को जब वह स्वावलंबी हो जाता है तो उसे अपने शरीर का ध्यान स्वयं ही करना पड़ता है ! आज के इस मशीनी युग में जब इंसान भी खुद मशीन बन गया है, जिस शरीर को पुष्ट करने के लिए वह कमाने के लिए भाग दौड़ कर रहा है उसके बारे में सोचने का तो उसे कभी मौका ही नहीं मिलता ! आइए इस बारे में बात करें की हमारे इर्द गिर्द बिखरी हुई छोटी छोटी वस्तुएं, छोटी छोटी जानकारियाँ हमारी जिन्दगी को संवार सकती हैं ! सुबह उठते ही अपने हाथ देखिए, ठंडियों में हल्का सा गर्म पानी और गर्मियों में ठंडा पानी मुंह में भर दीजिये, ठन्डे पानी से आँखों में छूमा दीजिए तब तक, जब तक आँखों में मिर्च न लग जाँय ! फिर मुंह के पानी को नाक के द्वारा बाहर निकाल दीजिए ! इससे एक तो आँखों की रोशनी बनी रहती है चश्मे की जरूरत नहीं पड़ती, नाक का और गले का टेम्प्रेचर सम रहने से जुकाम लगने के चान्स्यज कम हो जाते हैं ! शाम को सोते हुए हलके गर्म दूध में एक चुटकी हल्दी डाल कर पी जाँय ! इससे पेट में पलने वाले परजीवी कीड़े ख़त्म हो जाते हैं ! ताली बजाने से शरीर के अन्दर के तमाम हिस्सों गुर्दे, फेफड़े, दिल, आंतें (छोटी बड़ी), गला, कान, आँखें, नाक, पेनक्रीज, थायराइड, लीवर को प्रेसर मिलता है ! शरीर को वार्म अप करने के लिए हल्का सा व्यायाम जरूरी है ! प्राणायाम जैसे अग्निसार, कपालभाती, अनुलोम -विलोम, उजई, भामरी, नाडी शोधन आदि ! इससे शरीर दिन भर चुस्त और प्रश्न्चित रहता है ! प्रसालन में परेशानी हो रही हो तो सुबह उठते ही दो गिलास गुनगुना पानी पीकर सौ दो सौ कदम चलिए, त्रिकोण आसन पांच बार बाएं और पांच बार दाहिने झुकिए ! अगर वायु की शिकायत है तो सुबह खाली पेट एक लहसुन छील कर साबुत पानी के साथ निगल जाँय ! मुंह का स्वाद ठीक नहीं है तो लंच या डिनर से दश मिनट पहले एक छोटा सा टुकड़ा अदरक का नमक मिलाकर चूस लें ! मुंह का स्वाद ठीक हो जाएगा और खाने में स्वाद आएगा ! इस तरह ईश्वर की दी गयी इस अमूल्य जिन्दगी को हम संवार सकते हैं और जितनी साँसे उस परम पिता ने हमें दे रखी हैं उनका आनंद ले सकते हैं !
Thursday, November 4, 2010
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