Tuesday, November 9, 2010

प्यार के अलग अलग रंग

दरिया और सरिता १२ वीं क्लास में साथ साथ पढ़ते थे ! सरिता तो पहले से ही फैजावाद केन्द्रीय विद्यालय में थी और दरिया का पिता सेना में हवलदार थे और उन्हीं दिनों आसाम से पोस्टिंग होकर फेमिली के साथ फैजाबाद आए थे ! क्योंकि दरिया आसाम में भी केन्द्रीय विद्यालय में पढ़ता था इस लिए यहाँ उसे केन्द्रीय विद्यालय में दाखिला आराम से मिल गया ! सरिता के पिता बनवारी लाल बचपन में ही अपने गाँव (हरियाणा) छोड़ कर यहाँ फैजाबाद आ गए थे ! पहले उन्होंने एक व्यापारी के यहाँ नौकरी की ! अपनी योग्यता, लगन, कठीन मेहनत और वफादारी से जिस सेठ के यहाँ वे नौकरी करते थे उन्होंने उसकी लगन, मेहनत और वफादारी से खुश होकर अपनी कंपनी में उसे २५% का हिस्सेदार बना दिया और अपनी लड़की की शादी उसके साथ कर दी ! सेठ जी की एक लड़की और एक लड़का था ! उनके स्वर्गवासी होने के बाद उनके वाणिज्य व्यापार का जिम्मा बनवारी लाल और उनके साले के कन्धों पर पड़ गया था ! सेठ जी अपनी वसीयत में दोनों को आधे आधे का हिस्सेदार बना गए थे ! दोनों ही मेहनती, कर्मठ और ईमानदार थे इसलिए व्यापार में दिन दुगुनी और रात चौगुनी उन्नति होती चली गयी व्यापार फैलता गया ! अब उनकी गिनती फैजाबाद में प्रतिष्ठित इज्जतदार नागरिकों में होने लगी ! कही स्कूल, अनाथालय, लावारिस बच्चों के होस्टलों में वे हर महीने डोनेशन देने लगे थे ! इधर दरिया एक फ़ौजी हवलदार का लड़का था ! उसके दादा भी सेना में हवलदार थे और उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था बर्मा बौडर पर ! रहने वाला वह भी हरियाणा का ही था, जाति विरादरी के हिसाब से भी दोनों खान दानी थे ! गाँव में जमीन भी थी और खाने के अलावा बेचने के लिए भी अनाज पैदा हो जाता था ! लेकिन आर्थिक दृष्टि से दोनों में जमीन आसमान का अंतर था ! इसलिए दरिया क्लास में अपनी पढाई पर ही विशेष ध्यान देता था, उसके अगल बगल में क्या हो रहा है, उसकी क्लास में कितनी लड़कियां पढ़ती हैं, कैसे लगती हैं, इस ओर उसने कभी ध्यान दिया ही नहीं ! उसने अपने पिता को सेना की ड्यूटी करते हुए देखा था, सुबह चार बजे से लेकर रात के दश बजे तक ! कभी कभी तो पूरी रात ही वे ड्यूटी पर रह जाते थे ! इस तरह कठीण मेहनत से कमाए हुए अपने पिता जी की कमाई से आये पैसों का वहा सही सदपयोग करना चाहता था ! मेहनत करता था और क्लास में प्रथम स्थान पाता था ! उसे तो यह भी पता नहीं था की जो इन्ने गिन्ने लड़कियां उसकी क्लास में पढ़ते हैं उनका नाम क्या है ! उसने सरिता का नाम तो सुना था पर देखा नहीं था ! वह एक अच्छी लड़की थी ! उसने कभी भी सो नहीं किया था की वह एक बड़े व्यापारी की लड़की है ! साधारण कपडे पहिनती थी और केवल अपनी पढाई से मतलब रखती थी ! मेहनत करती थी पर मैथ्स में कमजोर थी ! वह जानती थी की 'दरिया सारे बिषयों में होशियार है लेकिन मैथ्स में तो उसे महारत हासिल है' ! वह दरिया से मैथ्स सीखना चाहती थी लेकिन उसे बात करने की उसकी हिम्मत ही नहीं हुई ! समय निकलता जा रहा था, बोर्ड की परिक्षा की तारीखें नजदीक आ रही थीं ! आखिर हिम्मत करके एक दिन सरिता स्कूल की छुट्टी होने के बाद बाहर बरगद पेड़ के नीचे खड़े हो कर दरिया का इन्तजार करने लगी ! दरिया क्लास से सबसे बाद में निकलता था और सीधे बिना दांये बांये देखे अपने घर की तरफ चल देता था ! जैसे ही वह वरगद के पेड़ के नीचे से निकल रहा था उसे बीच रास्ते में सरिता दिखाई
दी ! दरिया को देखते ही सरिता ने उसका रास्ता रोकते हुए कहा, "माफ़ करना मैंने आज आपको बड़े विश्वास और भरोषे के साथ कुछ जिम्मेदारी देने के लिए रोका है, आशा है आप मेरे भरोषे का मान रखेंगे "! दरिया के पूछने पर उसने उससे मैथ्स सीखने की इच्छा जाहीर की ! दरिया ने उसे मैथ्स सिखाने की हामी भर दी ! दरिया ने उसे कहा की "मैथ्स तो मैं आपको सिखा दूंगा लेकिन कहाँ सिखाउंगा ?" , सरिता ने कहा "मेरे घर पर ! मैंने अपने मम्मी पापा से किसी अच्छे टीचर से मैथ्स सिखाने की इजाजत ले रखी है "! अगले दिन दरिया सरिता के साथ ही उसके घर गया ! सरिता के पापा और मम्मी से मिला ! उसके पापा ने कुछ जबाब सवाल करने के बाद उसे पूछा की वह ट्यूशन के कितने पैसे लेगा ! उसने जबाब दिया, "पढ़ाना मेरा शौक है पैसा कमाना नहीं, सरिता को मैथ्स पढ़ाते पढ़ाते मेरा भी तो रिविजन हो जाएगा "! जबाब सुनकर
बनवारी लाल खुश होगये और उन्होंने उसे सरिता को मैथ्स पढ़ाने की इजाजत दे दी ! इस पढ़ने पढ़ाने के दौरान कब इन दोनों की नजरें चार हुई और अन्दर ही अन्दर दिल के अन्दर कब प्रेम का पौधा अंकुरित हो गया दोनों को पता भी नहीं चला ! लेकिन विडम्बना तो देखिये, दिल की बात कभी इन दोनों की जवान पर नहीं आई ! वैसे भी दोनों की आर्थिक विषमताएं दोनों के दिल की आवाज दबा रही थी ! सरिता अपने मम्मी पापा से बाहर नहीं जा सकती थी, दरिया के पास पैसा नहीं था और वह किसी का मोहताज बनना नहीं चाहता था ! दोनों ही एक दूसरे को जीवन साथी बनाना तो चाहते थे लेकिन बात मन की मन में रह गयी और समय की गाडी बहुत आगे निकल गयी ! बोर्ड की परीक्षा भी हो गयी दोनों पास भी हो गए और आगे कालेज में दोनों की दिशाएं भी बदल गयी ! समय बहुत तेजी से निकलता चला गया ! सरिता के लिए अच्छे अच्छे रिश्ते आने लगे, लेकिन या तो परिवार ठीक नहीं मिला या लड़का सरिता के जोड़ का नहीं मिला ! सरिता के पापा ने एक दो बार दरिया के बारे में सोचा भी कि "दरिया एक सुन्दर कद काठी का मेहनतकस नव जवान है और सरिता के लिए योग्य भी है लेकिन गरीब है, एक मामूली सैनिक के लडके के हाथों अपनी फूलों की सेज में पली लाडली लड़की का हाथ दे देना कोई अकलबंदी नहीं है" ! उधर दरिया ने भी कालेज से निकलने के बाद अपने परिवार की परंपरा को आगे बढाते हुए आर्मी ज्वाइन करदी लेफ्टिनेंट की रैंक से ! पहली पोस्टिंग जम्मू काश्मीर में हुई कैप्टेन की रैंक के साथ ! वहां आतंकवादियों के एक भारी खतरनाक दल का सफाया करने के एवज में दरिया को केवल डेढ़ साल की सर्विस में ही पीस टाईम का दूसरे नंबर का मेडल 'कीर्ति चक्रा' भारत के राष्ट्रपति के हाथों से लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ! देश के प्रमुख अखबारों के प्रथम पृष्ट पर उसकी फोटो के साथ उसकी बहादुरी के कारनामें उजागर किए गए थे ! राष्ट्रपति से मेडल लेते हुए उसकी सुन्दर तस्वीर भी अलग से छपी थी ! अखबार सरिता के ममी पापा ने भी देखा और सरिता ने भी ! फोटो देखते ही वे उसे पहिचान भी गए ! सरिता के लिए लड़का ढूंढते वक्त उन्हें उसकी याद नहीं आई क्योंकि उस समय तक वह उनकी बराबरी का नहीं था ! आज वही दरिया एक सेना का बहादूर अफसर 'कृति चक्रा ' से सम्मानित की वर्दी में उन्हें अपना दामाद नजर आने लगा ! सरिता को बिना कहे ही मन की मुराद मिल गयी, ईश्वर ने उसके दिल की पुकार सुन ली ! बनवारी लाल ने फ़ौरन अखबारों में छपे टेलेफोन पर दरिया के पिता से संपर्क किया और दरिया और सरिता का रिश्ता पक्का कर दिया गया ! इस तरह बिना ओंठ हिलाए ही दोनों की
मन की मुराद पूरी हो गयी, दोनों की शादी बड़े धूम धाम की गयी ! ये हैं प्यार के अलग अलग रंग !

1 comment:

  1. kahani achhi hai kintu birle jode hi aise jud pate hain, adhikansh to honour-kiling ka shikar ho jate hain.

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