Wednesday, November 3, 2010

एक नया सूरज निकलेगा

पुराना साल जाता है नया आता है, एक उत्साह, एक उमंग एक नया स्वप्न जहन में उतर आता है ! इसी तरह बीते दिन की खट्टी मीठी यादों को संजोकर नए दिन का इंतज़ार रहता है ! हर कोई उगते सूरज को नतमस्तक होकर नमस्कार करता है, लेकिन शाम को जब वही सूरज पश्चिम दिशा में अपनी लालिमा बिखेरते हुए अपनी अंतिम यात्रा की सूचना देता है तो कोई बिरले ही उनके दर्शन करता है ! जो दर्शन करते भी हैं वे शाम का नजारा देखना चाहते हैं की सूरज जब अस्ताचल को जाने लगता है तो कैसे लगता है ? कुछ सैलानी सूरज की अंतिम यात्रा में कुदरत के अद्भूत रंग देखते हैं कुछ ऐसी भी दिल वाले होते हैं जो सूर्यास्त की सीनरी को अपने बैठक की दीवार पर लगा कर बैठक की शोभा बढाते हैं !
आज मैं सुबह सुबह पूरब दिशा में खुलने वाली अपने घर की खिड़की के पास बैठकर उगते सूरज के दर्शन कर रहा था ! जहां पर सूरज उगने वाले थे वहा कुछ दूर तक काले बादलों की परतें जमा थी ! धीरे धीरे सूरज की किरणे बिखरती गयी और ये बादलों के टूकडे किरणों के प्रभाव में स्वरूप बदलते गए ! मैं एक टक से पूरी एकाग्रता से बादलों के पल पल में बदलते हुए रूप रंग देखता रहा ! पहले लगा की मेरे सामने एक विशाल पर्वत खडा है, उस पर्वत के आगे खेत हैं, कहीं कहीं पर बड़ी बड़ी झीलें झीलों में खिले हुए कमल के फूल, विचरण करने वाली बतखें, खेत धान की पक्की हुई फसलों से भरी हुई, उनके बीच से निकलता हुआ रास्ता जो पहाड़ की चोटी तक चला गया है ! पहाड़ के पीछे से एक नदी बहती हुई, पर्वत शिखर से झरना बन कर गिरती है और इन खेतों की मीढों से टकराती हुई आगे विशाल झील में मिल जाती है ! इस नदी के किनारे कही प्रकार के पेड़ पौधे कही रंगों में दिखाई दे रहे हैं ! जैसे जैसे सूरज का रथ आगे बढ़ता है वैसे ही इन बादलों का स्वरूप भी बदलता जाता है ! धान के विशाल खेत धीरे धीरे सूखे घास में बदल जाते हैं ! झीलें धीरे धीरे सिकुड़ती हुई सूखती जा रही हैं ! उगते हुए सूरज की चढ़ती हुई किरणें काले बादलों को छितर बित्तर करती हुई चारों और फैलती जा रही हैं ! सूरज पूरी तरह निकल आये हैं और बादल जो उनके रथ के आगे दुष्टों की तरह जाल बिछाते जा रहे थे दूम दबाकर भागते नजर आ रहे हैं जैसे सच्चाई के आगे झूठ फ़िका पड़ जाता है, जैसे सज्जनों के आगे दुष्ट ज्यादा देर नहीं टिक पाते ठीक वैसे ही आज के भ्रष्टाचारी, जालिम, दुष्ट, अत्याचारी, हत्यारे और झूठे सूरज की तेज किरणों में जल कर राख हो जाएंगे ! भारत भूमि में भी एक दिन एक ऐसे ही सूरज निकलेगा जिसकी तेज किरणों के आगे ये तमाम भ्रष्टाचारी,
रिश्वत खोर, जमाखोर, देश द्रोही, गद्दार, आतंकवादी, हत्यारे, झूठे, सब्ज बाजार दिखाने वाले आयाराम गया राम नेता इन काले बादलों की तरह बिखर जाएंगे ! इसी आशा और विश्वास के साथ भारत माता की धुल धूसरित करोड़ों किसान, सैनिक, मजदूर, मासूम बच्चे, महिलाएं जी रहें हैं और इन्तजार कर रहे हैं उस भगवान कृष्ण की जिन्होंने स्वयं अपने मुंह से कहा था "यदा यदा हि धर्मंस्य ग्लानिर्भ व् ति भारता, अभ्युत्थानम धर्मस्य तदाअत्मानं सृजाम्यहम !!

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