कहते हैं एक सौ साल पहले अकेले भारत में ५० हजार टाईगर थे, जो आज सीमिट कर दो हजार के लगभग रह गए हैं ! पूरे विश्व में आज सात और आठ हजार के लगभग टाईगर बचे हैं ! जंगल कट गए, कुदरती तालाब झीलें सूखने लगी, जंगलों में सड़क बनाने, पत्थर तोड़ने के लिए बारूद जैसे भयानक आवाज करने वाले उपकरणों का इस्तेमाल होने से भी टाईगर के बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ने से उनकी आने वाली नस्ल धीरे धीरे समाप्ति के कगार पर है ! शेर या टाईगर का शिकार करना रजवाड़ों, रईसों और अंग्रेजों का शौक रहा है ! एक आंकड़े के मुताबिक़ अकेले सरगुजा के महाराजा ने अपने जीवन काल में ११०० टाईगरों का शिकार किया था ! फिर जंगल कटने से जंगली जानवर भी कम होते चले गए, बाकी बचे हुए टाईगर गाँव के नजदीक आकर पालतू जानवरों को मारने लगे, कभी कभी तो वे आदमियों और बच्चों को ही उठाने लगे, नतीजा गाँव वालों ने मरे हुए जानवरों के शरीर पर जहर मिला कर उन्हें मार डाला, इस तरह उनके आतंक से गाँव वालों को तो छुटकारा मिल जाएगा लेकिन कुदरत की दी हुई टाईगर नाम के इस खूबसूरत तोहफे को हम जल्दी ही खो देंगे ! कहीं ऐसा न हो की टाईगर नाम का जीव इतिहास के पनों में डैनासोर की तरह बंद हो जांए ! चोरी चोरी शिकारी इनका शिकार कर रहे हैं ! पैसे के लोभ में ये लोग टाईगर को मार कर उसकी खाल, दांत, नाखून, हड्डियों को बेच देते हैं ! हड्डियों से दवाइयाँ बनाई जाती है, दांत और नाखूनों से नेकलेस बनाया जाता है, कुछ लोगों का विश्वास है की इस नेकलेस को पहिनकर वे भी शारीरिक और जिस्मानी तौर पर टाईगर की तरह ताकतवर बन जाएंगे !
कदम कदम पर मौत के शौदागर
एक मादा टाईगर तीन साल की उम्र पूरी होने पर एक समय में एक से सात बच्चे देती है लेकिन उनमें दो या तीन ही बच पाते हैं ! नर टाईगर की उम्र चार साल होने पर वह एक पूरा जवान टाईगर स्वालंबी बन जाता है, बच्चों को आँख खोलने में तीन से चार दिन का समय लग जाता है ! नर टाईगर जंगल के करीब तीन सौ वर्ग किलोमीटर तक अपनी सीमा का मालिक होता है ! उसकी उस सीमा में तीन से चार परिवार होते हैं ! मादा टाईगर प्रेगिनेंसी के ३ महीने बाद बच्चों को जन्म देती है ! बच्चों के लिए एक ऐसी गुफा का चुनाव करती है जो सुरक्षित हो, पानी नजदीक हो, खाने के लिए जानवर नजदीक हों ! पहले के एक महीने तक मादा को बच्चों की सुरक्षा की ज्यादा ही चिंता रहती है, उस वक्त उन्हें, चील और लोमड़ी जैसे जीवों से बचाना होता है ! पिता के अलावा इन नादान बच्चों को दूसरा टाईगर, शेर, भालू भी उठा ले जाता है ! एक महीने बाद उनकी माँ उन्हें जानवरों के शिकार पर पालती है, बच्चे मां का दूध पीना बंद कर देते हैं ! दो महीने बाद माँ उन्हें खतरा भांपने की ट्रेनिंग देती है, वह चिड़ियों जैसी एक अजीब आव्वज करती है और बच्चे खतरा समझ कर छिप जाते हैं ! दो महीने के बाद माँ बच्चोंको शिकार के लिए साथ ले जाती है करीब एक मील के घेरे तक ! बच्चे शिकार खाकर जल्दी ही बढ़ने लगते हैं ! उन बच्चों में भी एक ज्यादा चतुर चालाक और ताकतवर होता है, ज्यादा शिकार खाता है और पहले हाथ मारता है ! पांच महीने पूरे होते ही वे अपनी माँ के साथ लम्बे लम्बे सफ़र पर जाने लगते हैं ! बच्चे मोर, खरगोश, गिलहरी जैसे छोटे छोटे जीवों को मार देते हैं ! उन्हें शिकार करने की ट्रेनिंग दी जाती है ! वे अपनी माँ की मदद करने लगते है झाडी से जानवरों को भगा कर अपनी माँ की तरफ भगाते हैं और माँ उन्हें मार देता है ! जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हैं उन्हें ज्यादा शिकार की जरूरत होने लगती है, माँ को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है ! सात महीने पूरे होते होते तक माँ बच्चों को अपनी सुरक्षा और शिकार को पकड़ने के गुर सिखाने लगती है ! शिकार करना इतना आसान नहीं होता १५ - १६ बार तो असफता ही मिलती है लेकिन १६ वें या १७ वें कोशीश रंग ले आती है और एक बड़ा सा जानवर काबू में आजाता है !
कभी कभी अनजान नर टाईगर आ जाता है तो मादा बच्चों को बचाने के लिए उस से भीड़ जाती है और कभी जख्मी भी हो जाती है ! ९ महीने होने पर बच्चे ४५ किलो वजन के और ६ फीट की लम्बाई ले लेते हैं ! वे इस उम्र में आपस में लुका छिपी का खेल खेलते हैं ! पेड़ भी चढ़ने लगते हैं ! अब माँ को ज्यादा शिकार करने के लिए गुफा से दूर भी जाना पड़ता है ! जब काफी देर के बाद बच्चों की माँ वापिस आती है तो वे माँ से लिपट जाते हैं ! १२ महीने के होते ही उन्हें माँ अपने साथ शिकार कहाँ मिल सकता है, उन स्थानों पर ले जाती है, माँ शिकार को घायल करके छोड़ देती है और देखती है की बच्चे किस तरह उस घायल जानवर को मारते हैं और खाते हैं ! टाईगर अमूमन सूबह और शाम अपने शिकार को मारते हैं, पानी के नजदीक जब वे पानी पीने आते हैं ! वे, मोर, खरगोश, हिरन, बारहसिंघा, जंगली बकरा, जंगली भैंसा, हाथी का बच्चा, गैंडे का बच्चा तथा मौक़ा पड़ने पर झील या तालाब से मगरमच्छ के बच्चे का भी शिकार कर देते हैं ! जब बच्चे १६-१७ महीने के होजाते हैं तो आपस में खेलना छोड़ देते हैं, अगर खेल खेल में गुस्से में आगये तो एक दूसरे को चोट पहुंचा देते हैं ! २० महीने के बाद ये बच्चे जवान टाईगर बन जाते हैं जो बचों में ज्यादा मजबूत और ताकतवर होता है वह माँ का घर छोड़ कर अपना इलाका चुन लेता है ! ज्यादा से ज्यादा बच्चे २४ महीने तक अपनी माँ की छत्र छाया में रहते हैं उसके बाद अपने इलाके के स्वंभू बन जाते हैं ! मादा टाईगर को प्रभावित करने के लिए दो नर टाईगर जबरदस्त फाईट करते हैं और जो जीतता है वह मादा टाईगर से सम्बन्ध बनाने में कामयाब होता है ! ये झाडी में चुप चाप अपने शिकार का इन्तजार करते हैं, उनके शरीर की धारियां घास या झाड़ियों में छिपने के लिए उनकी मदद करता है ! हाँ पेड़ के बन्दर की नजर उस पर पड़ जाती है और वह शोर मचाकर सभी जानवरों को सावधान कर देता है !
इसकी जीब का द्रब्य (सलीवा) आंटी सेफ्तिक होता है इस तरह जब यह आराम कर रहा होता है यह अपनी जीब अपने जख्मों पर फिराता रहता है ! इस तरह शिकार खेलते हुए जो चोट या जख्म इन के शरीर पर लगी होती है जल्दी ही ठीक होजाती है ! कभी कभी एक टाईगर के शिकार मारने पर अचानक दूसरा टाईगर आकर उस शिकार पर अपना अधिकार जमाने लगता है फिर दोनों का संग्राम शुरू हो जाता है जो जीतता है वह पहले शिकार पर हाथ साफ़ करता है और दूसरा टुकुर टुकुर अपनी बारी आने के इंतज़ार में दूर जाकर लेट जाता है ! टाईगर अपने प्रतिद्वन्दी को अहसास दिनाने के लिए की यह इलाका उसका है पेड़ पर पंजों का निशाँ लगा देता है !
बंगाल का नर टाईगर पूँछ सहित १२ फीट लंबा होता है ! पूछ पूरी लम्बाई का तीसरा हिस्सा पड़ता है इस तरह असली लम्बाई ८ फीट हुई ! वजन दो सौ केजी ! मादा का कद कम होता है !
टाईगर का भविष्य
टाईगर का भविष्य अन्धकार में है ! विश्व के वाईल्ड लाईफ संगठन इसको बचाने का भरसक यत्न कर रहा है ! विश्व के सारे देशों को इस जीव को बचाने के लिए उचित कदम उठाने के लिए निर्देश दिए गए ! भारत में सरकार भी चिंतित है ! इनके लिए आरक्षित क्षेत्र बनाए गए हैं ! सार्थक कदम उठाए गए हैं लेकिन फिर भी कुछ दुश्मन तश्कर अपने निजी स्वार्थ केलिए इन वेजुवान जीवों की ह्त्या कर रहे हैं ! क्या आप इन जीवों को बचाने का कोइ कारगर कदम उठाने जा रहे हैं ! (साभार नेचुरल वर्ड टाईगर लेखक वाल्मिक थापर )
Wednesday, November 24, 2010
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