आज पहली अप्रैल २०१० है और भारतीय संविधान में हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार दिया गया है । बड़ी अछी बात है । जिस दिन देश ने २६ जनवरी १९५० को अपना संविधान लागू किया था, सरकार ने हर भारत वासी को यकीन दिलाया था की भारत का हर नागरिक शिक्षित होगा, हर एक को रोजी रोटी का पूरा अवसर दिया जाएगा ! देश में खुश हाली आएगी, अमीर गरीब की दूरी काफी कम कर दी जाएगी ! नतीजा आज सबके सामने है । पहले पार्टियां कम थी, जनता से चुना हुआ प्रतिनिधि बड़ी इमानदारी और वफादारी से अपने दायित्व निभाता था ! जनता का हर वर्ग अपने कार्य करता था ! देश नया नया आजाद हुआ था, सब ने हन्दू, मुसलमान, सिख और ईसाइयों ने मिलकर एक झंडा तिरंगा झंडा के नीचे बढ़ते हुए देश को आजादी दिलाई थी ! समाज का हर वर्ग इस स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पडा था और सभी वर्गों के लोग देश के लिए शहीद हुए थे ! धीरे धीरे राजनीति में गुंडे, अवसर वादी, उद्योगपति, पुराने स्टेटों के राजे रजवाड़ों के राजे महाराजे राजनीति में छाने लगे, अपने वोट बैंक बनाने के लिए समाज को बांटने लगे, विदेशी मूल के लोगों को पिछले रास्ते से देश में भरने लगे ! सरकारी नौकरियों में आरक्षण के नाम से राजनीतिग्य अपने परिवार और नाते रिश्तेदारों को भरने लगे ! सरकारी ख़जाने पर मंत्री संतरी हाथ साफ़ करने लगे । देश की अर्थ व्यवस्था धीरे धीरे बिगड़ती गयी । गरीब जनता पर टेक्ष और मंहगाई का बोझ डाल कर अमीर और गरीब की बीच की खाई काफी बढ़ा दी गयी !
चलो सरकार ने सभी बच्चों को संविधान द्वारा शिक्षा का अधिकार दे दिया है लेकिन इसकी क्या गारंटी है की हर किसान, हर मजदूर, हर आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ गरीब का बच्चा बिना भेद भाव के शिक्षा ग्रहण कर पाएगा ? क्या हर अध्यापक बिना ट्यूशन लिए हर गरीब बच्चे को पढ़ाएगा ? देश में बाल विवाह, बाल मजदूरी पर सरकार ने प्रतिबन्ध लगा रखा है, क्या क़ानून इस दुष्प्रवृति को रोक पाया है ? अगर सरकार और सरकारी कर्म चारी ईमानदारी और वफादारी से अपनी ड्यूटी निभाते तो आज बाल मजदूर न तो अवैध तरीके से फैक्ट्रियों, गोदामों और बड़े बड़े रशूक वाले रईसों के घरों में काम करते होते न उनके ऊपर जुल्म किए जाते ! सरकार का कदम तो सराहनीय है लेकिन सबसे बड़ी चुनौती है इसको शक्ती से लागू करने की ।
Friday, April 2, 2010
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