Saturday, April 10, 2010

वे चले गए

वे चले गए, बिना कुछ कहे,
की तुम क्या करोगे, जब हम ना रहें !
माता पिता पत्नी पुत्र दरवाजे पे कान लगाए हैं,
की कब घंटी बजेगी और हमारा लाडला आएगा !
हमने शत्रु को मार गिराया है, कह कर गले लगाएगा
पूरी रात बीत गयी पुत्र तो नहीं आया,
सुबह उसकी अर्थी आई !
अरे जिन्होंने इन्हें मारा वे तो थे इन्ही के भाई !
फिर भाई ने भाई को क्यों मारा?
क्यों न अफराधी नेताओं को ललकारा ?
माता पिता सूनी सूनी आँखों से अन्तरिक्ष को देख रहे हैं,
"कितना निष्ठुर है रे तू,"
मनमोहन को नहीं उस कन्हिया से कह रहे हैं !
पत्नी का सुहाग उजड़ गया,
बच्चा बाप बिहीन हुआ,
दिल्ली में बैठे हुए शासको बताओ तुम्हारा क्या गया ?
ये किस्सा है उन सैनिक परिवारों का
जो गद्दार मावोवादियों ने मारे हैं,
थे यमदूत दुश्मन गद्दारों के पर अपनो के प्यारे हैं !!
नमन करो उनको देश वासियों,
उनकी कुर्वानी रंग लाएगी,
नष्ट हो जाएंगे दुष्ट दरिन्दे,
फिर धरती माँ मुस्कराएगी !
हर भारतवासी इन दुर्जनों से कहेगा,
"सर फरोशी की तम्मना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है!"
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निंशा होगा (भगतसिंह )

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