Wednesday, April 28, 2010

मिल के चलो

मिलके चलो, कटु ना कहो, किस मोड़ पे कौन मिल जाए,
जब तुम गिरो आहें भरो, उठाने तुम्हे कोंई आ जाए !
ये कुदरत के रंग धरती के संग, हर रंग दिल को छू जाए,
वारीश की कमी गर्मी ना थमी, ठंडी हवाएं आ जाएं,
मिल के चलो, कटु ना कहो, किस मोड़ पे कौन मिल जाए !
दिल की कहो, पीड़ा न सहो, पीड़ा मिटाने कोंई आ जाए,
ये दुनिया है गोल जिसका न मोल, बिछुड़ा हुआ साथी मिल जाए,
मिलके चलो कटु ना कहो, किस मोड़ पे कौन मिल जाए !
तू है अकेला ये दुनिया का मेला, हाथों में हाथ कोंई आ जाए,
पकड़ा जो हाथ छूटा ना साथ, गिरते हुए भी संभल जाए,
जख्मी को उठाओ पानी पिलाओ, तुमको बचाने कोंई आ जाए,
मिल के चलो कटु ना कहो, किस मोड़ पे कौन मिल जाए !
( हरेंद्रसिंह रावत द्वारका दिल्ली )

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