Tuesday, May 4, 2010
बिजली और पानी
दिल्ली में इस साल अप्रेल में ही ताप मान ने कही ऊंचाइयां छू पिछले कही रिकार्ड तोड़ डाले ! वो तो धन्य हो इंद्र देवता की क़ि उसने हल्की वारीश की बुँदे गिरा कर मई के महीने का स्वागत किया है ! दिल्ली सरकार और सारे दिल्ली में ऊंची ऊंची कुर्सियों में बैठे हुए शासक प्रशासक अपने आराम दायक कार्यालयों या फिर अपने आलीशान बंगलों में वातानुकूल ठंडी वायु सेवन से अपनी सयत बना रहे हैं और वहीं से जनता जनार्दन का अभिवादन कर रहे हैं की "दिल्ली के नागरिको अगर आपने हमारी पार्टी को वोट देकर सता की कुर्सी पर नहीं बिठाया होता तो आज हम भी आप लोगों की तरह पानी की बाल्टी लेकर दर दर की ठोकरें खाते, या मच्छरों से परेशान किसी अँधेरे कमरें में बैठे बिजली आकाओं की आरती उतारते ! हम दिल्ली अपना भाग्य लेकर नहीं आये थे, लेकिन आपने हमारा भाग्य बना दिया ! अरे आपको तो खुश होना चाहे की आपके चहेता नेता मजे से सता का आनंद ले रहे है, उसके बच्चे कान्वेंट में पढ़ रहे हैं, दिल्ली को स्वर्ग बना रखा है जनता के खून पसीने की कमाई से ! अगर आप लोगों को पानी नहीं मिल रहा है, बिजली नहीं आ रही है, ठीक ढंग की सड़कें नहीं हैं, सीवर लाईने ओपन चारों और दुर्गन्ध फैला रही हैं, सडकों के दोनों तरफ ठेली वाले, पटरी वाले, फ्रयुट या सब्जी बिक्रेता, रिक्शा वाले सडकों को घेर कर आने जाने वालों को रास्ता नहीं देते, पैदल रास्ते दुकान दारों ने जबरदस्ती हथिया रखें हैं, तो इतनी सी बातों से आप लोग घबरा क्यों जाते हैं? बड़े बड़े शहरों में ऐसी छोटी छोटी घटनाएँ तो होती ही रहती हैं ! हौशला रखिये हम हैं ना, आपके बच्चों को स्कूलों में दाखिला नहीं मिल रहा, ज़रा इंतज़ार तो कीजिए, इंतज़ार का फल हमेशा मीठा होता है ! घरों में बिजली नहीं, और सडकों पर दिन के १२ बजे तक बिजली जलती रहती है ! इस बात को मैंने कही बार संसद में उठाया है, सरकार ने आयोग बिठा रखा है अगले साल तक रिपोर्ट जाएगी और दोषी को सजा दी जाएगी ! मुझे पूरी खबर है की दिन दहाड़े लूट, चेन स्नेचिंग और हत्याएं तक हो रही हैं, हमारी सरकार तथा पुलिस इन घटनों पर बहुत नजद्दीक से नजर रखे हुए है, कारण ढूंढें जा रहे हैं की आखिर ये लूट मार क्यों हो रही हैं, वरिष्ट नागरिक क्यों मारे जा रहे हैं ? आप लोग तो केवल नागरिक हैं, आपने वोट दे दिया अपना प्रतिनिधि बना दिया और आपकी जिम्मेदारी ख़तम, आगे तो हमें भोगना पड़ता है ! कन्धों पर इतने सारे बोझ आने से हमें इन समस्याओं से जूझना पड़ता है ! फिर भी हम खूब खाते हैं, दंड लगाते हैं, पिछला भूल कर अगले को गले लगाते हैं, हंसते और हंसाते रहते हैं ! आप लोग भी दंड पेलिए, मुसीबतों में भी मुस्कराइए ! सब कुछ तन मन धन, हमारे भरोशे छोड़ कर मुंह ढक कर सो जाइए, हम हैं न " !
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