Saturday, May 8, 2010

सांड गुस्से में था

एक दिन शाम को मैं कार्यालय से
घर आ रहा था,
बीच गली में एक भारी भरकम सांड खड़ा था,
लाल लाल आँखे, मुझे घूर रहा था,
लाल आँख वाले सांड से बचना,
मेरे बुजुर्गों ने कहा था !
मैं पीछे मुड़ा, "इधर आ उसने मुझसे कहा !
भाग रहा है बच्चू, आज बनाऊंगा तुम्हारा कच्चू ,
तुम्हारे दो टाँगे हमारी चार,
सींगों पर उठाकर पहुंचा दूंगा जमुना पार !
बहुत सताया है इस आदमी की जात ने हमारी विरादरी को,
तुमने बहुत खेल लिया अब मैं खेलूंगा इस पारी को !
मेरे सींग बल्ला तुझे गेंद बनाउंगा, मार के बौंडरी पार पहुंचाउंगा !
अरे सता में सरकार भी तो यही कर रही है,
स्वयं सचीन बन कर
जनता को बैट बौल की तरह नचा रही है,
हम तुम्हारे हल लगाते रहे,
तुम बदले में हमारी पीठ पर डंडा बरसाते रहे,
खुद हमारी मेहनत का माल पूवा और हमें खाली भूसा खिलाते रहे !
अब लालू की तरह मवेशी चारा खावो,
और हमारी विरादरी को वोट देकर संसद में पहुँचाओ ,
नहीं तो, तुम्हे यह सींघ दिखाई दे रहे हैं,
ये तुम्हे अन्तरिक्ष में पहुंचा देंगे,
और सांड और बैल गाय बछियों हम धरती पर राज करेंगे, "
यह कहते हुए वह मेरी ओर भागा
एक भयानक गर्जना रूपी गोला दागा,
"बचाओ बचाओ" कहते कहते मैं चिल्लाया,
अचानक आँखें खुली, अपने को डबल ब्याड के नीचे पाया !
पत्नी मेरे सीने पर मालिस कर रही थी,
"सोते सोते बडबडाते हो " बुद बुदा रही थी !

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