बजट आया होली आई, रंग बरसाने टोली आई,
रंग मंहगा, भंग मंहगा, भंग पीने होली आई ।
भांग धतूरा झोली डाले, गेरवा पहिने साधु आया,
खाली भंग का प्याला हाथ में, उसने टोली को खिखाया ।
क्या होगया है खोली को, भंग की उस गोली को,
सब तो अब मंहगा हुआ , खेलें कैसे होली को ।
भांग धतूरा लाया हूँ मैं, आओ पीलो मेरे संग।
मौज मस्ती आएगी, देखलो इसका भी रंग।
और सब ने पी लिया, बेहोश होकर गिर पड़े,
कुछ खड़े थे मस्ती में आपस में लड़ पड़े ।
साधु ने निकाले पर्श उनके और नदारत होगया,
नशा तो उतारा मगर १० हजार रुपया खो गया ।
Saturday, February 27, 2010
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