Monday, May 17, 2010

आज की ताजी खबरें

नक्शल माववादियों ने फिर छत्तीस गढ़ दंतेवाड़ा में एक पुलिस फ़ोर्स की बस को उड़ा दिया गया, करीब ५० लोग मारे गए, जिनमें १८ विशेष पुलिस दल के अधिकारी थे ! लोग मारे जा रहे हैं, दिल्ली में मनमोहनसिंह जी मौन बैठे हैं, गृह मंत्री कुछ करना चाहते है पर नक्षलवाद से जुड़े सांसद, मंत्री उन्हें कुछ करने ही नहीं देते ! एक बम धमाका होता है, केंद्र सरकार की कुर्सियों में जलजला आजाता है, अर्द्ध सैनिक बल व स्थानीय पुलिस की टुकड़ी मारी जाती है, हथियार लुटे जाते हैं, सरकार के सारे महकमे हरकत में आजाते हैं, ऐसा लगता है की सरकार अब के नकशल वाद को जड़ से ही उखाड़ फेंक देगी, आंधी थमी और जोश ठंडा पड जाता है ! गृह मंत्रालय चेतावनी देता है इन आततायियों को, "अब के धमाका करो, तुम्हारा नामों निशान मिटा देंगे," फिर धमाका हो जाता है, और ये नेता अगली दुर्घटना का इंतज़ार करने लग जाते हैं ! लंगडी सरकार जिसने टांग, हाथ, कान, आँखें यहाँ तक दिल और दिमाग भी उधार का ले रखा हो, वह तो सदा असमर्थ ही रहेगी ! सेना अर्द्ध सैनिक, पुलिस बल के जवान अधिकारी मर रहे हैं, इनका क्या जा रहा है, वेतन भता अपनी इच्छा के मुताबिक़ मिल रहा है, आलीशान महल, सभी सुविधावों से लबालब वातानुकूल, कबड्डी खेलो, या बैद मिन्टन, स्वीमिंग करो, या फिर कुस्ती, किसने रोका है, पांच साल तो हैं ही, आगे भगवान और देगा ! (पेज १ टाईम्स आफ इंडिया)
अफजल गुरु को सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा मिल चुकी है, बचने के सारे रास्ते बंद हैं, करोड़ों रूपया जनता का पैसा इसकी सुरक्षा और सियत पर खर्च हो रहा है, २००६ में उसने भारत के राष्ट्रपति से क्षमा याचना की थी, वह फाईल तब से दिल्ली सरकार के पास पडी है, कोई कारवाही इस पर नहीं हुई ! शेला जी तो फाईल इतने दिनों तक दबा नहीं सकती, कोई दभंग नेता ही इस फाईल पर फन फैलाए बैठा है ! कहते हैं फांसी लगाने में उसका लिस्ट में २२ वां नंबर है (टाईम्स आफ इंडिया १८ मई २०१० पेज ३)

2 comments:

  1. बस्तर के जंगलों में नक्सलियों द्वारा निर्दोष पुलिस के जवानों के नरसंहार पर कवि की संवेदना व पीड़ा उभरकर सामने आई है |

    बस्तर की कोयल रोई क्यों ?
    अपने कोयल होने पर, अपनी कूह-कूह पर
    बस्तर की कोयल होने पर

    सनसनाते पेड़
    झुरझुराती टहनियां
    सरसराते पत्ते
    घने, कुंआरे जंगल,
    पेड़, वृक्ष, पत्तियां
    टहनियां सब जड़ हैं,
    सब शांत हैं, बेहद शर्मसार है |

    बारूद की गंध से, नक्सली आतंक से
    पेड़ों की आपस में बातचीत बंद है,
    पत्तियां की फुस-फुसाहट भी शायद,
    तड़तड़ाहट से बंदूकों की
    चिड़ियों की चहचहाट
    कौओं की कांव कांव,
    मुर्गों की बांग,
    शेर की पदचाप,
    बंदरों की उछलकूद
    हिरणों की कुलांचे,
    कोयल की कूह-कूह
    मौन-मौन और सब मौन है
    निर्मम, अनजान, अजनबी आहट,
    और अनचाहे सन्नाटे से !

    आदि बालाओ का प्रेम नृत्य,
    महुए से पकती, मस्त जिंदगी
    लांदा पकाती, आदिवासी औरतें,
    पवित्र मासूम प्रेम का घोटुल,
    जंगल का भोलापन
    मुस्कान, चेहरे की हरितिमा,
    कहां है सब

    केवल बारूद की गंध,
    पेड़ पत्ती टहनियाँ
    सब बारूद के,
    बारूद से, बारूद के लिए
    भारी मशीनों की घड़घड़ाहट,
    भारी, वजनी कदमों की चरमराहट।

    फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?

    बस एक बेहद खामोश धमाका,
    पेड़ों पर फलो की तरह
    लटके मानव मांस के लोथड़े
    पत्तियों की जगह पुलिस की वर्दियाँ
    टहनियों पर चमकते तमगे और मेडल
    सस्ती जिंदगी, अनजानों पर न्यौछावर
    मानवीय संवेदनाएं, बारूदी घुएं पर
    वर्दी, टोपी, राईफल सब पेड़ों पर फंसी
    ड्राईंग रूम में लगे शौर्य चिन्हों की तरह
    निःसंग, निःशब्द बेहद संजीदा
    दर्द से लिपटी मौत,
    ना दोस्त ना दुश्मन
    बस देश-सेवा की लगन।

    विदा प्यारे बस्तर के खामोश जंगल, अलिवदा
    आज फिर बस्तर की कोयल रोई,
    अपने अजीज मासूमों की शहादत पर,
    बस्तर के जंगल के शर्मसार होने पर
    अपने कोयल होने पर,
    अपनी कूह-कूह पर
    बस्तर की कोयल होने पर
    आज फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?

    अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार, कवि संजीव ठाकुर की कलम से

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  2. dil ko gaharaaee se chhune vaalee kavita ! sanjeev jee ne to karunaa ka saagar chhalaka diya ! desh ka ek hissaa peedaa se krandan kar rahaa hai, dillee vaalon ko koyal kee peeda ka ahsaas naheen ho raha hai, abhee koyal kyon ro rahee hai, ek prashn hai, jab koyal he naheen rahegee? he mere vatan ke logo ab to jaago !

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