Wednesday, August 4, 2010

मेरी कहानी (सोलहवां भाग)

बने बनाए मकान में रहने चले जाना रहने के लिए ! बसी बसाई बस्ती में जाकर बस जाना, वहीं के लोगों के रंग में रंग जाना, आसान होता है, इसके की एक नया मकान बनाना या नयी बस्ती बसाकर नए लोगों को आमंत्रित करना उस बस्ती में बसने के लिए ! इसमें शरीर और दिमाग दोनों को कठिन परिश्रम करना पड़ता है ! ठीक ऐसे ही किसी पुरानी बटालियन में पोस्ट हो कर चले जाना या किसी नयी बटालियन को रेज करने में है ! रेजिमेंट की तमाम दूसरी यूनिटों से जे.सी ओज और जवानों को बुलाकर उनकी जस्मानी और दिमागी दोनों का टेस्ट लेना, मेहनती, वफादार, बहादूर और खिलाड़ी सैनिकों का चुनाव करना ! सेना मुख्यालयों का चक्कर लगा लगाकर नयी यूनिट के लिए फंड मंजूर करवाना, आर्मी एक्ट, रूल्स, आर्मी रेगुलेशन आदि को इकठ्ठा करना ! जीप-जोंगा, छोटी बड़ी गाड़ियों-ट्रकों की डिमांड करना, आर्डनेंस स्टोर्स मंगाना ! बहुत मसकत करनी पड़ती है नयी बटालियन को रेज करने में !
२० वीं बटालियन दी राजपुताना राईफल्स पहली जनवरी सन १९८१ ई० को राज रिफ सेंटर में ले.जनरल ए एम सेठना (कर्नल आफ दी रेजिमेंट) के कर कमलों द्वारा, पंडित जी के मन्त्रों के साथ एक नया झंडा लहरा कर खडी की गयी ! साथ में सेंटर कमांडेंट ब्रिगेडियर धवन तथा स्टाफ भी मौजूद था ! यहीं पर मेजर सतबीर सिंह (१७ आर आर ) को ले.कर्नल बनाकर नयी बटालियन के कमांडिंग आफिसर बनाया गया ! यहीं सेंटर में एक बारीक मिल गयी थी यहीं नयी यूनिट का कार्यालय खोला गया ! कुछ दिनों बाद यूनिट को परेड ग्राउण्ड में भेजा गया ! 12 जनवरी को मैंने यूनिट ज्वाइन की ! अब तो काम ही काम था, दिन भर सेना मुख्यालय, एरिया मुख्यालय, सिस्टर बटालियनों के चक्कर लगाना, उनसे आफिस के लिए स्टेशनरी रूल्स रेगुलेशन जरूरी आर्मी ऑडर्स, तथा अन्य सामग्री ले के आना और रात को आफिस का काम करना ! कभी कभी तो पता भी नहीं लगता था की रात कब आई और कब दिन निकल आया ! कुछ दिनों के बाद सूबेदार मेजर बासुसेव भी यूनिट में आगये ! उस समय जे सी ओज थे जीले सिंह, शीशराम, इश्वर सिंह, रामसिंह, आदि आफिसरों में मेजर यू आर चौधरी, मेजर आर डी कारले, मेजर जे एस चौहान, मेजर कौशिक, मेजर विनोदकुमार , मेजर सहगल, कैप्टेन दलाल, चावला, ए के माथुर, राना ले.चौधुरी,
ले.आर पी जोशी भी यूनिट में आ चुके थे ! ६ महीने का समय लगा यूनिट को पूरी तरह से आत्म निर्भर होने में ! सारे आफिसर्स, जे सी ओज और जवानों की रात दिन की कठीन मेहनत रंग लाई और यूनिट २० वीं बटालियन दी राजपूताना राईफल्स, 'राजपूताना राईफल्स'
की एक नयी बटालियन के रूप में पूरी तरह ३० जून १९८१ तक तैयार हो गयी ! ४ जौलाय १९८१ को यूनिट को फैजाबाद भेजा गया ! फैजाबाबाद एक जिला है उत्तर प्रदेश का ! यहाँ पर डोगरा रेजिमेंट का सेंटर है !
अयोध्या नगरी इसी फैजाबाद में पड़ती है, जहां त्रेता युग में भगवान् रामचन्द्र जी राज करते थे ! इसके साथ ही घाघरा नदी बहती है, जिसे "सरयू" के नाम से भी जाना जाता है ! काफी बड़ा कंटोमेंट एरिया है जहां १९७१ की लड़ाई के कैदियों को बैरिक बना बना कर रखा गया था ! अमरूदों और जामुनों के बहुत सारे बगीचे हैं ! इमली के बहुत सारे पेड़ हैं ! घाघरा नदी के ऊपर एक बहुत बड़ा पुल है जिसका नाम "इन्द्रा गांधी पुल" रखा गया है ! थोड़ा उतर में गुप्तार घाट है ! एक मंदिर है जहाँ भगवान रामचंद्र जी के चरण अंकित है ! कहते हैं भगवान राम अंतिम बार इसी घाट पर आये थे और यहीं पर उन्होंने जल समाधी ले ली थी ! श्रद्धालु जो अयोध्या जी के दर्शन करने आते हैं, वे इस घाट पर जरूर आते हैं, गौदान करते हैं ! इस नदी के किनारे कही आश्रम हैं जहां लम्बी लम्बी उम्र के सन्यासी रहते हैं ! बड़े बड़े वट वृक्ष हैं, जहां बहुत प्रकार के पक्षी आकर विश्राम करते हैं ! इन वृक्षों के चारों ओर पक्का चबूतरा बना हुआ है ! वरगद की जड़ें नदी में उतर जाती हैं ! इन्हीं जटाओं के सहारे स्थानीय बच्चे नदी में दुबकी लगाते हैं और तैरने का पूरा आनंद लेते हैं ! यहाँ से १५-१६ मील पर अयोध्या नगरी पड़ती है ! कनक मंदिर, बाल्मीकि मंदिर, हनुमान मंदिर काफी आकर्षक हैं ! हम लोग फैजाबाद में १९८१-१९८४ तक रहे हैं और अयोध्या में रामजन्म भूमि देखने का कही बार अवसर मिला ! कोई टेंशन नहीं थी ! उन दिनों राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का कोई झगड़ा नहीं था ! राजनीति के दलालों ने मंदिर-मस्जिद की चिंगारी भड़काई और आज आलम यह है की यहाँ पर न मंदिर है न मस्जिद है ! रामजन्म भूमि एक खँडहर बन कर रह गयी है !
उन दिनों यहाँ फैजाबाद में केन्द्रीय विद्यालय नहीं था, इसलिए बच्चों को संन १९८२ ई० में जब यहाँ केन्द्रीय विद्यालय खुला, लाया ! मेरी बेटी उर्वशी दसवीं में पढ़ती थी, राजेश आठवीं में और ब्रिजेश चौथी में पढ़ता था ! संन १९८३ ई० को केन्द्रीय विद्यालय फैजाबाद का १० वीं परिक्षा के लिए सेंटर लखनऊ पडा ! मार्च १९८३ ई० को उर्वशी के साथ
लखनऊ गया और १५ दिन वहीं रहा ! इन ही दिनों सी ओ सतबीर सिंह जी की पोस्टिंग आ गयी और यूनिट के नए सी ओ बने ले.कर्नल बी एस रजावत ! यूनिट जवानों को शारीरिक और मानसिक चुस्त दुरुस्त रखने के लिए हर साल जनवरी के महीने में एक महीने के लिए मध्य प्रदेश के सुहाग पहाड़ियों के पठारी भागों में, रीवा के पास ट्रेनिंग कैम्पों में रहना पड़ता था ! रिवर क्रास्सिंग, एडवांस, अटैक, असाल्ट ट्रेनिंग और सालाना फील्ड फायरिंग आदि का अभ्यास किया जाता था ! बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक यूनिट को लड़ाई के लिए तैयार होने का बिगुल बज जाता था (मोबाईल स्कीम )! फिर प्रदेश की सिविल प्रशासन को ऐसे मौकों पर मदद देना जब विद्रोह, अराजकता, असामाजिक तत्वों को कंट्रोल करने में पुलिस असमर्थ जो जाती है ! फिर सबसे ज्यादा प्रेशर पड़ता यूनिट के ऑफिसर्स, जे सी ओज और जवानों पर जब यूनिट की सालाना इंस्पेक्शन जो ब्रिगेड कमांडर द्वारा की जाती है, की तैय्यारी करनी पड़ती है ! यहाँ पर हर एक की , सी ओ से जवान तक, शारीरिक और मानसिक फ़िटनेस सफाई, डाकूमेंट्स, लड़ाई का पूरा सामान और कम से कम समय में यूनिट को लड़ाई के लिए तैयार करना, की प्रैक्टिस ! कमांडर द्वारा दी गयी रिपोर्ट "की यूनिट लड़ाई के लिए फिट है या नहीं", पर ही यूनिट का भविष्य निर्भर करता है ! ख़ास तौर पर जब यूनिट नयी हो ! यहाँ हमने यूनिट की तीन सालाना इंस्पेक्शन करवाई और तीनों ही अब्बल दर्जे की रही ! नाम तो पीस होता है लेकिन जवान के बिस्तर के नीचे हमेशा रस्सी तैयार मिलती पीस टाईम में ! सन १९८४ ई० पंजाब में भिंडरावाल ने खालिस्तान के नाम पर अमृतसर के स्वर्ण पर कब्जा कर दिया ! मंदिर को खाली करने के लिए सेना की मदद ली गयी ! काफी खून खराबा हुआ तब जाकर मंदिर को खालिस्थान के आतंक वादियों से मुक्त किया गया ! हमारी यूनिट उस समय चंडीगढ़ "ऐड टू सिविल पावर " ड्यूटी पर थी ! इस आपरेशन का नाम था "ब्यू स्टार" !

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