Wednesday, August 11, 2010

मेरी कहानी (इक्कीसवां भाग )

मेरे पर दादा श्री चैतसिंह जी के तीन भाई शेखर और दो का नाम नहीं जानता मालन नदी के किनारे क्यार्क नामक गाँव में जाकर बस गए थे ! उनके लड़के गोपाल, मगनसिंह को मैं जानता था ! मालन नदी के किनारे एक बड़ा मैदान है जिसका नाम मैरवानखेत ' है और वहीं पर नदी से नहर निकाल कर एक पन चक्की लगा रखी है, ये पनचक्की उन्हीं मेरे भाई बंधों की है जिनके पूर्वज हमारे गाँव से चले गए थे ! यहाँ गाँव में एक भाई और रह गया था, उनका नाम था संग्रामसिंह ! उनके दो बेटे हुए, गौर सिंह और औतार सिंह ! औतारसिंह सेना में नौकरी करते थे और उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था ! विश्व युद्ध की समाप्ति पर उन्हें सेना से मुक्त कर दिया गया था ! वे दमा के मरीज थे ! उनके दो लड़के थे रघुबीर सिंह जो २४, २५ साल के अन्दर ही स्वर्ग सिधार गए थे, उनकी कोई संतान नहीं थी ! दूसरे लड़के का नाम था गुमानसिंह ! इन्होंने मध्य प्रदेश की पुलिस फोर्स (एस ए एफ ) में सर्विस की और पेंशन लेकर अपने गाँव में खेत खलियान की देख भाल करने लगे ! घर आते ही बीमार रहने लगे और ६०-61 साल की उम्र में ही वे भी यह संसार छोड़ कर दूसरे संसार में चले गए ! उनका लड़का रवि रावत भी एस ए एफ में सेवारत है ! दो लड़कियां हैं जिनकी शादी हो चुकी हैं और वे अपने ससुराल में हैं ! गौरसिंह के पुत्र थे गंगासिंह ! गौर सिंह अपनी पूरी उम्र जीकर सन १९६० ई ० में मृत्यु को प्राप्त हुए ! गंगासिंह के पांच लड़के और तीन लड़कियां हुई ! सन १९७६ ई 0 में उन्होंने भी इस शरीर को छोड़ मृत्यु का आलिंगन किया ! बड़े लड़के का नाम था मानसिंह ! गाँव में सबसे पहले पौखाल मीडिल स्कूल तक यही गए थे ! अच्छी कद काठी के थे भाई मानसिंह जी, लेकिन दुबले पतले मुंह पर एक कुदरती हंसी रहती थी ! इन्होंने आंध्र प्रदेश में जाकर नौकरी की ! मैं इनकी काफी इज्जत करता था ! लेकिन पता नहीं वो कौन से कारण थे की गांवमें केवल तीन परिवार रहने के बावजूद ये लोग मिल जुल कर नहीं रह पाते थे ! हमेंशा झगडा, कभी खेतों के लिए तो कभी घास लकड़ी के लिए ! फिर भी भाई मानसिंह से मैंने बहुत कुछ जानकारी प्राप्त की अपनी फॅमिली ट्री के बारे में ! हमारे पूर्वज काली कुमायूं आये थे वहां से बड़े देवता कैंतूर के नाम का त्रिशूल लेकर गढ़वाल आये थे, वहा चित्र शिला नामक एक मैर्वानों का पवित्र स्थान है, ये सारी जानकारी मुझे भाई मानसिंह जी ने ही दी थी ! वे जानते थे की मैं जो उनसे ज्यादा पूछ ताछ कर रहा हूँ इस परिवार की कहानी लिखने के लिए कर रहा हूँ ! उनके तीन लड़के और चार लड़कियां हुई ! लडके खुशी रावत, राज रावत और बुद्धीसिंह रावत हैं और एक आंध्र प्रदेश में और दो दिल्ली में सर्विस कर रहे हैं ! वे भी ७० उम्र पार कर के स्वर्ग सिधार गए ! उनसे छोटा भाई है दयालसिंह, वह भी राज रिफ की १७ वीं बटालियन में सर्विस करके पेंशन आ गया है ! उसके चार लड़के हैं रमेश, दिनेश, जगदीश और जगदेव ! रमेश जंगलात डिपार्टमेंट में सेवारत है, दिनेश एस ए यफ में और जगदीश आर्मी में सेवारत है और नायब सूबेदार बन गया है ! अमरसिंह, पंचम सिंह गाँव से बाहर चले गए हैं, और परिवार के साथ वहीं बस गए हैं ! प्रेमसिंग ने गढ़वाल राईफल्स में नौकरी की है ! उसके भी चार लड़के हैं, राजेन्द्र, जीतेंद्र, पन्ना, और भारत ! जीतेंद्र और भारत गढ़वाल राईफल्स में सेवारत हैं ! राजेन्द्र घर में ही घर के काम करता है ! पन्ना पौखाल में दुकान चलाता है ! गाँव में केवल यही परिवार रहता है, दयाल और हम लोग साल के गर्मियों में कुछ दिनों के लिए ही गाँव जा पाते हैं ! सचीन रावत, पपेंद्र मेरे भतीजे बराबर माँ को देखने के लिए गाँव जाते रहते हैं !
गाँव में अब घास है लकडियाँ काफी मात्रा में हैं लेकिन उनको उपयोग करने वाले कम है ! आस पास के गाँवों में मोटर मार्ग बन गए हैं लेकिन हमारे गाँव में सड़क कागजों में तो आ गयी है पर असल में नहीं आई ! खेती, खेत बंजर पड़े हैं इनमें बन्दर दौड़ लगाते हैं और प्राय: कबड्डी खेलते हैं !

No comments:

Post a Comment