Tuesday, September 7, 2010

क्या आपने कभी अपने बारे में भी सोचा है ?

जिन्दगी की इस भाग दौड़ में कभी मौक़ा ही नहीं मिला, अपने बारे में सोचने का ! पता ही नहीं चला की कब बचपन आया, कब खुली हवा में पार्क में जाकर दौड़े भागे, गललियों में गिल्ली डंडा खेले, क्रिकेट की बॉल फेंक कर कितनों की खिड़की के शीशे फोड़े, कितने अंकलों की डाट डपट खाई होगी ! नाजुक कंधा बस्ता भारी के बोझ तले, टीचर के होम वर्क से बड़े हुए, स्कूल कालेज की मस्ती, विकास और मंहगाई की आंधी ने दिखाई हर एक को उसकी माली
हस्ती ! कालेज से निकलते ही नौकरी की तलाश ! शादी फिर बच्चे ! रात देर तक घर पहुंचना, फिर सुबह सबेरे जल्दी उठकर वही भाग दौड़, बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजना, बस से नहीं तो स्वयं अपनी कार, मोटर साईकिल, साईकिल या फिर रिक्सा से ! खुद तैयार होकर आफिस के लिए निकलना ! रास्ता ठीक मिल गया तो बिलकुल समय पर दफ्तर में हाजिरी लग जाएगी और अगर जो अमूमन होता ही रहता है, किसी नेता ने जलूस निकाल लिया, कोइ मंत्री परिवार के साथ विदेश यात्रा पर जा रहा है, किसी ब्यूरो क्रिएट या नेता के लड़की या लडके की शादी है और पूरे रोड को सुबह से ही जाम कर दिया गया है, किसी धार्मिक संस्था ने झांकी निकाल ली और सड़क जाम करदी तो ऑफिस से गैरहाजिरी तो होगी ही, साथ ही अपने बॉस की घुड़की सुनने को मिलेगी वह अलग ! जहाँ मिंया बीबी दोनों ही सर्विस पर चले जाते हैं, उनको माई (मेड) चौबीस घंटे के लिए रखनी पड़ती है, ताकी जब बच्चे स्कूल से आएं तो उन्हें वह संभाल सके, अगर माई शरीफ मिल गयी जो आज के ज़माने में मिलनी मुश्किल ही नहीं असंभव भी है, तो आप दफ्तर में मन लगाकर काम कर सकेंगे नहीं तो मन तो घर पर रहेगा फिर जो भी काम करोगे गलत होगा और फिर बॉस की वह सब कुछ सुननी पड़ेगी जिसकी आपने कभी अपेक्षा भी नहीं की होगी ! अब आपके पास दो ही रास्ते बचते हैं या तो बॉस के मुंह पर खरी खोटी सुनाकर अपनी दिल की भड़ास मिटाकर रिजाइन कर दो या फिर निरी गाय बन कर चुप चाप उसकी सुनते रहो, मन ही मन मुस्कराते रहो, बॉस जब थक जाएगा अपने आप चुप हो जाएगा ! यारो वह भी पंच तत्व का इसी धरती का जीव है हमारी तरह ! रात को हारे थके घर आए, किसी रिश्तेदार के लडके का कार्ड आपका इंतज़ार करते मिलेगा ! जाना पडेगा पूरे परिवार के साथ बुलाया है, बच्चे तो खुश हैं लेकिन अगर रिश्तेदार आपकी ससुराल की तरफ का निकला तो बीबी भी खुश पर आपका मुंह लटक जाएगा ! अगर आपका रिश्तेदार निकला तो बी बी का मुंह सूजा सूजा लगेगा ! जेब तो दोनों तरफ से आपकी ही कटनी है और रात खराब होगी सो अलग ! दफ्तर में बोनस मिला, आपने कही दिन पहले ही इस बोनस की राशि का सही सदुपयोग करने की योजना बनाई थी, उसी दिन बच्चों के बैग में होम वर्क की डायरी में स्कूल का एक अतिआवश्यक नोटिस मिला, लिखा था, "इस महीने की पहली तारीख से हर बच्चे की फीस में ५० फी सड़ी इजाफा किया गया है, बिना किसी हो हल्ला के जमा करा दें नहीं तो अपने बच्चे के लिए कोई और स्कूल ढूंढ लें" ! इसी तरह जिन्दगी के नरम गरम थपेड़ों को झेलते हुए समय कब निकल गया, पता भी नहीं चला और ६० साल की उम्र होते ही आपका रिटायरमेंट का दिन आ गया ! शरीर थका थका सा है, लगता है आप ७० पार कर गए हैं !
अब पीछे झाँक कर देखिये इन साठ सालों में आपने इस शरीर को पुष्ट करने में कितना दिन या महीना लगाया ! शरीर अब थक गया है, कही रोग शरीर में अड्डा जमा चुके हैं ! हर दिन डाक्टर की क्लीनिक में जाना पड़ता है, वह भी हैरान है की इतने सारे रोग, इलाज करूं तो शुरू कहाँ से करूं ? फिर वह कोई न कोई गोली देकर पीछा छुड़ा देता है, आपको आराम आ रहा है या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है !
आपकी पड़ोस में जो सज्जन रहते हैं, वे पहले सेना में थे, २० साल की सर्विस होते ही ३८ साल में उन्हें रिटायर कर दिया गया था ! बड़ी भाग दौड़ की एक क्लास फॉर की सर्विस मिली ! उसको भी बच्चों को पढ़ाना था, पेंशन भी कम थी, जो अब वेतन भता मिल रहा था वह भी कम था, उन्हें भी रिश्तेदारियों में शादी-विवाह, जन्म दिन या अन्य समारोहों में भाग लेने जाना पड़ता था ! लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी ! सूरज उदय होने से पहले ये दोनों मिया बीबी उठते, हाथ देखते यह मन्त्र पढ़ते हुए, "कराग्रे लक्ष्मी बसती, कर मध्ये सरस्वती, कर मूले स्थितो बष्णु प्रभाते कर दर्शने" ! दैनिक क्रियाओं से रुक्सत होकर आधा घंटा व्यायाम - योगा करते, एक मील की सैर करके आते, तरो ताजा होकर बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करते, उन्हें स्कूल भेज कर स्वयं भी आफिस ड्यूटी पर चला जाता ! हर किसी से हंस कर बातें करता ! वक्त बेवक्त हर किसी की मदद को हमेशा आगे रहता ! बीबी घर में पास पड़ोस के बच्चों को इकट्ठा करके उन्हें बच्चों के खेल खिलाती, उनका मंनोरंजन करती ! छुट्टी के दिन महिलाओं को दश्कारी की ट्रेनिंग देती जो उसने अपने पति के साथ फ़ौज में रहते हुए सीखी थी ! इस तरह दोनों मियाँ बीबी मिल जुलकर गृहस्थी की गाडी को बिना किसी परेशानी के आगे खींचते चले गए ! आज उनके बच्चे भी स्वस्थ हैं बड़े हो गए हैं, और नौकरी करके माँ बाप का सहारा बन गए हैं ! अब ये सज्जन भी रिटायर हो गए हैं, पर चहरे पर वहीं चिरपरिचित मुस्कान, वही ताजगी, वही फूर्ती, कोई रोग नहीं, ६० पूरे हो चुके हैं लेकिन पचास के लगते हैं ! कारण समय की पावंदी, जल्दी सोना, जल्दी उठना ! सूरज के उदय होने से पहले की लालिमा के दर्शन करना ! अनुशासन, व्यायाम-योग नियमित तौर पर बिना नागा के करना ! वे इस युक्ती पर विश्वास करते हैं की पहले शरीर को थकाओ और फिर आराम करो, मजा आएगा ! वे कालोनी में काफी लोक प्रिय हैं ! कालोनी के हर राग रंग में हमेशा आगे रहते हैं ! क्या यह सब फ़ौजी ट्रेनिंग का कमाल है या कुछ और ? उनका कहना था आप अगर केवल आधा घंटा भी रोज इस शरीर को पुष्ट करने में लगाएंगे तो महीने में १५ घंटे ही लगे और साल में १८० घंटे, यानी ज्यादा से ज्यादा ८ दिन ! क्या जिस शरीर से आपने जिन्दगी की इतनी भारी गाडी खींचनी है, उसके इंजन में आप ८ दिन का ग्रीसिलिन भी नहीं लगा सकते ? बस केवल ८ दिन और जिन्दगी भर की मुस्कान !

2 comments:

  1. क्या जिस शरीर से आपने जिन्दगी की इतनी भारी गाडी खींचनी है, उसके इंजन में आप ८ दिन का ग्रीसिलिन भी नहीं लगा सकते ? बस केवल ८ दिन और जिन्दगी भर की मुस्कान !
    सचमुच विचारणीय !!

    ReplyDelete
  2. आप सही कह रहे हैं कि हम सब के लिए सबकुछ करते हैं लेकिन बस नहीं करते तो अपने शरीर के लिए। लेकिन यह ज्ञान भी 60 वर्ष के बाद ही आता है, जब शरीर निढाल होने लगता है।

    ReplyDelete