Tuesday, August 17, 2010

नायग्रा फाल तक का सफ़र





वैसे अमेरिका के हर कोने में एक आश्चर्य छिपा है, हर प्रदेश कुछ न कुछ विशेषताओं से भरा है! कुछ तो कुदरत मेहरवान है अमेरिका पर फिर कुछ इंसानों ने इसे और संवारा है ! समुद्र के ऊपर भारी भरकम पुल हैं जिनसे एक टापू को दूसरे टापू से मिलाया है तो समुद्र के बीच लम्बी सुरंगे बना कर रेल, मोटर, बस, ट्रक का रास्ता बना दिया है ! कहीं विशाल ह्वेल को अपने बस में करके, उसे ट्रेंड करके प्रयटकों का मनोरंजन करते हैं वहीं दूसरी तरफ विशाल अक्वेरियम के अन्दर इन मच्छलियों को रखते हैं ! विशाल समुद्र के सीने पर हजारों की संख्या में मोटर वोट, पानी के जहाज, पंडुब्बियाँ बड़ी तेज गति से चलती हैं, तो कहीं इम्पायर स्टेट जैसे विशाल मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनाकर ऊंची से ऊंची मंजिल से पूरे न्यू यार्क शहर के साथ साथ अटलांटिक महासागर की लहरों का आनंद भी दिला देती हैं !
२००३ में जब मैं अपनी पत्नी के साथ यूटाह स्टेट में गया था वहां एक रूखे पहाड़ के अन्दर तीन मील लम्बी सुरंग और सुरंग के अन्दर रंग बिरंगे मोम जैसे तरल पदार्थ से कही किस्म की चीजें बनती और गलती हुई देखी ! लास एंजिल्स में पैसिफिक समुद्र के किनारे ऊपर उठती हुई पहाडी, बांसों का जंगल, इस जंगल में हौली हूड़ के मशहूर कलाकारों की विशाल बेशकीमती कोठियां ! केलिफोर्नियाँ, अंगूरों का विशाल वाग, अंगूरों से बनी हुई वाईन ! जहां कुदरत ने पूरी संपदा बिखेर कर इसको सुन्दर बनाया है वहीं अमेरिका की जनता ने तथा विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए लोगों ने इसको संवारने में पूरा योगदान दिया है !
नायग्रा फाल
जब भी अमेरिका आता था, नायग्रा फाल के बारे में सुनता था ! बड़ी बड़ी नदियाँ जब पहाड़ की ऊंचाई से गिरती हैं तो झरना या प्रपात कहलाता है ! सोचता था की शायद ऐसे ही होगा नायग्रा फाल भी ! यहाँ न्यू यार्क से हर सोमवार, बुद्धवार और शनिवार को चाईना टाउन से बस चलती हैं ! मेरे बेटे राजेश ने "गोटुबस" नामक एजेंसी की बस में तीन टिकेट बुक करदी थी ! मैं मेरी पत्नी जयन्ती देवी और ध्योता करण नेगी के लिए ! शनिवार के दिन १४ अगस्त २०१० सुबह ६ बजे राजेश हमें कार से क्वींस शेराटन होटल के सामने न्यूयार्क सिटी के नजदीक छोड़ आया ! यहाँ से ७ बजे एजेंसी की बस हमें चाईना टाउन ८७ बौबेरी (मैनहट्टन ) ले आया ! ठीक ८ बजे यहाँ से हमारा सफ़र शुरू हुआ बस नंबर
बी क्ष ७४८४ से नायग्रा फाल के लिए ! सुरंग पार करते ही न्यू जर्सी पहुंचे, यहाँ से आगे का रास्ता बिलकुल क्लीयर मिला ! ज्यादा से ज्यादा स्पीड ६५ मील प्रति घंटे की चाल से बस स्पीड को बनाए हुए थी ! कोई लाल बती नहीं, हर क्रोस्सिंग पर फ़्लाइओवर थे ! रास्ते में घंने जंगल, उठते हुए पहाड़ियों की श्रृंखलाएं, लम्बे चौड़े घास के मैदान, लहलहाते हुए खेत, छोटे छोटे सुन्दर मकानों की बस्तियां, नाले, झीलें चरागाहों में घास चरते हुए किसानों के मवेशी ! मौसम साफ़ था, बस एयर कंडीशंड थी, इसलिए यात्रा में जहां कुदरत साथ दे रही थी वहीं मौसम का मिजाज भी शांत था !


रेस्ट एरिया पेंसिलवेनिया में रुके, चाय ली और आगे के लिए प्रस्थान किया ! बस में हम सारे यात्री बच्चों सहित ५७ थे ! हिन्दुस्तानी ज्यादा थे अंग्रेज कम थे ! ड्रावर अफ्रीकन अमेरिकन था तो कंडक्टर वनाम गाइड चाईनीज थी ! नाम था मैगी ! गाइड वास्तव में काफी होशियार, जानकार, मददगार थी ! पूरी यात्रा के दौरान वह सब मुसाफिरों का ध्यान रख रही थी, हर स्थान के बारे में जानकारी दे रही थी ! चहरे पर हर समय कुदरती मुस्कान थी ! रास्ते में छोटे छोटे कस्बे आते गए, जैसे न्यू म्यल फोर्ड कोर्ट लैंड, हैण्डरसन हार्बर, इंडियाना रिवर लेक, कोलंबिया, देल्वारे आदि ! दिन के ३ बजे हम लोग अलेक्सजेनडरिया बे (लोवर जेम्स स्ट्रीट ड़ैक )पहुंचे ! यहाँ पर बोट का सफ़र ! इस बोट का नाम था "अंकल साम बोट टूर " इसमें १५० से २०० पर्यटक एक साथ सफ़र कर सकते हैं ! इस समुद्र का नाम है सैंट लारेंस रिवर, इसकी खोज सन १५३५ ई० में जैक़ुईस कार्टियर ने की ! इस से कनाडा और अमेरिका का समुद्री रास्ता खुल गया ! इस इलाके का सबसे पहले माना जाने वाला चार्ट बना १६८७ ई० में जें देस्बयेस द्वारा और इसका नाम पड़ा १००० ऐलैंड । इस समुद्र में कनाडा और अमेरिका (न्यू यार्क ) के बीच में १८६४ छोटे बड़े ऐलैंड हैं ! हर टापू में अच्छे खूबसूरत लाज, हट, चर्च या बड़े टापुओं में
सुन्दर मकान या होटल बने हुए हैं ! पर्यटक समुद्र के बीच में रुक कर यहाँ इन टापुओं में मनोरंजन करने के लिए रुक जाते हैं ! कुछ टापू इतने बड़े हैं की यहाँ होटल व्यवस्था भी है और पर्यटक एक या दो दिन यहाँ रुक भी सकते हैं ! एक घंटा इन टापुओं का चक्कर लगाने के बाद हम लोग पांच बजे चल पड़े अगले पड़ाव की तरफ ! बफेलो सिटी नायग्रा फाल पहुंचे रात के १० बजे ! यहाँ बफेलो यूनिवर्सिटी भी है ! नायग्रा नदी कनाडा और न्यू यार्क, अमेरिका को बांटती है ! यहीं रात को हमें नायग्रा फाल दिखाया गया ! सामने कनाडा से रोशनी पड़ती है झरने के ऊपर ! इस पार से कनाडा की मल्टी स्टोरीज बिल्डिंगें, अम्बेसीज, होटल, कैसीनों के बोर्ड नजर आ रहे थे ! रात काफी हो चुकी थी इसलिए होटल रेस्तां बंद हो चुके थे, रात के एक बजे कोम्फोर्ट सुइटेस (होटल) पहुंचे ! काफी आराम दायक सभी सहूलियतें थीं, मजे से रात कट गयी ! सबेरे ७ से साढ़े सात बजे तक यहीं होटल में ब्रेक फास्ट (नास्ता) किया और आठ बजे चल पड़े नायग्रा फाल की तरफ ! आसमान बादलों से ढका हुआ था, कभी कभी हल्की सी बूंदा बांदी भी पड़ रही थी ! बादल नए नए फोरमेशन बनाते और हवाओं के झोंखों से फिर बिखर जाते ! बोटिंग के लिए काफी लम्बी लाईने लगा थी, हमारी गाइड ने ही हम सब लोगों का टिकट लिया और हम अन्दर चले गए! ये नायग्रा फाल ऑथोरिटी का कार्यालय था ! यहाँ से लिफ्ट से नीचे नदी के किनारे पहुंचे ! यहाँ पर बड़ी बड़ी बोटें लोगों को झरने के बिलकुल नजदीक ले जाती हैं ! हमें रेन कोट दिए गए, ताकी झरने की तेज बौछारों से बचा जा सके ! हम करीब १५० लोग बोट में सवार हुए, बोट आगे बढ़ती हुई नायग्रा फाल की तरफ चली ! यहाँ पर दो प्रपात हैं, एक तो अमेरिका की तरफ है "स्माल ब्रैडल फाल", दूसरा बड़ा फाल जिसका एक हिस्सा अमेरिका में पड़ता है और दो हिस्से कनाडा में ! इस को "हौर्स शू फाल" कहते हैं क्यों की इसका आकार बिलकुल घोड़े की नाल जैसे ही है! नायग्रा नदी यहाँ दो भागों में बंटी है इस बीच के इलाके को (दोनों झरनों के बीच) गौट ऐलैंड कहते हैं ! दोनों झरनों को जो अलग करती है उस स्थान को लुना ऐलैंड कहते हैं !


झरना की ऊंचाई ८६ फीट है (२६ मीटर) ! चौड़ाई भी बहुत है, हर मिनिट में इस झरने से ६ मिलियन क्यूबिक फीट पानी गिरता है ! हमारी मोटर बोट हमें झरने के बिलकुल नजदीक तक ले गया ! पूरा चक्कर लगा कर के हम वापिस आगये ! विश्व का एक अजूबा ! एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सन १८४८ ई० में एक ऐसा दिन भी आया जिस दिन नायग्रा नदी में पानी न होने से यह झरना ४० घंटे तक सुखा रहा ! इसके बाद हमें इसी नायग्रा फाल के ऊपर ४० मिनिट की एक मूवी दिखाई गयी ! कहते हैं कम से कम १०,००० हजार साल पहले जब हिम युग था सारी धरती हिमाच्छादित थी, जब बर्फ पिघलने लगा तो एक झील बनी जिसका नाम रखा गया "ग्रेट लेक " ! इसी से नायग्रा नदी निकली बड़ी बेग से और आगे चल कर इसी नदी पर यह विश्व प्रसिद्द "नायग्रा फाल " बना ! पिक्चर में १०००० साल पुराने लोगों की जीवन शैली दिखाई गयी है, एक जवान लड़की की शादी पुरोहित एक बूढ़े आदमी से कर देता है, लड़की भाग जाती है और नाव में बैठ कर नायग्रा नदी को पार करना चाहती है, लेकिन नाव इस झरने से नीचे गिर जाती है और वह मर जाती है, फिर उस झरने के नीचे उसकी आत्मा को दिखाया गया है एक सिम्बल के तौर पर ! इस जग प्रसिद्द प्रपात की खोज करने में, इस तूफानी नदी में अपनी मोटर बोट से जीवन मृत्यु का खेल खेलने वाले कुछ और भी वीरों की गाथा इस प्रपात से जुडी हैं ! किस तरह पहले एक वीर दिलेर नाविक ने इस नदी में नाव या जहाज चलाने की कोशीश की उन्हें कितनी कठनाइयों का सामना करना पड़ा इसे भी इस लघु फिल्म में दिखाया गया है ! सन १९६१ ई० में तीन लोग मिंया बीबी और साथ में १४ साल का लड़का मोटर बोट में सैर कर रहे थे, अचानक इंजिन बंद हो गया और नदी के तेज बहाव में नाव उलट गयी, तीनों बहने लगे आदमी तो तैर कर बाहर आगया, औरत को भी बचा लिया गया, लेकिन बच्चा उस झरने की चपेट में आ गया और झरने के तेज बहाव में नीचे आ गया ! कुदरत का करिश्मा देखिये बच्चा जीवित रोता, चिल्लाता हुआ, उस मौत की घाटी से बाहर नदी में तैरता हुआ मिला, मोटर बोट वालों को, जो वहां मोटर बोट का आनंद ले रहे थे! उन्होंने ने उसे रस्सी से खींच कर बोट में लिटा लिया, उसके पेट का पानी निकाला और उसे उसके माँ बाप को सौंप दिया ! माँ-बाप तो बेचारे रो रो कर बेहोश से हो गए थे, इस चमत्कार से उन्हें कितनी खुशी मिली होगी, कहने के लिए शब्दों की कमी हो जाएगी ! इस मूवी में यह भी दिखाया गया की एक बुजुर्ग औरत की ख्वाईस पूरी करने के लिए उसे एक गोल काठ की बड़ी हंडिया में बंद करके नदी में छोड़ दिया जाता है, वह बहते बहते उस झरने से भी नीचे गिर जाती है ! नीचे आने पर लोगों ने उस हंडिया को खोल कर देखा तो वह बुजुर्ग औरत और उसके साथ की बिल्ली दोनों जीवित थे ! मूवी देखते हुए ऐसा लग रहा था की हम एक हेलीकौफ्टर में बैठे हुए हैं और वह नायग्रा फाल की तरफ बड़ी तेजी से जा रहा है बिलकुल सामने
. ! यह नदी कल कारखानों को बिजली मुहया कराने में भी मददगार है ! इसी के कारण यहाँ लाखों लोगों की रोजी रोटी चलती है ! होटल हैं, रेस्टोरेंट हैं, बहुत बड़ी मार्केट है, रेल, बसे, कारें, नाव, बोट, जहाज इस नदी और झरने की देन है ! सारे नायग्रा फाल संबधी जानकारी लेने के बाद १५ अगस्त (भारत में स्वतंत्रता दिवस) दिन के एक बजे हम लोग वापिस चल पड़े मैनहटन न्यू यार्क के लिए ! न्यू जर्सी के बाद जाम लगने की वजह से चाईना टाउन ११ बजे के लगभग पहुंचे ! वही बस हमें क्वींस ले गयी वहां राजेश इन्तजार कर रहा था, घर ब्रेटल सर्कल मेलविल (लॉन्ग ऐलैंड) पहुंचते पहुंचते रात के १२ बज चुके थे ! ये थी हमारी नायग्रा फाल की यात्रा ! "समाप्त"

1 comment:

  1. अरे सर, खबर तो करते. हम भी १५ अगस्त को उसी एरिया में थे एक कवि सम्मेलन में.

    खैर, कहाँ हैं आप अभी. फोन नं. ईमेल करिये तो बात हो..sameer.lal@gmail.com

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