Saturday, August 28, 2010

मेरी कहानी (सत्तायसवां भाग)

२००७ मई के महीने में हम दोनों पति पत्नी यहाँ न्यू योर्क आ गए थे ! ०८ जून २००७ को यहीं मेरा पोता वेदान्त का जन्म हुआ (राजेश-काजल का दूसरा पुत्र) ! यहाँ का मौसम अप्रेल से बदली होने लगता है ! सरदी बर्फ से शुरू होती है और बर्फ के पिघलने के साथ ही समाप्त हो जाती है ! गर्मी यहाँ होती नहीं है लेकिन कभी कभी टेम्प्रेचर बढ़ जाता है ! यहाँ गर्मी आती तो है लेकिन कम ! इस तरह अप्रेल से नवम्बर तक यहाँ घूमने फिरने मौज मस्ती करने का भरपूर आनंद लिया जा सकता है ! नवम्बर से मार्च तक दिल्ली के मौसम से रूबरू होते हैं ! दिल्ली का अपना मौसम तो होता ही नहीं है, राजस्थान में आंधी चली तो पूरा दिल्ली आंधी द्वारा लाया गया बालू और धुंध से घिर जाएगा, शिमला में बर्फ पडी तो शीत लहरों की ठंडी हवाएं दिल्ली वालों को ठिठुरने के लिए मजबूर कर देगी ! दिल्ली वाले अपने गर्म कपड़ों को अप्रेल के महीने तक रेडी मेड रखते हैं ! दिल्ली में एक नदी है यमुना ! शास्त्रों में वर्णित ! यमनोत्री से निकल कर कही ऊंचे ऊंचे पर्वत शिखरों से नीचे उतर कर उत्तराखंड, हिमांचल प्रदेश, हरियाणा के किसानों के खेत खलियानों को हरा भरा करती हुई दिल्ली आते आते तक एक गंदे नाले में परवर्तित हो जाती है ! हरियाणा अगर बचा हुआ पानी यमुना में छोड़ देता है तो गर्मियों में दिल्ली वालों की प्यास बुझ जाती है, नहीं तो बड़े लोगों के बंगलों में तो शुद्ध जल की वर्षा होती रहती है, गरीब जमीन के अन्दर से निकले नमकीन पानी पीकर ही गुजारा कर लेते हैं ! मौसम को देखते हुए हमारा भी प्रोग्राम इसी तरह बनता है मई से नवम्बर तक अमेरिका बड़े बेटे के पास, दिसंबर से अप्रेल -मई दिल्ली छोटे बेटे के पास ! इन्हीं दिनों एक बार वरमोंट अमेरिका का न्यू हेम्पशायर से लगा हुआ प्रदेश की ख़ूबसूरत वादियों को देखने के लिए गया बच्चों के साथ ! वूड स्टोक नामक सिटी एक पहाडी की गोद में बसा हुआ है ! साथ ही एक नदी भी है जो पहाड़ों के शिला खण्डों से टकरा टकरा कर नीचे उतरती है ! हम जरा नदी के साथ साथ और आगे चले गए, वहां नदी विशाल शिला खण्डों से टकरा कर घंने जंगलों के बीच से दिल को हिलाने वाला शब्द करती हुई नीचे उतर रही थी ! नदी के दोनों तरफ पक्की सड़कें हैं, कहीं कहीं पर उन जंगलों में सैलानियों के लिए, हाईकिंग करने का पूरा बंदोबस्त है ! यात्रियों की सुरक्षा का भी पूरा प्रबंध है ! स्थानीय सरकार और जनता ने मिलकर उसे रमणीक बना दिया है की एक बार जाने वाला उस घाटी को बार बार देखना चाहता है ! जंगल में मंगल वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है कुदरत की इस अनुपम छटा को देख कर ! एक पर्वत शिला खंड का सहारा लेकर खड़ा था, एक बार तो ऐसा लगा की मैं यहाँ पहले भी आया हूँ, जैसे ये मेरी जानी पहिचानी जगह है ! जितनी उग्रता से नदी पर्वतों से नीचे उतरते हुए होती है उतनी ही शांत वह मैदानों में आकर हो जाती है ! नवम्बर में दिल्ली वापिस चले गए !

1 comment:

  1. वाह आपकी कहानी हमारी कहानी से मिलती जुलती है । हम भी अप्रेल से नवंबर यहां अमरीका में आ जाते हैं और नवंबर से अप्रेल दिल्ली । बेटे दोनो यहां हैं सो यहां का समय दोनों घरों में बंट जाता है । छोटा बेटा न्यू हैम्पशायर के डरहम में रहता है तो पिछले साल हम भी फॉल देखने वरमॉन्ट हो ाये ।

    ReplyDelete