Tuesday, August 10, 2010

मेरी कहानी (बीसवां भाग )

सिविल की ओर
सन १९८५ में मेरे बड़े बेटे राजेश ने १० वीं अच्छे नंबरों से पास कर ली थी, उर्वशी ने भी १२ वीं पास करके बी ए में दाखिला ले लिया था ! ब्रिजेश सातवीं क्लास में पढ़ रहा था ! मैं नयी पेंशन आने से दो महीने पहले पेंशन आ गया था इसलिए नयी पेंशन का लाभ मुझे नहीं मिला ! साथ ही अभी तक सरकारी मकान में रहा था, पेंशन आने के बाद मकान खाली करना था, सेना का चाहे वह ऑफिसर है चाहे जे सी ओज चाहे सैनिक वह सेना से अवकास लेते ही सरकारी मकान खाली कर देता है ! मैंने भी खाली कर दिया ! सेना एक अनुशासित सच्चा देश प्रेमी होता है ! जब तक सर्विस पर रहता है, सीमा पर तैनात रहता है, सीमा की रक्षा पर ! देश की एक इंच जमीन के लिए अपने को ही कुर्बान कर देता है ! पूरी जवानी अनुशासन, वफादारी, ईमानदारी, देश की सुरक्षा करने में गुजर जाती है ! सिविल में ८ घंटे की ड्यूटी होती है, लेकिन सेना में सैनिक २४ घंटे ड्यूटी पर तैनात रहता है ! लेकिन उसकी ऑथोरिटी तो पुलिस के कांस्टेबल के बराबर भी नहीं होती ! एक पुलिस का आदमी एक साल की नौकरी में एक मोटर साईकिल खरीद लेता है पांच साल में एक कार और दश साल में एक फ्लेट का मालिक बन जाता है ! एक सेना का जे सी ओज २८ साल में भी एक स्कूटर नहीं खरीद पाता ! सिविल का क्लर्क रिटायर्ड होने के बाद भी सरकारी मकान पर सांप की तरह कुण्डली मार कर बैठा रहता है और कोई उसे हटाता भी नहीं है, लेकिन फ़ौजी ऐसा कभी नहीं करता ! बच्चे अभी पढ़ रहे थे, इस लिए दिल्ली छोड़ भी नहीं सकता था ! एक छोटा सा किराए का मकान लिया ! २८ साल का भविष्य निधि का पैसा व् ग्रेच्युटी के पैसों से एक सौ गज का प्लाट लिया और उस पर दो कमरों का एक मकान बनाया ! बच्चों को नए मकान में शिफ्ट कर दिया ! अब नौकरी ढूँढने में लग गया ! उन दिनों सिविल में अच्छी नौकरी मिलना आसान नहीं था ! काफी दौड़ धूप करता रहा ! डेढ़ साल के लिए भूतपूर्व सैनिक लीग के कार्यालय में काम करने का मौक़ा मिला ! लीग में उस समय अध्यक्ष थे अवकास प्राप्त ब्रिगेडियर रामसिंह ! लीग के शीर्ष पर स्वतंत्र भारत के प्रथम सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल के एम करिअप्पा थे ! उन्हें २६ जनवरी १९८७ ई० को अशोका हौल राष्ट्रपति भवन में, उस समय के राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जेल सिंह जी द्वारा फील्ड मार्शल के रैक से नवाजा गया ! मुझे भी उस दिन अशोका हौल में जाने का अवसर मिला ! ३१ जौलाय १९८७ को भूतपूर्व सैनिक लीग का कार्यालय से भी जबाब मिल गया था ! अब फिर नौकरी ढूँढने का सिलसिला शुरू होगया था ! राजेश ने १२ वीं कर लिया था और आई आई टी की तैय्यारी करने लगा गया था ! वह अपने आप ही आई आई टी की सामग्री मंगाता था, कोचिंग भी स्वयं ही करता था, उसकी मेहनत रंग लाई और १९८८ ई० को उसे आई आई टी दिल्ली में दाखिला मिल गया ! कितनी खुशी हुई थी पूरे परिवार के लोगों को उस दिन, बयान से परे है ! लगा जैसे बजरंगबली ने साक्षात दर्शन देकर हमारी मुरादें पूरी कर दी ! उर्वशी ने भी दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन कर लिया था ! इसी साल गाँव में मेरे चचेरे भाई मनोहरसिंह (बंगाल इंजीनियर कोर में कैप्टेन था) ने बड़े देवता की बड़ी पूजा का आयोजन किया था ! यह पूजा शायद २०-२५ सालों बाद हुई थी ! इस पूजा में परिवार के सभी सदस्य सामिल थे !
मेरी माँ, चाची काफी दिनों बाद मिले थे !
२५ जनवरी १९८९ को मुझे भविष्य निधि कार्यालय नेहरू प्लेस में लिपिक की जगह मिल गयी ! यहीं यूनियन के चुनाव में जीत कर, यूनियन का सदस्य बन गया, इससे न केवल कर्मचारियों के संगठन को मजबूत करने का दायित्व निभाया, बल्की उनकी सुख सुविधाओं और मांगों को अधिकारियों तक पहुंचाकर उन पर विचार करने के लिए भी निवेदन करने का दायित्व निभाया !
राजनीति में इन दिनों बड़ी हल चल रही, सन १९८४ ई० के चुनावों में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को संसद में दो तिहाई बहुमत मिला, राजीव गांधी फिर से प्रधान मंत्री बने, सबसे कम उम्र के प्रधान मंत्री ! विश्व नाथ प्रताप सिंह रक्षा मंत्री बने ! इन्हीं दिनों राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच कुछ तन तनाव का माहोल बना रहा ! ऊपर से बौफर्स गनों की खरीद फरोख्त में दलाली खाने का मामला सामने आया ! राजीव गांधी की मुसीबतें बढ़ गयी ! इस मामले ने इतना तूल पकड़ा की लगा संसद में भूकंप आ गया हो ! १९८९ का चुनाव में यह मुद्दा छाया रहा और कांग्रेस हार गयी ! विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इसी मुद्दे पर कांग्रेस छोडी और १९८९ ई० में जनता दल की सरकार में प्रधान मंत्री बने ! देवी लाल उप प्रधानमंत्री व् गृह मंत्री बनाए गए ! यह सरकार ज्यादा नहीं चल पाई और सता और कुर्सी की छिना झपटी में वी पी सिंह को त्याग पत्र देना पड़ा, उन्होंने जाते जाते मंडल कमीशन का बण्डल खोल कर, बुझी हुयी आग को हवा दे दी ! इस अग्नि में कही किशोर या तो मर गए या अपाहिज हो गए ! वी पी सिंह को इस दुर्घटना के लिए याद किया जाता है जो उन्होंने केवल अपनी कुर्सी बचाने के लिए किया था ! चन्द्र शेखर को अगला प्रधान मंत्री बनाया गया, उन्होंने एक बार संसद में राजीव गांधी की मदद से अपना बहुमत तो सिद्ध कर दिया लेकिन इस खिचडी सरकार को ज्यादा दिन खींच नहीं पाए और १९९१ आते आते उनहोंने भी त्याग पत्र देकर अपना पीछा छुडाया ! 1991, २१ मई का दिन एक काला दिन बन कर आया और उभरते एक नव जवान, भारत के होनहार योग्य भविष्य के प्रधान मंत्री राजीव गांधी को छीन कर ले गया ! एक सर फिरे एल टी टी ई के आतंकवादी महिला ने आत्मघाती बम से उन्हें मृत्यु की गोद में सुला दिया ! इस चुनाव में राजीव गांधी की ह्त्या, जनता की कोमल भावनावों को छेड़ गयी और कांग्रेस को संसद में बहुमत दिला गयी ! मई १९९१ का महीना बड़ा ही मन हूश महीना था, मेरा चहेरा भाई सुरेन्द्रसिंह ३८ साल की उम्र में ही हम लोगों को छोड़ कर चला गया ! एक खुले दिल से हंसने हंसाने वाला हंस मुख भाई, कवि ह्रदय परिवार के सारे सदस्यों को मिलाने वाली मजबूत कड़ी, अचानक हमसे बिछुड़ गया ! बचपन में उसने भी तो कष्ट उठाए थे, अच्छी बुद्धी और होशियार, चतुर था ! दिल्ली से ही बी ए करके एस एस सी टेस्ट पास करके रक्षा मंत्रालय में लिपिक की पोस्ट पर नियुक्ती हुई थी और अपनी प्रखर बुद्धी और मेहनती होने से जल्दी ही वह सेक्शन ऑफिसर की पोस्ट तक पहुँच गया था ! लेकिन ईश्वर को यह खुशी राश नहीं आई और वह इतना ज्यादा अच्छा था की भगवान् को भी उसकी सेवाओं की जरूरत महसूस होने लगी और उन्होंने उसे अपने पास बुला लिया !
नरसिंघा राव प्रधान मंत्री बनाए गए और वित् मंत्री बने सरदार मन मोहनसिंह ! देश की माली हालत बहुत ख़राब हो चुकी थी ! चन्द्र शेखर ने देश की वित्त व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए देश का सोना ही वर्ड बैंक में गिरवी रख दिया था ! वर्ड मार्केट में देश की शाख काफी गिर गयी थी ! विदेशी करेंसी का पतिशत काफी नीचे गिर गया था ! मन मोहन सिंह जी ने नयी उदार नीति अपना कर अर्थ व्यवस्था को सम्भाला और विदेश से गिरवी सोने को देश में वापिस मंगवाया ! उन्होंने विदेशी कंपनियों के लिए गेट वे आफ इण्डिया का दरवाजा खोल दिया ! बड़ी संख्या में विदेशी कम्पनियां यहाँ आने लगी और देश के नव जवान जो अपनी योग्यता से विदेशों में जाकर पैसा और सौहरत हासिल करना चाहते थे, वह उन्हें यहीं भारत में ही मिलने लगा ! नरसिंघा राव तो एक अच्छे प्रधान मंत्री का सेहरा तो नहीं बाँध पाए पर सरदार मन मोहन सिंह जी का राजनीतिक कद काफी बढ़ गया ! उनकी सूझ बूझ और अच्छी अर्थ नीति के कारण विदेशों में भारत की शाख फिर से अपना स्थान बनाने में कामयाब रही ! वे देश में ही नहीं बल्की विदेशों में भी एक सफल अर्थ शास्त्री वित्त मंत्री के तौर पर जाने पहिचाने लगे !

1 comment:

  1. Rawatji, Namaskar,
    sabse pahle to main aapko dhanyawad dena chahunga isliye ki aapni apne jiwan ki bahumulya kahani is site par likha aur hamen bhi kuchh kahne ka mauka diya main chuki yah samwad hindi me likhna chahta hun atah main wistar se aapko mail id par hi likhunga aapne shayad 1991 ki jagah 1981 likh diya Rajeev gandhi ke assasination ke baare men sudhar kar denge bises yahan sab thik hai Madam Rawat ko ham dono ki taraf se namskar kahenge aur yun hi likhte rahenge bahut dichasp kahani hai atah comments bhi dilchasp likhna padega jo main aapko mail dwara bhejunga Dhanyawad Sahit, aapka
    Dubey

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