Tuesday, August 31, 2010

मेरी कहानी (तीसवाँ भाग)





इस साल जौलाय के महीने आते आते तबियत कुछ खराब हो गयी थी, कारण दो तीन चक्कर अपने गाँव के लगाने पड़े ! गाँव जाने के लिए आज भी चढ़ाई उतराई करनी पड़ती है ! इस बार पत्नी अकेले ही अमेरिका गयी जौलाय के महीने में ! अगस्त में करण के एडमिशन के लिए उर्वशी (मेरी बिटिया ) करण को साथ लेकर अमेरिका गयी और एक महीना अपने भय्या के पास रहकर वापिस इंडिया आ गयी ! करण ने डिग्री कोर्स करने के लिए अमेरिका के कालेज में ही एडमिशन ले लिया है !

केदार नाथ बद्री नाथ यात्रा

केदार नाथ बद्री नाथ दोनों ही तीर्थ स्थान उत्तरा खंड में हिमालय की गोद में विश्व प्रसिद्द बहुत प्राचीन मंदिर हैं ! जहां केदार नाथ पुराणों में वर्णित मंदाकिनी नदी के तट पर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है वहीं बद्री नाथ पवित्र पाविनी अलकनंदा के किनारे एक विशाल और बद्री नारायण का प्राचीन मंदिर है ! सेना में नौकरी करने के बावजूद भी अपने ही उत्तरा खंड के जग प्रसिद्द मंदिरों के दर्शन करने का अवसर नहीं मिला ! मंदिर के किवाड़ तो हर साल मई के महीने में खुल जाते हैं लेकिन एक तो भीड़ बहुत हो जाती है दूसरा मौसम कब बदली हो जाय, कब आंधी चल पड़े या बारीश हो जाय कहा नहीं जा सकता ! इसलिए इन स्थानों पर यात्रा करने का सबसे अच्छा सितम्बर-अक्टूबर का महीना रहता है !
केदारनाथ (ज्योतिर्लिंग)

अब के बच्चों के साथ पक्का मन बना लिया की बद्री धाम और केदार नाथ मंदिरों के दर्शन करने जरूर जाना है ! १९ सितम्बर को मैं ब्रिजेश-बिन्दू, आर्शिया और आर्नव को लेकर इस तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े ! रात को कोटद्वार रहे, अगले दिन यानी २० सितम्बर को शोभा-जवानी, श्रे, जेठू जी (जगमोहनसिंह गुसाईं) दीदी टाटा सोमू से पौड़ी के लिए चल पड़े ! हमारे साथ राकेश नैथानी भी थे ! राकेश जी का गौरी कुंड में होटल है ! हमारे साथ सबसे नन्ना यात्री आरनव था, केवल सात महीने का ! जिले का मुख्यालय पौड़ी पहुंचे ! यह स्थान एक पहाडी की ढलान पर है ! बहुत ही रमणीक और आकर्षक है ! सामने उतर की ओर हिमालय की सफेद पहाड़ियां, नीचे, ऊपर उठती हुई पर्वत श्रीखंलाएं, रंग विरंगे फूलों की घाटियाँ मन को मोह लेने वाली ! बरसात समाप्त हो चुका है, नदी नाले शुद्ध जल धारा के साथ बह रही हैं ! मौसम न ज्यादा गर्मी है न सर्दी, यात्रा के लिए बिलकुल उपयुक्त मौसम है ! श्रीनगर, रूद्र प्रयाग (मंदा किनी अलकनंदा का संगम), तिलवाड़ा , अगस्तमुनी, गुप्तकाशी (पुराणों के मुताबिक़ पांडवों द्वारा गुरु ह्त्या और स्व गोत्र ह्त्या के कारण भगवान शंकर पांडवों से रूष्ट होकर इसी स्थान पर गुप्त हुए थे) ! यहाँ पर शंकर भगवान का मंदिर है, केदारनाथ के रईस पंडों के बंगले हैं, होटल हैं, सजा सजाया बाजार है ! पहाडी की गोद में बसा बड़ा ही सुन्दर स्थान है गुप्त काशी ! चारों ओर हरे भरे खेत, धान झंगोरा, मडुवा, उर्द और भी मौसम के फल उपलब्ध हैं ! चश्मे, झरने और पहाड़ियों से उतरती हुई नाले और नदियाँ उत्तराखंड की पहिचान है । फाटा होते हुए रात को गौरी कुंड पहुंचे ! रात यहीं होटल में रहे ! मंदाकिनी के किनारे बसा गौरी कुंड चारों ओर पहाड़ों से घिरा हुआ है, सर्दियों में यह स्थान भी बर्फ से ढक जाता है ! स्नान करने के लिए तप्त कुंड है, जहां यात्री सुबह सबेरे स्नान करते हैं ! यहाँ से केदारनाथ जाने का १४ मील पैदल रास्ता है ! घोड़े, पालकी, पिठू भी मिल जाते हैं ! जो पैदल नहीं जाना चाहते वे वापिस फाटा आकर हेलीकाफ्टर से केदारनाथ जाते हैं ! २१ तारीख को हम वापिस फाटा आये ! यहाँ पर सरकारी और निजी कंपनियों द्वारा भी हेलीकाफ्टर की सुविधा दी जाती है ! भीड़ बहुत थी फिर भी हर दश मिनट में एक हेलीकाफ्टर सवारी लेकर जा रहा था, जैसे ही हमारा नंबर आया, घाटी में धुंध आगई और हमारे हेलीकाफ्टर की उड़ान रद्द हो गयी ! एक रात फाटा में ही होटल में रहना पड़ा ! ठण्ड काफी थी स्नान के लिए गर्म पानी की जरूरत थी जो हमें एक बाल्टी २०-२५ रुपये में मिली ! यहाँ भी पांडे ही होटल, रेस्तरां और मार्केट पर अपना दबदबाव बनाए हुए हैं ! अगले दिन पहले ही फ्लेट से हम लोग केदारनाथ पहुँच गए ! यहाँ पर भी पांडे अपने अपने जजमानों को लेने के लिए हेलीपैड पर पहुँच जाते हैं ! आगे ये ही लोग गाईड करते हैं, जरूरी हुआ तो अपने जजमान को अपने ही धर्मशाला में ठहराएंगे, पूजा पाठ करवाएंगे, शिव जी के दर्शन भी वही कराते हैं ! पुराणों के अनुसार जब भगवान शंकर गुप्तकाशी में गुप्त हो गए तो पांडव उनके दर्शनों के लिए केदारनाथ पहुंचे, यहाँ भी वे बैल बनकर गुप्त होने जा रहे थे लेकिन भीम ने उनकी टाँगे पकड़ ली इस तरह शिव जी का धड से नीचे वाला हिस्सा यहीं रह गया और सिर नेपाल काठमांडू में जा निकला जहां पर आज विश्व विख्यात "पशुपति" मंदिर है ! केदारनाथ में यहीं पर यह विशाल मंदिर देश विदेश के लोगों का आस्था और विश्वास का केंद्र है ! यहाँ जहां शिव जी का परिवार ही गणेश जी के साथ वहीं पांडवों की प्रतिमाएं भी विद्यमान हैं ! मुझे और जेठू जी को पितरों को पिंड दान भी करना था, इसलिए बाल तो गौरी कुंड में ही कटवा लिए थे,
पूजा यहाँ गौरी कुंड में की और केदारनाथ में जाकर भी की ! यहाँ शंकर भगवान के दर्शन किये और अगले दिन की फ्लाईट से वापिस फाटा आये !

बद्रीनाथ
फाटा से रूद्र प्रयाग, गौचर आये ! यहाँ एक हलके जहाज़ों को उतरने के लिए एक छोटा हवाई अड्डा है जो केवल गर्मियों में ही इस्तेमाल किया जा सकता ही ! यहाँ डिग्री कालेज है, हर तरफ कुदरत की सुन्दरता बिखरी हुई है !
नन्द प्रयाग, चमोली, पीपल कोटि, हेलेंग होते हुए जोशीमठ पहुंचे ! नवम्बर में जब बद्रीनाथ के द्वार बंद हो जाते हैं तो बद्री नाथ की पूजा यहीं जोशीमठ में होती है ! यहाँ मंदिर में भगवान् पद्माशन में ध्यान मग्न हैं ! बहुमूल्य आभूषण से सस्ज्जित, ललाट पर मुकुट, मुकुट पर हीरा जड़ा है ! अगल बगल में नर-नारायण हैं ! उद्धव कुवेर और नारद की मूर्तियाँ हैं ! हनुमान जी, गणेश जी, लक्ष्मी जी की प्रतिमाएं हैं ! साथ ही एक तप्त कुंड है जहां यात्री श्रद्धा भक्ती से स्नान करते हैं और पूनी का लाभ उठाते हैं ! पुरानों में वर्णित अलकनंदा के किनारे हिमालय की गोद में बसा बद्रीनाथ जन जन की श्रद्धा का केंद्र बिन्दु है ! भारत के कोने कोने से लोग भक्ती भाव से यहाँ विपरीत परस्थितियों में भी पहुंचाते हैं अपने दुखों का निवारण करने हेतु ! पुराणों में वर्णित है की जो भी यात्री सच्ची आस्था से यहाँ अपने पितरों को पिंड दान करता है उसे फिर कहीं भी गया, बाराणसी में पिंड दान करने की जरूरत नहीं पड़ती है ! कहते हैं एक बार ब्रह्मा जी अपनी ही लड़की पर मोहित हो गए थे, इससे शिव जी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने ब्रह्मा जी का सर धड से अलग कर दिया ! अब ब्रह्मा जी का सर शिव जी के त्रिशूल पर ही चिपक गया ! इसके लिए वे स्वर्ग से लेकर धरती के सभी पवित्र स्थानों के दर्शन कर आये लेकिन ब्रह्माजी का सर जो त्रिशूल पर चिपका तो चिपका ही रह गया ! जब वे इस पवित्र बदरीधाम पहुंचे तो ब्रह्मा जी का सर अपने आप यहाँ गिर गया और शिव जी ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो गए ! पहले ब्रह्मा जी के पांच सर थे उसके बाद अब उनके एक ही सर है !
यहाँ बड़े बड़े पांडे रहते हैं उनके बड़े बड़े होटल चलते हैं, धर्मशालाएं हैं, साफ़ सुथरा बाजार है, मंदिर के नाम पर लाखों लोगों की रोजी रोटी चलाती है, साधू है सन्यासी हैं, फ़कीर हैं, और एक बहुत बड़ी संख्या भिखारियों की है जिनको भगवान ही का सहारा है और भगवान ही उन्हें पालते हैं ! मंदिर जाने के लिए अलकनंदा पर पुल है ! यहाँ दर्शन करने के लिए पंचशिला, नाराद्शिला, वसुधारा, शेष नेत्र, चरण पादुका ! १४४००० फीट की ऊंचाई पर माणागांव है जो भारत और चीन की सीमा पर है ! एक रात श्री सतपाल जी महाराज संसद सदस्य जी के होटल में रहे और अगले दिन सुबह ही बदीनाथ जी का स्मरण करते हुए कोटद्वार के लिए निकल पड़े ! २५ सितम्बर को हम दिल्ली वापिस पहुंचे !


केदार नाथ और बद्री नाथ की छात्र छाया में पौड़ी से लेकर आगे गोपेश्वर, गुप्तकाशी, चमोली, रूद्र प्रयाग कर्णप्रयाग, सोनप्रयाग, पीपलकोटी, गौचर, जोशीमठ आदि इलाके काफी सम्पन हैं, सभी साधन होने की वजह से स्थानीय लोग खेती करते हैं और खेतों को हरा भरा रखते हैं ! यहाँ सड़कें, पानी बिजली की सुविधा होने के साथ ही जिला मुख्यालय, कोर्ट कचहरी, स्कूल, कालेज, तकनीकी शिक्षा के केंद्र होने की वजह से भी असली गढ़वाल का चेहरा यही है ! धार्मिक स्थान होने से मोटर गाड़ियां इस लाईन पर बहुत चलती हैं, इस तरह बेकारी नाम की समस्या इन स्थानों पर नहीं है ! नौकरी पेशा वाले यहाँ के लोग भी हैं, यहाँ के जवान भी सेना के हर रेजिमेंट मेंट, कोर सेना के तीनों फोर्सों में सेवा रत हैं, अधिकारी रैंक के भी हैं तो जे सी ओज जवान भी हैं ! लेकिन ज्यादातर ये लोग अवकास लेने के बाद अपने खेत खलियानों को देखने वापिस अपनी जन्म भूमि को विकसित करने आ जाते हैं ! सरकार भी मेहनतकश लोगों की मदद करती है
"ओउम"
! ! जय केदार नाथ, जय बद्री विशाल !!

5 comments:

  1. एक बार मुझे भी मौका मिला बद्रीनाथ केदारनाथ जाने का बहुत मजा आया|

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  2. आपकी खूबसूरत पोस्ट को ४-९-१० के चर्चा मंच पर सहेजा है.. आके देखेंगे क्या?

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  3. आभार इस वृतांत के लिए.

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  4. rawatji ,
    aapka likha blog padha jisme aapne Yoga ke upar charcha kee hai aur Yoga ki Mahatta ko warnit kiya hai, Lagta hai aap apni class wahan bhi chala rahen hain agar aisa hai to yah bahut hi Prashansniy karya aap kar rahen hai aur wahan amerika me bhi apne desh ke sabse anmol dharohar ka gyan logon ko kara rahen hain yah bahut hi achha karya hai aapko badhayi, idhar aapki taraf se koyi suchna nahin aa raha hai sab thik hai na, yahan bhi sab thik hai aur aapko log khub yaad karte hain khaskar morning walk ke wakt.
    Dubey

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  5. Aaj aapke Kedarnathji ewam Badrinathji ki yatra ka wiwran padha jo ki kafi suchnaprad hai aur yatra karne keliye suwidhprad jankari hai. Mujhe bhi awsar mila tha Kedanath aur Badrinath ki Ytra ka 2002 me tab se ab tak to kafi suwidha aur byawastha badhi hogi aapke blog ko padhke meri bhi yatra ki yaaden taja ho gayin dhanyawad.
    Ashok Kumar Dubey

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