Tuesday, July 13, 2010

मेरी कहानी (चौथा भाग)

समय देवीखेत में केवल प्राईमरी स्कूल थी ! इलाके में उस समय केवल दो मीडिल स्कूल थे, पौखाल और मटियाली ! मेरे मामा जी ने इलाके के सारे गण मान्य लोगों को देवीखेत में बुलाया और वहीं पर एक मीडिल स्कूल खोलने की इच्छा जाहिर की ! बहुत सारे गाँव वालों को देवीखेत में मीडिल स्कूल खोलने से काफी लाभ मिलता ! जिनके बच्चे दूर की वजह से स्कूल नहीं जा पा रहे थे, उनके लिए तो जैसे ईश्वर ने उनकी मनोकामना पूरी कर दी ! एक शुभ दिन पर उदघाटन भी हुआ और देखते देखते, देवीखेत में मीडिल स्कूल खुल गया ! मेरे मामा जी का एक स्वप्न पूरा हुआउस ! वे फिर जिला बोर्ड के सदस्य भी भारी मतों से चुने गए ! देवीखेत में उन दिनों पानी की बड़ी समस्या थी, दिखेत गाँव वालों के चश्मे से हम पानी लाते थे ! मामाकोट में भी पानी की काफी किल्लत थी, चश्मे तो थे पर दूर दूर थे ! नंबर लगते थे और अपनी बारी आने पर ही पानी भर सकते थे ! स्कूल के अध्यापक वहीं स्कूल में रहते थे उनके लिए पानी लाना खाना पकाने के लिए लकड़ी का इंतजाम करना विद्यार्थियों के ऊपर था ! लकड़ी लाने के लिए हर सोमवार को हमें चेलुसेन के जंगल बटाकोली जाना होता था ! यह जंगल तीन चार मील दूर पड़ता था ! पूरा दिन लग जाता था ! इस जंगल में जोंक बहुत हैं और अकसर हमारे पावों पर चिपक जाते थे ! यहाँ एक बहुत बड़ा लाल किस्म का फूल होता है जिसे "बुरांस" का फूल कहते हैं ! इसका स्वाद मिट्ठा है और हम विद्यार्थी इसका स्वाद लेते थे ! समय की गति के साथ मैं भी कक्षा बदली करता चला गया ! सन १९४८ में मैंने चौथी पास किया और एक नए नियम के माध्यम से हमें ६ वीं जूनियर क्लास में बिठाया गया ! सन १९५१ ई० में मैंने देवीखेत से ८ वीं पास किया ! हमारा सेंटर जहरीखाल में पडा था !
भूपेंद्र सिंह - मेरे मामा जी के बड़े लडके का नाम भूपेंद्र सिंह था ! वे मेरे से कुछ ही महीने बड़े थे पर दो क्लास आगे थे ! अच्छी कद काठी और सुन्दर थे ! मामा जी वहीं स्कूल में राम लीला भी करवाते थे और स्वयं परशुराम और भूपेंद्र भाई लक्षमण का किरदार निभाते थे ! आवाज मधुर थी गाना भी गाते थे, लेकिन पद्गाई में वे हमेशा एक साधारण विद्यार्थी ही रहे ! लेकिन वे कलम के जादूगर थे ! इतनी अच्छी हिन्दी भाषा लिखते थे की बड़े बड़े लेखक भी चक्कर खा जांय ! उन्होंने एक साप्ताहिक पेपर "ठहरो", निकाला था और जब तक जिए इस पेपर से जुड़े रहे ! वे जिल्ला के कम्युनिष्ट पार्टी के जनरल सेक्रेटरी थे ! गरीबों की आवाज बुलंद करते रहे अपने ठहरो के द्वारा ! सन १९९७ ई० में वे भी हमें छोड़ कर स्वर्ग सिधार गए ! उनके बड़े लडके सुधीन्द्र नेगी इस पेपर ठहरो को धुन्धुवी नाम से चला रहे हैं !
सन १९५३ ई० में मेरे मामा जी ने ढौ री छोड़ दी और कोटद्वार भावर के पश्चिम में झंडी चौड को आवाद किया ! इससे पहले उन्होंने देवीखेत में प्रदर्शनी का आयोजन भी किया था जिसे लोग आज भी याद करते हैं ! वे झंडी चौड चले गए थे लेकिन दिल तो देवीखेत में बसा था ! उनका दूसरा स्वपना था देवीखेत तक मोटर रोड जो १४ जनवरी १९८४ ई० पूरा हुआ ! झंडी चौड़ उस समय घने जंगलों से ढका था, न पानी था न ढंग का ही कोई रास्ता था, जंगल कटवा कर खेत बनाए गए, सरकार से लड़ झगड़ कर सड़कें पानी, बिजली का इंतजाम करवाया ! आज इन बातों को ४७ साल हो गए हैं, आज जो लोग झिन्डी चौड़ में बसे हुए हैं और जो बुजुर्ग हैं उन्हें पता होगा की गोकुलसिंह जी ने इस झिन्डी चौड़ को आधुनिक सुविधाओं को मुहयिया कराने में कितना कष्ट उठाया होगा, कितने दिनों वे भूखे रहे होंगे, कितनी रातें बिना सोये हुए बीती होगी ? वह एक बड़ा संघर्ष मय जीवन था ! ठीक स्वतंत्रता संग्राम जैसे, उस वक्त विदेशियों से संघर्ष था, अब अपनो से, अपनी सरकार से जो कदम कदम पर मुसीबतें खड़ी कर देती थी ! जहाँ उनका पूरा जीवन ही संघर्ष मय रहा, तो भूपेन्द्र भाई जी जीन्दगी भर गरीबों के लिए संघर्ष करते रहे ! उनकी रखी हुई ईंटों पर आज उनकी अगली पीढी आलीशान बंगले बनाकर शान शौकत की जिन्दगी जी रहे हैं !
नवीं क्लास के लिए मैं अपने बड़े मामा जी के पास कोटद्वार आगया ! यहाँ पब्लिक इंटर कालेज के मैनेजर मेरे मामा जी श्री प्रतापसिंह थे ! नवीं में हमारे से एक साल आगे वाले भी हमारे साथ हो गए ! सन १९५३ ई० को मैंने १० वीं पास किया ! बड़े मामा जी पहले ही कोटद्वार आकर बस गए थे ! पहले सम्पादन का कार्य किया फिर अपना पूरा जीवन ही राजनीति को दे दिया ! सांसद रहे, कोटद्वार में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रहे !
अब मेरे सामने नौकरी करके अपने परिवार को आर्थिक सहायता पहुंचाने का था ! जंगलात में चालीस रुपये महीने पर तीन महीने नौकरी की फिर दिल्ली अपने चाचा जी ज्ञानसिंह के पास चला गया, उनकी आर्थिक स्थिति भी कोई ख़ास अच्छी नहीं थी ! यहाँ प्रेस में कम्पोजिंग का काम सीखा ! फिर कोटद्वार आकर एक साल तक अरविन्द प्रेस में कम्पोजिंग का काम किया दो बच्चों को ट्यूशन किया ! सन १९५६ ई० में मैं फिर दिल्ली आया और २९ अक्टूबर १९५७ ई० को राजपुताना राईफल्स रेजिमेंटल सेंटर में भर्ती हो गया ! एक साल की ट्रेनिंग के बाद देश के लिए कुर्वान होने की शपत ली और पक्का सैनिक बन गया ! मई सन १९५९ ई० को मुझे पहला प्रोमोशन मिला, अब मैं सिपाही से ला.नायक बन गया था ! मेरे जीवन का यह एक बहुत ही ख़ास दिन था ! यद्यपि गढ़वाल की अलग रेजिमेंट हैं "गढ़वाल राईफल्स" और कुमायूं रेजिमेंट फिर भी मैं राजपुताना राईफल्स में भर्ती हुआ पद्दोन्नत हुआ खूब इज्जत और सम्मान पाया और २८ साल तक इन लोगों के प्रेम और भाई चारे के बंधन में बंधा रहा ! मैं एक लिपिक भर्ती हुआ था, उस समय जो पहली कंपनी मुझे मिली थी, वहां मेरे सीनियर थे नायक रामसिंह, मथुरा के रहने वाले ! अगर सच कहूं तो उन्होंने ही मुझे एक अच्छा लिपिक बनाया ! उन्होंने मुझे दो साल अपने पास रखा अपना बच्चा समझ कर ! उन्हें मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ ! वैसे भी जब वे जे सी ओ बने तो उनका न.था जे सी ३८११५, और मेरा न. था ८३११५ ! तीन आठ और आठ तीन क्या संयोग था ! (5th bhaag)

No comments:

Post a Comment