Monday, July 19, 2010

मेरी कहानी (सातवाँ भाग)

आजादी मिलते ही हमारे पड़ोस में पाकिस्तान नाम से एक दुश्मन पैदा हो गया, पूर्वी बंगाल पूर्वी पाकिस्तान और आधा पश्चिम पंजाब से आगे सिंध, बलोच पश्चिमी पाकिस्तान ! पार्टीशन के बाद भी महात्मा गांधी जी की दरिया दिल्ली ने पाकिस्तान को पचास करोड़ रुपये भारत की तरफ से और दिला दिए, पाकिस्तान ने उन पैसों से हथियार खरीदे और जम्मू काश्मीर पर आक्रमण कर दिया ! सन १९४८ ई० में १५ अगस्त तक एक ही भारत के लोग आपस में लड़ पड़े ! भारत तो हमेशा से ही शांति प्रिय देश रहा है और स्वतंत्रता के बाद देश की उन्नति करना चाहता था ! लेकिन पाकिस्तान को अमेरिका खैरात में हथियार, रुपया पैसा, खाने के लिए अनाज देता रहा और वह उस खैरात में मिले धन को भारत के खिलाफ युद्ध में खर्च करता रहा ! अपने देश का विकास तो करने से रहा, भारत के विकास कार्यों में भी रोड़े अटकाने लगा ! जब १९४८ का युद्ध पाकिस्तान हारने लगा तो अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के आगे जाकर गुहार लगाने लगा की वे भारत पर युद्ध विराम के लिए दबाव डालें ! भारत नया नया आजाद हुआ था, विश्व के सारे राष्ट्र संघ के सदस्यों के आगे मजबूर होकर सीज फायर करना पड़ा ! युद्ध विराम की शर्तों के मुताबिक़ पाकिस्तान को पूरे जम्मू काश्मीर खाली कर देना था, लेकिन उसने अपनी कब्बायली नाम की सेना को काश्मीर से नहीं हटाया और संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देशों का उल्लघन किया ! काश्मीर का जो इलाका उसने दबा रखा था आज भी 'पाक अकुपाईद काश्मीर के नाम से जाना जाता है ! हम इस हिस्से को भारत का अभिन्न अंग बताते हैं ! लेकिन उसके बाद पाकिस्तान के साथ काश्मीर के लिए सीमा पर झड़पें आम बात हो गयी है ! हर साल काफी संख्या में सैनिक सीमा पर मारे जाते हैं पर काश्मीर समस्या ज्यों की त्यों आज भी और कुर्वानी मांग रही है ! !
1965 भारत-पाक युद्ध
१९६२ ई० में चीन ने अचानक दोस्ती का हाथ बढ़ाकर खंजर चला दिया और भारत को काफी धन और जन की हानि हुई ! पाकिस्तान ने सोचा की "चीन ने तो हिन्दुस्तान की विकास की जड़ें हिलाकर रख दी हैं और यही मौका है की उसके ऊपर आक्रमण कर दिया जाय, लोहा गरम है और पूरे काश्मीर पर कब्जा करने का सही समय है !अपरेल १९६५ में रन कच्छ पर हमला किया और सीमा के काफी अन्दर तक घुस गए ! १५ अगस्त तक हजारों पाकिस्तानी सेना से घुस पैठ कराकर कश्मीर के पहाडी गाँवों में लोकलों को बहला फुसला कर भारत के बिरुद्ध भड़काने का काम करने लगे ! अमेरिका से नए नए पैटर्न टैंक मिले थे, iसलिए हौशले और भी बढ़ गए थे ! सितम्बर १९६५ ई० को उसने अखनूर के ऊपर हवाई हमला करके आखिर युद्धका बिगुल बजा ही दिया ! शुरू शुरू में तो पाकिस्तान हर मोर्चे पर आगे बढ़ा, लेकिन तीन दिन के बाद भारतीय सैनिकों ने जो अपना जलवा दिखाया तो फिर पाकिस्तानी सेना हर मोर्चे पर भागते नजर आए ! हमारी स्थल सेना ने नेवी को साथ लेकर पाकिस्तान की नेवी की कमर तोड़ दी और लाहोर आक्रमण पर कर दिया ! अब पाकिस्तानी मिलिटरी के हुकमरान घबराए, उन्होंने पहले अमेरिका मदद माँगी, अमेरिका उस समय स्वयं वियेतनाम में फंसा हुआ था, उसने मदद देने से इनकार कर दिया, अब वे आनन् फानन में युद्ध विराम कराना चाहते थे ! लेकिन भारत इसके लिए तैयार नहीं था ! फिर संयुक्त राष्ट्र का दबाव बढ़ा और रूस ने भी भारत को सीज फायर के लिए राजी कर दिया ! इस युद्ध में यद्यपि भारत का पलड़ा भारी रहा, लेकिन नुकशान दोनों देशों का बहुत ज्यादा हुआ ! पाकिस्तान को तो फिर अमेरिका से खैरात मिल गयी लेकिन हमें तो फिर से स्वयं उठ कर अपने खोये हुए अस्तित्व को पाना था ! दूसरों की भीख पर पलने वाला पाकिस्तान आज भी वहीं पर खडा है और भारत उसके द्वारा बार बार नुकशान पहुंचाने के वावजूद अपने विकास करता जा रहा है ! पाकिस्तान के फ़ौजी तानाशाह जनरल मोहम्मद अयूब खान और भारत के प्रधान मंत्री रूस के बुलाने पर ताशकंद गए और वहां दोनों देशों के नेताओं ने ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए ! उन दिनों रूस के प्रधान मंत्री श्री बुल्गानिन थे ! सारी जीती हुई जमीन पाकिस्तान को वापिस कर दी गयी ! १० जनवरी १९६६ को वहीं ताशकंद में समझौते के बाद ही रहस्यमय ढंग से हमारे प्रधान मंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री जी की मृत्यु हो गयी ! कारणों का आज तक पता नहीं लग पाया है ! उस समय उनकी पत्नी श्रीमती ललिता शास्त्री भी उनके साथ ताशकंद में थी ! श्रीमती इन्द्र गांधी भारत की तीसरी प्रधान मंत्री बनी ! वे श्री लालबहादुर ही थे जिन्होंने देश को "जय जवान जय किसान " का नारा दिया ! हमारी यूनिट थ्री राजपुताना राईफ्लस की तीन साल की फील्ड समय सीमा समाप्त हो रही थी, यूनिट को अगला पीस स्टेशन मिला "जयपुर" ! १९६६ अगस्त के महीने में हम लोग झोटवाडा जयपुर पहुंचे ! उस समय राजस्थान के मुख्य मंत्री थे श्री मोहन लाल सुखाडिया जी ! उन्होंने अपने निवास स्थान पर यूनिट के अधिकारियों और जवानों को बुलाकर यूनिट का अपने प्रदेश में स्वागत किया ! इन दिनों जयपुर का हवाई महल, पिंक सिटी जयपुर, गलता, आदि धार्मिक दूसरे ऐतिहासिक स्थानों को देखने का अवसर मिला ! मेरे ससुर साहेब मेरी पत्नी को लेकर जयपुर आए और एक दो स्थानों को देख कर दूसरे दिन ही गाँव चले गए थे ! यहाँ जयपुर सिटी में सिनेमा हौल काफी थे सो खूब फ़िल्में देखी पत्नी के साथ ! इससे पहले मैं पत्नी को लेकर देहरादून इनके चाचा चाची से मिलने भी गए थे ! मुझे भी यूनिट में ५ साल हो चुके थे, मेरी पोस्टिंग रिकार्ड्स औफ़िस दिल्ली हो गयी ! अक्टूबर के महीने में दिवाली के दिन हम लोग दिल्ली पहुंचे ! कुछ दिन जम जमाव में लगे फिर सब कुछ ठीक हो गया ! २४ सितम्बर १९६७ ई० को मेरे परिवार में बहुत लम्बी इंतजारी के बाद एक बेटी आई, उर्वशी ! शादी हुए सात साल हो चुके थे, इस लिए उर्वशी हमें ईश्वर की ओर से एक बड़ा तोहफा था ! मंदिर के पंडित जी को बुलाया गया, नाम करण विधि विधान से किया गया ! मैं एक सैनिक था इसलिए बच्ची का जन्म आर्मी हास्पिटल दिल्ली कैंट में ही हुआ, समय सुबह के ७.१० थे और रविवार था पहले बच्चे के रूप में लक्ष्मी आई थी घर में इसलिए खूब खुशियाँ मनाई गयी ! (आठवाँ भाग)

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