Friday, July 9, 2010

मेरी कहानी (दूसरा भाग )

नयी जगह पर जंगल में बस्ती बसाना कोई हंसी खेल नहीं था ! किसी तरह से पहले झोपडी बनी फिर आसपास के गाँव वालों के साथ मिलकर पत्थरों के पक्के मकान बने ! छत को दोनों तरफ से स्लोप दिया गया ताकी वारीश का पानी बाहर ही गिरे ! बड़ी बड़ी चट्टानों को तोड़ कर छत के लिए भारी भारी चौकोर पत्थर लाये गए और उन पत्थरों से मकान की छत तैय्यार की गयी ! सारे आसपास के गाँव वालों के सयुंक्त प्रयत्न से सारे लोगों के मकान पत्थर के बन गए ! मेरे दादा लोकसिंह (मृत्यु १९४७ ई० 75 साल की उम्र में ) बड़े दयालु, धार्मिक और मेहनतकस किसान थे ! गाँव से जो तीन परिवार चले गए थे उनकी कुछ जमीन हमारे परिवार वालों ने ले ली थी ! यहाँ तक किवदंती है की पहले डाडा गाँव की जमीन बहुत थी पूरा मूंठ (करीब २० बीघा सपाट, लम्बे चौड़े खेतों वाली जमीन) हमारा ही था ! पता नहीं कौन सी ऐसी परेशानी उन लोगों के सामने आई की इतनी अच्छी उपजाऊ जमीन मोहनी वालों के हवाले कर दी ! श्री लोकसिंह मेरे दादा जी के चार लडके हुए, मेरे पिता जी बख्तावर सिंह सबसे बड़े थे शायद उनका जन्म सन १९०३ ई० में हुआ था (मृत्यु जौलाय १९४५) ! मेरे चाचा ज्ञानसिंह(मृत्यु १९६०), प्रतापसिंह ९१९४२ में द्वीतीय विश्व युद्ध में शहीद हुए) और जीतसिंह (मृत्यु 197९) हुए ! मेरे पिता जी की शादी डबरालस्यूं पट्टी, ग्राम ढौरी के श्री लून्गीसिंह जी की पुत्री कौशल्या देवी के साथ हुई थी ! यह परिवार नंदा नेगियों का था ! गढ़वाल के इतिहास में एक मोड़ ऐसा भी था जब पौड़ी गढ़वाल से लेकर जोशीमठ तक कैंतूरों का राज्य था और मेरे नाना जी के परम पर दादा कैंतूर सम्राट के सेनापति थे ! उनकी योग्यता, वीरता और कैंतूर साम्राज्य के लिए की गयी सेवाओं के बदले यह गाँव डाबर समेत इनाम में मिला था ! छोटे चाचा की शादी रीटूड से कुंवरी देवी के साथ हुई, इनके दो भाई थे मंगलसिंह और नैन सिंह ! प्रतापसिंह चाचा गढ़वाल राईफल्स में थे और दूसरे विश्व युद्ध में शहीद होगये थे ! तीसरे चाचा जीतसिंह की शादी हिलोगी से हुई थी ! ये भी गढ़वाल राईफल्स में थे और दूसरे विश्व युद्ध में जापानियों के कैदी बन गए थे, बाद में उन्होंने नेताजी सुभाष चन्द्र जी की "आजाद हिंद फ़ौज" ज्वाइन की थी ! इम्फाल की लड़ाई में हारने के बाद ये अंग्रेजों के कैदी बन गए थे ! लालकिले की प्राचीर के अन्दर एक विशेष अदालत में पेशी हुई, देश के प्रथम प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने इस केस को लड़ने के लिए एक बार फिर अपने वैरेषटर का लिवास पहिना था और इन लोगों को स्वतंत्र सेनानी का खिताब दिलवाया था !
मेरे पिता जी किसान थे और दादा जी की सहायता करते थे ! उस समय शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं था, इसलिए पिता जी तथा कोई भी चाचा पढ़ा लिखा नहीं था ! संयुक्त परिवार हुआ करते थे और सभी मिलजुल कर खेतों में खूब मेहनत करते थे ! हम चार भाई और एक बहिन हुए,
बड़ा भाई कुंवरसिंह जन्म मई १९३१ (मृत्यु ४ नवम्बर १९७६), हरेंद्रसिंह (मैं) जन्म १८ नवम्बर १९३५, विजयसिंह जन्म १९३९, गोविन्दसिंह (बचपन में ही भगवान को प्यारा हो गया था ) और एक मात्र बहिन शांती (जन्म जनवरी १९४५ )! मेरे छोटे दादा उमरावसिंह की एक संतान हुई थी बेलमसिंह जो कुमांयु रेजिमेंट में भर्ती हुए थे और रानीखेत में ट्रेनिंग के दौरान फूटबाल खेलते हुए अचानक ह्रदय गति रुकने से भगवान को प्यारे हो गए थे ! उमरावसिंह दादा जी तो पहले ही स्वर्ग वासी हो गए थे दादी हमारे ही साथ रही अंतिम शांस तक ! चाचा ज्ञान सिंह जी परिवार के साथ लाहोर बिरला क्लोथ मिल में काम करते थे !१५ अगस्त, १९४७ को भारत आजाद हुआ था और साथ ही हिन्दुस्तान पाकिस्तान विभाजन ! इस विभाजन ने पूरे देश को स्वतंत्रता की खुशी से ज्यादा दुःख पहुंचाया ! पाकिस्तान के लोगों ने वहां के हिन्दुओं को लूटा, उनकी जमीन जायजाद हड़प ली कहियों को मौत के घाट उतार दिया ! मेरे चाचा चाची किसी तरह बचकर दिल्ली आगये ! उनकी कंपनी बिरला क्लोथ मिल भी दिल्ली कमला नगर घंटा घर के पास फिर से चालू हो गयी थी ! उनके पांच लडके थे, सबसे बड़ा मनोहरसिंह, फिर द्रोपद्सिंह, सुरेन्द्रसिंह, नरेन्द्रसिंह और वीरेन्द्रसिंह ! मनोहरसिंह ने बंगाल इंजिनीयर रेजिमेंट ज्वाइन की थी, और २००१ में ले.कर्नल रिटायर हुए ! उनके एक लड़का संजीव और लड़की संगीता है ! 2007 अक्टूबर के महीने में अचानक तबियत बिगड़ी और वे भी हमें छोड़ कर स्वर्ग सिधार गए ! वे एक बहुत खुश मिजाज, मिलनसार, हंस मुख इंसान थे, उनका दिल भावुक और कवि ह्रदय था, उनकी शादी सुरेशी देवी के साथ हुआ था ! कर्मठ और मेहनती थे, लगन और वसूलों के पक्के इंसान थे ! यही कारण था की सेना में सन १९६२ ई० में एक सिपाही भर्ती हुए थे और ऊंची छलांग लगाते हुए २००१ में सेना से ले.कर्नल की पोस्ट से रिटायर हुए ! उनकी असायमिक मृत्यु ने हमारे परिवार को बड़ा धका दिया ! उनसे पहले सुरेन्द्रसिंह जो मिनिस्ट्री आफ डिफेंस में सर्विस पर था उसे क्रूर मृत्यु ने मई सन १९९१ ई० में तिमारपुर में नादान परिवार को छोड़ कर हमसे छीन लिया था ! उनकी शादी हेमलता से हुई थी , उनके दो लडके अरुण और वरुण और लड़की इल्ला है ! द्रोपद्सिंह के एक लड़की और दो लडके हैं ! पहले सेना से अवकास लिया और फिर स्टेट बैंक की नौकरी से अवकाश लेकर कोटद्वार भाबर में रह रहे हैं ! नरेन्द्रसिंह के भी एक लड़की और दो लडके हैं और सेना से सूबेदार के रैंक से अवकाश ले चुके हैं ! वीरेन्द्रसिंह के दो बेटे हैं और वे स्वयं १९९७ ई० में स्वर्ग सिधार चुके हैं ! चाचा जीतसिंह के दो लडके दयालसिंह और बुधीसिंह हैं दोनों सेना से रिटायर्ड होकर कोटद्वार में बस गए हैं ! मेरा अपना परिवार शान्ति से जिन्दगी बिता रहा था , सब कुछ ठीक चल रहा था की जौलाय १९४५ ई० को मेरे पिता जी हमें छोड़ कर भगवान के पास चले गए ! बड़ा भाई १४ साल के थे, मैं नौ साल का था, विजय 5साल का
था ! जमीन काफी थी लेकिन करेगा कौन ! लेकिन ईश्वर महान है मोहनी में हमारे कुल पुरोहित का परिवार (माधव, मनीराम,जीत राम )मौके पर हाजिर हो गए ! उन्होंने बड़े भाई को हल चलाना सिखाया स्वयं उनके परिवार की महिलाएं माँ को खेतों में मदद देने के लिए हर समय मौजूद रहती थी ! वह कठीन समय भी निकला बड़े भाई ने घर का कामकाज संभाल लिया था, सर्दियों में जंगलात से कुछ कमा कर लाने लगे थे ! सन १९५३ ई० को हिलोगी में बिमलादेवी से उनकी शादी की गयी ! उनके दो लड़कियां और पांच लडके हुए ! मुनेंद्र्सिंह, गजेन्द्रसिंह, सचेंद्र्सिंह, पपेंद्र्सिंह और सेठ चंद्रपाल सिंह (१९९६ ई० में भोपाल में अचानक एक हादसे में मौत हो गयी ), सुशीला और विना ! सब की शादी हो चुकी हैं और सब अपने परिवार के साथ खुश हैं , मुनेन्द्र और गजेन्द्र व सुशीला दिल्ली में हैं, सचीन रायपुर एस ये एफ में और पपेंद्र बी एस एफ में परिवार दिल्ली में है ! विजयसिंह भी एस ऐ एफ से अधिकारी रैंक से अवकाश लेकर भिलाई में बस गया है ! उसके भी दो लडके धर्मेन्द्र और शैलेन्द्र और एक लड़की है सब की शादी हो चुकी है ! शांती के चार लडके हैं और स्वयं कोटद्वार में अपने मकान लेकर रह रही है !
मेरा मामाकोट
मेरे बड़े मामा जी प्रतापसिह हुए ! आगे चल कर ये नेता हुए, कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने और १९७७ तक गढ़वाल के सांसद रहे ! कोटद्वार इंटर कालेज के मैनेजर रहे ! इन्होने स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय हिस्सा लिया, जेल गए और स्वतंत्रता सेनानी कहलाए ! ३१ दिसम्बर सन १९८४ ई० में ८८ साल की उम्र में वे स्वर्गवासी हुए ! उनके तीन लड़कियां और एक लड़का है ! लड़का सुरेन्द्रसिंह उनकी कमाई हुई इज्जत और शौहरत को धरोहर के तौर पर संभाले हुए हैं और कोटद्वार, नजीबाबाद रोड पर प्रताप नगर बसाकर वहीं रह रहे हैं ! बड़ी लकड़ी शकुंतला देवी हैं जिनकी शादी गद्सिर कथूर में हुई थी के तीन लडके हैं ! दूसरी लड़की का नाम बिमला (बिल्लू) है वह भी अपने परिवार के साथ खुश है ! मेर दूसरे मामा जी श्री गोकुलसिंह जी थे ! जो एक बड़े सामाजिक नेता थे, कम पढ़े लिखे थे पर एक अच्छे वक्ता, लीडर और आस पास के इलाकों में ही नहीं दूर दूर तक भी उस जमाने के सामाजिक कार्य कर्ता के तौर पर जाने जाते थे ! वे पैसो से गरीब थे पर दिल के राजा थे ! जब १९४५ ई० में मेरे पिता जी का देहांत हुआ और वे मुझे अपने साथ ढौरी ले आये, वहीं प्राईमरी स्कूल में दूसरी क्लास में मेरा दाखिला हुआ ! उस वक्त उनके एक लड़का भूपेन्द्रसिंह और दो लड़कियां थी कमला और सरला ! (आज उनके परिवार में पांच संताने और बढ़ गयी हैं, नरेन्द्रसिंह, धीरेन्द्र, जीतेंद्र, गजेन्द्र और बिमला सभी शादी शुदा हैं और अपने परिवार के साथ मजे की जिन्दगी जी रहे हैं) ! कभी कभी दिखेत से मेरी मामी जी गायत्री देवी की माँ भी वहां आजाती थी ! इतने बड़े परिवार का पालन पोषण करना, उस हालत में जब की खेती से भी कुछ मदद नहीं थी, एक बड़ा चैलेन्ज था !
( लगातार तीसरे भाग में )

1 comment:

  1. परिवार के बारे में जान कर अच्छा लगा.

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