Saturday, July 31, 2010

मेरी कहानी (चौदवां भाग)

जिस समय मैं बच्चों को दिल्ली छोड़ कर जम्मू कश्मीर जा रहा था अचानक मेरे दिमाग में एक ख्याल आया की "अब क्योंकि मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी का ग्रेजुएट हूँ, १५ साल की फ़ौज की पेंशन वाली सर्विस भी हो गयी है, क्यों अब दर दर की ठोकर खाऊँ ! रिटायरमेंट लेकर बच्चों के साथ रहूँ ! भूत पूर्व सैनिक कोटे से दिल्ली में ही सर्विस मिल जाएगी" ! उन दिनों तक हवलदार था और आगे का प्रोमोशन कब तक मिलेगा, कुछ पता नहीं था ! रिटायरमेंट लेने के लिए भी एक बार यूनिट में तो जाना ही था ! बच्चों के साथ दिल्ली में गाँव से माँ को बुला लिया था ! मैं पूँछ चला गया ! दो तीन महीने जम जमाव में लग गए ! नया साल १९७४ आ गया था, कलेंडर बदली हो गया और दफ्तरों में नया कलेंडर लग गया ! जिन्दगी की असलियत भी यही है, पुराना चला जाता है उसकी जगह नया ले लेता है ! जब तक कुर्सी है चाहे वह एक लिपिक की हो या भारी भरकम मंत्री की इज्जत होती है, लेकिन कुर्सी की ! पहली अप्रेल १९७४ को मेरा दूसरा लड़का ब्रिजेश रावत का जन्म हुआ ! तीनों बच्चों के जन्म दिन पर मेरी माँ साथ रही ! यह सब मेरी माँ का आशीर्वाद है की आज मेरे तीनों बच्चे बहुत ही अच्छी पोजीशन पर हैं ! इन्हीं दिनों पता लगा की मैं भी अगले प्रोमोशन के लिए लाईन में हूँ, इसके लिए प्रोमोशन टेस्ट पास करना जरूरी था ! अब सारा ध्यान टेस्ट पर लग गया और प्री रिटायरमेंट का इरादा पीछे छूट गया ! छ हफ्ते का केडर किया, टेस्ट हुआ, मैं और मेरा साथी कमलसिंह दोनों टेस्ट पास कर गए और इन्तजार शुरू हो गया प्रोमोशन पाने का ! कमल मेरे से एक नंबर पहले था और उसके बाद मेरा नंबर था ! इन्हीं दिनों कमान अधिकारी ने मुझे ड्यूटी पर दिल्ली भेजा दस दिन के लिए ! दिल्ली आकर बच्चों को भी देखने का अवसर मिल गया ! ब्रिजेश एक महीने का हो गया था ! अच्छा तंदुरुस्त था ! चांदनी चौक में जेवेलर को बटालियन के लिए शील्ड मोमेंटो का आर्डर बुक करना था ! दिल्ली का काम पूरा करके मैं वापिस यूनिट में चला गया !
पहले की लोकेशन प्रोपर पूंछ थी लेकिन इस बार हमें पूंछ नदी पार करते ही, उत्तर में सेखलू नामक जगह मिली थी ! यहाँ से आगे चल कर मंडी नदी के साथ साथ मंडी नामक एक छोटा क़स्बा पड़ता है ! वैसे एक जवान की जरूरतों को पूरी करने लिए यूनिट के अन्दर ही सी. एस. डी (ऐ) कैंटीन होती है तथा कभी कभी चाय नास्ता के लिए सिविल बनिया की कैंटीन भी यूनिट के अन्दर होती है, फिर भी घूमने के बहाने हम लोग कभी मंडी तो कभी पूंछ बाजार चले जाते थे ! उन दिनों सच मुच में शांती का माहोल था ! न कोई आतंकवाद का भय, न कोई घूस पैठ न कोई दंगा फसाद की कोई समस्या थी ! सिविलियन जो यूनिट की सीमा के अन्दर काम करने आते थे उनके पहचान पत्र बने हुए थे ! चारों कम्पनियां ऊंची ऊंची पहाड़ियों के ऊपर मोर्चे बनाकर लाईन आफ कंट्रोल पर नजर रखने के लिए तैनात की गयी थी ! मैं बटालियन के मुख्यालय में अकाउंट आफिस में कार्य रत था ! बटालियन के सूबेदार मेजर दिलजान सर्विस पूरी करके पेंशन चले गए थे और उनकी जगह १९७३ ई० में भगवानसिंह नए सूबेदार मेजर बने ! ले.कर्नल मन मोहन कुमार बकाया पूरे पांच साल यूनिट की कमांड करके १०५ टी ए बटालियन के सी ओ बन कर चले गए थे और ले.कर्नल एच एन पालीवाल (कभी सेंटर के टू आई सी कन्हैया लाल जी के सुपुत्र) नए कमांडिंग आफिसर यूनिट में पोस्ट होकर आ गए ! उनके सेकंड इन कमांड थे मेजर पारीख ! १२ जून १९७६ ई० का दिन मेरी जिन्दगी का एक यादगार दिन बन कर आया, इसी दिन मुझे हमारे सी ओ साहेब ने नायब सुबेदारी के स्टार लगाए ! अब मैं जूनियर कमीसंड आफिसर था और जूनियर से सलूट का अधिकारी बन गया था ! पीटी ड्रेस बदल गयी थी, सफ़ेद हाफ बांह की शर्ट सफ़ेद निकर और सफ़ेद ही पी टी शूज ! जिम्मेवारी का बोझ कन्धों पर आ गया, चहरे पर एक रौब, एक खुशी की चमक ! जे सी.ओज म्यस में इन्ट्री हो गयी थी ! यूनिट की डायजेस्ट बुक (यह बुक आफिसर्स म्यस में रखी जाती है और इसमें रोज की महत्वपूर्ण घटनाओं का विवरण अंकित किया जाता है) में नाम अंकित हो गया था ! अब तो ऐसे लगने लगा की समय जैसे बहुत तेजी से भाग रहा हो और अगली मंजिल पर कुछ और नया होने वाला है !
सेखलू में तीन साल का फील्ड टेनुयर कब बीत गया पता ही नहीं लगा ! यूनिट को नया पीस स्टेशन मिला " बीकानेर" राजस्थान ! अभी वीकानेर में जम जमाव कर ही रहे थे मेरे बड़े भाई श्री कुंवरसिंह ४ नवम्बर १९७६ को हमें छोड़ कर स्वर्ग सिधार गए ! वे अपने पीछे पांच लडके दो लड़कियां और अपनी पत्नी बिमलादेवी को छोड़ गए ! बड़ा लड़का मुनीन्द्र १७ साल का था और १२ वीं में फेल हो गया था ! गाँव गया किसी तरह से परिवार को संभाला, सभी बच्चों को पढाई जारी रखने को कह कर मैं वापिस अपनी ड्यूटी पर बीकानेर आ गया !

इन दिनों दिल्ली में बहुत कुछ घट गया था, श्रीमती इन्द्रा गांधी ने सन १९६९ ई० में राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की अचानक मृत्यु होने पर नए राष्ट पति के लिए वी वी गिरी जो उस समय उपराष्ट्र पति थे का नाम प्रोपोज कर दिया, लेकिन कांग्रेस की कार्य समिति के १५ में से १३ सदस्य संजीव रेड्डी को
राष्ट्रपति बनाना चाहते थे ! इससे कांग्रेस का विभाजन हो गया ! कारण तो बहुत सारे थे लेकिन इसी बात को मुद्दा बनाया गया ! इन्द्रा जी की नयी कांग्रेस और कांग्रेस के दिग्गज जो वास्तव में पार्टी की असली जड़ें थी, कामराज, निजिंग्लाप्पा मोरारजी देसाई (उस समय देश के वित् मंत्री), मोहनलाल सुखाडिया आदि पुरानी कांग्रेस (इन्हें सिंडीकेट कांग्रेस भी कहा जाने लगा था ) बन कर कांग्रेस बाँट गयी ! वी वी गिरी कार्यवाहक राष्ट्रपति भी थे, उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए इस पद से त्याग पत्र दे दिया ! अब राष्ट्रपति की कुर्सी खाली थी, संविधान में कोई प्रोवीजन नहीं था की अगर ऐसी स्थिति आ जाए तो कौन इस कुर्सी पर बैठेगा ! आनन् फानन में संविधान में एक क्लोज और जोड़ा गया और भारत के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को भारत का कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया ! मोरारजी देसाई को वित् मंत्री पद से हटाया गया ! वी वी गिरी जीत गए और इन्द्रा गांधी की पकड़ सता पर मजबूत हो गयी ! सन १९७१ में समय से पहले ही संसद के चुनाव करा दिए गए ! इन्द्रा गांधी की कांग्रेस अपने बल बूते पर सता में आ गयी ! सन १९७१ की लड़ाई से इन्द्रा जी का कद और भी बढ़ गया ! इन्हीं दिनों इन्द्रा जी के चुनाव को उनके विरोधी ने कोर्ट में चैलेन्ज कर दिया और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रधान मंत्री इन्द्रा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया ! उस समय इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस थे "जगमोहन" ! विपक्ष जय प्रकाश नारायण की अगुवाई में एक छतरी के नीचे आ गए ! इसमें कम्युनिस्ट पार्टियों के लोग भी शामिल हो गए, तथा जन संघ (आज की भारतीय जनता पार्टी) जिसके प्रमुख थे अटल बिहारी बाजपेयी और लाल कृष्ण अडवानी ! रैलियाँ निकाली जानी लगी, सडकों में जाम लगाया गया ! हड़ताल, नारे बाजी, "इन्द्रा गांधी इस्तीफा दो", आम जनता भी सडकों पर आ गयी ! क़ानून व्यवस्था चरमराने लगी ! संसद और विधान सभाओं में काम ठप हो गया ! संन १९७५ ई० में कांग्रेस सरकार ने देश में अमर्जेंसी लगा दी ! नेताओं की धर पकड़ शुरू हो गयी ! विधान सभाएं और संसद भंग कर दी गयी ! जेल भरी जानी लगी ! आम आदमी के सडकों पर आने जाने में प्रतिबंद्ध लग गया ! १९७६ में संसद के चुनाव होने थे वे भी कैंसिल हो गए ! जब विदोह ज्यादा ही भड़क गया तो सन १९७७ ई० में संसद के चुनाव कराए गए ! इसमें कांग्रेस के कदावर और इन्द्रा जी के ख़ास सहयोगी हेमवती नंदन बहुगुणा और जग जीवन राम भी इन्द्रा जी से अलग हो गए ! १९७७ का चुनाव जनता पार्टी बहुत भारी मतों से जी गयी, स्वयं इन्द्रा गांधी को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा ! स्वतंत्रता के बाद पहली बार देश में कांग्रेस सता से बाहर हुई ! मोरारजी देसाई प्रथम विपक्षी प्रधान मंत्री बने ! चरणसिंह जी गृह मंत्री ! मोराजी देसाई ने कुर्सी पर बैठते ही सबसे पहले अमर्जेंसी को हटाया ! जनता में खुशी की लहर चल पडी ! घर घरों में दीप जलाए गए ! आम आदमी समझने लगा की जनता पार्टी की जीत आम आदमी की जीत है और अब कोई भाई भतीजा वाद नहीं होगा, सब को नौकरी मिलेगी, महंगाई समाप्त हो जाएगी, अमीर गरीब की खाई काफी कम हो जाएगी ! सबको समान न्याय मिलेगा ! हर भारतवासी के रोटी कपड़ा और मकान की समस्या नहीं रहेगी !

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