Wednesday, July 21, 2010

मेरी कहानी (नवां भाग)

दिल्ली में समय काफी था, मेरी स्कूली शिक्षा केवल १० वीं तक थी, मैंने उत्तर प्रदेश बोर्ड जहाँ से मैट्रिक पास किया था, वहीं से १९६९ ई० में १२ वीं पास भी कर ली ! कोटद्वार जहां मैं दो साल पढ़ा था वहीं सेंटर पडा ! जो १० वीं में हमारे अंगरेजी के अध्यापक थे, श्री सोनी सर, अब प्रिंसिपल थे ! १६ साल के बाद फिर परिक्षा देने गया था ठीक उसी स्कूल में ! इतिहास अपने आप को दोहराता है ! उन दिनों स्कूली विद्यार्थी था आज एक सैनिक था १२ साल सर्विस वाला ! फिर दिल्ली से ही तीन साल का डिग्री के लिए पत्राचार कोर्स किया और सन १९७२ ई० में बी ए डिग्री भी ले ली ! यूनिट इस समय मिजोराम की पहाड़ियों में मिजो विद्रोहियों से संघर्ष रत थी ! मेरी पोस्टिंग भी मिजोराम हो गयी थी ! १९७०, अगस्त के महीने में मैंने बच्चों को गाँव पहुंचाया और कोटद्वार से मिजोराम के लिए अपनी यात्रा शुरू कर दी ! चार साल के बाद परिवार से अलग होने का गम, लड़की तीन साल की और लड़का चार महीने का, यही मौक़ा था बच्चों के बचपन देखने का, उनके साथ बच्चा बनकर उन्हें खिलाने का आनंद लेना ! पर यहाँ तो बच्चों को छोड़ कर जाना पड़ रहा था दूर बहुत दूर ! मेरे साथ दो लडके थे, एक पुलिस का था जिसको अरुणाचल जाना था दूसरा फ़ौजी था उसे भी मिजोराम ही जाना था ! पुलिस वाला लड़का ६ साल सर्विस वाला था और दूसरा दो साल फ़ौजी ट्रेनिंग होते ही पहली बार यूनिट जा रहा था दोनों की शादी नयी नयी हुई थी ! उनमें मैं ही सीनियर था, बातों ही बातों में उनके परिवार से बिछुड़ने का गम कम करने की कोशीश करता रहा ! अगले दिन लखनऊ पहुंचे, वहां से गाडी बदली की और दूसरी गाडी मुगलसराय होते हुए लामडिंग पहुंचे यहाँ से एक साथी हमसे अलग होगया ! हम तीनों ही अपने बच्चों को छोड़ कर दूर बहुत दूर देश के दूसरे किनारे पर जा रहे थे, तीन दिन कब बीत गए कुछ भी पता नहीं चला और अब एक साथी हमसे विदा हो रहा था, हम दो और वह बिलकुल अकेला पड़ गया था, कितना रोया था वह हम दोनों के गले लग कर, आज भी याद है मुझे वह करुना-जनक दृश्य ! हर फ़ौजी रेल या बस यात्रा में ऐसे ही मिलते थे दोस्त बनते थे और ऐसे ही बिछुड़ जाते थे, और बिछुड़ते हुए ऐसे ही दर्द होता था, आज भी होता होगा ! मिजोराम सिलचर के लिए लामडिंग से गाडी पकड़ी और ३७ सुरंगों को पार करते हुए, नदी के किनारे किनारे मिजोराम के आखरी स्टेशन पर पहुंचे ! सिलचर में ट्रांजिट कैम्प में रिपोर्ट की, यहाँ से हमारी यूनिट करीब १०० किलोमीटर आगे दक्षिण दिशा में थी ! मेरे आने की रिपोर्ट यूनिट में लग गयी थी मेरे लिए यूनिट से जीप कैम्प में आगई थी ! अब दूसरे साथी के बिछुड़ने की बारी थी, उसकी दशा पहले वाली से ज्यादा ही करुना-जनक थी ! उसे वहीं कैम्प में छोड़ कर मैं यूनिट के लिए चल पड़ा ! रस्ते में एक सिस्टर बटालियन मिली थी ७ राज रिफ ! वहीं लंच किया कुछ पुराने साथी भी मिले और फिर अगले दिन पहुंचा मिजोराम की राजधानी ऐजल ! ऐजल नदी घाटी पहाड़ों से घिरा हुआ एक बहुत ही खूबसूरत स्थान पर बसा हुआ है ! उस समय लालडेंगा नामक बिद्रोही नेता इस घाटी पर कमांड करता था ! और इसी की सह से राज्य के नव जवान सरकार की खिलाफत कर रहे थे ! ईसाई मिशनरियां भी आग में घी का काम कर रही थी ! हर गाँव में हर बटालियनों की एक एक कंपनिया तैनात थी ! ये विद्रोही फ़ौजी गाड़ियों को नुकशान पहुंचा दिया करते थे या कैम्पों पर अटैक कर देते थे ! इनको काबू करने के लिए एक ब्रिगेड यहाँ तैनात था ! यहाँ से नदी को पार करके पूर्व दिशा में एक ऊंची पहाडी सेलिंग में हमारी बटालियन का मुख्यालय था ! यही मेरी मंजिल थी ! यूनिट कार्यालय के ठीक सामने हेलीपैड था, जहां जब कोई वी आई पी या वी वी आई पी दिल्ली से आता था तभी यहाँ हेलिकॉप्टर उतरता था ! पहाडी के ऊपर अच्छा ख़ासा मैदान था, जहां यूनिट बेस में रहने वालों के लिए बांस के झोपडी नुमा बासा बने हुए थे ! सब कुछ बांस का, घर, ऑफिस, आफिसर्स/जे सीओ म्यस जवानों के लंगर, यहाँ तक टेबिल कुर्सी भी बांस की ! यहीं के स्थानीय मिजोवासी बनाते थे ये सब कुछ ! हवाएं खूब चलाती थी, बारीश भी खूब होती थी ये बासे बहुत ही मजबूत होते थे, पानी की बूँद भी अन्दर नहीं आ सकती थी ! गेम खेलने के लिए अच्छे खासे मैदान भी थे ! कम्पनियां गाँवों में मोर्चे बनाकर रहते थे ! हमारे नजदीकी गाँव थे थिन्सुथिलिया, बकत्वांग, खोरियाँ ! यहाँ तीन साल में यूनिट ने यहाँ के स्थानीय लोगों के साथ, भाई चारे का नाता निभाया, उन्हें, राशन, पानी, दारु दवाइयों से लेकर उनके सामाजिक कामों में भी उन्हें मानसिक और आर्थिक मदद दी !
मिजोराम एक नजर में
मिजोराम बंगला देश से सटा हुआ घंने जंगलों से ढका हुआ देश के पूरब दक्षिण में एक पहाडी प्रदेश है ! यहाँ आजादी से पहले आदिवासी लोग छोटे छोटे झुंडों में ऊंची ऊंची पहाड़ियों पर रहते थे दूसरे विश्व युद्ध के समय पैदल सैनिकों के लिए यहाँ से होते हुए बर्मा बाडर तक १२ फूट का एक कच्ची सड़क बनी थी जिसका अस्तित्व संन १९७० तक भी था ! बारीश लगातार होती रहती है, जंगल बहुत ही घन्ना है और जंगल के अन्दर प्रवेश करना बहुत ही कठीन था ! यहाँ के आदिवासी विद्रोही खून्खरी दरांती की सहायता से झाड़ियाँ काट काट कर जंगल में छिपने के लिए अपना ठिकाना बना लेते थे ! यहाँ के सभी लोग ईसाई मिसनरियों के प्रभाव में आकर ईसाई मत को मानने वाले हैं ! हर गावों में चर्च हैं और हर रविवार को सभी लोग स्त्री पुरुष बच्चों सहित चर्चों में प्रार्थना करते हैं ! आजादी के बाद इन लोगों को एक सूत्र में बांधने के लिए तथा उन्हें देश की मुख्य धारा के साथ जोड़ने के लिए एक योजना के तहत केन्द्रीय सरकार ने पूरे प्रदेश को जोड़ने के लिए एक सड़क का निर्माण किया जो मिजोराम को दूसरे प्रदेशों से मिलाती है ! सारे आदिवासियों को ऊंचे ऊंचे टीलों से उतार कर सडकों के किनारे गावों में उन्हें बसाया गया ! हर गाँव में १२ वीं तक स्कूल खोले गए ! अस्पताल व् खेल के मैदान ! सरकारी राशन की दुकाने खोली गईं ! बाद में विद्रोहियों के नेता से समझौता करके लालडेंगा को ही मिजोराम का मुख्य मंत्री बनाया गया ! अब तो इक्कीसवीं सदी यह एक फुल फ्लैज्ड राज्य बन गया है और वहां शांती भी लौट आई है !
खेती
यहाँ गावों में दो प्रकार के लोग रहते हैं एक बनिया जो अपनी दुकान चलाते है दूसरे मजदूर और किसान ! यहाँ ऊंची ऊंची दुर्गम पहाड़ियां हैं इसलिए एक स्थान पर खेत बनाकर खेती करना मुमकिन नहीं है ! किसान लोग हर साल एक पहाडी पकड़ लेते हैं उस पर जा कर झाड़ियाँ काट कर सुखाने पर सारे पर आग लगा आते हैं फिर जाकर खुरपी, बेलचा,
गैंती फावड़े से खुदाई करके वहां चावल बो देते हैं ! फिर केवल फसल काटने को ही इन्हें जाना पड़ता है ! फसल काटने के लिए ये वहां झूला बनाकर १५ बीस दिन तक रहने का इंतजाम करते थे जिसे वे झूम कहते हैं, धान कटाई, मंड़ाई करके धान को बोरों में भर कर सडकों के किनारे इकठ्ठा कर देते हैं फिर ट्रक ड्राइवर इनको ट्रकों में भर कर गाँवों तक पहुंचा देते हैं ! अगले साल इन्हें दूसरे जंगल को खेती के लिए चुनना पड़ता है ! यहाँ का फल अन्नानास बहुत प्रसिद्द है ! जंगली केले होते हैं बहुत ही छोटे माचीस की तिल्ली के बराबर लेकिन इनकी मिठास कही दिनों तक मुंह में रह जाती है ! यहाँ का एक राजा भी होता है, जिसकी उन दिनों तक १६ रानियाँ थीं ! उसकी उम्र ६५ साल की थी, सबसे बड़ी रानी ६० की और सबसे छोटी १६ साल की थी ! एक राजकुमार से भी हम मिले जिसकी चार शादियाँ हो चुकी थी और ६-७ संताने थी ! राजा की संतानों का कोई हिसाब नहीं था ! राजा - राज कुमार हर समय नशे में रहते थे !

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