Saturday, July 24, 2010

मेरी कहानी (दसवां भाग)

मिजोराम भारत को कुदरत की एक अनुपम भेंट है, घंने जंगल, विभिन्न प्रकार के रंग विरंगे फूलों से लदे छोटे बड़े मन को लुभाने वाले पौधे, गगन चुमते किस्म किस्म के पेड़ ! नदी चश्में, आसमान से मिलते हुए पर्वत श्रेणियां, पहाड़ों से गिरते झरने, गहरी घाटियाँ, मन का भंवरा इन कुदरत की खूबसूरत वादियों में अटक कर भटक जाता और निकालने का नाम ही नहीं लेता ! यहाँ के लोग मेहनती, दिलेर और मजबूत कद काठी के हैं ! यहाँ लड़कियां संख्या उन दिनों लड़कों के मुकाबले ज्यादा थी ! पहाडी बालाएं खूब सूरत लाल टमाटर जैसी लगती थी ! अशिक्षा के कारण यहाँ की जनता ईसाई मिसनरियों के बहकावे में आकर बगावत पर उतर आये ! इनको इज्जत चाहिए, मोहब्बत चाहिए ! दग्गेवाज और झूठे लोगों से इनको शक्त नफ़रत थी ! हमारी यूनिट ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया और तीन साल तक जब तक वहां रहे, सही दोस्ती निभाई ! जिन गाँवों में हमारी यूनिट रही वे इन तीन सालों में काफी शांत हो गए थे ! इन जंगलों में जान कारों के लिए आयुर्वेदिक जडी बूटियाँ प्रचूर मात्रा में उपलब्ध हैं ! चश्मे बहुत हैं पानी भी काफी है लेकिन पीने का पानी बहुत कम है ! यहाँ पीने लायक पानी जांचने के लिए पानी का टेस्ट किया जाता था जिस चश्मे का पानी पीने लायक होता वहीं से टैंकरों से पानी भर कर लाया जाता उसे भी उबाल पर पिया जाता ! काफी जवानों के पेट में तागे जैसे कीड़े हो गए थे यहाँ का पानी पीने से ! कुछ पेड़ पौधे भी जहरीले थे जिनकी जानकारी हर जवान को यहाँ आते ही दी जाती थी ! यहाँ की भाषा में जवान लडके को कप्पू और जवान लड़की को कप्पी कहा है ! पानी को पुई और चाय को थिन्गपुई कहते हैं ! मैं अच्छा हूँ मिजो में कहेंगे "तक तक कलोम" ! सारांश की यहाँ के लोग संगठित दोस्तों के दोस्त और दुश्मनों के दुश्मन है ! अब हमारी यूनिट का तीन साल का अर्सा पूरा होने जा रहा था, हम फिर किसी पीस स्टेशन पर जाने की तैय्यारी करने लगे ! सामान इकट्ठा करके पैक होने लगा, स्पेशल ट्रेन बुक की गयी ! आर्मी की कानवाई बुक हो गयी ! अब के यूनिट को पीस स्टेशन मिला था "नसीराबाद "(राजस्थान)! यूनिट में जे सी ओज जवान ज्यादातर राजस्थान हरियाणा, पंजाब और यू पी के थे, इसलिए करीब सभी के चहरे खिले हुए थे ! मार्च/अप्रेल के महीने में हम लोग मिजोराम की पहाड़ियां उतर कर सिलचर आये ! स्पेशल ट्रेन मिलने में बिलम्ब हुआ, इसलिए १५ दिन तक सिलचर में कैम्प लगा कर रहना पड़ा ! उन दिनों यूनिट के कमांडिंग अधिकारी थे ले.कर्नल मन मोहन कुमार बकाया और सेकंड कमान अधिकारी थे मेजर रामचंद्र ! स्पेशल ट्रेन अगर अमर्जेंसी है तो रेल लाईन भी स्पेशल मिल जाती है नहीं तो पहले लाईन की ट्रेनों को लाईन मिलती है बाद में स्पेशल ट्रेने चलती हैं, इस तरह ३ दिन का सफ़र कभी कभी पांच से सात दिन भी लग जाते हैं ! यूनिट को आखीर ट्रेन में बैठने का आदेश हो गया, ट्रेन भी चल पडी, रास्ते में जहां भी गाडी रुकती सुबह सुबह वही रूटीन पीटी, ब्रेक फास्ट लंच! गाडी में ही औफ़िस का काम भी चलता था, ड्राफ्ट बनते थे, जरूरी लेटर भेजे जाते थे, आर्मी पोस्ट ऑफिस को यूनिट के नए लोकेशन पर डाक भेजने का निर्देश हो चुका था ! दो दिन के बाद गोहाटी पहुंचे ! उन्हीं दिनों पूर्वी पाकिस्तान में पश्चिमी पाकिस्तानी सेना ने वहां की आम जनता पर अत्याचार और जुल्म ढाने शुरू कर दिए ! मुजीबुल रहमान को जिन्हें लोग प्रेम से बंग बन्धु कहते थे, पश्चिमी पाकिस्तान में कैद कर दिया गया था !
पाकिस्तान में अभी भी फ़ौजी ताना साह शासक था ! पूर्वी पाकिस्तान के लोग सहायता के लिए भारत की
तरफ देख रहे थे ! हमारी यूनिट को २४ घंटे के लिए गोहाटी में रोका गया ! उम्मीद की जाने लगी की शायद यूनिट को ढाका जाना पड़े ! खैर अगले दिन हमें हरी झंडी मिली और स्पेशल ट्रेन मजे मजे से चलती हुई छट्टे दिन नसीराबाद पहुंचे ! तीन साल के बाद फिर राजस्थान की भूमि पर हम कदम रख रहे थे ! एक उल्लास एक खुशी हर जवान के चहरे पर झलक रही थी ! एक हफ्ते के अन्दर ही सारा सामान नयी यूनिट की बारीकों में पहुंचाया गया ! जम जमाव में एक और हफ्ता लग गया ! जिन जवानों को अपने बच्चे लाने थे उन्हें छुट्टी भेजा गया ! फॅमिली क्वार्टर अलाट किये गए ! कंपनियों को बारिकें बांटी गयी ! मेंन कार्यालयों को जैसे ऐडजुटेंट आफिस, क्वार्टर मास्टर आफिस कमान अधिकारी का आफिस सजा दिए गए, उनके बाहर कही रंगों को इस्तेमाल करके नाम की तख्ती लटका करके एक अलग ही पहिचान दी गयी ! दफ्तरों में काम होने लगा ! और कुछ ही दिनों में सब कुछ नार्मल होगया ! सेंटर से जमा सामान वापिस मंगाया गया ! हर बटालियन की पहचान यूनिट क्वार्टर गार्ड होता है, और बाहर से जब भी कोई बड़ा अधिकारी विजित करने या सालाना निरीक्षण करने आता है तो उसे यूनिट क्वार्टर गार्ड पर गार्ड आफ आनर देकर सम्मानित किया जाता है तब कमान अधिकारी के दफ्तर में जाता है ! मुझे बी ए दूसरे साल की परीक्षा देने दिल्ली जाना था, इसलिए दो महीने की छुट्टी लेकर मैं दिल्ली चला गया ! दिल्ली में मनोहर लाल अस्पताल के सामने नार्थ एवेन्यू १५९ नंबर एम पी बंगले में मेरे मामा जी श्री प्रतापसिंह नेगी जी रहते थे, वे उसी साल एम पी का चुनाव जीत कर आये थे ! मैं परीक्षा देने के लिए उन्हीं के बंगले पर रहा ! परिक्षा समाप्त होने के बाद गाँव बच्चों को लेने चला गया ! मई के महीने में दो महीने की छुटी समाप्त करके मैं बच्चों को लेकर नसीराबाद आगया ! क्वाटर अच्छा मिल गया था, बिटिया उर्वशी को यहीं पहली क्लास में दाखिला दिला दिया ! (ग्यारवाँ भाग)
दिला दिया !

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