Friday, July 16, 2010

मेरी कहानी (छट्टा भाग)

उस समय तक रेल केवल पठानकोट तक ही थी ! पठानकोट में स्टशन पर फ़ौजी गाड़ियां मौजूद रहती थी जो सैनिकों को चाहे वे छुट्टी जा रहे हों, छुट्टी से आ रहे हों, पोस्टिंग आ या जा रहे हों, ये गाड़ियां उन्हें सेना के ट्रांजिट कंप ले जाती थी ! वहां से छुट्टी जाने वाले फिर रेलवे स्टेशन गाडी पकड़ने चले जाते थे और अपनी अपनी यूनिटों में जाने वाले ट्रांजिट कैम्प से फौजी गाड़ियों द्वारा जम्मू अगले ट्रांजिट कंप में भेजे जाते थे ! जम्मू से पूंछ की तरफ जाने वाले पश्चिम दिशा को चले जाते थे, नगरोटा और श्रीनगर, लेह लदाक जाने वाले उत्तर दिशा की ओर भेज दिए जाते थे ! आज तो नगरोटा में पूरी कमांड है और रेलवे स्टेशन है जब की उन दिनों केवल एक कोर था ! कोर कमांडर थे ले.जनरल बिक्रमसिंह अपने टाईम के एक ख्याती प्राप्त जनरल, एक उच्च कोटि के शासक प्रशासक थे , उनके नाम से ही दुश्मनों के पसीने छूट जाते थे ! लेकिन जहाँ सेना में क़ानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए वे बड़े शक्त थे वहीं जवानों की सुख सुविधा का भी पूरा ध्यान रखते थे ! मैं तो उन्हें दिल्ली से ही जानता था ! सन १९६०-६१ में दिल्ली एरिया कमांडर थे, २६ जनवरी मनाने के लिए तमाम प्रदेशों के लोकल डांसर यहाँ तालकटोरा गार्डन में एक महीना पहले जमा हो जाते थे ! उनके लिए ऐडम बंदोबस्त करने के लिए आर्मी यूनिटों की मदद ली जाती थी ! जवान जे सी ओज की एक टीम १९ वीं आर्टी प्लाटून की थी और राजपुताना राईफल्स रेगिमेंटल सेंटर से मैं एक लिपिक के तौर पर वहां तैनात था ! ये सारा प्रबंध दिल्ली एरिया और स्टेशन हेडक्वार्टर के अधीन था ! एक दिन शाम के वक्त जनरल बिक्रमसिंह जी वहां ताल कटोरा में आये और उन लोकल डांसरों को पूछने लगे की उन्हें वहां कोई किस्म की परेशानी तो नहीं है ! वहां पार्क के बीच में एक बड़ी खाई थी और इन लोगों को इस पार से उस पार जाने के लिए नीचे खाई में उतरना पड़ता था, इस परेशानी को उन्होंने जनरल साहेब को बताया, उस वक्त वे मेजर जनरल थे ! उन्होंने उसी समय एम ई एस के इंजीनियर को बुलाया और सुबह तक खाई के ऊपर पूल बन कर तैयार हो गया था ! जो करना है तुरंत करो, ये आदर्श था जनरल साहेब के जीवन का ! मेरे जीवन में १९६१ के ताल कटोरा में बिताए हुए ये दिन विशेष महत्त्व के रहे, इन लोगों के साथ हमें उन स्थानों पर भी जाने का अवसर मिला जहां हर किसी के लिए संभव नहीं होता ! जब गणतंत्र दिवस मनाया गया, बीटिंग दी रीट्रीट की समाप्ति पर इन प्रदेशों के लोकल डांसरों को गोलचा सिनेमा हौल में उस वक्त की मशहूर फिल्म "मुगले आजम" दिखाई गयी, जिसमें दलीप कुमार, मधु बाला, और पृथ्वी राज कपूर मुख्य भूमिका में थे ! हम सैनिकों को भी उन लोगों के साथ फिल्म देखने का अवसर मिला ! उसके बाद राष्ट्रपति भवन में जाकर मुग़ल गार्डन में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा० राजेन्द्र प्रशाद जी के साथ फोटो खिंचवाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ! अगले दिन इन लोगों के साथ हम त्रिमूर्ति प्रधान मंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू जी के निवास स्थान पर गए और नेहरू जी तथा श्रीमती इन्द्रा गांधी जो उस समय कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष थी के साथ फोटो खिंचवाई ! ताल कटोरा गार्डन में ही सिविल ड्रेस में उस समय के रक्षा मंत्री श्री कृष्णा मेनन के साथ भी फोटो खिंचवाई गयी !
जनरल बिक्रमसिंह जी जब तक जम्मू कश्मीर में रहे, वहां अमन चैन रहा, सड़क दुर्घटनाओं में कमी आई, सेना और लोकल जनता का आपस में भाई चारा जैसे सम्बन्ध थे ! लेकिन विधि को यह सुख शांती अमन चैन रास नहीं आई ! २२ सितम्बर १९६३ को पांच अन्य जनरलों के साथ वीर बिक्रमसिंह जी एक हेलीकाप्टर दुर्घटना में मारे गए ! पूँछ नदी के किनारे जहां पर आग की लपटों में जलता हुआ हेलीकाप्टर गिरा था एक संगमरमर शिला पर तारीख के साथ इन जनरलों का नाम अंकित है ! मैं उस समय अपनी यूनिट के साथ पूँछ में ही था और हमने जलता हुआ यह हेलीकाप्टर अपनी आँखों से देखा था ! और इसी २२ सितम्बर १९६३ को अमेरिका के राष्ट्रपति जौन कैनेडी भी एक हत्यारे की गोली से मारे गए थे ! (ऐतिहासिक घटना) ! २६ मई को हमारी यूनिट फील्ड फायरिंग के लिए बेस के पूर्व दक्षिण में झलास रेंज पर गयी थी, वहीं २७ मई को भारत के प्रथम प्रधान मंत्री के निधन का समाचार मिला ! श्री लाल बहादूर शास्त्री जी को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर प्रधान मंत्री बनाया गया ! (सातवाँ भाग )

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