Tuesday, July 27, 2010

मेरी कहानी (ग्यारवाँ भाग)

फौजियों को बहलाने के लिए की आपकी बटालियन अब पीस में जा रही है कम से कम तीन साल तो मजे से कटेंगे ! लेकिन सही में यूनिट का पीस टाईम फील्ड टाईम से ज्यादा भाग दौड़ का होता है ! यहाँ ड्यूटियां बढ़ जाती हैं, सिविल सरकार को जरूरत पड़ने पर क़ानून व्यवस्था बनाए रखने में मदद देनी पड़ती है, दो महीने के लिए ट्रेनिंग कैम्प में यूनिट से दूर जाना पड़ता है, खेल प्रतियोगिताएं होती रहती हैं ! फिर हर जवान को दो महीने की छुट्टी के अलावा आकस्मिक छूटी दी जाती है, जो फील्ड एरिया में संभव नहीं होता ! असली लड़ाई में तो सालों जवानों को छुटियाँ नहीं मिलती ! पीस में हर जवान के बच्चों की पढाई और परिवार के स्वास्थ्य के बारें पूरा ध्यान रखा जाता है ! जम जमाव हो गया था लेकिन अचानक पाकिस्तान के फ़ौजी हुकमरानों के दिमाग की खुरापाती घंटी बजी और सीमा पर फिर पाकिस्तानी सैनिकों की हल चल शुरू हो गयी ! जितनी भी यूनिटें पीस में थी सभी को सीमा पर जाने का आदेश हो गया ! हमारी यूनिट भी पूरे डिविजन के साथ जैसलमेर, रामगढ़ होते हुए सीधे किशनगढ़
पहुँची ! १९६५ तक सड़कें कच्ची थी और यहाँ किशनगढ़ में केवल बी एस एफ की एक प्लाटून तैनात थी ! अब तो जैसलमेर से किशनगढ़ तक चौड़ी और साफ़ सुथरी सड़क है ! किशनगढ़ पाकिस्तान के रहिमयारखान, जहाँ उनका डिविजन मुख्यालय था के बिलकुल नजदीक पड़ता है ! यहाँ एक पुराना किला है जो अभी भी चारों ओर रेत के टीलों के बीच में अकेला खड़ा वीरगाथा काल की स्मृतियों को ज़िंदा रखे हुए है ! यहीं पर हमारी यूनिट का हेड क्वार्टर था ! इसके पश्चिम में एक प्राचीन मंदिर है इस मंदिर के विशाल आँगन में डिविजन/ब्रिगेड मुख्यालय कैमोफ्लाईज करके मोर्चो के अन्दर सेट किए गए थे ! अक्टूबर का महीना दिन में गर्मी और रात को सर्दी ! चारों ओर रेगिस्तान हजारों मील तक रेत और बालू के विशाल भण्डार कहीं ऊंचे ऊंचे रेत के पर्वत तो कहीं दूर दूर तक मैदान ! कंही कंही छोटी छोटी कंटीली झाड़ियाँ, इसके अलावा बनस्पति नाम का कोई पेड़ पौधा नजर नहीं आता है ! आँखें तरस जाती हैं हरियाली देखने के लिए ! हमारी यूनिट की कम्पनियां भी इन रेत के टीलों पर मोर्चे बनाकर कैमोफ्लाईज करके ड्यूटियां देने लगी ! पूरी तैय्यारियाँ ! किशनगढ़ किले के बाहर एक बहुत बड़ा कुंवा है जो यहाँ के पूरे डिविजन को पानी का एक मात्र जरीया था ! एक ऊँट लगातार पानी निकालने के लिए लगा रखा था ! यहाँ इस रेगिस्तान में सांप बिच्छु और हिरन भी देखने को मिल जाते हैं ! कही बार हमने देखा की ये हिरन इन कंटीली झाड़ियों की जड़ें उखाड़ कर अपनी प्यास बुझाते हैं ! यहाँ के स्थानीय लोग न तो इन हिरणों को स्वयम मारते हैं न किसी ओंर को इन्हें मारने देते हैं ! शायद गीदड़ और कुछ और भी छोटे छोटे जानवर इन रेगिस्तानों में पाए जाते हैं ! यहाँ की ट्रांसपोर्ट का काम करते हैं यहाँ के ऊँट जिनको desert ship कहा जाता हैं !
मंदिर
घंटियाली नाम से यहाँ किशनगढ़ किले के दक्षिण में यह मंदिर बहुत प्राचीन मंदिर है ! यहाँ के स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र बिंदु है ! कहते हैं सन १९६५ ई० की लड़ाई के सीज फायर बाद पाकिस्तानी आर्मी के जवान इस रेगिस्तान के अधिक से अधिक हिस्से पर अपना अधिकार ज़माना चाहते थे, उस समय बी एस एफ की केवल एक प्लाटून इस मंदिर में मौजूद थी ! बाहर से संचार व्यवस्था कट हो गयी थी ! राशन भी समाप्त होगया था ! एक रात को ये जवान अपने कमांडर के साथ भागने के लिए मंदिर से बाहर निकले ! चांदनी रात थी ! अचानक उन्हें मंदिर के द्वार पर एक सफ़ेद वस्त्रों में लिपटी एक छाया नजर आई ! साथ ही एक आवाज आई "मंदिर छोड़ कर जाओगे ज़िंदा नहीं बचोगे, खैर चाहते हो यहीं मंदिर में छिपे रहो, बाहर पाकिस्तानी शिकारी कुत्तों की तरह घूम रहे हैं !" वे लोग वापिस मंदिर में चले गए ! और उसी रात एक चमत्कार हो गया ! पाकिस्तानी हेलीकाप्टर ने पाकिस्तानी गस्ती दस्ते के लिए जो राशन गिराया वह मंदिर के आँगन में गिर गया ! इन जवानों के मजे हो गए, ऊपर से भगवान ने राशन जो गिरा दिया था ! एक महीने तक मंदिर में रहे ऐश किये ! राशन में चावल, आटा, दालें, गर्म मशाले, सूखे मेवे, चीनी, और सब कुछ था ! तब तक दोनों देशों की सेनाएं अपने अपने कैम्पों में लौट गए थे ! इनके लिए भी अपनी यूनिट में जाने का रास्ता साफ़ हो गया था ! देवी माँ को चढ़ाव चढ़ा कर फूल मालाएँ पहिना कर ये लोग मंदिर से निकले और बिना किसी विघ्न वाधा के अपनी यूनिट में पहुँच गए ! यहाँ के स्थानीय लोग एक किस्सा और बताते हैं ! "जब बी एस एफ वाले मंदिर छोड़ कर चले गए तो पीछे से पाकिस्तान आर्मी के एक मेजर और दो सैनिक मंदिर में घुस गए और लगे मूर्तियाँ तोड़ने ! अचानक तोड़ फोड़ करने वाले दोनों सैनिक अंधे हो गए ! उनके कमांडर ने देवी माँ के आगे घुटने टेक कर माफी माँगी, दंड भरा ! इस तरह वे दोनों उदंड सैनिक पूरी तरह तो देख नहीं पा रहे थे लेकिन माँ ने उन्हें पूरा अंधा भी नहीं बनाया ! कहते हैं उस मेजर ने पाकिस्तान पहुँच कर दंड स्वरूप दो हजार रुपये मंदिर समिति को मंदिर की मरम्मत करने को भेजे थे" ! सन १९७१ की लड़ाई के दौरान पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों ने इस मंदिर के ऊपर काफी गोला बारी की लेकिन माँ की कृपा से एक बम भी नहीं फटा और न कोई नुकशान ही हुआ ! सारे बम रेत में घुस गए !

1 comment:

  1. बहुत रोमाँचकारी व बढिया जानकारी है....आभार।

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