Sunday, July 4, 2010

मेरी कहानी (पहला भाग )

मैं कौन हूँ ? कहाँ से आया हूँ ? मेरा परिवार में हमारे पूर्वज कौन थे, और कहाँ से आये थे ? ये सवाल बार बार मेरे दिलो दिमाग में कुल बुलाते रहते थे ! इतिहास के पन्नों में ढूँढता रहा, भारत का इतिहास, राजस्थान के राजपूतों का इतिहास, गढ़वाल का इतिहास, कुमांयु का इतिहास ! और जोड़ता रहा स्रोत एक के बाद दूसरा ! अपने रिश्ते के दादा परदादा और उनके जमाने के पास पड़ोस के गाँव के बुजुर्गों से भी कही बार मिला ! हरिद्वार, केदारनाथ, बद्रीनाथ के पंडों से मिला उनके द्वारा अपने परिवार के जो लोग उन पवित्र स्थानों के दर्शनों के लिए समय समय पर गए थे, उन लेखों का अवलोकन किया ! इन सारे तथ्यों को आधार बना कर मैं इस कहानी को लिख रहा हूँ !
राजस्थान के राजपूत
राजपूतों में पहले सूर्यवंशी और चंद्रवंशी राजपूत होते थे ! भगवान् राम सूर्यवंशी थे और भगवान् कृष्ण चंदवंशी राजपूत थे ! एक लेख के मुताविक राजस्थान में एक ऐसा समय भी आया जब राजपूतों का वैभव डीग मगाने लगा था और दुर्जन , डकैत, राक्षस प्रवृति के लोग बड़ी संख्या में गरीब, असहाय जनता को लूटने और उन्हें सताने लगे थे ! इन दुष्टों से छुटकारा पाने और उन्हें दण्डित करने के लिए उस समय के विद्वान ब्राहमणों ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था और अग्नि के महाकुंद में हवंन सामग्री विसर्जित की गयी थी ! उसी अग्नि कुंड से चार सैनिक वर्दी से लैश राजपूत बाहर आये और उनहोंने उन तमाम दुष्ट प्रवृति के राक्षसों को समाप्त करके आम गरीब, असहाय जनता की रक्षा की थी ! उन्हीं वीर राजपूतों की संतान आगे चल कर अग्नि वंशी कहलाई ! इन में चौहान, चालुक्य , परिहार और परमार कुल के राजपूत हुए ! कुछ इतिहासकार इस को काल्पनिक कहानी कहते हैं ! समय के साथ साथ राजवंश बदलते गए और मेवाड़ की राज सता पर गोविलवंश के राणा सांगा १५२७ ई० तक विराजमान रहे ! वे एक वीर योद्धा और प्रतापी राजा थे ! पूरा राजस्थान उनके शासन के अधीन था ! उनके दरवार में बड़े बड़े योद्धा और लड़ाकू सैनिक थे ! उनमें से एक सेनापति था जिसका नाम था हेमंतसिंह रावत ! बड़ा शूरवीर और राजपरिवार का सच्चा राज भक्त था ! १५२७ ई० में जब बाबर ने खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा को पराजित कर दिया तो राजपूतों का संघठन बिखर गया ! राणा तो युद्ध में मारे गए और उनकी एक मात्र संतान उदयसिंह उस समय बहुत छोटे थे ! उनकी मां राणा की चिता के साथ सती होगई थी ! राज कुमार उदयसिंह उस वक्त अपनी दाई के संरक्षण में पल रहे थे ! इतिहासकार कहते हैं की दरवार का एक सैनिक राजकुमार को मार कर स्वयं मेवाड़ की गद्दी पर बैठना चाहता था ! उसने दाई से उदयसिंह को माँगा ! उसका लड़का भी उसी उम्र का था , उसने उस दुष्ट को वजाय उदयसिंह के अपने पुत्र को सौंप दिया ! जिसे उसने राजकुमार समझ कर मार डाला ! देश के लिए एक दाई द्वारा अपने पुत्र की कुर्वानी इतिहास के पन्नों में अंकित हो गयी !

राजपूत सरदार अब छोटे छोटे राज्य बनाकर स्वतंत्र रूप से एक दूसरे से लड़ने लगे, इस तरह मुगलों को मौका मिल गया और वे एक के बाद एक को हराते चले गए, लूटते चले गए, मारते चले गए या फिर उन्हें जबरदस्ती मुसलमान बनाने लगे ! सारे राजपूत राजस्थान छोड़ अन्य स्थानों में बसने लगे ! हमारे पूर्वज भी राजस्थान छोड़ कर पहाडी स्थान कुमायूं " पहुंचे ! ये लोग कुमायूं १७ वीं शदी के लग भाग पहुंचे ! कुमायूं पर उस समय कैंतूर राजाओं का शासन था ! उनका राज्य कुमायूं से लेकर गढ़वाल के जोशीमठ तक फैला था ! कुमायूं में उस जमाने में एक स्थान था काली कुमायूं, इसी स्थान पर हमारे पूर्वज पहुंचे ! यहाँ आज भी एक पवित्र स्थान है "चित्र शिला ", यहीं पर हमारे कुल देवता कैंतूर का निवास है ! कहते हैं वहां आज भी मैरवांन रावत लोग एक विशेष दिन पर पूजा अर्चना करके अपने कुल देवता को प्रशन्न करते हैं ! यहाँ पर हमारे पूर्वज करीब करीब जम गए थे की अचानक दुष्ट गोरखों ने सन १७९३ ई० में पूरे कुमायूं पर कब्ज़ा कर लिया ! फिर भगदड़ मची ! बहुत से लोग मारे गए, खेत बरबाद कर दिए गए ! किसानों के पास जो कुछ था सब ये दरिन्दे लूट ले गए ! हमारे पूर्वज वहां से भाग कर फिर पौड़ी गढ़वाल के एक गाँव थान्गर में बस गए ! १८०३-०४ में गोरखों ने फिर गढ़वाल पर भी आक्रमण कर दिया, यहाँ भी खून की दरिया बहाई गयी ! फसलें नष्ट कर दी गयी ! वीर सैनिकों को बंदी बनाकर नेपाल ले गए ! उजड़े हुए गढ़वाल को उनहोंने अपने राज्य का हिस्सा बना दिया ! जो लोग बच गए वे एक तरह से नेपाल राजा की प्रजा हो गयी ! वहां से भी बच बचा कर हमारे परदादा के दादा वर्त्तमान स्थान गाँव " डाडा" पट्टी अजमीर वल्ला पहुंचे ! कहते हैं जब वे यहाँ आए थे तो यहाँ घना जंगल था ! जंगली जानवर यहाँ तक हिसक भी बड़ी मात्रा में इलाके में घूमते थे ! आसपास कोई बस्ती नहीं थी ! पुराने लोगों के कहने के मुताबिक़ यहाँ पर केवल एक आम का पेड़ था (जो काफी बृद्ध हो गया हीऔर आज भी इस कहानी का एक मात्र गवाह है ) जिसकी छत्र छाया में हमारे पूर्वज ग्रेट परदादा ने अपनी पत्नी के साथ रात बिताई थी ! सामान के नाम पर दो एक कम्बल, थोड़े से कपडे और २०-२१ के लग भाग भैंसे थी, जिनके गले में चांदी की हंसुली पडी थी, यही इनका धन था ! भैसों की देख भाल करने को एक नौकर भी साथ था ! यहाँ पहुँचने वाले प्रथम हमारे पुर्वज थे मेहताबसिंह ! उनके पांच पुत्र हुए, तीन तो गाँव छोड़ कर मालन नदी के किनारे क्यार्क चले गये थे और दो भाई चेतसिंह (मेरे पर दादा) और उनका भाई संग्रामसिंह यहीं रह गए ! धीरे धीरे गाँव पास पड़ोस में बसते चले गए ! सामने पूरब में रिटूर, दक्षिण में दालमिल, उत्तर में मोहनी और ह्वेल नदी के पार पूरब उत्तर में स्यांला गाँव बसा ! जंगल काटे गए, सीढीनुमा खेत तैयार किये गए ! पानी के चार चश्मे थे जिन में पानी बहुत था ! इतना पानी था की उन लोगों ने इन नालों में पिसाई करने के लिए पन चक्की लगाई हुई थी ! फलदार पेड़ लगाए गए, खेतों में फसलें उगाई जाने लगी, धान, गेहूं , जौ, मकई, मंडुवा, झंगोरा, ज्वार, बाजरा और कई किस्म की सब्जियां ! मशालों में मिर्च, धनिया, अदरक, लहसून आदि फसलें भी पैदा की जाती थे !
सिंचाई के साधन नहीं थे, लेकिन वारिश मौसम के अनुसार अच्छी हो जाती थी इस तरह फसलें इतनी हो जाती थी की अनाज परिवार के लिए काफी हो जाता था, तथा बचे हुए अन्नाज के बदले दुगड्डा, चौकीघाट से नमक, गुड, कपडे, वर्तन ले आते थे ! हर परिवार में एक बैलों की जोड़ी, तीन चार गायें, एक दो भैसे पाली जाती थी ! बच्चों के लिए दूध घी की कमी नहीं थी ! अब चारों तरफ आबादी होने से जंगली हिंसक पशु दूर चले गए ! ह्वेल नदी और छोटे बड़े नालों में खूब ताजा पानी बहता था तो बड़ी मात्रा में मच्छलियाँ भी उपलब्ध हो जाती थी ! मेरे पर दादा चैतसिंह जी के दो पुत्र हुए, लोकसिंह और उमरावसिंह ! लोकसिंह मेरे दादा इसी गाँव में बस गए व् मेरे छोटे दादा उमरावसिंह के लिए एक मात्र कस्बा पौखाल के दक्षिण पश्चिम में चर नाम के गाँव में जमीन खरीदी गयी और वे अपने परिवार के साथ वहीं रहने लगे ! प्रेम बना हुआ था इस तरह वे यहाँ डाडा आजाते थे और मेरे पर दादा दादा वहां उनकी मदद करने चले जाते थे ! पास पड़ोस के गाँव वाले भी आपस में हिल मिल कर रहने लगे ! सब ओर अमन चैन और शांती का माहोल था ! बाकी अगले भाग में !

5 comments:

  1. आपके द्वारा प्रस्तूत राजपूतों का पूरा इतिहास भ्रामक है,कदाचित आपको प्राप्त जानकारियां त्रुटिपूर्ण रही हो।
    राजपूतों का सूर्य डूब नहिं रहा था,बल्कि इस अग्नी वन्श की कथा से प्रारम्भ होता है,इतिहासकार इस कथा को कल्पना ही मानते है,
    लेकिन इस कथा से चार राजपूत कुलों की उत्पत्ति मानी जाती है।
    ये चार चौहान,चालुक्य,प्रतिहार एवं परमार थे। ये स्वयं को सूर्यवंश व चन्द्रवंश से जोड्ते है।
    लेकिन,जिस महाराणा संग्रामसिंह की आप बात कर रहे है,वे इतिहास प्रसिद्ध 'राणा सांगा'थे। और ये गोहिल वंशीय थे,न कि अग्नी वन्शीय। आपके पूर्वज हेमंत रावत,सम्भव है उनके कोई सरदार रहे हों।

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    1. हुकुम उन्होंने कब बोला कि उनका अग्नि वाँस हे

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  2. jaankaree ke liye dhnyavaad ! aap ne bilkul sahee faramaaya, ve raana saanga the, aur agni se chaar raajpooton kee utpati huee thee ! kripya aur bhee jaankaaree sveekaar karoonga, dene ka kasht karen ! harendra

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  3. your family history may be not correct , in uttrakhand hills buffallows are used for milk from only from about 50 years ,before that only cows are used .You tell me your branch of rawat like ringoda rawat/bangari rawat/gorla rawat etc .I have a chart of Rajput clans of uttrakhand . contact me on no 09314496798 or on facebook jagmohan singh rawat , presently working in Bikaner , email jsrawat.cpwd@gmail.com

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  4. हुकुम राणा सांगा युद्ध में नहीं मारे थे उनके किसी सरदार ने उनको ज़हर दिया था ओर उदय सिंह के से बड़े बहुत भाई थे ओर २ राज गंदी पर भी बेठे थे

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